Sunday 26 August 2018

THE CREATOR OF UNITED INDIA- CHANAKYA  THE  LEGEND


नमस्कार दोस्तों आज की हमारी चर्चा का विषय उस व्यक्ति पर है जिसने साम-दाम-दंड-भेद की नीति बनायीं और जिसने अपनि बुद्धि से एक समय के सबसे शक्तिशाली राजा और भारत के एक बहुत बड़े राजा को अपने दिमाग के जरिये ध्वस्त कर दिया जिसने यह श्लोक दिया –

त्यजेदेकं कुल्सयाथ्रे ग्राम्स्यर्थे कुलं त्यजेत||
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत||
अर्थ- यदि एक दुष्ट व्यक्ति के कारण कुल कलंकित होने से बचता है तो उसे त्याग देना उचित है| इसी तरह यदि एक गाँव त्यागने से सम्पूर्ण जिले का कल्याण हो तो उसे भी त्याग देना चाहिये| आत्मा के कल्याण के लिए अगर सम्पूर्ण संसार का भी त्याग करना पड़े तो उसका भी त्याग कर देना चाहिये|

दोस्तों, इतना सब पढ़-कर आप यह तो समझ ही गए होंगे की आज का यह ब्लॉग महान आचार्य विष्णु गुप्त शर्मा जिन्हें आप चाणक्य के नाम से भी जानते हैं उनके ऊपर है| आज के इस ब्लॉग में हम आचर्य चाणक्य के जीवनकाल,उनके मगध के प्रधानमंत्री और विश्व विजेता सिकंदर और नन्द वंश के राजा को पराजित करने के बारे मै चर्चा करेंगे| तो आईये शुरू करें|

जीवन काल और चाणक्य नीति के कुछ श्लोक

आचार्य चाणक्य के जन्म के बारे में कुछ जानकारी नहीं मिलती है पर हमें एतिहासिक ग्रंथों से यह ज्ञात होता हे की चाणक्य ने अपनी शिक्षा तक्षशिला विश्वविद्यालय से ग्रहण की थी| वे बचपन से ही बड़े चतुर और चलाक थे इसलिए इन्हें चाणक्य भी कहा जाता था| तक्षशिला  के अनेक आचार्यों के अनुसार यह कुटिल नीति के निर्माता भी थे तो इनको कई लोग कोटिल्य भी कहते थे| इन्होने चाणक्य नीति की रचना की थी जिसमे इन्होने लिखा की आने वाले समय में मेरी इस नीति को जो पढ़ लेगा वो कभी भी राजनेतिक और सांसारिक क्षेत्र में परास्त नहीं हो सकेगा| उन्होंने यह भी लिखा की आने वाले समय मे मेरी यह नीति-ग्रन्थ भविष्य का दर्पण सबित होगा तो आईये दोस्तों हम इस महान ग्रन्थ के कुछ श्लोकों पर नजर डालते हैं|

अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तम:|
धर्मोपदेशाविख्यातं कार्याकार्यम शुभाशुभम ||1||

अर्थात- कोई भी कार्य करने से पहले मनुष्य को इस बात का ध्यान अवश्य कर लेना चाहिए कौन सा कार्य धर्म अनुकूल है और कौन सा कार्य धर्म विरुद्ध है इसका परिणाम क्या होगा?, पुण्य कार्य और पाप कर्म क्या है? किसी का हित करना भला कार्य है जबकि अहित करना बुरा कार्य है लेकिन कभी- कभी परिस्थितिवश किया गया बुरा कार्य भी भला कार्य  कहलाता है

मुर्खशिष्योंप्देशें दुष्टस्त्रीभरणेन च|
दु:खीतै: संप्रयोगेन पण्डितोप्यव्सिद्ती ||2||

अर्थात- आचार्य चाणक्य के अनुसार मूर्ख व्यक्ति को ज्ञान देने से सज्जन लोगों और बुद्धिमानों को हानि होती है जैसे बंदर को तलवार देकर राजा द्वारा उसे अपनी रक्षा में नियुक्त करना उसी तरह है जेसे सज्जन  लोगों व बुद्धिमानों के लिए दुष्ट व कुटिल स्त्री का साथ दुखदाई सिद्ध होता है|


दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः||
ससर्पे गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः||3



अर्थात जिस घर में पत्नी दुष्ट स्वभाव वाली हो उस घर का मालिक मृतक व्यक्ति के समान होता है क्योंकि उस पत्नी पर उसका कोई भी बस नहीं चलता है और वह मन ही मन कुढ़ता हुआ मृत्यु की ओर अग्रसर हो जाता है| इसी प्रकार दुष्ट स्वभाव वाला मित्र भी कभी विश्वासनीय नहीं होता क्योंकि पता नहीं कब वह विश्वासघात कर दे| यही नहीं जो सेवक या नौकर पलट कर जवाब देता हो उससे भी सावधान रहना चाहिए क्योंकि पता नहीं कब वह हानि पहुंचा दे वह कभी भी दुखदाई सिद्ध हो सकता है इसी प्रकार जहां सर्पों का वास हो वहां कभी भी आवास नहीं बनाना चाहिए क्योंकि हर समय दर रहता है कि नाजाने कब सर्प दस जाए अतः वह हर समय आत्मरक्षा हेतु सावधानी बरतता है|


आपदर्थे धनं रक्षेद् दारान् रक्षेद् धनैरपि|
आत्मानं सततं रक्षेद् दारैरपि धनैरपि||4||

अर्थात- यह बात उचित है कि बुद्धिमान व्यक्ति को विपदा काल के लिए धन का संचय करके रखना चाहिए लेकिन धन संचय ही सब कुछ नहीं है उससे भी अधिक आवश्यक पत्नी की रक्षा करना क्योंकि पत्नी तो जीवनसंगिनी होती है धन तो सभी जगह काम नहीं आ सकता| वृद्धावस्था में पत्नी ही काम आती है तो संकट आने पर धन खर्च करके व्यक्ति को पत्नी की रक्षा करनी ही चाहिए लेकिन चाणक्य का ऐसा विचार है कि व्यक्ति को धन और पत्नी की रक्षा से अधिक आवश्यक यह है कि वह स्वयं की रक्षा करें क्योंकि यदि व्यक्ति स्वयं ही नहीं रहेगा तो धन और स्त्री किस काम के रह जायेगि इसलिए व्यक्ति के लिए धन और स्त्री रक्षा से भी अधिक स्वयं की रक्षा करना अधिक महत्वपूर्ण है|

नन्द वंश की सम्पत्ति

एक बार की बात है नन्द वंश के नोंवे राजा महानंद ने अपने प्रधानमंत्री शक्टर से कहा की मुझे अपने पिता का पिंड दान देना है अतः तुम जाओ और कहीं से गयारह ब्राह्मण ले के आओं| शक्टर कुछ समय से राजा नन्द से गुस्सा रहता था क्योंकि एक बार राजा नन्द की अवैध पत्नी ने शक्टर पर झुटा आरोप लगा के उसे राजा से दण्डित करवाया था| राजा ने उसके घर में आग लगा दी थी जिसमे उसका पूरा परिवार जल गया था| फिर जब नन्द को पता चला की उसकी अवैध पत्नी मुरा गर्भवती है तो उसे देश निकाला दे दिया| फिर पता नहीं उसके दिमाग में क्या हुआ की उसने शक्टर को रिहा कर दिया और उसका पद भी उसे वापस लौटा दिया| पर शक्टर ने तो अपना परिवार खो दिया था| वो तब से राजा से बदला लेने की प्रतीक्षा कर रहा था| जब वो ब्राह्मण को खोज रहा था तब उसे चाणक्य दीखे जो कशुआ नामक एक वृछ की जड़ में खट्टी दही डाल रहे थे| तब शक्टर ने उनसे पूछा “हे ब्राह्मण आप यह क्या कर रहे हैं ?”

चाणक्य ने कहा इस “वृछ का कांटा मेरे पैर में घुस गया और मेरे पैर को काट दिया इसलिए मै इसे जड़ से नष्ट कर रहा हूँ”| शक्टर ने सोचा “की अगर मै इसे भोज पे आमंत्रित करूँ और नन्द अगर इसका अपमान कर दे तो यह उसका नाश कर सकता है”| यह सोच कर उसने चाणक्य को भोज पर आमंत्रित किया और उन्हें सबसे आगे वाले सिंहासन पर बैठाया| फिर वेसा ही हुआ जैसा उन्होंने सोचा था| नन्द ने आते ही कहा की “शक्टर मैंने तुम्हे ब्राह्मणों को भोज पर बुलाने बोला था काले कलूटे भिखारिओं को नहीं” श्क्टर ने कहा की महाराजा यह तक्षशिला विश्वविद्यालय के प्रधानाचार्य चाणक्य है| राजा ने कहा कोई भी हो पर एसा काला ब्राह्मण पिंड दान के योग्य नहीं| इतना सुनके चाणक्य खड़े हो गए और कहा “हे अभिमानी मुर्ख छुद्र जाति के नन्द राजा तुझे जिस धन पर अभिमान है एक दिन वो नहीं रहेगा और नहीं तू और तेरा सम्राज्य और इसका कारण मै बनूँगा और जब तक मै एसा कर नहीं लेता मैं अपने केश नहीं बांधूंगा”| इतना सब बोल के चाणक्य वहां से चले गए| अब वो अपने प्रतिशोध के लिए किसी की तलाश कर रहे थे और वो थी नन्द की रखेल पत्नी मुरा इसने अभी थोड़े समय पहले अपने पुत्र को जन्म दिया था और वो पुत्र और कोई नहीं चन्द्रगुप्त मोर्य थे| अब आप सोच रहे होंगे की नन्द तो छुद्र था तो उनका पुत्र क्षत्रिया केसे? चाणक्य चन्द्रगुप्त को भारत का राजा बनाना चाहते थे| इसलिए उन्होंने चन्द्रगुप्त को कभी भी यह नहीं बतया की वो नन्द के बेटे हैं| और थोड़े समय बाद जब चन्द्रगुप्त बढे हुए तो महाराज पुर्शोतम( पोरस ) की मदद से और शक्टर की मदद से चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मगध का राजा बना दिया और नन्द को मृत्यु दे दी| तो दोस्तों एसा था चाणक्य का दिमाग जिन्होंने भारत के एक बहुत बड़े साम्रज्य के राजा को उसी के पुत्र से मरवा दिया| और दोस्तों जब चन्द्रगुप्त की मृत्यु हुई तब भी उन्हें नहीं मालूम था की वो नन्द के बेटे थे| नन्द को मरवाने के बाद चाणक्य ने अपने आप को मगध का प्रधानमंत्री और चन्द्रगुप्त को मगध का राजा घोषित किया| जब चीनी यात्री फाहयान भारत आया था तो उसने कहा था की जिस साम्राज्य का प्रधानमंत्री घास के घर में रहता हो उसी से उसके साम्राज्य के वैभव का अंदाजा लगाया जा सकता है|


विश्व विजेता सिकंदर को हराने में योगदान

दोस्तों यह पढ़ कर आप सोच रहे होंगे की सिकंदर को हराने मे इनका क्या योगदान था तो दोस्तों मै आपको बताना चाहूँगा की चाणक्य महाराज पुरुषोतम के गुरु थे| इन्होने ही उन्हें युद्ध नीति का ज्ञान दिया था| इन्होने ही महाराज पुरुषोतम को सलाह दी की हम सिकंदर को तभी हरा पायेंगे जब हम युद्ध में नई युद्ध नीतियाँ अपनाएंगे| उन्होंने कहा की तुम युद्ध मे हाथी की सेना और फरसा हथियार का इस्तमाल करो तभी तुम अलक्शेन्द्र(सिकंदर) को हरा पाओगे| सिकंदर को युद्ध मे हराने के बाद इन्होने महाराज पुरुषोतम से कहा की यह वही राजा वापस जा रहा है जिसने कहा था “ग्रीक लड़ाकों तुम मेरा साथ दो मै तुम्हे भारत दूंगा”, “ हम आये तो खाली हांथ है पर जाएँगे भरे हांथों से” पर आज उस राजा की यह हालत है की उसे भले ही दुनिया सदियों तक याद् रखे  पर आज उसे कन्धा देने केलिए भी कोई जीवित नहीं बचा है| दोस्तों अगर आप ने मेरा पोरस वाला ब्लॉग नहीं पढ़ा है तो मै उसका लिंक नीचे दे दूँगा|

चाणक्य को अर्थशास्त्र का निर्माता क्यों कहते हैं :

आचार्य चाणक्य ने अर्थशास्त्र का निर्माण चौथी शती ईसा पूर्व मे किया था| यह शास्त्र राजनेतिक, भौगोलिक, युधनीति, व्यूहनीति, संसारनीति, व्याकरणशास्त्र और गणित को मिला कर बना है| इन्होने इसका निर्माण चन्द्रगुप्त की सहायता और उनकी शिक्षा के लिए किया था| इस अर्थशास्त्र मे उन्होंने लिखा है की-

येन शास्त्रं च शस्त्रं च नन्दराजगता च भूः।
अमर्षेणोद्धृतान्याशु तेन शास्त्रमिदंकृतम् \\

अर्थात- इस ग्रंथ की रचना उन आचार्य ने की जिन्होंने अन्याय तथा कुशासन से क्रुद्ध होकर नन्दों के हाथ में गए हुए शास्त्र, शस्त्र एवं पृथ्वी का शीघ्रता से उद्धार किया था।
इस ग्रन्थ की महानता को देखते हुए कई विद्वानों ने इसका पाठ किया और इसका भाषांतर किया| जैसे- यूरोप के विद्वान्  हर्मान जाकोबी, ए.हिलेब्रंद्त, डॉ.जुँली|
चाणक्य ने कहा था जो भी मेरे अर्थशास्त्र और नीति का मात्र अध्यन भी कर ले वो कभी भी राजनीति और सांसारिक क्षेत्र में पराजित नहीं हो सकता|
 तो दोस्तों एसा था महान चाणक्य का व्यक्तित्व| जिसने नन्द के बेटे से उसे मरवा दिया और विश्वविजेता अल्कशेन्द्र(अलेक्सेंडर,सिकंदर) को खाली हाथ लौटा दिया|

दोस्तों अगर आप को यह ब्लॉग अच्छा लगे तो शेयर करें और कमेंट करें|
               ||जय चाणक्य||
               ||जय भारत||
26\08\2018
 परम कुमार
कक्षा-9
कृष्णा पब्लिक स्कूल
रायपुर       
पोरस वाले ब्लॉग की लिंक- https://paramkumar1540.blogspot.com/2018/05/blog-post_27.html
ऊपर दिया गया चाणक्य का चित्र इस लिंक से लिया गया है- http://generalstudiess.com/chanakya/








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