नमस्कार दोस्तों आपका मेरे इस ब्लॉग में स्वागत है आज
का हमारा चर्चा का विषय उस योद्धा पर है जिसने ना सिर्फ विश्व विजेता सिकंदर को युद्ध में पराजित किया
बल्कि उसे भारत में और आगे घुसने से भी रोका|जी हाँ
दोस्तों में बात कर रहा हूँ ठाकुर पुर्शोतम सिंह की जिन्हें हममें से अधिकतर पोरस
के नाम से ज्यादा जानते हैं |हो सकता है कि आप यह पढ़ कर सोच रहे होंगे
कि मैं यह कैसी बात कर रहा हूं क्योंकि आप सब ने आज तक तो यही पड़ा होगा कि सिकंदर
ने झेलम के किनारे पोरस
से लड़ाई की और पोरस को हरा दिया और एक
कहानी के रूप में हमें बताया जाता रहा है की पोरस के हारने के बाद जब सिकंदर ने
पोरस से पूछा था कि तुम्हारे साथ कैसा व्यहवार होना चाहिये तो पोरस ने कहा कि जैसा
एक राजा दुसरे राजा के साथ करता है |
पर नहीं दोस्तों यह गलत है| आज मैं आपको बताऊंगा कि क्या कारण
था जिसकी वजह से सिकंदर वापस लौटा और क्या कारण था उसकी हार का और क्या कारण था ऐसे
गलत इतिहास रचने का|
तो आइए शुरू करते है पोरस का जन्म 350 ईसापूर्व में
आज के वर्तमान पंजाब उस समय के पौरव राष्ट्र
में हुआ था| पोरस का असली
नाम ठाकुर पुरुषोत्तम सिंह था | पर विदेशियों
को पुरुषोत्तम नाम उचारण में दिक्कत
आती थी तो उन्होंने यह नाम छोटा करके अपने मुताबिक पोरस कर दिया
(खैर यह अलग
बात है कि हम विदेशियों द्वारा दिये गए नाम को
ही अब असली मानने लगे हैं) और उनके पिताजी
का
नाम ठाकुर भीमराज सिंह था | क्योंकि इनके
पिता का नाम भी उच्चारण करने में विदेशियों को दिक्कत होती थी तो इनका नाम उन्होंने बमनी कर दिया| इनकी माता
का नाम अनसूया था जो उस समय के तक्षशिला राज्य की राजकुमारी थी| रानी अनुसूया के पिता ने इनका विवाह
भीमराज सिंह से करवाया था | पर इनके भाई
को यह विवाह पसंद नहीं था | इसलिए राजा की मृत्यु के बाद उन्होंने कई बार पौरव राष्ट्र
पर आक्रमण किया पर उन्हें कभी भी इसमें जीत हासिल नहीं हुई और हर बार भीमराज सिंह से
मुंह की खानी पड़ी| इतिहास में
लिखा जाता है कि जहां एक जहां एक तरफ पोरस अपने देश को बचाने के लिए दूसरे देशों से
लड़ता था पर कभी भी जीते हुए देशों पर राज नहीं करता था वहीं दूसरी तरफ ग्रीस में शाह फिलिप तृतीय का सबसे बड़ा बेटा एलेग्जेंडर अपनी महत्वकांक्षाओं
की वजह से और अपने मां के भड़कावे
में आके अक्सर दूसरे राज्यों
पर आक्रमण करता था | उसने अपने
आप को राजा बनाने के लिए अपने ही भाई और अपने ही पिता का उनके अंग रक्षकों द्वारा कत्ल
करवा दिया था| उसके बाद वह विश्व विजेता
बनने का सपना देखने लगा| पर उसकी मां यह नहीं चाहती थी कि वह विश्व वजयी बनने के लिए कभी भी भारत
की तरफ जाये है |
सन 330 में अलेक्जेंडर ने अपनी विजय यात्रा शुरू की | उसने अपनी विजय यात्रा ग्रीस से चालू की थी| ग्रीस राज्य जीतने के बाद उसने वहां बहुत भयानक दहशत मचाई और वह भले ही वह राज्य जीत गया हो पर उसने पूरे देश यानी उस पूरे राज्य को जिंदा जला दिया था| इसके बाद इसके बाद उसकी ऐसी क्रूरता देखकर पश्चिम के सभी राजाओं ने उसके सामने आत्मसमर्पण कर दिया था | पर इतना ही करके एलेग्जेंडर की महत्वकांक्षा रुकी नहीं वह तो विश्व विजेता बनना चाहता था| उसने सुन रखा था कि भारत सोने की चिड़िया है इसलिए अब उसने अपने कदम पूर्व यानी भारत की तरफ़ बढ़ाए |
सन 330 में अलेक्जेंडर ने अपनी विजय यात्रा शुरू की | उसने अपनी विजय यात्रा ग्रीस से चालू की थी| ग्रीस राज्य जीतने के बाद उसने वहां बहुत भयानक दहशत मचाई और वह भले ही वह राज्य जीत गया हो पर उसने पूरे देश यानी उस पूरे राज्य को जिंदा जला दिया था| इसके बाद इसके बाद उसकी ऐसी क्रूरता देखकर पश्चिम के सभी राजाओं ने उसके सामने आत्मसमर्पण कर दिया था | पर इतना ही करके एलेग्जेंडर की महत्वकांक्षा रुकी नहीं वह तो विश्व विजेता बनना चाहता था| उसने सुन रखा था कि भारत सोने की चिड़िया है इसलिए अब उसने अपने कदम पूर्व यानी भारत की तरफ़ बढ़ाए |
भारत आते
समय सबसे पहले उसने उस समय के फारस आज के ईरान/इराक
पर
हमला किया | वहां पर उसका
सामना वहां के राजा शाहदरा से हुआ|
सिकंदर की सेना कमसे कम एक लाख की
थी और उसकी सेना और उसकी सेना मात्र 50000 सिपाही की थी| जिसमें कुछ फ़ारस के विद्रोही सिपाही
भी थे | सन 329 में
एलेग्जेंडर का सामना शाहदरा से फ़ारस के राज्य यीशुस में हुआ|
इस
जंग में शाहदरा बहुत बुरी तरीके से हार गए और उन्हें बदले में अपना संपूर्ण राज्य एलेग्जेंडर
को सौंपना पड़ा | बदले में
उसने एक शर्त पर शाहडारा को माफ
किया कि वह अपनी बेटी की शादी उससे करवा दे|
अपने
राज्य को और अपने प्रजा को बचाने के लिए शाहदारा ने अपनी
बेटी की शादी अलेक्जेंडर से करवा दी | अब फ़ारस जीतने
के बाद मसेदोनिया दुनिया का सबसे बड़ा राज्य बन चुका था| पर एलेग्जेंडर की महत्वताकांक्षा का कहीं पर अन्त नहीं था| फ़ारस को जीतने
के बाद फ़ारस के लोगों ने एलेग्जेंडर को सिकंदर नाम भी दिया सिकंदर का मतलब होता है
जो कभी भी ना हरा हो | वह फ़ारस जीतने
के बाद एलेग्जेंडर इजिप्ट की तरफ बढ़ा इजिप्ट में भी उसने भयानक रक्त पात किया और उसने
इजिप्ट भी जीत लिया|
इजिप्ट जीतने के बाद वह हिंदूकुश पर्वतों की तरफ बढा| हिंदू कुश पर्वत में उसका सामना भारत के वीरों से हुआ| सबसे पहले उसने पेशावर में हिन्दुयों से लड़ाई की थी| ऐसा बताया जाता है कि पेशावर की लड़ाई में केवल आदमी ही नहीं औरतों ने भी हिस्सा लिया था और ऐसी भयानक लड़ाई लड़ी गई थी कि उसकी सेना में भारत में और अन्दर जाने के लिए डर बैठ गया था| पर सिकंदर ने यह कहके उन्हें भारत में आगे घुसने की ताकत दी कि अगर हम भारत जीत जाते हैं तो मैं उन सब सैनिकों को जिन्होंने सबसे ज्यादा दुश्मनों के सैनिकों के मारा हैं उसको मैं जीते हुए राज्य का सूबेदार नियुक्त कर दूंगा| इस लालच में एलेग्जेंडर के सब सैनिक भारत में घुसते चले गए| पेशावर जीतने के बाद इन्होंने तक्षशिला पर आक्रमण किया पर तक्षशिला का राजा अंबे विराज ने अलेक्जेंडर से मुकाबला करने की बजाय उसका भव्य पूर्ण स्वागत किया और उसे यह भरोसा दिलाया कि मैं आपका एक सिपहसालार बनने योग्य हूं और मैं आपके साथ मिलकर युद्ध करूंगा| उसने यह इसलिए किया क्योंकि अलेक्जेंडर का अगला निशाना और कोई नहीं बल्कि पौरव राष्ट्र था और क्योंकि पौरव राष्ट्र से अंबे राज की शत्रुता थी, इसलिए उन्होंने अलेक्जेंडर की सहायता करना मुनासिब.समझा| 326 ईसापूर्व में अलेक्जेंडर का सामना पौरव राजपूत राजा ठाकुर पुरुषोत्तम सिंह से हुआ|
पुरुषोत्तम नाम उच्चारण करने में दिक्कत होती थी तो उसने अपने फ़ारस के एक सिपहसलार से पूछा कि जब तुम भारत आए थे तो तुम लोग क्या नाम से पोरव राजा को पुकारते थे तो उसने कहा पोरव राजा को हम पोरस नाम से बुलाते थे| 324 ईसापूर्व में पोरस के पिता महाराज बमनी की आपातकालीन मृत्यु हो गई जिसके चलते पोरस को राजा बनाया गया| कहा जाता है कि पोरस का राज्य भारत के विशालतम राज्यों में से एक था| आज के झेलम नदी से ले के चेनाब नदी तक फैला हुआ था| सन 326 ईसापूर्व में रात के समय अलेक्जेंडर ने झेलम नदी को पार करके पोरस जहां पर था वहां पर जाने का फैसला किया| झेलम नदी को पार कर रहा था उस समय पोरस जानता था कि एलेग्जेंडर अपने 11000 सिपहिओं के साथ झेलम नदी को पार कर रहा है पर उसने उसको वहां से भगाने के लिए या मारने के लिए कोई भी उपाय नहीं किया| इतिहासकार बहुत बड़ी भूल मानते हैं पर शायद वह नहीं जानते थे जब अलेक्जेंडर अपनी सेना के साथ झेलम नदी के दूसरी तरफ पहुंच गया उसके तुरंत बाद झेलम नदी में बाढ़ आ गई जिसकी वजह से उसकी बहुत बड़ी सेना पानी में डूब गई| एलेग्जेंडर की सेना में अब मात्र 35000 सिपाहियों ही बचे थे| जिसमे से 11000 सिपाही नदी के दूसरी तरफ थे| अब पोरस का पल्ला भारी हो चूका था क्योंकि पोरस के पास 20000 सिपाही थे 5000 रथ,10000 घोरे और 5000 हांथी थे| अगले दिन सुबह युद्ध चालू हुआ| पोरस जनता था की अलेक्जेंडर की सेना की सबसे बडी ताकत उसकी घुडसवार सेना थी| युद्ध के शुरुआत में ही पोरस ने 500 हांथी युद्ध में उतर दिए| यह हांथी बिलकुल किसी टैंक की तरह थे जो भी इनके सामने आता था यह उसको अपने पैर से कुचल देते थे| अलेक्जेंडर की सेना मामूली सेनापतियों तक नहीं पहुंच पा रही थी जो हाथी पर बैठे थे तब राजा पोरस तक पहुंचना तो बहुत दूर की बात थी| एलेग्जेंडर की सेना हाथियों के पैरों तले कुचलता जा रही थी तभी एलेग्जेंडर के सेनापति ब्रूस्टर ने राजा पोरस के भाई अमर को मार दिया| राजा पोरस के भाई अमर को मार के वो और उतावला हो गया और राजा पोरस के बेटे विजय सिंह की तरफ पर बढ़ा| शायद वह नहीं जानता था कि वह घोड़े पर है और विजय सिंह हाथी पर| उसने घोड़े पर से 1 भाले को विजय सिंह की तरफ फैका पर वह भला उसके हाथी की सूंड में लगा और हाथी ने वह भाला तोड़ दिया| विजय सिंह ने अपने तीर का एक ऐसा वार किया जिसकी वजह से ब्रूस्टर की मौत हो गई| अपने इतने बड़े सिपहसालार की मौत देखकर एलेग्जेंडर ने युद्ध रोक दिया | अब उसकी सेना में एक विद्रोह का माहौल बन रहा था | उसने अब इस विद्रोह को रोकने एक ही उपाय सूझा और वह यह था महाराज पोरस से संधि उसने संधि कर ली और हार जाने के तौर में 10000 स्वर्ण मुद्राएं राजा पोरस को प्रदान की| राजा पोरस ने उस को आदेश दिया कि तुम भारत से चले जाओ और भारत में जीत हुए सभी राज्य उनके राजाओं को वापस लोटा दो | एलेग्जेंडर में ऐसे ही किया उसने अपनी सेना का एक बहुत बड़ा हिस्सा सिन्धु नदी के रस्ते से वापस फ़ारस भेज दिया और बचे सिपहिओं के साथ जाट प्रदेश वर्तमान हरियाणा के राज्य से होते हुए जा रहा था| उस समय उसका सामना वहां के जाट वीरों से हो गया और जाटों ने उस को बहुत हानि पहुंचाई| युद्ध से जाते समय एक जाट ने उसके पीठ पर वार कर दिया| पर उसके सैनिकों ने किसी तरह से उसे वहां से निकल लिया यह घटना आज के सोनीपत शहर में हुई थी| सोनीपत से उत्तर में 60 किलोमीटर चलने के बाद उसकी मौत हो गई|
अब मैं आप को बताउगा की
क्यों इतिहास में लिखा है कि एलेग्जेंडर ने पोरस को हराया था| क्योंकि उस समय पश्चमी राज्यों का
प्रभाव था और उन्होंने इतिहास लिखा| इसलिए कहा जाता है कि अलेक्स्जेंडर ने पोरस को
हराया था और इसके साथ अन्य कहानियां जोड़ के ये बताया कि भारत देश को जीतने के बाद वह जब लौट रहा था तब किसी दुर्घटना के कारण उसकी मृत्यु हो गयी| |इजिप्ट जीतने के बाद वह हिंदूकुश पर्वतों की तरफ बढा| हिंदू कुश पर्वत में उसका सामना भारत के वीरों से हुआ| सबसे पहले उसने पेशावर में हिन्दुयों से लड़ाई की थी| ऐसा बताया जाता है कि पेशावर की लड़ाई में केवल आदमी ही नहीं औरतों ने भी हिस्सा लिया था और ऐसी भयानक लड़ाई लड़ी गई थी कि उसकी सेना में भारत में और अन्दर जाने के लिए डर बैठ गया था| पर सिकंदर ने यह कहके उन्हें भारत में आगे घुसने की ताकत दी कि अगर हम भारत जीत जाते हैं तो मैं उन सब सैनिकों को जिन्होंने सबसे ज्यादा दुश्मनों के सैनिकों के मारा हैं उसको मैं जीते हुए राज्य का सूबेदार नियुक्त कर दूंगा| इस लालच में एलेग्जेंडर के सब सैनिक भारत में घुसते चले गए| पेशावर जीतने के बाद इन्होंने तक्षशिला पर आक्रमण किया पर तक्षशिला का राजा अंबे विराज ने अलेक्जेंडर से मुकाबला करने की बजाय उसका भव्य पूर्ण स्वागत किया और उसे यह भरोसा दिलाया कि मैं आपका एक सिपहसालार बनने योग्य हूं और मैं आपके साथ मिलकर युद्ध करूंगा| उसने यह इसलिए किया क्योंकि अलेक्जेंडर का अगला निशाना और कोई नहीं बल्कि पौरव राष्ट्र था और क्योंकि पौरव राष्ट्र से अंबे राज की शत्रुता थी, इसलिए उन्होंने अलेक्जेंडर की सहायता करना मुनासिब.समझा| 326 ईसापूर्व में अलेक्जेंडर का सामना पौरव राजपूत राजा ठाकुर पुरुषोत्तम सिंह से हुआ|
पुरुषोत्तम नाम उच्चारण करने में दिक्कत होती थी तो उसने अपने फ़ारस के एक सिपहसलार से पूछा कि जब तुम भारत आए थे तो तुम लोग क्या नाम से पोरव राजा को पुकारते थे तो उसने कहा पोरव राजा को हम पोरस नाम से बुलाते थे| 324 ईसापूर्व में पोरस के पिता महाराज बमनी की आपातकालीन मृत्यु हो गई जिसके चलते पोरस को राजा बनाया गया| कहा जाता है कि पोरस का राज्य भारत के विशालतम राज्यों में से एक था| आज के झेलम नदी से ले के चेनाब नदी तक फैला हुआ था| सन 326 ईसापूर्व में रात के समय अलेक्जेंडर ने झेलम नदी को पार करके पोरस जहां पर था वहां पर जाने का फैसला किया| झेलम नदी को पार कर रहा था उस समय पोरस जानता था कि एलेग्जेंडर अपने 11000 सिपहिओं के साथ झेलम नदी को पार कर रहा है पर उसने उसको वहां से भगाने के लिए या मारने के लिए कोई भी उपाय नहीं किया| इतिहासकार बहुत बड़ी भूल मानते हैं पर शायद वह नहीं जानते थे जब अलेक्जेंडर अपनी सेना के साथ झेलम नदी के दूसरी तरफ पहुंच गया उसके तुरंत बाद झेलम नदी में बाढ़ आ गई जिसकी वजह से उसकी बहुत बड़ी सेना पानी में डूब गई| एलेग्जेंडर की सेना में अब मात्र 35000 सिपाहियों ही बचे थे| जिसमे से 11000 सिपाही नदी के दूसरी तरफ थे| अब पोरस का पल्ला भारी हो चूका था क्योंकि पोरस के पास 20000 सिपाही थे 5000 रथ,10000 घोरे और 5000 हांथी थे| अगले दिन सुबह युद्ध चालू हुआ| पोरस जनता था की अलेक्जेंडर की सेना की सबसे बडी ताकत उसकी घुडसवार सेना थी| युद्ध के शुरुआत में ही पोरस ने 500 हांथी युद्ध में उतर दिए| यह हांथी बिलकुल किसी टैंक की तरह थे जो भी इनके सामने आता था यह उसको अपने पैर से कुचल देते थे| अलेक्जेंडर की सेना मामूली सेनापतियों तक नहीं पहुंच पा रही थी जो हाथी पर बैठे थे तब राजा पोरस तक पहुंचना तो बहुत दूर की बात थी| एलेग्जेंडर की सेना हाथियों के पैरों तले कुचलता जा रही थी तभी एलेग्जेंडर के सेनापति ब्रूस्टर ने राजा पोरस के भाई अमर को मार दिया| राजा पोरस के भाई अमर को मार के वो और उतावला हो गया और राजा पोरस के बेटे विजय सिंह की तरफ पर बढ़ा| शायद वह नहीं जानता था कि वह घोड़े पर है और विजय सिंह हाथी पर| उसने घोड़े पर से 1 भाले को विजय सिंह की तरफ फैका पर वह भला उसके हाथी की सूंड में लगा और हाथी ने वह भाला तोड़ दिया| विजय सिंह ने अपने तीर का एक ऐसा वार किया जिसकी वजह से ब्रूस्टर की मौत हो गई| अपने इतने बड़े सिपहसालार की मौत देखकर एलेग्जेंडर ने युद्ध रोक दिया | अब उसकी सेना में एक विद्रोह का माहौल बन रहा था | उसने अब इस विद्रोह को रोकने एक ही उपाय सूझा और वह यह था महाराज पोरस से संधि उसने संधि कर ली और हार जाने के तौर में 10000 स्वर्ण मुद्राएं राजा पोरस को प्रदान की| राजा पोरस ने उस को आदेश दिया कि तुम भारत से चले जाओ और भारत में जीत हुए सभी राज्य उनके राजाओं को वापस लोटा दो | एलेग्जेंडर में ऐसे ही किया उसने अपनी सेना का एक बहुत बड़ा हिस्सा सिन्धु नदी के रस्ते से वापस फ़ारस भेज दिया और बचे सिपहिओं के साथ जाट प्रदेश वर्तमान हरियाणा के राज्य से होते हुए जा रहा था| उस समय उसका सामना वहां के जाट वीरों से हो गया और जाटों ने उस को बहुत हानि पहुंचाई| युद्ध से जाते समय एक जाट ने उसके पीठ पर वार कर दिया| पर उसके सैनिकों ने किसी तरह से उसे वहां से निकल लिया यह घटना आज के सोनीपत शहर में हुई थी| सोनीपत से उत्तर में 60 किलोमीटर चलने के बाद उसकी मौत हो गई|
अब मैं आप को कुछ कारण
बतायुंगा जिससे यह साबित होता है कि पोरस ने अलेक्स्जेंदाएर को हराया था|
1-अगर अलेक्स्जेंदर
युद्ध जीतता तो वह मगध तक जाता पर उसने ऐसा नहीं किया|
2-इतिहासकार कर्तियास जो
की एक बहुत बड़े इतिहासकार हैं वो लिखते है की अलेक्स्जेंदर का बहुत बरी सेना युद्ध
में मारा गया था और युद्ध में पोरस की जीत हुई थी|
3- पश्चमी इतिहास के
महान इतिहासकार इ.एन.डब्लू. बेज लिखते हैं
की पोरस के हाथियों के दल ने अलेक्स्जेंडर की बहुत बड़ी सेना को मार दिया था, जिसमे
उसके 5 सेनापति भी थे| इस हानि को देखते हुए अलेक्स्जेंदर ने पोरस से संधि कर ली
थी|
पोरस के बारे में कुछ
खास बातें- ग्रीक इतिहासकर लिखते हैं की
पोरस 9 फीट से भी लम्बा था| उसकी सेना में जितने भी योद्धा थे सब 7 फीट से ऊपर के
थे| पोरस की सेना की ताकत उसके हंथियों और भाले वाले सिपहिओं थे|
तो दोस्तों यह थी पोरस
और सिकंदर के बीच हुए युद्ध का असली परिणाम| इस ब्लॉग को ज्यादा से जयादा कमेंट
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धन्यवाद्
27\5\18 परम कुमार
कक्षा-9
कृष्णा पब्लिक स्कूल
रायपुर
यह फोटो गूगल के इस लिंक से लिया
गया है|
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