( इस ब्लॉग का अध्ययन
करने वाले सभी जनों को विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ)
जय महाकाल
नमस्कार दोस्तों आप का
मेरे ब्लॉग में स्वागत है | आज हमारी चर्चा का विषय, एक क्षण मैं थोडा आगे चल के
बताऊँगा| आप सब ने रामायण तो देखी ही होगी रामानंदसागर वाली और महाभारत तो देखी ही
होगी बी.आर.चोपड़ा वाली | उसमें योद्धा अलग-अलग अस्त्रों का प्रयोग करते हैं| जैसे की तीर, चक्र, गदा, आदि | उसमें आप लोगों
को तीर धनुष सब से जयादा आकर्षित करता था | आप लोग तीर धनुष खरीद के उसपे कुछ
मंत्र बोल के उसे चलाते थे | पर कभी आप ने उसके असली मंत्र को जानने की कोशिश की?
उन मंत्रो, को उन दिव्यास्त्रों को केसे साधा जाये इसे जानने की कोशिश की? कई
लोगों ने की होगी कई लोगों ने नहीं भी की होगी | कोई बात नहीं | आपकी मेहनत समाप्त हुई क्योंकि आज मै आप को बताऊँगा की कैसे इन मंत्रों
को साधा जाता था,कैसे इनका उपयोग किया जाता था और रामायण और महाभारत मैं किन किन
लोगों के पास कौन-कौन से अस्त्र और शस्त्र
थे | इतना पढ़ के आप समझ ही गए होंगे की आज का हमारा चर्चा का विषय रामायण और महाभारत
मै इस्तमाल हुए अस्त्रों और शस्त्रों के ऊपर है तो आइये शुरू कर तै हैं|
पहले हम जानते हैं की
अस्त्र और शस्त्र मै क्या अंतर होता है-
अस्त्र- इसका मतलब होता
है मंत्रों द्वारा संचालित होने वाला हथियार जिसे कितनी भी दुरी से फेका जा सकता
है | जेसे- अग्न्यास्त्र,वरुणअस्त्र,आदि
शस्त्र- इसका मतलब होता
है हांथ से चलने वाले अस्त्र, जिनसे किसी की मृत्यु भी हो सकती है और इन्हें एक
निश्चित दुरी से चलाया जाता है| जेसे – तीर, भाले, आदि|
आइये हम जानते हैं की रामायण
और महाभारत मे किन-किन अस्त्रोंकाउपयोगहुआथा-
रामायण- इस महालेख के
अनुसार श्री राम, लक्ष्मण,मेघनाद,रावण के बारे मान्यता है की इन लोगों के पास बहुत
से दिव्यास्त्र थे| आइये जानते है किसने कब और कहाँ कोन से अस्त्र का उपयोग किया
था और उनके पास कौन-कौन से अस्त्र थे|
श्री राम- इनके धनुष का
नाम सारंग था जो इन्हें भगवान श्री परशुराम
ने सीता स्वयंवर के दौरान दिया था और जो धनुष टुटा था उसका नाम था पिनाक| सारंग भगवान विष्णु के धनुष का नाम था
और पिनाक भगवान शिव के धनुष का नाम था| इन दोनों को भगवान विश्वकर्मा ने बनाये था|
इन दोनों धनुष को तोरा नहीं जा सकता था| इन्हें
तोड़ने का एक ही तरीका था और वो यह की पिनाक विष्णु जी तोड़ें और सारंग भगवन शिव| मान्यता
है की सारंग धनुष से कोई भी तीर मात्र शत्रु का नाम लेके चलाया जाए तो वो अपने आप
उस शत्रु तक पहुँचकर उसका विनाश कर सकता है| इसके अलावा भगवान श्री राम को ब्रहमऋषि विश्वामित्र ने मोहिनीअस्त्र, गंधर्वअस्त्र, इन्द्रस्त्र, इन्द्रपाश, इन्द्रशक्ति, मानवास्त्र, पश्वापनअस्त्र, नागास्त्र, नागपाश, वैष्णवअस्त्र, वैष्णव इंद्रा शक्ति, ब्रह्मास्त्र, ब्रहमऋषिसूर्यअस्त्र ब्रहमशिराअस्त्र, नारायणास्त्र, नारायणशक्ति, आदि कई अस्त्र
प्रदान किये| श्री राम ने मानवास्त्र का प्रयोग मारीच के ऊपर किया था जिससे वो
हिरन से अपने असली रूप में आ गया था, इन्होने मोहिनी अस्त्र का प्रयोग खर-दूषण के
विरुद्ध किया था| जिससे उनकी पूरी सेना एक दुसरे को ही मारना शुरू कर दिया क्योंकि
उन्हें लग रहा था की उनके आसपास जो भी हैं | वो सब श्री राम है और वो सब एक दुसरे
को मरने लगे| पश्वपनास्त्र इसके उपयोग श्री राम ने रावण के विरुद्ध किया था जिससे
उसके नाभि का अमृत सुख गया फिर इन्होने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर उसे
मारदिया|बाकी के अस्त्रों का उपयोग आप को ब्लॉग मै थोड़ा आगे मिल जायेगा|
लक्ष्मण जी द्वारा उपयोग अस्त्र- लक्ष्मण जी के धनुष का नाम कोथांडा था उनके
अस्त्रों के बारे मैं ज्यादा जानकारी नहीं मिलती पर कहा जाता है कि उनके पास विष्णवअस्त्र, ब्रह्मास्त्र, ब्रहमऋषिसूर्यअस्त्र ब्रहमशिराअस्त्र, नारायणास्त्र, नारायणशक्ति, पशुपतीस्त्र, आदि और भी कई अमोग अस्त्र
थे| इन्होने अतिकाय को ब्रह्मास्त्र से मारा था और मेघनाद को वैष्णव अस्त्र से मारा था|
रावण द्वारा
उपयोग अस्त्र- रावण के पास असुरास्त्र,चंद्रहासतलवार, अग्नि शक्ति,
ब्रह्मास्त्र, अग्निवरुण अस्त्र, पशुपति अस्त्र,रुद्रअस्त्र, ब्रहाम्रिशीसूर्यास्त्र ब्रहमशिराअस्त्र,ब्रह्माण्ड
अस्त्र, सहित कई अस्त्र थे,| रावण ने असुरास्त्र का प्रयोग युद्ध के पहले
दिन किया था| इस अस्त्र मे से एक साथ कई तरह के हथीयार बाहर आते थे| जिसको रोकने
के लिया श्री राम ने अन्तपत अस्त्र का प्रयोग किया था| इस के अलावा कहा जाता है की
जब रावण अपनी त्रिलोक विजय यात्रा पर पहली बार नीकला था तो तब जब वो सप्तसिंधु
(भारत) पर हमला किया तो सब ने सप्तसिंधु (अयोधा के राजा) नरेश सूर्यवंशी
राजा अज से सहायता मांगी इन्होने रावण से कई सालों तक युद्ध किया इस युद्ध में
कहा जाता है रावण ने इनके विरुद्ध कई महास्त्र जेसे ब्रह्मास्त्र,पशुपतीअस्त्र,नारायण
अस्त्र सहित कई दिव्या अस्त्र इस्तमाल किया परन्तु राजा अज ने उन सब का उत्तर देके
रावण को युद्ध मै परास्त किया था|
मेघनाद द्वारा
उपयोग अस्त्र- मेघनाद के पास वो सभी अस्त्र थे जो श्री राम,रावण और लक्ष्मण
जी के पास थे| उसे ब्रह्मा जी द्वारा वरदान भी मिला था की तुम जब भी युद्ध में जाने
से पहले अपनी कुल देवी निकुम्बला माता की पूजा करोगे और पास के पीपल के पेड़ पर
पांच भूतों की बलि दोगे तो हवन कुण्ड से एक दिव्या रथ निकलेगा जिसपर बेठकर अगर तुम
युद्ध करोगे तो तुम्हे कोई भी पराजित नहीं कर पाएगा| जब इस बात की सुचना श्री राम
को मिली तो उन्होंने लक्ष्मण, विभीषण,अंगद,नल,नील,सुग्रीव,हनुमानजी आदि कई लोगों
को यज्ञ विफल करने भेजा था यज्ञ असफल हो गया तो तिलमिलाए हुए मेघनाद ने पशुपतिअस्त्र,ब्रह्मास्त्र,नारायण
अस्त्र सहित कई अस्त्र लक्ष्मण जी के ऊपर चलाये थे पर सब को लक्ष्मण जी ने प्रणाम
कर विफल कर दिया| मेघनाद ने लक्ष्मण जी के ऊपर शक्ति का प्रयोग किया था जिसे उसे
माँ काली ने दिया था, उसने श्री राम और लक्ष्मण जी के ऊपर नाग पाश का भी उपयोग
किया था| लक्ष्मण जी ने उसे वैष्णव अस्त्र से मारा था| यह तो हुई रामायण
में उपयोग
हुए अस्त्रों
की बात आइये जाने
महाभारत मैं उपयोग
हुए अस्त्रों
के बारे
मे| मै आप को यह भी बताऊँगा की महाभारत का सबसे वीर और ताकतवर
योद्धा कोन था महाबहारत के अनुसार अर्जुन,कर्ण, भीष्मपितामह,द्रोणाचार्य,अश्वथामा,सत्यकि,श्रीकृष्ण,और बार्बरिक को महाभारत मै एक अहम् स्थान प्राप्त है| अब मै आपको इनमे
से कुछ लोगों के अस्त्र के बारे मै बताऊँगा |
अर्जुन द्वारा उपयोग
अस्त्र- अर्जुन के धनुष
का नाम था गांडीव| उन्हें यह धनुष तब प्राप्त हुआ था जब पांडवों ने इन्द्रप्रस्थ कि
स्थापना की थी| तब अर्जुन ने एक बहुत बड़े भू भाग मै फैले वन को जला दिया था जिसका
नाम था खंडवप्रस्थ उसे जलाया था तब अग्नि देव ने अर्जुन को अग्नि की माया से बना
हुआ धनुष गांडीव दिया था जिसके अन्दर अनगिनत तीर समाये हुए थे|
अश्वथामा
द्वारा इस्तमाल अस्त्र- अश्वथामा के धनुष का नाम कोथांडाa
था यह वही धनुष था जो लक्ष्मण जी के पास था| इसकी कहानी कुछ इस प्रकार है की जब
श्री राम ने लक्ष्मण जी को देश निकाला दे दिया| तब लक्ष्मण जी ने अपना धनुष सरियु
नदी के किनारे रखकर समाधी ले ली तब यह धनुष को गरुण उठा के लेजा रहे थे कि तभी इस
धनुष की वो मणि जिससे वो संचालित होता था वो धरती पर गिर गयी फिर इसी तरह सदियाँ
बिt गयिन| अब वहां एक ब्रहमाण परिवार रहता था जो उस जमीन पर खेती करता था यह
परिवार था महान तपस्वी भरद्वाज ऋषि के पुत्र द्रोणाचार्य को एक दिन खेती के दोरान
वो मणि धान के साथ मिल गयी और उस धान का वो भाग द्रोणाचार्य की पत्नी ने खा लिया|
फिर जब उनका शिशु हुआ तब उसके माथे पर वो मणि लगी हुई थी| जब अस्वथामा बड़े हुए तो
उन्होंने तपस्या करके उस मणि को अपने वश मै कर लिया और कोथांडा धनुष को साध लिया|
इस धनुष के अन्दर अनेक तीर समाए हुए थे जिन्हें रोकने का मात्र एक ही तरीका था कि
मणि द्वारा संचालित होने वाले उस धनुष की मणि को नष्ट कर दिया जाये| इसलिए जब
अस्वथामा ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा पर ब्र्हम्शिरास्त्र का उपयोग किया तो श्री
कृष्णा ने उससे उसकी मणि मांगी थी|
बार्बरिक
द्वारा इस्तमाल अस्त्र – बार्बरिक भीम और हिडिम्बा के पौत्र और घटोत्कच और
अहिलावती के पुत्र थे| बात उस समय की है जब एक दिन हिदिम्बिका और बार्बरिक वन मे
विचरण कर रहे थे| तब बार्बरिक ने बोला “ हे दादी माँ आपने ने मुझे समस्त ज्ञान
प्रदान किया पर मुक्ति के बारे मै नहीं बताया| इस पर हिडिम्बा ने कहा “ जब कोई देव
पुरुष या ऋषि अपने भक्त का अन्त अगर अपने हांथों से कर दे तो उसकी आत्मा उसमे समा जाती
है और उसे मुक्ति प्राप्त होती है या फिर किसी मनुष्य के पुरे जीवन के पुण्य
कर्मों के अनुसर भी उसे मुक्ति मिलती है| इस पर बार्बरिक ने कहा मैं श्री कृष्ण से
युद्ध करूँगा और उनसे मुक्ति प्राप्त करूँगा हिडिम्बा ने कहा वो तुम से युद्ध
क्यों करेंगे तुम्हारे पास तो उनके बराबरी के अस्त्र भी नहीं हैं| उनके पास तो
सुदर्शन चक्र है जिसका मुकाबला पूरी दुनिया मै कोई नहीं कर सकता| इतना सुन के बार्बरिक
ने बोला मैं घोर तपस्या करूँगा और उनके बराबरी के अस्त्र प्राप्त करूँगा फिर उनसे
मुक्ति प्राप्त करूँगा| बार्बरिक तपस्या करने के लिए महि सागर तीर्थ स्थल
गया जहाँ पर उसने विजयचित्रसेन ऋषि से शिक्षा ली और फिर वहां पे सबसे पहले नव
दुर्गा की पूजा की उसकी पूजा से प्रसन्न होकर नव दुर्गा ने उसे इतना बल प्रदान
किया कि जिससे वो पूरी दुनिया को गेंद की तारह उछाल दे और उन्होंने उसे यह वरदान
भी दिया की तुम्हारी मृत्यु मात्र श्री कृष्ण के हांथो होगी| इसके बाद स्वयं
दुर्गा जी वहां आयीं और कहा तुम यहाँ पे और तपस्या करो| उनके निर्देश अनुसार बार्बरिक
ने वहां और तपस्या की और उससे प्रसन्न होकर उन्होंने उसे गणेश अजय अस्त्र
सिद्धि प्रदान की बार्बरिक ने वहां और तपस्या की और सिधाम्बिका माता को भी प्रस्सन
कर लिया जिन्होंने उसे तीन तीर दिए जिनसे किये गई प्रहार को असफल नहीं किया जासकता
था|
1.
पहले तीर उनसभी चीजों को नष्ट कर देगा जिसे वो नष्ट करना
चाहते है|
2.
दुसरा तीर उनसब चीजों को बचालेगा जिसे वो बचाना चाहता है|
3.
तीसरा तीर दुसरे तीर द्वारा बचाए गए सभी चीजों को छोड़ के सब
चीजों को नष्ट कर दे गा|
जब बार्बरिक को पता चला
की कुरुक्षेत्र मे पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध होने वाला है तो उसने युद्ध मे
जाने का फेसल किया| परन्तु युद्ध में जाने से पहले उसकी माँ ने उससे वचन लिया की
तुम युद्ध मै सब से कमजोर पक्ष से युद्ध करोगे| युद्ध का सबसे कमजोर पक्ष कौरवों
का था क्योंकि पांडवों की तरफ श्री कृष्ण थे| बार्बरिक ने कौरवों की तरफ से युद्ध
करने का निश्चय किया और वो युद्ध के लिए रवाना हो गये| श्री कृषण को जब यह बात
ज्ञात हुई तो वो एक ब्राहमण के वेश मैं बार्बरिक के पास गए और कहा “ हे पुत्र क्या
तुम कुरुक्षेत्र मैं होने वाले युद्ध मैं भाग लेने जा रहे हो ?” बार्बरिक ने कहा “
हाँ ! ब्राहमण देव” ब्राहमण वेश मैं श्री कृष्ण बार्बरिक पर हसे और कहा “ तुम
युद्ध केसे करोगे? तुम्हारे पास तो सेना ही नहीं है,और मैं देख रहा हूँ तुम्हारे
तरकस मै मात्र तीन तीर ही हैं| बार्बरिक ने कहा “ मेरा एक ही तीर एक पूरी सेना का
विनष कर सकता और उसके बाद वो वापस मेरे तरकश मैं ही आयेगा तो यह तीन तीर तो बहुत हैं|
इसके बाद बार्बरिक ने अपने तीनो तीरों की खासियत बताई| ब्राहमण देव ने कहा मुझे
तुम्हरी बातों पर विश्वास नहीं मुझे अपने एक तीर का प्रयोग कर के बताओ| बार्बरिक
ने अपना पहला तीर निकाल कर कहा “ सामने जो पीपल का पेड़ हे उसके सारे पत्तों को मैं
अपने एक तीर से भेद दूँगा”| श्री कृष्ण ने उस पेड़ के एक पत्ते को अपने हांथ मैं
दबाया और एक पत्ते को पैर के नीचे बार्बरिक ने मंत्र संधान कर के अपने तीर चला
दिया उस तीर ने पीपल के सारे पत्तों को भेद दिया जो पत्ते श्री कृष्ण के हांथ और
पैर के निचे थे उनमे भी छेद हो गया| इसके पश्चात् श्री कृष्ण ने बार्बरिक को अपना
असली रूप दिखाया और कहा “ है बार्बरिक तुम यह युद्ध मत करो क्योंकि अगर तुम यह
युद्ध करोगे तो न्याये पर अन्याये की जीत होगी जिससे कुछ अच्छा नहीं होगा अतः तुम
यह युद्ध मत करो”| बार्बरिक ने कहा “ मैं ने अपनी माता को वचन दिया है की मे युद्ध
करूँगा तो सबसे कमजोर पक्ष से| अतः अब मुझे इस युद्ध मै भाग लेने से कोई नहीं रोक सकता आप भी नहीं”|
श्री कृष्ण ने क्रोध मैं आके बार्बरिक का सर अपने शुदर्शन चक्र से कट दिया| बार्बरिक
के कटे हुए सर ने बोला मैं यही चाहता था कि मेरी मृत्यु आपके हांथो हो अब मुझे
मुक्ति प्राप्त होगी| श्री कृष्ण ने कहा बार्बरिक मैं तुम्हे आशीर्वाद देता हूँ की
इस युद्ध के एक मात्र शाक्सी तुम ही होगे और इस युद्ध के सबसे वीर योद्धा भी तुम
ही हो| तो दोस्तों यह थी कहानी बार्बरिक की और उसके दिव्यास्त्रों की| आइये अब हम
कुछ हथीयारों के बारे मैं जान लें|
हतियारों के नाम –
·
शक्ति यह लंबाई में गजभर होती है, उसका हेंडल बड़ा होता है, उसका मुँह सिंह के समान होता है और उसमें बड़ी तेज जीभ और पंजे होते हैं। उसका रंग नीला होता है और उसमें छोटी-छोटी घंटियाँ लगी होती हैं। यह बड़ी भारी होती है और दोनों हाथों से फेंकी जाती है।
·
तोमर यह लोहे का बना होता है। यह बाण की शकल में होता है और इसमें लोहे का मुँह बना होता है साँप की तरह इसका रूप होता है। इसका धड़ लकड़ी का होता है। नीचे की तरफ पंख लगाये जाते हैं, जिससे वह आसानी से उड़ सके। यह प्राय: डेढ़ गज लंबा होता है। इसका रंग लाल होता है।
·
पाश ये दो प्रकार के होते हैं, वरुणपाश और साधारण पाश; इस्पात के महीन तारों को बटकर ये बनाये जाते हैं। एक सिर त्रिकोणवत होता है। नीचे जस्ते की गोलियाँ लगी होती हैं। कहीं-कहीं इसका दूसरा वर्णन भी है। वहाँ लिखा है कि वह पाँच गज का होता है और सन, रूई, घास या चमड़े के तार से बनता है। इन तारों को बटकर इसे बनाते हैं।
·
ऋष्टि यह सर्वसाधारण का शस्त्र है, पर यह बहुत प्राचीन है। कोई-कोई उसे तलवार का भी रूप बताते हैं।
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गदा इसका हाथ पतला और नीचे का हिस्सा वजनदार होता है। इसकी लंबाई ज़मीन से छाती तक होती है। इसका वजन बीस मन तक होता है। एक-एक हाथ से दो-दो गदाएँ उठायी जाती थीं।
·
मुद्गर इसे साधारणतया एक हाथ से उठाते हैं। कहीं यह बताया है कि वह हथौड़े के समान भी होता है।
·
चक्र दूर से फेंका जाता है।
·
वज्र कुलिश तथा अशानि-इसके ऊपर के तीन भाग तिरछे-टेढ़े बने होते हैं। बीच का हिस्सा पतला होता है। पर हाथ बड़ा वजनदार होता है।
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त्रिशूल इसके तीन सिर होते हैं। इसके दो रूप होते है।
·
शूल इसका एक सिर नुकीला, तेज होता है। शरीर में भेद करते ही प्राण उड़ जाते हैं।
·
असि तलवार को कहते हैं। यह शस्त्र किसी रूप में पिछले काल तक उपयोग होता रहा था।
·
खड्ग बलिदान का शस्त्र है। दुर्गाचण्डी के सामने विराजमान रहता है।
·
चन्द्रहास टेढ़ी तलवार के समान वक्र कृपाण है।
·
फरसा यह कुल्हाड़ा है। पर यह युद्ध का आयुध है। इसकी दो शक्लें हैं।
·
मुशल यह गदा के सदृश होता है, जो दूर से फेंका जाता है।
·
धनुष इसका उपयोग बाण चलाने के लिये होता है।
·
बाण सायक, शर और तीर आदि भिन्न-भिन्न नाम हैं ये बाण भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। हमने ऊपर कई बाणों का वर्णन किया है। उनके गुण और कर्म भिन्न-भिन्न हैं।
·
परिघ में एक लोहे की मूठ है। दूसरे रूप में यह लोहे की छड़ी भी होती है और तीसरे रूप के सिरे पर बजनदार मुँह बना होता है।
·
भिन्दिपाल लोहे का बना होता है। इसे हाथ से फेंकते हैं। इसके भीतर से भी बाण फेंकते हैं।
·
नाराच एक प्रकार का बाण हैं।
·
परशु यह छुरे के समान होता है। भगवान परशुराम के पास अक्सर रहता था। इसके नीचे लोहे का एक चौकोर मुँह लगा होता है। यह दो गज लंबा होता है।
·
कुण्टा इसका ऊपरी हिस्सा हल के समान होता है। इसके बीच की लंबाई पाँच गज की होती है।
·
शंकु बर्छी भाला है।
·
पट्टिश एक प्रकार का तलवार है जो कि लोहे की पतली पटटियों वाला होता है।
·
इसके सिवा वशि तलवार या कुल्हाड़ा के रूप में होती है।
इन अस्त्रों के अतिरिक्त भुशुण्डी आदि अन्य अनेक अस्त्रों का वर्णन विभिन्न ग्रंथों में मिलता है।
कुछ दिव्यास्त्रों के
मंत्र- ( इन मंत्रो का उपयोग ना करें )
प्रकटय-प्रकटय, शीघ्रं आगच्छ-आगच्छ,
मम सर्व शत्रुं नाशय-नाशय, शत्रु सैन्यं नाशय-नाशय, घातय-घातय,मारय-मारय हंु फट्।’
श्रीआग्नेयास्त्र
प्रकट मंत्र:- ‘ॐ नमो अग्निदेवाय नमः। शीघ्रं आगच्छ-आगच्छ
मम शत्रुं ज्वालय-ज्वालय, नाशय-नाशय हूँ फट्।’
श्रीअघोरास्त्र-मंत्र:- ‘ॐ ह्रीं स्फुर-स्फुर प्रस्फुर-प्रस्फुर घोर-घोर-तर तनुरूप
चट-चट प्रचट-प्रचट कह-कह वम-वम
बन्ध-बन्ध घातय-घातय
हंु फट्।’
श्रीपशुपतास्त्र
मंत्र:- ‘ॐ श्लीं पशु हुं फट्।’
श्रीपशुपतास्त्र
प्रकट मंत्र:- ‘ॐ नमो पाशुपतास्त्र! स्मरण मात्रेण
प्रकटय-प्रकटय,
शीघ्रं आगच्छ-आगच्छ, मम सर्व शत्रुसैन्यं
विध्वंसय-विध्वंसय,
मारय-मारय हंु फट्।’
श्रीयमास्त्र
प्रकट मंत्र:- ‘ॐ नमो यमदेवताय नमः। स्मरण
मात्रेण प्रकटय-प्रकटय।
अमुकं शीघ्रं मृत्यंु हंु फट्।
’
’
श्रीसुदर्शन
चक्र मंत्र:- ‘ॐ नमो भगवते सुदर्शनाय भो भो
सुदर्शन दुष्टं
दारय-दारय दुरितं हन-हन पापं दह-दह, रोगं
मर्दय-मर्दय,
आरोग्यं कुरु-कुरु, ह्रां ह्रां ह्रीं ह्रीं हं्रू हं्रू
फट् फट् दह-दह
हन-हन भीषय-भीषय स्वाहा।’
श्रीसुदर्शनचक्रास्त्र
प्रकट मंत्र:- ‘ॐ नमो सुदर्शनचक्राय,
महाचक्राय, शीघ्रं
आगच्छ-आगच्छ, प्रकटय-प्रकटय, मम शत्रुं
काटय-काटय, मारय-मारय,
ज्वालय-ज्वालय, विध्वंसय-विध्वंसय,
छेदय-छेदय, मम
सर्वत्र रक्षय-रक्षय हुं फट्।’
श्रीनारायणास्त्र
मंत्र:- ‘हरिः ॐ नमो भगवते श्रीनारायणाय नमो
नारायणाय विश्वमूर्तये
नमः श्री पुरुषोत्तमाय पुष्पदृष्टिं प्रत्यक्षं वा
परोक्षं वा अजीर्णं
पंचविषूचिकां हन-हन ऐकाहिकं द्वîाहिकं
ींयाहिकं चातुर्थिकं
ज्वरं नाशय-नाशय
चतुरशीतिवातानष्टादशकुष्ठान्
अष्टादशक्षय रोगान् हन-हन
सर्वदोषान् भंजय-भंजय
तत्सर्वं नाशय-नाशय शोषय-शोषय
आकर्षय-आकर्षय
शत्रून-शत्रून मारय-मारय उच्चाटयोच्चाटय
विद्वेषय-विद्वेषय
स्तम्भय-स्तम्भय निवारय-निवारय
विघ्नैर्हन-विघ्नैर्हन
दह-दह मथ-मथ विध्वंसय-विध्वंसय चक्रं
गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ
चक्रेण हत्वा परविद्यां छेदय-छेदय
भेदय-भेदय चतुःशीतानि
विस्फोटय-विस्फोटय अर्शवातशूलदृष्टि
सर्पसिंहव्याघ्र
द्विपदचतुष्पद-पद-बाह्यान्दिवि भुव्यन्तरिक्षे अन्येऽपि
केचित् तान्द्वेषकान्सर्वान्
हन-हन विद्युन्मेघनदी-पर्वताटवी-सर्वस्थान रात्रिदिनपथचैरान्
वशं कुरु-कुरु हरिः नमो भगवते ह्रीं हंु
फट् स्वाहा ठः
ठं ठं ठः नमः।’
(मेरा आप लोगों से एक बार फिर से अनुरोध है की
इन मंत्रो का प्रयोग ना करें)
इन सभी अस्त्रों मै सब से प्रभाव शाली अस्त्र है शास्त्रार्थ
इन सभी अस्त्रों मै सब से प्रभाव शाली अस्त्र है शास्त्रार्थ
दोस्तों तो यह थे वो वीर
योद्धा और अस्त्र जिनका उपयोग पहेले समय मैं होता था| अगर आपको मेरा ब्लॉग अच लगे
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|| जय महाकाल ||
|| जय भारत ||
19\10\2018
(विजय दशमी)
परम कुमार
कक्षा-9
कृष्णा पब्लिक स्कूल
ऊपर दिए गए फोटो इस लिंक से ली गयी है
3. 3- http://againindian.blogspot.com/2017/01/speciality-of-divine-weapon.html