Sunday 30 August 2020

जय महाकाल,
नमस्कार दोस्तों
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 आप सब का हमारी आज की चर्चा में स्वागत है| आज हमारी चर्चा का विषय ना ही किसी राजा पर है, ना ही किसी युद्ध पर है| हम आज भारत में व्याप्त जाती व्यवस्थापर है| हम आज एक ऐसे राजा के बारे में भी जानेगें जिनकी वीरता का वर्णन पूरे भारतीय इतिहास में कहीं भी नहीं है| परन्तु उनकी वीरता को उस समय के सभी वीरों ने प्रणाम किया था| उस वीर के बारे में जान लेने के पूर्व मैं भारत के जाती श्रेणी के बारे में आप सब को एक नई जानकारी प्रदान करना चाहूँगा| आईये शुरू करते हैं|


दोस्तों आज मैं आप को जिस राजा के बारे में बताऊंगा, उनका उपनाम सुनके आप सब को बड़ी हैरानी होगी, क्योंकि उनका उपनाम था “श्रीवास्तव” | जी हाँ दोस्तों आप सब ने ठीक पढ़ा “श्रीवास्तव| आप लोग सोच रहे होंगे की मे यह क्या लिख रहा हूँ श्रीवास्तव राजा कैसे हो सकते हैं वो तो क्यास्थ होते हैं जो कि भारत में व्याप्त जाती व्यवस्था के अनुसार वैश्य श्रेणी में आते हैं| परन्तु दोस्तों यह असत्य है| क्यास्था वैश्य श्रेणी में नहीं बल्कि क्षत्रिय श्रेणी में आते हैं| दोस्तों अब आप सब सोचेंगे की क्षत्रिय तो राजपूत होते हैं कायस्थ क्षत्रिय कैसे हो सकते हैं| तो दोस्तों मै आपको बताना चाहूँगा की दो साल की अनुसंधानिक प्रक्रिया के पश्चात् मुझे यह ज्ञात हुआ की “ कायस्थ क्षत्रिय हैं परन्तु राजपूत नहीं ”| जब मै आज के ब्लॉग की अनुसंधानिक प्रक्रिया में था तब मेरे मस्तिस्क में एक प्रशन कौंधा (यह प्रशन इस वजह से कौंधा क्योंकि में भी कायस्थ हूँ)| भाई दूज के दिन हमारे यहाँ भगवान चित्रगुप्त की पूजा होती है, जिसमे बताया जाता है की भगवान ब्रह्मा से भगवान श्री चित्रगुप्त का जन्म हुआ जो की मस्तिस्क से ब्राहमण, बाहू से क्षत्रिय, कमर से वेश्य और घुटनों से शूद्र थे और उनसे 12 पुत्रों की उतपत्ति हुई| मेरे मस्तिष्क में जो प्रश्न आया वो यह की भगवान चित्रगुप्त की कथा के अनुसार कायस्थ किस वर्ण में आयेंगे? क्योंकि कथा में तो कायस्थों में चारों वर्णों के गुणों का जिक्र है| इसके बाद जब मै इसकी अनुसंधानिक प्रक्रिया में लगा तो मुझे ज्ञात हुआ की पूड़े भारत में मात्र क्यास्थ ही एक एसे क्षत्रिय होते हैं जिनमे क्षत्रिय के गुणों के अलावा भारत में व्याप्त हर जाती के गुणों का श्रेणी होता है और उस समय के भारत में मात्र क्यास्थ ही एसे लोग थे जो किसी भी प्रकार का कोई भी मनोवांछित कार्य कर सकते थे| अतः यह हम लोग के लिए बहुत महतवपूर्ण जानकारी है ताकि लोगों को भारत में व्यापत जाति व्यवस्था की उचित जानकारी मिल सके क्योंकि हमें सही जानकारी की बहुत आवश्यकता है| मेरा मकसद यह नहीं की में क्यास्थों की श्रेणी में अपनी ओर से कोई फेरबदल करूँ| मै बस आप लोगों को एक उपयुक्त जानकारी दे रहा हूँ|
येह तो बात हुई कायस्थों की उत्प्पति की| आईये अब बात करें एक ऐसे वीर की जिसने अपने समय के सब से पराक्रमी और 16 वी सदी की भारत की सब से बड़ी ताकत यानि मुग़लों को चुनोती दी थी| दोस्तों मै बात कर रह हूँ जशोर नरेश महाराज प्रतापदित्य श्रीवास्तव की| आज के समय में जशोर बांग्लादेश में आता है| आईये तो जाने किस प्रकार महाराज प्रतापदित्य श्रीवास्तव ने मुग़लों को चुनौती दी और बता दिया की एक व्यक्ति में क्या कुछ करने की क्षमता है| दोस्तों यह घटना कुछ इस प्रकार की है| एक बार अकबर के दरबार में सन 1561 ई. में एक कवि आया था, जिससे अकबर ने अहंकारवश यह पुछा की भारत का सबसे शक्तिशाली राजा कौन| है उस कवि ने कहा महाराणा प्रताप| यह सुन के अकबर ने अहंकारवश अपने वैभव और ताकत का बखान कर दिया| तब उस कवि ने कहा आपने ने जो बातें बतायीं जैसे कि मेरे पास 10 लाख की फौज है,1500 करोड़ से भी अधिक धन है, आदि| यह बातें साफ करती हैं की इतना सब होने के बावजूद उस प्रताप को युद्ध में पराजित न कर सके| इससे तो यही पता चलता है की महाराणा प्रताप आप से बड़े शासक हैं और एक सच्चे राजपूत और मातृभूमि के भक्त हैं| तब अकबर ने कहा तुम राजपूतों की बात करते हो इतने सारे राजपूत मेरे दरबार में भरे पड़े हैं| तब उस कवि ने कहा
“हर भारतीय राजपुताना का नही होता,
हर राजपुताना का व्यक्ति मेवाड़ी नहीं होता,
हर मेवाड़ी राजपूत नहीं होता,
हर राजपूत सूर्यवंशी नहीं होता,
और हर सूर्यवंशी राजपूत महाराणा प्रताप नहीं होता”|
इन पक्तियों को कहने के बाद उस कवि का क्या हुआ हमें इसकी जानकारी नहीं मिलती इसके लिए हमे क्षमा करें|
परन्तु इतिहास में वर्णित है की इस घटना के पश्चात् अकबर ने हल्दीघाटी के युद्ध की घोषणा करवादी थी और यह भी कहा था,जो भी महाराणा प्रताप का साथ देगा वह मुगलों का पहला निशाना होगा| इस युद्ध के समय महाराणा प्रताप से प्रेरित होकर जशोर के सबसे बड़े जमींदार ठाकुर प्रतापदित्य श्रीवास्तव ने मुग़लों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था और बंगाल के नवाब जो की मुगलों का सूबेदार था उसकी हत्या भी करवादी थी| इतिहास में इस घटना की कोई उपयुक्त तिथि नहीं मिलती परन्तु कई इतिहासकारों के अनुसार यह घटना 1570 ई. से 1575 ई. के मध्य की ही है| इन्टरनेट पे महाराज प्रतापदित्य श्रीवास्तव की जन्म तिथि 1561ई. है और मृत्यु की तिथि 1611 ई. दी हुई है| इन दोनों तिथियों की कोई उपयुक्त पुष्टि नहीं मिलती, परन्तु अधिकतर इतिहासकार मानते हैं की महाराज प्रतापदित्य श्रीवास्तव का जन्म 1550 ई. से 1555 ई. के मध्य में ही हुआ है और मृत्यु 1608ई. से 1611ई. के मध्य हुई थी| बंगाल के नवाब की हत्या के पश्चात् ठाकुर प्रतापदित्य श्रीवास्तव को बंगाल के लोगों ने महराज की उपाधि दे दी थी| अकबर के लिए यह बहुत बड़ी चिंता का विषय बन गया था| क्योंकि उसके दो सब से महत्वपूर्ण धन आगमन मार्गों में उसके शत्रुओं की राज्य की स्थापना हो गयी थी| उत्तर-पश्चिम में गुजरात के मार्ग पर महाराणा प्रताप का शासन था| तो वही बंगाल के मार्ग पर नहीं बल्कि पूरे बंगाल और बंगाल की खाड़ी पर महाराज प्रतापदित्य श्रीवास्तव का राज था| लगातार महाराणा प्रताप से युद्धों में मुगलों को वैसे ही बहुत धन की हानि हुई थी| वो अपना एक और धन का मार्ग नहीं खो सकते थे| इसके लिए अकबर ने स्वयम बंगाल पर पुनः अधिकार करने के लिए अपने नेतृत्व में सन 1575 ई. में बंगाल गया| जहाँ पर उसके सामने एक 20-25 साल का एक बालक खड़ा था| तब अकबर ने कहा “बच्चे तुम चले जाओ तुम्हारे परिवार को तुम्हारी आवश्यकता आने वाले समय में होगी| तुम एक व्यापारी हो व्यापारी ही रहो राजा बनने की कोशिश मत करो तब महाराज प्रतापदित्य श्रीवास्तव ने कहा “मै राजा बनने की कोशिश नहीं कर रहा, मै राजा बन चुका हूँ”| यह सुन के अकबर ने युद्ध का आदेश दे दिया परन्तु यह युद्ध अकबर के पक्ष में न था बंगाल में इस समय वर्षा आयी हुई थी जिसकी वजह से अकबर के सेनिकों के हांथियों के पांव जमीन में धंसने लगे और बिजली कडकने की वजह से हांथियों में भगदर मच गायी और अकबर की सेना को बहुत हानि हुई| स्वयम अकबर का हांथी खुद हवाई भी इस युद्ध में बेकाबू हो गया था| इस मौके का फायदा उठा के महाराज प्रतापदित्य श्रीवास्तव की सेना ने अकबर की सेना पे जबरदस्त आक्रमण किया और क्योंकि उनकी सेना में पैदल सैनिकों की संख्या अधिक थी महाराज प्रतापदित्य श्रीवास्तव की सेना मुगलों पर भारी पड़ी| इस युद्ध में महाराज प्रतापदित्य श्रीवास्तव की विजय हुई और अकबर को युद्ध से भागना पड़ा| कहा जाता है की एक बार जब महाराज प्रतापदित्य श्रीवास्तव बनारास अपने मित्र के यहाँ थे तब शराब पिने की वजह से उनकी मृत्यु हो गयी कई लोगों का कहना है की उनको विष दे दिया गया और कई लोगों का मानना है की अकबर की सेना ने वाराणसी(बनारस) पर आक्रमण कर दिया था और युद्ध में महाराज प्रतापदित्य श्रीवास्तव वीरगति को प्राप्त हुए थे| महाराज प्रतापदित्य श्रीवास्तवकी मृत्यु जैसे भी हुई हो परन्तु उनके द्वारा किया कार्य अपने आप में बहुत बड़ी बात है| परन्तु यह हमारा दुर्भाग्य है की हमे ऐसे महावीर के बड़े में अधिक नहीं मालूम| अतः मेरा निवेदन है की आप इस ब्लॉग को अधिक से अधिक शेयर करें| और जैसा की मेने ऊपर बताया कि आप अगर यह ब्लॉग को और मेरे’ अन्य ब्लोगों को सुनना चाहते हें तो हमारे यू टयूब(youtube) चैनल को सब्सक्राइब  (subscribe) कर लें|
30/08/2020
परम कुमार
कक्षा-11
कृष्णा पब्लिक स्कूल
रायपुर,(छ.ग.)




अगर आप सुविचार पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दी गई लिंक को दबाएं
https://madhurvichaar.blogspot.com/2020/09/blog-post_91.html

ऊपर दी गयी फोटो इस लिंक से ली गयी है-
https://www.paramkumar.in/2020/08/unidentified-kshatriya-kayastha.html

Wednesday 5 August 2020

                   यह विडियो अवश्य देखें( परम कुमार)

जय महाकाल,

नमस्कार दोस्तों आप सब का मेरे इस ब्लॉग में पुनः स्वागत है|

दोस्तों आज हमारी चर्चा का विषय भारत के उस राजवंश के ऊपर है, जिसके पराक्रम, शौर्य और दानवीरता की गाथा पुरे विश्व में प्रचलित है| आज हम उस वंश के बारे में बात करने वाले हैं, जिसमें हुए एक वीर पुरुष के नाम पर हमारी धरती का नाम पृथ्वी पड़ा| आज हम उस वंश के बारे में चर्चा करने वाले हैं जिसमे, हुए एक राजा की वजह से लायी हुई नदी में स्नान करके आज की इस दुनिया में हम हर तरीके के पाप से मुक्त हो जाते हैं| दोस्तों आज हम उस वंश के बारे में जानेंगे जिसने कहा था “रघुकुल रीती सदा चली आई प्राण जाई पर वचन न जाई”| दोस्तों अब आप समझ ही गये होंगे मैं बात कर रहा हूँ महान सुर्यवंश की जिसमे भगवान विष्णु ने मानव अवतार में श्री राम के रूप में जन्म लिया था और बताया था कि अगर एक मानव चाहे तो क्या कुछ नही कर सकता है| उन्होंने बताया अगर मानव को कुछ हासिल करना है तो उसे अपने घर से बहर निकलना होगा| क्योंकि अगर श्री राम वनवास ना जाते तो वो केवल श्री राम रहते वो वनवास गये इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम कहलाये| वो वन गये तो बन गये | उन्होंने बतया की हर नकारात्मक विषय में सकारात्मक देखो| जब महाराज दशरथ उन्हें आदेश देते हैं वन जाने का तब वो अपनी माता से कहते हैं “माँ पिताजी ने मुझे जंगलों का राजा बनाया है”| वो हमे बताने आये थे जो अपनों से दूर जायेगा वो पूरे संसार का हो जायेगा और पुरे संसार में उसका भी परिवार आयेगा तो वो अपने परिवार से कभी भी दूर होगा ही नहीं|

दोस्तों आज हमारी चर्चा का विषय श्री राम के ऊपर नहीं बल्कि श्री राम के वंश में उनसे पूर्व जन्मे बाकि महान राजाओं के ऊपर है| इनमे कुछ तो एसे वीर थे जिनके सामान आज तक कोई न हुआ| अगर इनके समय के भारत का मानचित्र देखा जाये तो पूरे विश्व पे केवल भारत का ही राज है|  आईये तो जानते हैं भारत के उन महान शासकों के बारे में जिनके नाम पर हमारी पृथ्वी का नाम है| 

दोस्तों जब आपने मेरे आज के इस ब्लॉग का विवरण पड़ा होगा तो आपको लगा होगा कि अरे मैं यह क्या बात कर रहा हूं पृथ्वी का तो जन्म जन्मांतर युग युगांतर से पृथ्वी ही नाम रहा| तो दोस्तों आपको जानकर बड़ी हैरानी होगी कि पृथ्वी का नाम पहले से पृथ्वी नहीं था| पृथ्वी के पुराने नामों में से कुछ नाम मैदरी और मृतिका भी हैं| दोस्तों किस प्रकार से पृथ्वी का नाम पृथ्वी पड़ा और उसके पीछे की वजह क्या थी यह सब हम अपने आज के इस ब्लॉग में जानेंगे दोस्तों इस विषय के ऊपर चर्चा करने के पूर्व मैं आपको यह बताना चाहूंगा कि किस प्रकार पृथ्वी का पुराना नाम मैदरी पड़ा| दोस्तों बचपन में आप सब ने अपने दादा दादी नाना नानी से मधु और कैटभ नामक दो राक्षसों की कहानी सुनी होगी| ये दो राक्षस अहंकार में मदहोश होके भगवान विष्णु के पास पहुंचे और कहा कि तुम हमसे वरदान मांगो श्री जगन्नाथ भगवान विष्णु ने इन दोनों से इनकी मृत्यु का उपाय वरदान के रूप में मांगा| मधु और कैटभ ने कहा चाहे राक्षस हो या भगवान या फिर दानव अगर किसी व्यक्ति का कहां हुआ वाक्य अधूरा रह जाए तो उस व्यक्ति का जीवन व्यर्थ होता है | तब मधु और कैटभ ने अपनी मृत्यु का मार्ग स्वयं ही भगवान विष्णु को बता दिया| उस मार्ग के अनुसार मधु और कैटभ ना ही धरती पर मर सकते थे, ना ही आसमान, ना ही जल में डूब सकते थे, ना ही धरा में समा सकते थे | तब भगवान विष्णु ने अपनी जांघ को पूरे जगत में फैला दिया और कैटभ का सर अपने सुदर्शन चक्र से अलग कर दिया, जब वह मधु को मार रहे थे तो उन्होंने अपनी गदा का प्रयोग किया जिससे मधु के शरीर का मैदा जिसे अंग्रेजी में फैट भी बोला जाता है, पूरे भूमंडल में फैल गया जिसकी वजह से पूरे भूमंडल का नाम मैदरी पड़ गया| तो दोस्तों यह थी कहानी पृथ्वी के नाम मैदरी होने की| (पृथ्वी का नाम मृतिका कैसे पड़ा इसका विवरण हमे अभी प्राप्त न हो सका)

 आइए अब हम जानते हैं किस प्रकार पृथ्वी का नाम पृथ्वी पड़ा| दोस्तों भगवान श्री राम के वंश में अनेक अनेकों प्रतापी और महान योद्धा हुए| उसमें से एक थे महाराज पृथु | ऋषि मारीची के द्वारा स्थापित इक्ष्वाकु वंश के छठवें राजा दोस्तों आपको यह जानके बड़ी हैरानी होगी कि महाराज पृथु का जन्म केवल उनकी पिता की दाई भुजा से हुआ था इनकी कोई भी माता नहीं थी| इनके पिता अनेनस ने भगवान ब्रम्हा का आह्वान कर अपने दाई भुजा से पृथु की उत्तपति की|

विष्णु पुराण के अनुसार महाराज पृथु भगवान विष्णु के अंश थे| दोस्तों मैं यहां पर आपको यह  बताना चाहूंगा कि अवतार और अंश में बहुत छोटा सा एक अंतर होता है| जब हम कहते हैं कि श्री राम भगवान विष्णु के अवतार थे तो उसका मतलब यह है कि मनुष्य रूप में भगवान जन्मे थे और जब हम कहते हैं महाराज पृथु में भगवान विष्णु का अंश था, तो उसका मतलब है भगवान विष्णु की कलाओं का कुछ अंश महाराज पृथु में जन्म से था| भगवान विष्णु ने महाराज पृथु के रूप में इस संसार में इसलिए जन्म लिया था क्योंकि वह इस पूरी पृथ्वी की मानव जाति को एक साथ लाकर एक बेहतर जीवन सबको प्रदान करना चाहते थे| इसके लिए महाराज पृथु ने बहुत से युद्ध भी किए और उन्होंने यह पृथ्वी भी जीत ली| दोस्तों आपको यहां पर थोड़ी शंका हो सकती है कि मैं बार-बार पृथ्वी नाम क्यों ले रहा हूं क्योंकि अभी तक महाराज पृथु के नाम पर पृथ्वी का नाम नहीं पड़ा था| दोस्तों उसकी तथा कुछ इस प्रकार से है पौराणिक काल में ध्रुवा नाम का एक अत्याचारी राजा था जिसने अपने पूरे राज्य में पूजा पाठ करने से मना कर दिया था| इससे क्रुद्ध होकर धरती मां ने गाय का रूप लिया और भाग गई| जिससे पूरे संसार में अकाल पड़ गया| कहीं पर भी वर्षा नहीं होती थी| कहीं पर भी खेती नहीं होती थी, कहीं पर भी एक परिंदा नहीं बच रहा था| जीवन मानो समाप्त होने की कगार पर पहुंच गया था| सारे ऋषियों ने मिलकर महाराज पृथु से विनती की कि है महाराज पृथु आप अत्याचारी और दुष्ट राजा ध्रुवा का अंत करें और माता धरती को पुनः लाएं| तब महाराज पृथु ने ध्रुवा से लड़ाई की और उसे युद्ध में पराजित कर वह माता धरती की खोज में निकल गए| वह जब अरावली वनों के जंगलों में पहुंचे तब उन्हें वहाँ पर एक अलग सी आभा  वाली एक गाय दिखी| महाराज पृथु समझ गए कि यह और नहीं बल्कि माता धरती हैं|  उन्होंने माता धरती का बहुत दूर तक पीछा किया पर माँ धरती ना रुकी| तब मजबूरन महाराज पृथु तो माता धरती के सामने आना पड़ा और वहां माता धरती से टकराकर घायल होते हुए| अपनी घायल अवस्था में उन्होंने माता धरती को रोका और माता धरती का जो कि अभी गाय के स्वरूप में थी उनका दूध पिया| इससे प्रसन्न होकर माँ धरती पुनः अपने असली स्थान में स्थापित हो गयीं, क्योंकि इस धरती को उसका रक्षक मिला| एक रक्षक भी ऐसा, जिसने पुनः पूरे संसार को एक नया जीवन दिया| इस प्रकार धरती का नाम महाराज पृथु के नाम पर पृथ्वी पड़ गया| तो दोस्तों यह थी महाराज पृथु की कथा जिन्होंने ना केवल मानव जीवन को बचाया था बल्कि आज हमारी पूरी पृथ्वी का नाम उनके नाम पर है| पर मुझे बड़ा दुख है कि हमें भगवान श्री राम के बारे में तो पढ़ाया जाता है| पर इनके उज्जवल पूर्वजों के बारे में हमें नहीं पढ़ाया जाता |अगर हम किसी बालक से पूछे की महाराज श्री राम के पिता का क्या नाम था तो वह दशरथ बता सकता है पर अगर हम यह पूछे कि भगवान श्री राम के दादा का क्या नाम था? तो वह नहीं बता सकता वह यह नहीं बता सकता कि लव कुश के बच्चों का क्या नाम था? इसलिए अगर भारत को एक आत्मनिर्भर देश बनना है तो उसे जरूरी है कि भारत की युवा पीढ़ी भारत के  लोगों को उसकी संस्कृति को जाने|

इस आशा के साथ की आप मेरा यह सन्देश जन-जन तक पहुँचायेगे में आप सब से विदा लेता हूँ| आब आप सब से अगले ब्लॉग में मुलाकात होगी|

                                ||जय महाकाल||

                                 ||जय भारत||



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05\08\2020

                                                                                                               परम कुमार

                                          कृष्णा पब्लिक स्कूल

                                          रायपुर (..)

                                          कक्षा-11



ऊपर दिया गया चित्र इस लिंक से लिया गया है-

https://www.google.com/url?sa=i&url=http%3A%2F%2Fevents.iskcon.org%2Fevent%2Fmayapur-institute-iskcon-leadership-course-march-2016%2F&psig=AOvVaw2VQ9iDXBJhbERp7Le8T9W8&ust=1596724791853000&source=images&cd=vfe&ved=0CAIQjRxqFwoTCJCbotilhOsCFQAAAAAdAAAAABAJ

 



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