जय
महाकाल,
नमस्कार दोस्तों, आप सबका एक बार पुनः मेरे ब्लॉग में स्वागत है| आज हमारी चर्चा का विषय भारत के किसी ऐसे वीर योद्धा पर नहीं है जिसके बारे में भारत के लोग अनभिज्ञ है| आज हमारी चर्चा
का विषय भारत के एक उस महावीर योद्धा पर है जिसकी ख्याति भारत में एक अलग ही कीर्तिमान स्तंभ के तौर पर प्रज्वलित है| जिसके नाम के ऊपर ब्रजभाषा का एक बहुत ही सुंदर ग्रंथ पृथ्वीराज रासो लिखा गया है| जी हां दोस्तों आपने बिल्कुल सही समझा| आज हमारी चर्चा का विषय पृथ्वीराज चौहान के ऊपर है| दोस्तों पर मैं पृथ्वीराज चौहान जैसे महावीर योद्धा के बारे में आपको ऐसा कुछ नहीं बताने वाला जो आपको मालूम ना हो| परंतु मैं आपको एक ऐसी सच्चाई बताने वाला हूं| जो की पृथ्वीराज चौहान के इतिहास से जुड़ी हुई है और जो शायद आपको ना मालूम हो| दोस्तों इतिहास में यह वर्णित है कि पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को शब्दभेदी बाण चलाकर मारा था| परंतु दोस्तों यह बात असत्य है मेरा मकसद पृथ्वीराज चौहान जैसे महावीर की ख्याति को यह बोलकर कि उन्होंने मोहम्मद गौरी को नहीं मारा था कहकर उनकी ख्याति कम करना नहीं है|इसमें कोई शक नहीं कि पृथ्वीराज चौहान जैसे वीर बहुत कम ही हुए है| परंतु ऐसे महावीर के बारे में उसकी शान में झूठी बातें लिखकर हम उसकी इज्जत उसके सम्मान को ऊपर नहीं पहुंचाते और नीचे ले आते है| निःसंदेह पृथ्वीराज चौहान एक महावीर योद्धा थे परंतु उनकी युवावस्था में बड़बोले मंत्रियों ने उन्हें अपने सर पर चढ़ा के रखा था| एक राज्य और उसके राजा की सफलता तभी होती है जब उसे उसके आसपास उसके निंदक मिले| परंतु पृथ्वीराज चौहान जैसे महावीर योद्धा की शायद यह बदकिस्मती थी| कि उन्हें कभी भी ऐसे विश्वसनीय मंत्री ना मिल सके| उनके एक मित्र जरूरत हुए चंद्रवरदाई जिन्होंने पृथ्वीराज रासो लिखी| परंतु दोस्तों इतिहास में सबसे बड़ा सवाल जो आता है वह यह की अगर चंद्रवरदाई और पृथ्वीराज चौहान गौर प्रदेश जो कि आज के तत्कालीन अफगानिस्तान में है, वहीं पर मोहम्मद गौरी को मारने के पश्चात मृत्यु को प्राप्त हो गए थे| तो चंद्रवरदाई के द्वारा लिखी गई किताब पृथ्वीराज रासो को किसने पूरा क्योंकि इतिहास में इस बात का जिक्र नहीं मिलता कि चंद्रवरदाई के साथ कोई और भी पृथ्वीराज चौहान की सहायता के लिए अफगानिस्तान गया था| चलिए हमने एक बार इस बात को भी मान लिया की चंद्रवरदाई के साथ कोई और भी गया था अफगानिस्तान और उसने वापस आके पृथ्वीराज रासो पूरी कर दी| परंतु इतिहास में यह लिखा हुआ है कि पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु सन 1192 ईस्वी में हो गई थी| और मोहम्मद गौरी की मृत्यु 1206 ईस्वी में| दोनों तारीखों में 14 साल का अंतराल है| जिससे यह साफ होता है की पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को नहीं मारा था| मैं एक बार पुनः इस बात का जिक्र कर रहा हूं कि मेरा इस बात को लिखना कि पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को नहीं मारा था उनकी इज्जत को कम करना नहीं बल्कि भारत को उसके वीर के बारे में सही इतिहास बताना है और ऐसा लिख कर एक महावीर योद्धा की ख्याति को भारत के इतिहासकार बढ़ा नहीं रहे बल्कि उसे और कम कर रहे हैं और यह सही बात नहीं है| दोस्तों पृथ्वीराज रासो में 18000 से भी ज्यादा पृष्ठ हैं परंतु सोचने वाली बात यह है की 16000 पृष्ठ ब्रज भाषा में लिखीं है और बाकी के 2000 पृष्ठ नई मेवाड़ी भाषा में लिखे हुए है| इससे यह साफ होता है कि वह पृष्ठ जिसमें लिखा गया है की चंद्रवरदाई ने यह दोहा बोला “चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर पर बैठा सुल्तान ना चुके चौहान ” और पृथ्वीराज चौहान ने इसको सुनके मोहम्मद गौरी को मार दिया इसको बहुत बाद में लिखा गया है|
अतः इन सब प्रमाणों से यह सिद्ध होता है पृथ्वीराज चौहान ने
मोहम्मद गौरी को नहीं मारा था| परंतु दोस्तों इसका मतलब यह नहीं कि पृथ्वीराज चौहान
वीर नहीं थे| मैं आज भी डंके की चोट पर यह लिखता हूं कि पृथ्वीराज चौहान ने जिस अल्पायु
में एक गैर भारतीय शासक को 16 बार युद्ध में हरा दिया(यह 16 युद्धों में से पृथ्वीराज चौहान ने 15 युद्ध मौहम्मद गोरी के सेनापति और मंत्रियों से लड़ा था मात्र 16 और 17 वां युद्ध मौहम्मद गोरी ने स्वयम पृथ्वीराज से लड़ा 16 वें युद्ध में हार के बाद 17 वें युद्ध में मौहम्मद गोरी को पृथ्वीराज पे जीत हासिल हुई थी) उस अल्पायु में भारत का कोई भी
योद्धा वह काम ना कर सकता था| परंतु किसी भी वीर की ख्याति को बढ़ाने के लिए उसके बारे
में झूठी तारीफे लिखना ना केवल भारतीय इतिहास के लिए हानिकारक है बल्कि स्वर्ग में
बैठे उस वीर की आत्मा को भी इससे पीड़ा होती है| सबसे महत्वपूर्ण बात जो मैं आप सब
को बताना चाहूंगा वह यह की गद्दारों की सूची में एक नाम आता है जयचंद| कहा जाता है
की जयचंद ने मोहम्मद गौरी का साथ दिया,इसकी वजह से पृथ्वीराज चौहान हार गए परंतु दोस्तों
यह असत्य है| जयचंद ने कभी भी मोहम्मद गौरी का साथ नहीं दिया था और ना ही जयचंद कभी
भी पृथ्वीराज चौहान और अपनी पुत्री संयोगिता के विवाह से असंतुस्थ नहीं थे| आपको जानकर
यह बड़ी हैरानी होगी परंतु जो जयचंद थे वह पृथ्वीराज चौहान के पिता के मित्र थे परंतु
यह बहुत दुर्भाग्य की बात है कि हमारे इतिहास से इतने ज्यादा फेरबदल हुए कि हमने जो
वीर थे उन्हें गद्दार घोषित कर दिए और जो गद्दार थे उन्हें हमने वीर बना दिया|
अगले ब्लॉग में मैं आप लोगों को बताऊंगा क्यों जयचंद को गद्दार
घोषित कर दिया गया भारतीय इतिहास में| अंत में मेरा आप सब से बस यही निवेदन है कि आप
इस ब्लॉग को अधिक से अधिक शेयर करें ताकि लोगों को भारत के वीरों की असली बातें पता
चल सके और उन्हें पृथ्वीराज चौहान जैसे महावीर का असली इतिहास
मालूम हो|
4/10/2020
परम कुमार
कक्षा-11
कृष्णा पब्लिक स्कूल
रायपुर(छ.ग.)
अगर आप सुविचार पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दी गई लिंक को दबाएंl
https://madhurvichaar.blogspot.com/2020/09/blog-post.html
ऊपर दी गयी तस्वीर इस लिंक से ली गयी है-https://in.pinterest.com/pin/520728775637428966/
That was wow, I didn't knew that so much about him... Now I am curious to know more like this personalities... I must say, Keep up the good work Param and keep sharing...
ReplyDeleteFact check- Prithviraj Chauhan and Gori fought only twice and not 16 times.
ReplyDeleteYes Glori and Prithviraj chauhan fought only two wars 16th and 17th
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