पानीपत की तीसरी लड़ाई
नमस्कार दोस्तों |
आपका मेरे ब्लॉग में एक बार फिर स्वागत है|
आज का हमारा चर्चा का विषय उस युद्ध पे है जिससे यह फैसला होने वाला था की हिंदुस्तान मराठों कि हुकूमत में रहेगा, कि मुसलमानों या अंग्रेजों की | जी हां दोस्तों में बात कर रहा हू पानीपत की तीसरी लड़ाई की| तो
आइये शुरू करते हैं|
सन १७५९ यह वो साल था जब अफ़गानी लुटेरा अहमद
शाह अब्दाली अपनी सेना लेकर पांचवी बार भारत आ रहा था| इस बार रोहिलाखंड के नवाब नाजिबुद्दुला के बुलावे पर
अहमदशाह अब्दाली भारत आया था| नाजिबुद्दुला
अपने को कुछ बनाने के लिया भारत वर्ष का सब कुछ लुटाने को तैयार था| उस समय भारत के उत्तरी और पश्चिम में कोई भी राजा इतना
शक्तिशाली नहीं था जो अब्दाली का विरोध कर सके| तब मराठों के राजा पेशवा बालाजी विश्वनाथ बाजीराव बल्लाल ने अब्दाली से टक्कर लेने का निर्णय किया| इसके
लिए उन्होंने पुणे से लगभग ८०० किलोमीटर दूर दिल्ली की तरफ, अपने मराठे लड़ाकों की
सेना को अपने भाई सदाशिवराव भाऊ की कमान में रवाना किया| पर ऐसा क्या महत्वपूर्ण कारण था कि अहमद शाह अब्दाली अपनी सेना सहित पानीपत का युद्ध जीतने के बाद भी
वापस अफगानिस्तान लौट गया?
सन १७४० में पेशवा बालाजी बाजीराव बल्लाल भट की मृत्यु के बाद उनके पुत्र बालाजी विश्वनाथ बाजीराव बल्लाल भट पेशवा बने और इनके राज्यकाल में मराठों ने काफी नए राज्य
जीते जिसमे हैदराबाद की जीत का किस्सा बहुत प्रसिद्ध है| हैदराबाद की जीत के समय सेना की कमान सदाशिवराव
भाऊ के हाथों में थी| वे हांथी पे बैठ कर युद्ध का निर्देश दे रहे थे की तभी
निजाम के तोपची इब्राहिमखां गर्दी के तोप का गोला उनके बाजु से निकला| इतने सटीक निशाना देख कर सदाशिवराव भाऊ ने युद्ध जीतने के बाद निजाम से कहा हमें कुछ नहीं चाहिये
हमें बस आप अपना तोपची इब्राहिमखां गर्दी दे दीजिये| इसी इब्राहीम ने पानीपत के युद्ध में मराठों की काफी मदद की
थी|
इस समय मराठे तो अपनी बुलंदी पर थे पर दिल्ली
की हालत ठीक नहीं थी| मराठों
कि शह पर मुग़ल बादशाह अलाम्गीरी के मरने के बाद उनके बेटे शाह आलम द्वितीय को मुगल
राजा बनाया गया| यह सिर्फ नाम के राजा थे| रोहिलाखंड का नवाब नाजिबुद्दुला मुगलिया सल्तनत
का वजीर बनना चाहता था| पर
उसे ये डर था कि कहीं मराठे आक्रमण करके उसे युद्ध में मार ना डालें| तो उसने अफगानिस्तान से अहमद शाह अब्दाली को यह
कहकर भारत बुलाया की यहाँ पर मराठे मुलमानों पर बहुत जुर्म करते हैं| यह सुनकर अहमद शाह अब्दाली अपने साथं कई हजार
की सेना लेकर भारत में सन १७५९ को पंहुचा सब से पहले उसने पंजाब को जीता और अब
दिल्ली की और बढ़ा| जब
अब्दाली के भारत आने की बात मराठों को पता चली तो पेशवा बालाजी विश्वनाथ बाजीराव बल्लाल भट ने पुणे से दो लाख की सेना लेकर अपने भाई सदाशिव राव भाऊ की
कमान में दिल्ली की ओर रवाना किया| जब मराठा दिल्ली पुहंचे तो उन्हें पता चला की अहमद शाह
अब्दाली ने पंजाब को जीतने के बाद लूट का सारा पैसा और सामान कन्च्पुरा (जिला
करनाल, हरियाणा)
के किले में रखा हे| उन्होंने
कन्च्पुरा पर आक्रमण कर उसे जीत लिया| अब अब्दाली के पास इतना धन नहीं था की वो अंपनी सेना को
तनखा दे सके| तब
उसने नाजिबुद्दुला से कहा कि तुम ने ही मुझे भारत बुलाया था अब तुम ही मेरी सेना
को धन दो| यह
सुनकर नाजिबुद्दुला ने सोचा की वो इतना धन कहाँ से लायेगा तब उसे याद आया की अवध
के नवाब सुजौद्दुला के पास बहुत धन है तो उसने उससे मदद मांगी पर सजुद्दौला ने
मना कर दिया| तो
नाजिबुद्दुला ने उसे यह कहकर डरा दिया की अगर अब्दाली युद्ध जीत गया तो वो उसे माफ़
नहीं करेंगा| यह
सुनकर सुजौद्दुला ने नाजिबुद्दुला को आर्थिक मदद के रूप में पचास लाख रुपये दे दिए| अब्दाली को रुपये तो मिल गए पर जब वो भारत आया
तो उसने सुना था मराठे बहुत खतरनाक लड़ाके होंते हैं| तो वो मन ही मन मराठों से संधि करना चाहता था| पर जब यह बात नाजिबुदुला को पता चली तो उसने यह
संधि रुकवाने के लिए मराठों के एक सरदार गोविन्द्पंत का खून करवा दिया और अपने कुछ
सैनिको को मराठों की सनिकों की भेष-भूषा पहना के अब्दाली के मंत्री वजीर खां पे
हमला कर व दिया| उसका
यह काम आग में घी डालने जैसा था| फिर क्या था दोनों ओर से युद्ध का बिगुल बज गया| १४ जनवरी १७६१ को पानीपत के मैदान में दोनों की
सेना आ डटी|
युद्ध आरंभ होने के दो दिन पहले अब्दाली के
सैनिकों ने मराठों के खाने-पीने के समान को लूट लिया था| क्योंकि उसे लगा मराठे बिना खाये पीये ज्यादा
देर युद्ध नहीं कर पाएंगे| फिर
१४ जनवरी १७६१ में सुबह नौ बजे पानीपत में युद्ध शुरू हो गया| युद्ध की शुरुआत अबदाली ने तोपों से हमला करवा
के की| जवाब
में मराठों के तोपची इब्राहीम खां ने ऐसी गोला बारी की अब्दाली के कई सैनिक और
तोपें किसी काम के नहीं रहे| और अब्दाली घबरा के अपने शिविर में लौटने वाला था| इसलिए उसने अपनी अश्वरोही सेना को आगे भेजा
जवाब में सदशिव राव भाऊ ने भी अपनी अश्वरोही सेना के सेनापति को आदेश दिया
की अगर युद्ध के बीच में अब्दाली की सेना भागने लगे तो उनका पीछा मत करना, वापस आ जाना| जब मराठों और अब्दाली की अश्वरोही सेना के बिच युद्ध हुआ तो
थोड़ी देर तो अब्दाली की सेना ने युद्ध किया परन्तु मराठों के जोश और वीरता से उनका
मनोबल टूटने लगा और फिर वो वापस लौटने लगे| तब मराठों के अश्वरोही सेना के सरदार विन्चुरकर ने सदाशिव राव की बात का उलंघन करते हुए जोश
में आकार अब्दाली की सेना का पीछा किया पर थोड़ी दूर जा के अब्दाली की सेना
ने इन्हें घेर लिया और गोलियों से पूरी अश्वरोही सेना का सर्वनाश कर दिया| अब सदाशिव राव भायु ने अपने सभी मोर्चे खोल दिए
और अब्दाली पर आक्रमण कर दिया| अब्दाली ने सोचा था की भूखे पेट मराठे कितने देर लड़ पाएंगे
जल्दी ही यह जंग वो जीत लेगा| पर युद्ध के समय ये एहसास हुआ कि उसने मराठों के बारे में
गलत अनुमा लगाया था क्योंकि भूखे पेट मराठी सनिक अब्दाली के सेनिकों को गाजर-मुली
की तरह काट रहे थे| तभी
अब्दाली के एक सैनिक की गोली पेशवाजी के पुत्र विश्वास राव को लगी और वो
घोड़े से गिर गए अपने भतीजे को बचाने के लिए सदाशिव राव अपने हाथी से उतरकर नीचे आ गए तो मराठे सैनिको ने जब हाथी
पर अपने सेनापति को नहीं देखा तो उन्हें लगा कि सदाशिव राव नहीं रहे| यहीं से दिन के आखरी पहर में युद्ध कि दिशा बदल
गयी| अब्दाली
ने सदशिव राव भाऊ को बन्दुकचियों और अश्वरोही सेना से घिरवा के मरवा दिया परन्तु
अंत तक सदाशिव राव का शव किसी को नहीं मिला | अब्दाली अब यह युद्ध जीत चुका था| पर क्या कारण था की युद्ध जितने के बावजूद वो
भारत से वापस चला गया?
पानीपत में भयानक युद्ध हुआ और मराठों के
पराक्रम के आगे बहुत मुश्किल से अब्दाली को विजय हासिल हो पाई | मराठों का साहस और शौर्य देखकर अब्दाली ने भारत
पर शासन करने का विचार त्याग दिया और उसको ये लगा कि इस युद्ध में तो वो जीत गया
पर यदि फिर से मराठे पुणे से अपनी और सेना लेकर आ गए तो उसे एक विदेशी धरती पर ही
मरना पड़ेगा| इसी भय से वो भारत छोड़कर वापस अफगानिस्तान लौट
गया|
पानीपत के युद्ध में मराठे हराकर भी विदेशी
आक्रमणकारी को भारत से बाहर का रास्ता दिखा दिए वहीँ अब्दाली जीकर भी भारत पर शासन
नहीं कर पाया| इस
युद्ध कि विशेषता ये है कि मराठों के सेनापति सदाशिव राव भाऊ के कुशल नेतृत्व में
कई मुसलमानों ने अब्दाली के विरुद्ध युद्ध किया| जिन्हें युद्ध के पहले नाजीबदुल्ला और अब्दाली द्वारा कई
प्रलोभन दिए गये थे इसमें तोपची इब्राहीम खान गर्दी प्रमुख थे| परन्तु वे अंत तक
मराठों से निष्ठा निभाए| इसके अलावा इस युद्ध में अफगानों से शमशेर बहादुर ने भी
लोहा लिया था| शमशेर
बहादुर अपने माता पिता तरह ही बहुत वीर और सुन्दर था| दोस्तों शमशेर बहादुर के माता पिता का नाम
पेशवा बाजीराव और मस्तानी था जिसे आपने शायद पिक्चर (बाजीराव मस्तानी movie) में एक छोटे से बच्चे के रूप में देखा होगा| जिसे उसके मातापिता के मरने के बाद काशी बाई ने
अपनाया था|
सबसे बड़ी और विशेष बात, इस युद्ध का जनक, जिसने अब्दाली को भारत बुलाया था केवल अपनी महत्वकांक्षाओं
को पूरा करने के लिये, नजीबद्दुला
वो आपके विचार में कैसा शख्स रहा होगा ? इस व्यक्ति के सम्मान और शायद याद में वर्तमान उत्तर प्रदेश
के एक शहर का नाम रखा गया है नजीबाबाद (जो अत्यंत आश्चर्यजनक है) |
परन्तु इसके विपरीत युद्ध में भारत देश को
विदेशियों से बचाने में अपने प्राणों का न्योछावर करने वाले मराठों के सेनापति और
उनके अन्य शहीद हुए सरदारों पर शायद कोई एक या दो तस्वीर या शिलालेख किसी शहर में
होगा (जो शायद ही अच्छी स्थिति हो)|
यह था
मराठों का अनुठा साहस जिसके कारण शत्रु जीतकर भी मराठों की वीरता से हार गया|
सदाशिव राव भाऊ को सादर नमन् |
०५/०५/२०१८
परम कुमार
कक्षा-९
कृष्णा पब्लिक स्कूल
Very interesting and impacted chapter of indian history.
ReplyDeletePerfectly done.
ReplyDeleteVery good, keep it up.
Waiting for your next blog.
Param good going
ReplyDeleteGreat , keep going
ReplyDeleteVery eye opening story.
ReplyDeletePerfect..keep it up.
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