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Sunday 24 May 2020

जय महाकाल 

नमस्कार दोस्तों !!

मैं आप सब का इस ब्लॉग में स्वागत करता  हूँ|

आप ने जब इस ब्लॉग का शीर्षक देखा होगा तो आप सब को लगा होगा की यह तो पुरानी पिक्चर का नाम  है| पर दोस्तों हमारा आज का ब्लॉग भारत के उन वीर साधुओं के ऊपर है जिन्होने अपने प्राणों की बाजी लगते हुए भारत के कई मंदिरों और हिन्दू धर्म की रक्षा की| अब आप सब में से कई लोगों के दिमाग में भगवान परशुराम का भी नाम आया होगा| तो दोस्तों आपके दिमाग में लगभग सही नाम आया है| पर यह ब्लॉग भगवान परशुराम के ऊपर नहीं बल्कि उनकी आराधना करने वाले साधुओं की प्रजाति नागा साधुओं के ऊपर है| इन्ही नागा साधुओं ने समय-समय पर कभी मोहम्मद गजनवी को तो कभी शाहजहाँ और औरंगजेब जैसे कई मुग़लों और अन्य अत्याचारी मुस्लिम राजाओं से भारत के मंदिरों और हिंदु धर्म की रक्षा की है| पर हमारा देश इन वीरों के बलिदान को भुला चुका है और जो देश अपने ही वीरों और योद्धाओं को भुला दे और किसी और देश की संस्कृति और लोगों के पीछे जाये उस देश की वास्तविक संस्कृति धीरे धीरे धूमिल होने लगती है| अतः जो लोग भी इस ब्लॉग को पढ़ रहें हैं उन सब से मेरा एक ही अनुरोध है की आप सब लोग इस ब्लॉग को जादा से जादा शेयर करें| चलिये तो आज के ब्लॉग को शुरू करते हैं|

दोस्तों नागा साधुओं की उत्पत्ति को लेकर बहुत से किस्से-कहानियाँ और किताबें हैं| पर उनमें से जो सबसे सही है, हम उस पर चर्चा करते हैं| पूर्व काल में 5वी इसा पूर्व में आदि शंकराचार्य का उध्भव हुआ जिन्होने होने सनातन-धर्म की स्थापना की और हिन्दू धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए विभिन्न अखाड़े भी बनाए| उस समय भारत पर बहुत से विदेशी आक्रमण हुए जिससे भारत के बहुत से मंदिरों और धर्म स्थलों की बहुत क्षति हुई| इन आक्रमणों से मंदिरों और धर्म स्थलों की रक्षा हेतु आदि शंकराचार्य ने नागा साधुओं के विभिन्न अखाड़ों की स्थापना की जिनका धर्म था मंदिरों और धर्म स्थलों की रक्षा हेतु युद्ध करना | इनके इन अखाड़ों के नाम इस प्रकार हैं-

1.      निरंजनी अखाड़ा
2.      जूना अखाड़ा
3.      महानिरवाणी अखाड़ा


https://www.paramkumar.in/
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इन अखाड़ों के वीरों का जिक्र हमें भारत के बहुत कम इतिहासकारों की पुस्तकों में मिलेगा पर अगर हम दूसरे देशों की बात करें तो वहाँ पे इनके बारे में भारत से भी अधिक और सटीक जानकारी मिलेगी| मैं यह नहीं कह रहा कि भारत के इतिहासकार गलत हैं, मैं बस एक बात बता रहा हूँ कि कुछ ऐसी घटनायें हैं, जो हैं तो भारत के वीरों के बारे में पर उन घटनाओं के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध होने के कारण हमारे देश में लोग नहीं जानते| आज के इस ब्लॉग में हम महानिरवाणी अखाड़ा के वीर नागा साधुओं के बारे में बात करेंगे| जिन्होंने काशी विश्वनाथ के मंदिर को बचाते हुये अपने प्राणो की आहुति दे दी और 17 वी सदी के भारत के सब से बड़े गैर-भारतीय, मुग़ल बादशाह आलमगीर औरंगजेब को तीन बार धूल चटा दी थी| तो आइये जाने किस तरह इस युद्ध का आरंभ हुआ|

हम लोग जिस समय की बात कर रहें उस समय पूरे भारत में केवल तीन ही शक्तियाँ थी जो मुग़लों से लोहा ले सकती थी| एक राजपूत, दूसरे जाट और तीसरे मराठा| इस समय अधिकांश भारत पर औरंगजेब की हुकूमत थी| उसने मुग़लों के राज को उस ऊंचाइयों पर पहुंचाया जहाँ पर कोई मुग़ल बादशाह न ले जा सका था और अपने इस राज्य को और सुद्रढ़ करने के लिए और भारत में अपने नाम का डर पैदा करने के लिए उसने भारत के हिन्दू मंदिरों और धर्म स्थलों को तोड़ना शुरू किया| औरंगजेब के भी पूर्व बहुत से मुग़ल बादशाहों ने भी ऐसा किया था| ऐसा कहा जाता है कि मुग़लों ने भारत में लगभग 10000 हिन्दू मंदिर तोड़े थे| औरंगजेब ने भी इसी राह पर चलते हुए मथुरा का प्रसिद्ध कृष्ण जन्म मंदिर सहित कई मंदिरों को अपना निशाना बनाया था| सन 1664 से 1669 तक औरंगजेब ने शिव मंदिरों को अपना निशाना बनाया, और इसकी शुरुवात उसने काशी विश्वनाथ के मंदिर से करने की ठानी| काशी विश्वनाथ को अपना निशाना बनाने की एक वजह यह हो सकती है की यह आगरा और दिल्ली दोनों से ही बहुत अधिक दूरी पर नहीं है| औरंगजेब ने ऐसा इसलिये किया क्योंकि काशी विश्वनाथ का मंदिर उसकी ही राज्य की सीमा के अंदर भी आता था| पर उसे पता नहीं था की उसे अपने ही राज्य में स्थित मंदिर को तोड़ने के लिए अपने 5 लाख सिपाही और 3 मंत्रियों की कुर्बानी के साथ अपनी 3 बार बेईज्जती करानी पड़ेगी| इस युद्ध का आरंभ कुछ इस प्रकार हुया था| सन 1664 में औरंगजेब अपने मंत्री मिर्जा अली के साथ काशी विश्वनाथ के मंदिर को तोड़ने के लिए निकला| महानिरवाणी अखाड़ा के नागा साधू वहीं पे निवास करते थे| इन्हे जब यह सूचना मिली तो उन लोगों ने यह सौगंध ली की जब तक एक भी नागा साधू जीवित रहेगा तब तक मुग़ल इस मंदिर में प्रवेश भी नहीं कर सकेंगे| 25 मार्च को मुग़ल अपनी विशाल फौज के साथ काशी (बनारस) पहुंचे| जहाँ पे उनके ही राज्य में कुछ डरावनी वेश भूषा वाले, बड़े-बड़े बालों और दाढ़ी-मूंछ वाले डरावने लोग बदन पर राख लपटे हुए खड़े थे| यह लोग नागा साधू थे जो हाथों में त्रिशूल, तलवार, भाले और दूसरे शस्त्र लिए खड़े थे| इन लोगों को देख मुग़लों में डर बैठ गया| जी. येल. स्मिथ की किताब के अनुसार कई मुग़ल सैनिक इनसे भयभीत हो युद्ध से भाग गए| इसके पश्चात कुछ समय बाद औरंगजेब ने युद्ध का आदेश दिया| युद्ध आरंभ होते ही मुग़लों पे कहर ही बरस गया| महानिरवाणी अखाडे के नागा साधुओं ने ऐसा युद्ध किया कि मुग़ल सेना के होश और जोश दोनों ढीले पड गये| कुछ मुग़ल सैनिकों ने बताया की यह लोग बिजली की गति से दौड़ते थे और एक बार में 20-20 सैनिकों को मार देते थे और युद्ध के दौरान जिस जगह मुग़ल सैनिक खड़े थे उस जगह 5 से 6 बार बिजली गिरी थी| जिस की वजह से औरंगजेब हाथी से गिर गया और युद्ध से भाग गया और युद्ध में एक नागा साधू ने उसके सेनापति मिर्ज़ा अली को मार दिया| इस प्रकार मुग़लों की उनके ही राज्य की सीमा में शर्मनाक हार हुयी| पर इस हार से औरंगजेब ने सीख नहीं ली और 1666 में एक बार फिर अपनी मुग़ल सेना और मंत्री तुरंगखान के साथ काशी की ओर एक बार फिर बढ़ा और फिर एक और भयानक युद्ध हुआ| इस युद्ध में भी औरंगजेब की हार हुई और वो युद्ध भूमि से भाग गया| वो यहाँ भी नहीं रुका| वो एक बार फिर 1668 में मंत्री अब्दुल अली के साथ युद्ध में आया और फिर से पूर्व के युद्धों की तरह नागा साधुओं से युद्ध में हार गया और नागा साधुओं ने उसकी सेना और मंत्री का अंत कर दिया| इस हार के बाद उसने एक आखरी युद्ध की तैयारी की| 1669 में वो जितने भी अत्याचारी मुस्लिम शासकों अपनी तरफ कर सकता था उसने किया और 3 लाख की फौज के साथ 29 अप्रैल 1669 को नागा साधुओं के ऊपर टूट पड़ा| इस युद्ध में मात्र 40000 नागा साधुओं ने मुग़लों की दुर्गति कर दी पर इस बार भी वो जीत ना सके पर इस युद्ध में केवल औरंग्जेब और उसके 70 सिपाही बच सके थे| औरंगजेब ने जब मंदिर तोड़ने की सोची तो उसे भारत के कई हिन्दू राजाओं से युद्ध के संदेश प्राप्त हुए और इस समय मुग़ल और युद्ध करने की स्थिति में नहीं थे| इसलिए उसने मंदिर ना तोड़के मंदिर के अंदर ही मस्जिद का निर्माण करवा दिया| औरंगजेब की मृत्यु के बाद उदयपुर के महारणा संग्राम सिंह द्वितीय ने जयपुर के कछवाहों के साथ मिलकर सन 1711 में काशी विश्वनाथ की जमीन खरीदी और मंदिर का पुनः निर्माण करवाके मंदिर के प्रांगण को मस्जिद से अलग करवा दिया|
  
   दोस्तों तो यह थी गाथा भारत के वीर नागा साधुओं की और मेरे आगे आने वाले ब्लॉग भी इन्ही वीरों के ऊपर केन्द्रित रहेंगे| आपको इन वीरों के बारे में भारत के इतिहासकारों की किताबों से थोडी कम जानकारी मिलेगी और भारत के जो इतिहासकार इनकी जानकारी दे सकतें हैं वो उतने प्रचलित नहीं हैं| औरंग्जेब और कई शासकों ने अपनी हार के भी सबूत मिटा दिये थे| इसलिए इन घटनाओ के वास्तविक तथ्यों की उतनी जानकारी नहीं मिलती| ऊपर दी गयी जानकारी आर॰ विलियम॰ पिंच की किताब “SOLDIER MONK AND MILITANT SADHUS” से ली गयी है| इस ब्लॉग को अधिक से अधिक शेयर करें ताकि लोग भारत के इन वीर नागा साधुओं के बारे में जान सकें|

आप अपनी राय कमेंट में लिख सकतें हैं या मेरे ई-मेल paramkumar1540@gmail.com पर या फिर व्हाट्सप्प  +91-7999846814 पर संपर्क कर सकते हैं|

                          ||जय महाकाल||
                           ||जय भारत||
24/05/2020
                                                                                    परम कुमार                                             कृष्णा पब्लिक स्कूल                                          रायपुर (छ.ग.)
ऊपर दिया गया चित्र इस लिंक से लिया गया है-
https://www.hinduhistory.info/wp-content/uploads/2012/11/naga_sadhus_14_jan_dip_TOI_Gautam_Singh.jpg 

Thursday 16 May 2019


जय महाकाल
नमस्कार दोस्तों आपका मेरे ब्लॉग में एक बार फिर से स्वागत है| आज हमारा चर्चा का विषय महाभारत के कुछ अनसुने और अनभिज्ञ तथ्यों को जानना है समय गवाए बिना हम अपना आज का ब्लॉग चालू करते हैं



Sunday 10 June 2018


नमस्कार दोस्तों आज का हमारा चर्चा का विषय एक ऐसे युद्ध पे है जिसके बारे में  हमारे देश में पता नहीं किन कारणों के कारण कभी भी महत्व नहीं दिया गया और इसके बारे में काम लोग ही जानते हैं पर इसे यूरोप के देशों में बहुत महत्व दिया जाता है और स्कूलों में पढाया भी जाता है| जी हाँ दोस्तों में बात कर रहा हूँ सारागढ़ी के युद्ध के बारे में| यह युद्ध ब्रिटिश सेना की  36वि सिख रेजिमेंट और पठानों के बीच लड़ा गया था| तो आईये शुरू करते हैं| 


Thursday 17 May 2018


नमस्कार दोस्तों आप का मेरे इस ब्लॉग में स्वागतहैं| आज हमारे चर्चा का विषय ना ही किसी योद्धा पर है ना हीं किसी युद्ध पर| अब आप सोच रहे होंगे तो फिर किस पर है? मित्रों आज हमारी चर्चा का विषय युद्ध में इस्तमाल होने वाली रणनीतियों यानि व्यूह पर है| आप सब ने महाभारत तो देखी ही होगा | उसमें  युद्ध के 13 वे दिन कौरवों  के सेनापति आचार्य द्रोणाचार्य ने पांडवों के विरुद्ध एक व्यूह की रचना की थी| जिसे हम चक्रव्यूह के नाम से जानते हैं | इसमें अभिमन्यु ने प्रवेश तो किया था पर उसको  लौटने का मार्ग नहीं पता  था, इसलिए वो मारा गया| हममें से अधिकतर लोग यही मान के चलते हैं| पर क्या आप यह जानते हैं की इस व्यूह में उसकी मृत्यु का एक और कारण था? नहीं ना, तो आज हम इस पर, कितने प्रकार के व्यूह होतें हैं, उनको बनाने के लिए कितने सैनिक लगते हैं और वो कैसे नष्ट किये जा सकते हैं ? हम आज इन सब बातों पर चर्चा करेंगे| तो आइये शुरू करते हैं|
व्यूह 13 प्रकार के होते हैं
शकटव्यूह, गर्भव्यूह, सूचिव्यूह, अर्ध्चान्द्रव्यूह, सर्वोतोभाद्रव्यूह, मक्रव्यूह, सर्पव्यूह, मंद्लाव्यूह, शेयांव्यूह, त्रिशुल्व्हियु, सत्रह्चाक्र्चाक्रव्यूह, पद्मव्यूह और कश्यप्व्ह्यु |

इन सब में से सब से खतरनाक पांच व्यूह हैं- अर्ध्चान्द्रव्यूह, सर्वोतोभाद्रव्यूह, सत्रह्चाक्र्चाक्रव्यूह, पद्मव्यूह और कश्यप्व्ह्यु| इन सब व्यूह को बनाने के लिए कम से कम 6 अक्षौहिणी सेना की जरुरत होती हैं| पर 17 चक्र च्क्रव्यूह कम सेना के साथ भी बनाया जा सकता हे| बाकी के बचे व्यूह को बनाने के लिए कम से कम 27000 सेना की जरुरत  होती हे| एक अक्षौहिणी सेना में 21000हांथी, 21000 रथ, 65000 घुड़सवार और 100000 पैदल सिपाही होते थे| माना जाता है की महाभारत के युद्ध में 18 अक्षौहिणी सेना मारी गयी थी| मतलब महाभारत के युद्ध में 37 लाख 26 हजार सैनिक मारे गए थे| तो आईये जानते हैं की इन व्यूह की रचना केसे होती थी|

1-      शकटव्यूह- यह व्यूह चौकोर डिब्बे जेसा होता है| इस में पांच पड़ाव होते हैं| सबसे पहले 20000 पैदल सैनिकों की एक टुकड़ी रहती है | उसके बाद 5000 रथों की एक टुकड़ी| इस व्यूह के बीचों बीच राजा अपने मुख्यमंत्री और सेनापति चतुरंग्नी सेना (चतुरंग्नी सेना चार प्रकार की सेना होती है जिसमें पैदल सैनिक, घुड़सवार सैनिक, हाथी और रथ पर सवार सैनिक) के साथ वहां रहते थे| इसके बाद 1000 हांथी और 2000 पैदल सैनिकों की एक टुकड़ी वहां रहती थी | इस व्यूह के आखरी पड़ाव में 2100 घोड़ों की एक टुकड़ी रहती थी| इस व्यूह को बनाने के लिए कुल 30100 सैनिकों  की जरुरत पड़ती थी| इस व्यूह को तोड़ने के लिए इसके उपर अगर एक साथ आक्रमण किया जाये तो यह व्यूह टूट सकता| इसे तोड़ने का बस एक यही तरीका है|

2-      गर्भव्यूह- यह व्यूह गोल आकार का होता है जेसे की किसी गर्भवती स्त्री का पेट हो| इस व्यूह में होती तो 6 पंक्तियाँ थी पर वो 6 पंक्तियाँ 3 हिससों में बंटी रहती थी | सब से पहली पंक्ति में 6000 पैदल और 4000 घुडसवार सैनिक रहते थे| दूसरी पंक्ति में 10000 रथ होते थे| तीसरी पंक्ति में चतुरंग्नी सेना रहती थी| तीसरी पंक्ति के आखरी हिस्से में राजा और उसके विश्वासपात्र सैनिक रहते थे| चौथी पंक्ति में 10000 हांथी रहते थे| पांचवी पंक्ति में  5000 घुड़सवार और 5000 हांथी रहते थे| आखरी पंक्ति में 10000 पैदल सिपाही होते थे| इस व्यूह को तोड़ाने के लिए सूचिव्यूह की रचना करनी पडती थी | अगर सूचिव्यूह की मदद से गर्भ व्यूह की तीसरी पंक्ति पर वार किया जाये तो इसे तोड़ा जा सकता हे| गर्भ व्यूह को बनाने के लिए 70000 सैनिकों  की जरुरत परती थी|

3-      सूचिव्यूह- यह व्यूह किसी लम्बे नुकीले भाले की तरह होता था और इसमें केवल एक पंक्ति होती थी जो पूरी एक अक्षौहिणी सेना का बना होता था| राजा इस व्यूह के ठीक सामने होता था पर उसकी हिफाज़त सेना के सबसे खूंखार लड़ाके करते थे| आप सोच रहे होंगे की इस व्यूह को तोड़ना सबसे असान होगा क्योंकि राजा तो इस व्यूह के सामने ही रहता हैं| उसे मार ने से ही व्यूह टूट जायेगा परन्तु ऐसा नहीं हैं क्योंकि राजा जिस रथ में बेठाता था उसकी रक्षा सेना के सबसे ताकतवर योद्धा करते थे| इसे तोड़ने का बस एक ही तरीका था कि अगर घुड़सवार एक साथ इसके दायें और बाएं तरफ हमला करें तो यह व्यूह टूट जायेगा|   
   4-  अर्धचंद्रव्यूह-यह व्यूह सब से जटिल व्यूहयों में से एक हे| इस को बनाने के लिए 6 अक्षौहिणी सेना की जरुरत पडती है| इसमें तीन पंक्तियाँ होती थी जो 1-1 अक्षौहिणी सेना से बनी रहती थी | बाकी की बची 3 अक्षौहिणी सेना इसके पीछे रहती थी| जेसे ही कोई सेना या कोई और व्यूह इस अर्धचन्द्रव्यूह की तरफ बढ़ता था तब अर्धचन्द्रव्यूह के पीछे की सेना सामने आके जो व्यूह या सेना अर्धचन्द्रव्यूह के अन्दर प्रवेश करती थी उसे घेर लेती थी| और अर्धच्न्द्रव्यूह पूर्णचंद्रव्यूह बन जाता था और अन्दर फँसी सेना को मार देता था| इस व्यूह को तोड़ने का बस एक ही तरीका था और वो यह की इसमें सीधे ना घुस के किसी और तरफ से हमला किया जाये तभी इस व्यूह को तोडा जा सकता था| 

5-   सर्वतोभद्रव्यूह- यह भी सब से जटिल व्यूहओं में से एक हे| यह व्यूह आज तक कोई नहीं बना पाया था क्योंकि इसे बनाने के लिए 27 अक्षौहिणी सेना की जरुरत पड़ती थी| मतलब इस व्यूह को बनाने के लिए कुल 55 लाख 89 हजार सिपाहिओं की जरुरत थी| क्योंकि यह व्यूह कभी बनाया नहीं गया तो इसे तोडा भी नहीं जा सकता था| सर्वतोभद्र का मतलब होता है नक्षत्रों को देखने का एक बहुत अलग तरीका | जैसा की हम सब जानते हें की 27 नक्षत्र होते हैं| इस व्यूह में भी 27 हिस्से होते थे जो एक साथ आगे बडते थे ,एक ही रेखा में| क्योंकि इस व्यूह का कभी उपयोग नहीं हुआ तो इसे तोड़ने का और शत्रु को इसके अन्दर कैसे फँसाया जाये इसका कोई विवरण नहीं है |

6-   मक्रव्यूह- मक्र का मतलब मकड़ी होता हे| आप सोच रहे होंगे की यह बहुत कमजोर व्यूह होगा पर ऐसा नहीं है | इसे बनाने के लिए 6 अक्षौहिणी सेना की जरुरत होती थी और जैसे मकड़ी के जाले में सात पंक्तियाँ होंती हैं उसी प्रकार इसमें भी सात पंक्तिया होती थीं| सब से आगे की पंक्ति में 30000 हजार सिपाही भाले और ढाल लेकर खडे रहते थे और कुछ सिपाही रस्सियाँ लेकर खडे रहते थे| जेसे ही कोई पहली पंक्ति के पास पहुँचता था रस्सी वाले सिपाही रस्सी के फंदे बनाकर उनके उपर फेक देते थे और व्यूह के अन्दर खीच लेते थे| भाले वाले सिपाही उन्हें मार देते थे| दूसरी पंक्ति में धनुर्दर रहते थे| अगर बहुत बडी सेना ने एक ही बार में हमला कर दिया तो वो अग्नि बाण चला के उस सेना को अग्नि के एक गोले में घेर लेते थे फिर उन्हें मार देते थे| इस व्यूह को तोड़ने का बस एक ही तरीका था और वो था कश्यप व्यूह| इसे केवल कश्यप व्यूह से ही तोडा जा सकता था

7-    सर्पव्यूह- यह व्यूह सर्प के आकार का होता था| इसे बनाने के लिए कम से कम 1 अक्षौहिणी सेना की जरुरत तो होती थी| इस व्यूह की खासियत थी की यह सर्प की तरह ही चलता था तो किसी को भी पता नहीं चलता था की व्यूह किस दिशा में जा रहा हे| इस व्यूह के सामने कैसी भी सेना आजाये यह उसे निगल लेता था मतलब अपने अन्दर ले लेता था बिलकुल एक साँप की तरह और फिर मार देता था| इस व्यूह को तोड़ने का बस एक ही तरीका था शेयांव्यूह( गरुण व्यूह) बस इसी तरीके से अगर इसके सिर पर वार किया जाये तो यह सर्प व्यूह टूट जा ता है|

8- मंडलव्यूह - यह व्यूह सूर्य मंडल जैसा था| जिसमे 9 गृह थे| उसी प्रकार इसमें 9 पंक्तियाँ 9 ग्रहों के आकार में खडी रहती थी| इसे बनाने के लिए 9 अक्षौहिणी सेना की जरुरत पड़ती थी| जैसे सूर्य मंडल में सूरज बीच में होता हैं और बाकी सब गृह उसकी परिक्रमा करते थे वेसे ही राजा इस व्यूह के बीच में होता था और बाकी सब पंक्तियाँ इसके चारों तरफ घूमती रहती थी |इसकी एक और खास बात यह थी की इस व्यूह को तोडा नहीं जा सकता था|

9 - श्येनव्यूह(गरुण व्यूह)- यह व्यूह आक्रमण के लिए कभी भी इस्तेमाल नहीं हुआ था इसे सिर्फ सर्प व्यूह को तोड़ने के लिए इस्तमाल किया गया था| इसलिए इसके बारे में जायदा विवरण नहीं मिलता|



 10-  सत्रहचक्र चक्रव्यूह- यह एक बहुत जटिल व्यूह में से एक है और इसे कम सेना के साथ भी बनाया जा सकता है| इस में 17 चक्र होते हैं | बीच के 17 वें चक्र में राजा होता है और बाकी 16 चक्र उसके इर्द गिर्द रहते हैं | इसके द्वारा किसी भी बडी सेना को 17 हिस्सों में बाँट कर मारा जा सकता हे| इसे किसी और व्यूह के द्वारा तोडा भी नहीं जा सकता हे| इसे तोड़ने का बस एक ही तरीका है कि इस के सब से कमजोर चक्र तो तोड़ा दिया जाये तो यह व्यूह टूट जायेगा|


    11-  त्रिशूलव्यूह- यह व्यूह त्रिशूल के आकार का होता था इसको बनाने के लिए 4 अक्षौहिणी सेना की जरुरत पडती थी| तीन अक्षौहिणी सेना इस व्यूह की नोक बनाते थे और बाकी की 1 अक्षौहिणी सेना त्रिशूल की लकडी बनाती थी जिस पर व्यूह की नोंक लगती थी| इस व्यूह की खासियत यह थी कि यह एक बार में तीन दिशाओं में हमला कर सकती थी और अगर इसकी एक नोक टूट भी जाये तो बाकी दो नोकों से हमला किया जा सकता था| अगर इस व्यूह में एक ही नोंक बचती थी तो भी यह हमला कर सकता था| इसे तोड़ने का बस एक ही तरीका था कि अगर इसके तीनो नोकों पर एक साथ हमला कर दिया जाये तो यह व्यूह ध्वस्त हो जायगा|

    12-  पद्मव्यूह(चक्रव्यूह)- यह सभी व्यूह में सब   से जटिल व्यूह है इसमें सात चक्र होते हैं जो   निरंतर घूमते रहते हैं और आगे बड़ते रहते हैं|   बिलकुल किसी स्क्रू की तरह | पर इसका   आकार  गोल होता हे| अगर कोई इस चक्रव्यूह   के अन्दर फँस गया और वो निकलना नहीं   जानता तो वो मारा जायेगा क्योंकि वो चक्रव्यूह के जितने अन्दर घुस जाये गा वो उतना ही मुश्किल हो जाएगा| इसे तोड़ने का बस एक ही तरीका है कि इसके घुसने के रास्ते को तोड़ दिया जाये| अभिमन्यु ने यह कर ने की कोशिस की थी पर जैसा मै  ने ऊपर लिखा है कि चक्रव्यूह दो तरह से लगातार घूमता रहता है| तो जिस समय अभिमन्यु ने च्क्रव्यूह में  प्रवेश किया था उस समय उसका निकास का रास्ता आगे था और घुसने का पीछे और वो निकासी के रस्ते से घुसे थे तो उनका सामना सब से ताकतवर योद्धाओं से पहले हुआ जिस की वजह से वो मारा गया|

13-  कश्यप्व्ह्यु- यह व्यूह कछ्युए के आकार का होता है| यह व्यूह चारों तरफ से बडी-बडी ढालों से बंद रहता हैं इसलिए बाहर के किसी भी आक्रमण का इस पर कुछ असर नहीं पडता| और यह शत्रुओं को बहुत बड़ी हानी पहुँचा सकता हे| पर यह व्यूह ऊपर से खुला रहता है तो अगर इस पर ऊपर से तीर चलाये जाये तो इस व्यूह को तोडा जा सकता है |

                   तो ऐसी थी हमारी प्राचीन भारत की  अतुल्य युद्ध नीतियाँ


                          || जय भारत || 


 17\05\2018

परम कुमार  
कक्षा - 9 
      कृष्णा पब्लिक स्कूल 
रायपुर
                                                                                                                                                                                                                                                                              


नोट : ब्लॉग में उपयोग किये गए चित्र निम्नलिखित सोर्स से लिए गए हैं :-


http://www.legendofvyas.com/library

http://allindiaroundup.com/mythology/how-was-a-chakravyuha-strategy-of-mahabharata-beaten/






Saturday 5 May 2018

पानीपत की तीसरी लड़ाई


नमस्कार दोस्तों |

आपका मेरे ब्लॉग में एक बार फिर स्वागत है|

आज का हमारा चर्चा का विषय उस युद्ध पे है जिससे यह फैसला होने वाला था की हिंदुस्तान मराठों कि हुकूमत में रहेगा, कि मुसलमानों या  अंग्रेजों की | जी हां दोस्तों में बात कर रहा हू पानीपत की तीसरी लड़ाई की| तो आइये शुरू करते हैं|
सन १७५९ यह वो साल था जब अफ़गानी लुटेरा अहमद शाह अब्दाली अपनी सेना लेकर पांचवी बार भारत आ रहा था| इस बार रोहिलाखंड के नवाब नाजिबुद्दुला के बुलावे पर अहमदशाह अब्दाली भारत आया था| नाजिबुद्दुला अपने को कुछ बनाने के लिया भारत वर्ष का सब कुछ लुटाने को तैयार था| उस समय भारत के उत्तरी और पश्चिम में कोई भी राजा इतना शक्तिशाली नहीं था जो अब्दाली का विरोध कर सके| तब मराठों के राजा पेशवा बालाजी विश्वनाथ बाजीराव बल्लाल ने अब्दाली से टक्कर लेने का निर्णय किया|  इसके लिए उन्होंने पुणे से लगभग ८०० किलोमीटर  दूर दिल्ली की तरफ, अपने मराठे  लड़ाकों की सेना को अपने भाई सदाशिवराव भाऊ की कमान में रवाना किया| पर ऐसा क्या महत्वपूर्ण कारण था कि अहमद शाह अब्दाली अपनी सेना सहित पानीपत का युद्ध जीतने के बाद भी वापस अफगानिस्तान लौट गया?

सन १७४० में पेशवा बालाजी बाजीराव बल्लाल भट की मृत्यु के बाद उनके पुत्र बालाजी विश्वनाथ बाजीराव बल्लाल भट पेशवा बने और इनके राज्यकाल में मराठों ने काफी नए राज्य जीते जिसमे हैदराबाद की जीत का किस्सा बहुत प्रसिद्ध है|  हैदराबाद की जीत के समय सेना की कमान सदाशिवराव भाऊ के हाथों में थी| वे हांथी पे बैठ कर युद्ध का निर्देश दे रहे थे की तभी निजाम के तोपची इब्राहिमखां गर्दी के तोप का गोला उनके बाजु से निकला| इतने सटीक निशाना देख कर सदाशिवराव भाऊ ने युद्ध जीतने के बाद निजाम से कहा हमें कुछ नहीं चाहिये हमें बस आप अपना तोपची इब्राहिमखां गर्दी दे दीजिये| इसी इब्राहीम ने पानीपत के युद्ध में मराठों की काफी मदद की थी

इस समय मराठे तो अपनी बुलंदी पर थे पर दिल्ली की हालत ठीक नहीं थी| मराठों कि शह पर मुग़ल बादशाह अलाम्गीरी के मरने के बाद उनके बेटे शाह आलम द्वितीय को मुगल राजा बनाया गया| यह सिर्फ नाम के राजा थे| रोहिलाखंड का नवाब नाजिबुद्दुला मुगलिया सल्तनत का वजीर बनना चाहता था| पर उसे ये डर था कि कहीं मराठे आक्रमण करके उसे युद्ध में मार ना डालें| तो उसने अफगानिस्तान से अहमद शाह अब्दाली को यह कहकर भारत बुलाया की यहाँ पर मराठे मुलमानों पर बहुत जुर्म करते हैं| यह सुनकर अहमद शाह अब्दाली अपने साथं कई हजार की सेना लेकर भारत में सन १७५९ को पंहुचा सब से पहले उसने पंजाब को जीता और अब दिल्ली की और बढ़ा| जब अब्दाली के भारत आने की बात मराठों को पता चली तो पेशवा बालाजी विश्वनाथ बाजीराव बल्लाल भट ने पुणे से दो लाख की सेना लेकर अपने भाई सदाशिव राव भाऊ की कमान में दिल्ली की ओर रवाना किया| जब मराठा दिल्ली पुहंचे तो उन्हें पता चला की अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब को जीतने के बाद लूट का सारा पैसा और सामान कन्च्पुरा (जिला करनाल, हरियाणा)  के किले में रखा हे| उन्होंने कन्च्पुरा पर आक्रमण कर उसे जीत लिया| अब अब्दाली के पास इतना धन नहीं था की वो अंपनी सेना को तनखा दे सके| तब उसने नाजिबुद्दुला से कहा कि तुम ने ही मुझे भारत बुलाया था अब तुम ही मेरी सेना को धन दो| यह सुनकर नाजिबुद्दुला ने सोचा की वो इतना धन कहाँ से लायेगा तब उसे याद आया की अवध के नवाब सुजौद्दुला के पास बहुत धन है तो उसने उससे मदद मांगी पर सजुद्दौला ने मना कर दिया|  तो नाजिबुद्दुला ने उसे यह कहकर डरा दिया की अगर अब्दाली युद्ध जीत गया तो वो उसे माफ़ नहीं करेंगा| यह सुनकर सुजौद्दुला ने नाजिबुद्दुला को आर्थिक मदद के रूप में पचास लाख रुपये दे दिए| अब्दाली को रुपये तो मिल गए पर जब वो भारत आया तो उसने सुना था मराठे बहुत खतरनाक लड़ाके होंते हैं| तो वो मन ही मन मराठों से संधि करना चाहता था| पर जब यह बात नाजिबुदुला को पता चली तो उसने यह संधि रुकवाने के लिए मराठों के एक सरदार गोविन्द्पंत का खून करवा दिया और अपने कुछ सैनिको को मराठों की सनिकों की भेष-भूषा पहना के अब्दाली के मंत्री वजीर खां पे हमला कर व दिया| उसका यह काम आग में घी डालने जैसा था| फिर क्या था दोनों ओर से युद्ध का बिगुल बज गया| १४ जनवरी १७६१ को पानीपत के मैदान में दोनों की सेना आ डटी|

युद्ध आरंभ होने के दो दिन पहले अब्दाली के सैनिकों ने मराठों के खाने-पीने के समान को लूट लिया था|  क्योंकि उसे लगा मराठे बिना खाये पीये ज्यादा देर युद्ध नहीं कर पाएंगे| फिर १४ जनवरी १७६१ में सुबह नौ बजे पानीपत में युद्ध शुरू हो गया| युद्ध की शुरुआत अबदाली ने तोपों से हमला करवा के की| जवाब में मराठों के तोपची इब्राहीम खां ने ऐसी गोला बारी की अब्दाली के कई सैनिक और तोपें किसी काम के नहीं रहे| और अब्दाली घबरा के अपने शिविर में लौटने वाला था|  इसलिए उसने अपनी अश्वरोही सेना को आगे भेजा  जवाब में सदशिव राव भाऊ ने भी अपनी अश्वरोही सेना के सेनापति को आदेश दिया की अगर युद्ध के बीच में अब्दाली की सेना भागने लगे तो उनका पीछा मत करना, वापस आ जाना| जब मराठों और अब्दाली की अश्वरोही सेना के बिच युद्ध हुआ तो थोड़ी देर तो अब्दाली की सेना ने युद्ध किया परन्तु मराठों के जोश और वीरता से उनका मनोबल टूटने लगा और फिर वो वापस लौटने लगे| तब मराठों के अश्वरोही सेना के सरदार विन्चुरकर ने सदाशिव राव की बात का उलंघन करते हुए जोश में आकार अब्दाली की सेना का पीछा किया पर थोड़ी दूर जा के  अब्दाली की सेना ने इन्हें घेर लिया और गोलियों से पूरी अश्वरोही सेना का सर्वनाश कर दिया| अब सदाशिव राव भायु ने अपने सभी मोर्चे खोल दिए और अब्दाली पर आक्रमण कर दिया| अब्दाली ने सोचा था की भूखे पेट मराठे कितने देर लड़ पाएंगे जल्दी ही यह जंग वो जीत लेगा| पर युद्ध के समय ये एहसास हुआ कि उसने मराठों के बारे में गलत अनुमा लगाया था क्योंकि भूखे पेट मराठी सनिक अब्दाली के सेनिकों को गाजर-मुली की तरह काट रहे थे| तभी अब्दाली के एक  सैनिक की गोली पेशवाजी के पुत्र विश्वास राव को लगी और वो घोड़े से गिर गए अपने भतीजे को बचाने के लिए सदाशिव राव अपने हाथी  से उतरकर नीचे आ गए तो मराठे सैनिको ने जब हाथी पर अपने सेनापति को नहीं देखा तो उन्हें लगा कि सदाशिव राव नहीं रहे|  यहीं से दिन के आखरी पहर में युद्ध कि दिशा बदल गयी| अब्दाली ने सदशिव राव भाऊ को बन्दुकचियों और अश्वरोही सेना से घिरवा के मरवा दिया परन्तु अंत तक सदाशिव राव का शव किसी को नहीं मिला | अब्दाली अब यह युद्ध जीत चुका था| पर क्या कारण था की युद्ध जितने के बावजूद वो भारत से वापस चला गया?

पानीपत में भयानक युद्ध हुआ और मराठों के पराक्रम के आगे बहुत मुश्किल से अब्दाली को विजय हासिल हो पाई | मराठों का साहस और शौर्य देखकर अब्दाली ने भारत पर शासन करने का विचार त्याग दिया और उसको ये लगा कि इस युद्ध में तो वो जीत गया पर यदि फिर से मराठे पुणे से अपनी और सेना लेकर आ गए तो उसे एक विदेशी धरती पर ही मरना पड़ेगा|  इसी भय से वो भारत छोड़कर वापस अफगानिस्तान लौट गया|

पानीपत के युद्ध में मराठे हराकर भी विदेशी आक्रमणकारी को भारत से बाहर का रास्ता दिखा दिए वहीँ अब्दाली जीकर भी भारत पर शासन नहीं कर पाया| इस युद्ध कि विशेषता ये है कि मराठों के सेनापति सदाशिव राव भाऊ के कुशल नेतृत्व में कई मुसलमानों ने अब्दाली के विरुद्ध युद्ध किया| जिन्हें युद्ध के पहले नाजीबदुल्ला और अब्दाली द्वारा कई प्रलोभन दिए गये थे इसमें तोपची इब्राहीम खान गर्दी प्रमुख थे|  परन्तु वे अंत तक मराठों से निष्ठा निभाए|  इसके अलावा इस युद्ध में अफगानों से शमशेर बहादुर ने भी लोहा लिया था| शमशेर बहादुर अपने माता पिता तरह ही बहुत वीर और सुन्दर  था| दोस्तों शमशेर बहादुर के माता पिता का नाम पेशवा बाजीराव और मस्तानी था जिसे आपने शायद पिक्चर (बाजीराव मस्तानी movie) में एक छोटे से बच्चे के रूप में देखा होगा| जिसे उसके मातापिता के मरने के बाद काशी बाई ने अपनाया था|    

सबसे बड़ी और विशेष बात, इस युद्ध का जनक, जिसने अब्दाली को भारत बुलाया था केवल अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिये, नजीबद्दुला वो आपके विचार में कैसा शख्स रहा होगा ? इस व्यक्ति के सम्मान और शायद याद में वर्तमान उत्तर प्रदेश के एक शहर का नाम रखा गया है नजीबाबाद (जो अत्यंत आश्चर्यजनक है) |  

परन्तु इसके विपरीत युद्ध में भारत देश को विदेशियों से बचाने में अपने प्राणों का न्योछावर करने वाले मराठों के सेनापति और उनके अन्य शहीद हुए सरदारों पर शायद कोई एक या दो तस्वीर या शिलालेख किसी शहर में होगा (जो शायद ही अच्छी स्थिति हो)|

     यह था मराठों का अनुठा साहस जिसके कारण शत्रु जीतकर भी मराठों की वीरता से हार गया|

                  सदाशिव राव भाऊ को सादर नमन् |

०५/०५/२०१८                                                                       
परम कुमार
कक्षा-९
कृष्णा पब्लिक स्कूल

                                                                          




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