नमस्कार दोस्तों, आप सबका आज की इस चर्चा में स्वागत है| आज
की चर्चा में हम सब एक बार पुनः बात करने वाले हैं दसकंधार के बारे में, यानि महाबली, महातेजस्वी रावण के बारे में| आज से 2 साल पूर्व 6 मार्च 2019 को हम इस विषय पर
चर्चा कर चुके हैं,परन्तु उस चर्चा में हमने रावण के बारे में वो सारी बातें जानी थीं जो हमे कठिनाई से ही सही परन्तु उपलब्ध हो
जाती हैं | परन्तु रावण के बारे में कुछ ऐसी भी बातें हैं जो मुझे लगता है कि आप सब को बतानी आवश्यक हैं और जो मैंने अपनी इन दो वर्षों की अनुसंधानिक प्रक्रिया
में जानी हैं| आज की इस चर्चा सभा में हम उन्ही सब पहलुओं पर अपनी नज़र डालेंगे| चलिए
तो आज की चर्चा शुरू करते हैं|
“राम नो जब लंका
पर विजय पानी , तब नो सीता को अशोक वाटिका से मुक्त करनी
संसार तब राम न बाहुबल जाना, परन्तु सीता नो राम पवित्र पाना, वह ता रावण को तपोबल बलवाना”
ऊपर दिए गए इस दोहे का तात्पर्य है कि- भगवान श्री राम चन्द्र ने रावण पर विजय पाकर माता सीता को मुक्त किया यह उनका बाहुबल था,परन्तु माता सीता उनको पवित्र मिली यह रावण का तपोबल था| दोस्तों जब भी हम किसी व्यक्ति से मिलते हैं तब हम मात्र उसको देख कर या दुसरो से सुनी-सुनाई बातों के आधार पर उसके चरित्र का फैसला नहीं कर सकते| ऐसा ही कुछ व्यक्तित्व और चरित्र रावण का है | रावण का चरित्र अत्यंत प्रेरणा दायक है, मैं खुद रावण के चरित्र से अत्यंत प्रभावित हूँ और उसके चरित्र के सकारात्मक गुणों से काफी प्रेरणा पाता हूँ| अब आप सब सोच रहे होंगे की मैं यह कैसी बात कर रहा हूँ, कोई रावण से क्या प्रेरणा पा सकता है| तो दोस्तों हर व्यक्ति में दो चरित्र होते हैं नकारात्मक और सकारात्मक चरित्र| कुछ ऐसा ही रावण का भी व्यक्तित्व है | हम केवल रावण के नकारात्मक चरित्र को जानते है, परन्तु उसके सकारात्मक व्यक्तित्व और उसके जीवन के संघर्ष से भी कई अवगत नहीं है| मैं आज आप को कुछ ऐसी ही बातें बताऊंगा और रावण के इस धरती पर आने और धरती से जाने की तिथि भी बताऊंगा|
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मित्रों आप में से बहुत से लोग सोचते होंगे की मैं रावण को इतना सम्मान देकर क्यों संबोधित करता हूँ| दोस्तों इसका कारण यह है की श्री राम से एक बार हनुमानजी ने पूछा था की “प्रभु आप जब भी किसी को रावण से हुए अपने संघर्ष के बारे में बताते हैं तो आप उसे महान, प्रखंड आदि उच्च-कोटि के संबोधनों से संबोधित क्यों करते हैं तब भगवान श्री राम ने कहा हर व्यक्ति में दो प्रवृत्तियाँ होती हैं सकारात्मक और नकारात्मक| परन्तु एक साधारण मनुष्य हमेशा एक व्यक्ति की नकारात्मक छवि पर ही ध्यान देता है ताकि वो अपने आप को उससे ज्यादा श्रेष्ठ सिद्ध कर सके| परन्तु ऐसा करते वक्त वो यह भूल जाता है कि उसमें (सामने वाले मनुष्य में) वो नकारात्मक प्रवृत्ति तो थी परन्तु उसमें (सामने वाले मनुष्य में) एक ऐसी सकारात्मक प्रवृत्ति भी थी जिसने सामने वाले व्यक्ति को (दुसरे व्यक्ति को) विवश कर दिया की वो अपने अन्दर लोगों को नीचा दिखने की नकारात्मक प्रवृत्ति को जन्म दे| संसार आज राम की जय और रावण की हाय इसलिए कर रहा है क्योंकि उन्होंने केवल राम की सकारात्मक प्रवृत्ति देखी और रावण की केवल नकारात्मक प्रवृत्ति | संसार यह भूल गया राम तो एक राजा के पुत्र थे, जिसे अगर वनवास न हुआ होता या फिर सीता हरण न हुआ होता तो बिना किसी प्रयत्न या जतन के समग्र सप्तसिंधु का राज प्राप्त हो जाता| वन के संघर्ष के अलावा कोई संघर्ष नहीं करना पड़ता| परन्तु वो रावण था जिसे पहले उसकी माँ के असुर होने की वजह से गुरुकुल से निकला गया, वो वह रावण था जिसके पिता का नाम होते हुए भी वह उस नाम का उपयोग नहीं कर सकता था, वह रावण का ही संघर्ष था जिसने अपने जीवन में इतने बड़े कुल में जन्म लिया जहाँ उसके प्र्पितामः सृष्टि के रचियता ब्रह्मा थे, जिसके पितामह ऋषि पुलत्स्य और पिता ऋषि विश्र्वा थे इसके बावजूद संसार का तिरस्कार सहन करना पड़ा और अंत वह रावण अपने कर्म के बल से स्वर्ण नगरी का राजा बना और जब-जब भी मेरे परमप्रतापी पूर्वजों को अहंकार हुआ तब वही था जिसने उन्हें पराजित किया| वह रावण ही था जिसने कभी मेरे पूर्वज महाराज मान्धाता, मेरे पितामह महाराज अज और मेरे पिता महाराज दशरथ को युद्ध में पराजित किया था और यह सत्य है कि अगर रावण को इस जगत से इतना तिरस्कार न मिला होता तो आज और राम की जगह लाकेश्वर दशकंधार की जय जयकार होती| रावण का व्यक्तित्व एक व्यक्ति को उत्सह प्रदान कर सकता है कि किस प्रकार एक व्यक्ति मात्र अपने इच्छाशक्ति के बल पर सब कुछ हासिल कर सकता है| यही कारण है कि मैं रावण को महान, प्रखंड आदि उच्चकोटि के संबोधनों से संबोधित करता हूँ| यह हर मनुष्य के लिए बहुत अच्छा होगा अगर वह सामने वाले व्यक्ति की नकारात्मक प्रवृत्ति पर ध्यान न देकर केवल उसकी सकारात्मक प्रवृत्ति को अपनाये| हमे केवल हर नकारात्मक परिस्थिति में सकारात्मकता देखनी चहिये यह एक साधारण मनुष्य के दिव्यता प्राप्त करने का महत्वपूर्ण चरण है”|
दोस्तों यही कारण है कि क्यों मैं रावण को इतना सम्मान देता हूँ, यदि हम किसी व्यक्ति की नकारात्मक प्रवृत्ति से हटकर उसकी सकारात्मक छवि पर ध्यान दें तो क्या पता हमको कुछ ऐसा प्राप्त हो जो शायद हमने सोचा भी ना हो| आज की चर्चा सभा खत्म करने से पूर्व मैं आप लोगों को एक और अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी देना चाहूँगा, और वो यह है की, आप सब जानते होंगे की रावण कुम्भकर्ण और विभीषण ने ब्रम्हा जी की पूजा की थी और उनसे वरदान प्राप्त किए थे| कुम्भकर्ण ने जब ब्रम्हा जी से वरदान माँगा था तब उसकी जीभ पर माँ सरस्वती बैठ गयी थीं तब उसके मुख से इन्द्रासन की जगह निद्रासन निकल गया था| तब रावण ने विनती की थी कि आप अपना वरदान वापस लें तब ब्रम्हा जी ने कहा था “यह वरदान वापस तो नहीं हो सकता पर इसमें कुछ बदलाव अवश्य किये जा सकते हैं तुम्हारी इच्छा अनुसार तब रावण कुछ बोलता उसके पूर्व ही ब्रम्हा जी ने कह दिया ठीक है कुम्भकरण 6 महीने जागेगा और एक दिन उठेगा फिर 6 महीने सो जायेगा तब रावण ने कहा यह वरदान तो अपने दिया हमने नहीं माँगा हम इसे भी स्वीकार करते हैं परन्तु आप कुम्भकर्ण को वरदान दें योगनिद्रासन प्राप्त हो आर्थात वो 6 महीने योगनिद्रासन में रहे फिर एक दिन उठ कर 6 महीने योगनिद्रासन में लीन हो जाये| तब ब्रम्हा जी ने कहा तथास्तु परन्तु याद रहे 6 महीने की अवधि के पहले अगर कुम्भकर्ण उठा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी”| तो दोस्तों आखिर क्या करता था कुम्भकर्ण 6 महीने योगनिद्रा में? इस प्रश्न आप को जवाब अगले ब्लॉग में मिलेगा| आप इतना जान लीजिये योगनिद्रा एक ऐसी अवस्था होती है जिसमे एक व्यक्ति अपने शरीर से निकल कर इस ब्रह्माण्ड में कहीं भी विचरण कर सकता है|
अगर आपको यह ब्लॉग आच्छा लगा तो इशे शेयर करें और लोगों को
भी बताये रावण के इस महान व्यक्तित्व के विषय मैं| जल्द मिलेंगे अगले ब्लॉग में तब
तक के लिए|
|| जय
महाकाल ||
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27/4/2021
परम कुमार
कक्षा -12
कृष्णा पब्लिक
स्कूल
रायपुर(छ.ग.)
ऊपर दी गयी समस्त जानकारी वाल्मीकि रामायण,काम्ब रामायण ,रावण सहितं, रघुविर्पुर्षम से ली गयी हैं|
रावण की तस्वीर इस लिंक से ली गयी है - t.ly/J0xB