जय महाकाल
नमस्कार दोस्तों आपका
मेरे ब्लॉग में स्वागत है| आज हमारी चर्चा
का विषय उस व्यक्ति पर है, जिसने त्रिलोक
जीता जिसके दरबार मैं नौ-ग्रह और सप्त-ऋषि उसके आदेश का पालन करने को विवश थे| क्या आप अभी भी नहीं समझ पाए? अब समझ जायेंगे
|| यह गाथा उस
ज्ञानी की, वीर, तेजस्वी, अभिमानी की,
यह गाथा, त्रिलोक पति, लंकाधिपति, प्रखंड पंडित रावण की ||
जी हाँ दोस्तों आज का
हमारा ब्लॉग महापंडित रावण पर है| आप सब सोच रहे
होंगे कि मै यह रावण पर ब्लॉग क्यों लिख रहा हूँ| दोस्तों मैं रावण पर यह ब्लॉग इसलिये लिख रहा हूँ क्योंकि
रावण का अभिमान तो सब ने देखा पर ज्ञान किसी ने ना देखा| रावण के प्रति कई लोगों के मन में बुरे विचार
हैं, मैं उन्हें बताना चाहूँगा कि रावण बनना आसान
नहीं क्योंकि अगर उसमे बुराई थी तो अच्छाईयां भी थीं|इस सब के बारे मैं आपको मेरे इस ब्लॉग मैं पता चल
जायेगा| तो आईये शुरू करतें हैं|
रावण का जन्म
रावण, ब्रह्मा जी का
पौत्र, विश्रवा मुनि और कैक्सी का पुत्र था| जी हाँ दोस्तों यह ब्रह्माजी त्रिदेव
ब्रह्मा-विष्णु-महेश वाले ब्रह्मा जी हैं| रावण के जन्म के
बारे मैं बहुत सी कहानियाँ मिलती, उसमे से एक मै आप
को बताता हूँ| यह बात उस समय की है जब दानवों के राजा सुमाली
थे| जो देव-असुर संग्राम में तीसरी बार हार चुके थे| अब दानवों को एक श्रेष्ठ राजा की आवश्यकता थी| इनकी पुत्री थी केक्सी जिसने ब्रह्मा जी की
तपस्या की और उनसे वरदान माँगा की वो अपने ब्राह्मण पुत्रों में से एक की उससे
शादी करवा दें| ब्रह्मा जी ने
अपने पुत्र विश्रवा मुनि से केक्सी का विवाह करवा दिया| इसके पश्चात् इन्होने भगवन शिव की आराधना की और उनसे वरदान
माँगा की हमें ऐसा संतान प्रदान करें जिसमे
राजसिक, तामसिक और धार्मिक गुण हो| शिव जी तथास्तू बोलकर अंतर्ध्यान हो गए| दोस्तों यह से शुरू होती रावण के बनने की कहानी| जब केक्सी ने भगवन शिव से पुत्र वरदान माँगा उस समय कि कुछ
घटनाओं ने भी इस संसार में अपना अस्तित्व दिखाया| आईये जाने वो घटनाएँ|
प्रताप भानु ने असुरों के
सम्पूर्ण विनाश के लिए एक यज्ञ करवाया| जिसमे उन्होंने दुर्वासा मुनि को भी
बुलाया| असुरों ने अपने आप को बचाने हेतु दुर्वासा ऋषि के भोजन को अशुद्ध कर दिया,
जिससे क्रुद्ध होकर उन्होंने प्रतापभानु को अगले जन्म मैं एक दानव बनने का श्राप
दे दिया| माफ़ी मांगने पर दुर्वासा मुनि ने कहा मै श्राप को वापिस तो नहीं ले सकता
पर यह आशीर्वाद देता हूँ तुम एक समृद्ध और कीर्तिवान दानव नरेश होगे जो कभी भी
भुलाया ना जा सकेगा|
बैकुन्ठ लोक के
द्वारपाल जय-विजय के साथ हुई घटना-
एक बार श्री हरी विष्णु
से मिलने बैकुन्ठ कुछ बालक ब्राह्मण आये| जो कि अपने क्रोधी स्वभाव के लिए जाने
जाते थे| यह बात जय और विजय को पता नहीं थी तो उन्होंने उनको अन्दर प्रवेश करने से
रोक दिया| उन बालक ब्राह्मणों ने उनसे बहुत निवेदन किया पर जय और विजय ने उनकी एक
ना सुनी तब क्रुद्ध होकर उन बालक ब्राह्मणों ने उन्हें श्राप दे दिया और कहा तुमने
‘वैकुंठ के द्वारपाल होने के बावजूद भी पाताल के दानव द्वारपालों जैसा व्यवहार
किया| हम तुम्हे श्राप देते हैं अगले जन्म मै तूम दोनों दानव कुल में जन्म लोगे|”
इसके पश्चात् अपने कृत से शर्मिंदा होकर उन्होंने उनसे बहुत माफी मांगी तो
उन्होंने कहा ‘हम अपना दिया हुआ श्राप तो वापस नहीं ले सकते लेकिन, हम तुम्हे
वरदान देते है जय तुम एक ब्राहमण-दानव कुल में जन्म लोगे और एक प्रखंड और विद्वान
पंडित होगे जैसा पूरे संसार में कोई नहीं होगा| विजय तुम भी इसी कुल मै जन्म लोगे
परन्तु तुम सब पाप कृत से मुक्त रहोगे और सदैव भगवान विष्णु की भक्ति में लीन
रहोगे पर उनके हांथो मुक्ति मात्र जय को मिलेगि तुम्हे नहीं|
कैलाश मै शिव
गणों के साथ घटी घटना
एक बार ऋषि अगस्त कैलाश आये
तो भांग के नशे में चूर दो गणों ने उनका अपमान कर दिया| इस पर क्रुद्ध होकर ऋषि
अगस्त ने उन्हें अगले जन्म में दानव कुल में जन्म लेने का श्राप दे दिया| इसके
पश्चात् दोनों में से एक गण के बहुत क्षमा मांगने पर पर उन्होंने कहा तुम दानव कुल
में तो जन्म लोगे लेकिन तुम मात्र जब तक चेतना में रहोगे तभी तक बुरे कार्य करोगे
और संसार तुम्हे सदैव याद रखेगा|
अतः जब प्रतापभानु का
राजसिक गुण, जय का धार्मिक गुण और क्षमा ना मांगने वाले गण का तामसिक गुण मिले तब
जाके निर्माण हुआ रावण का| विजय का जन्म हुआ विभीषण के रूप में और क्षमा मांगने
वाले गण का कुम्भकर्ण के रूप मैं|
जब रावण का जन्म हुआ तब
उसके दस सिर और बीस हांथ थे| रावण के दस सिर व्यक्ति के दस भावों को प्रदर्शित
करते थे| जो की हैं – काम, क्रोध, लोभ, मोह, मधा, विद्याश, मानस, बुद्धि, चित और
अहंकार| कहा जाता है रावण जब पैदा हुआ था तब उसके माथे पर त्रिशूल का निशाना था|
रावण जैसे-जैसे बड़ा होता गया उसकी बुद्धि तीव्र होती गयी| उसने दस साल की उम्र में
ही चारों वेदों को साध लिया था| रावण का जन्म सत्य युग में हुआ था और जब उसकी
मृत्यु हुई तो वो बारह लाख साल का था| पर कई मान्यताओं के हिसाब से वो इससे भी
ज्यादा उम्र का था| रावण की शिक्षा दानव आचार्य शुक्राचार्य की निगरानी में हुई
थी| उसने उनसे कई मंत्र शक्तियाँ और सिद्धियाँ प्राप्त की थीं परन्तु मात्र इससे
उसका दिल नहीं भरा उसने ब्रह्मा जी, शिव जी और विष्णु जी की घोर तपस्या की थी|
रावण ने ब्रह्माजी की
10000 वर्षों तक घोर तपस्या की थी और 1000 वर्ष बाद वो अपना एक सर उनको अर्पित
करता था| इस्से प्रसन्न होकर उन्होंने उससे पूछा
“तुम्हे क्या वर चाहिये पुत्र?’ इस पर रावण ने कहा मुझे अमरत्व प्रदान
करें| तब ब्रम्हा जी ने कहा ‘मैं यह वरदान तुम्हे नहीं दे सकता हूँ|” तो रावण ने
कहा कि आप मुझे वरदान दें की मेरी मृत्यु न देव से, न दानव से, न गंधर्व से, न
यक्ष से हो| इसके बाद उसने सभी जानवरों का भी नाम लिया जो उसे ना मार सकें सिवाय
वानर के| इस तरह रावण वानर और इन्सान का नाम लेना भूल गया था| जिसके पश्चात रावण
ने उसे वरदान दे दिया| इसके पश्चात् उसने शिवजी की तपस्या की और उनसे सभी
दिव्यास्त्र और अपने सातों चक्रों को जागृत करने का और उनका त्रिशूल माँगा था| शिवजी
ने यह वरदान उसे दे दिया| इसके पश्चात् क्या था, रावण के कारण चारों तरफ
त्राहि-त्राहि मच गयी| उसने तीनो लोकों को अपने आधीन कर लिया| धरती में उसे दो बार
हार का सामना करना पड़ा पहली बार जब वो त्रिलोक विजय पर निकला तो सब राजाओं ने
सप्तसिंधु सम्राट अयोध्या नरेश मान्धाता से मदद मांगी और उन्होंने रावण को पराजीत
किया और दूसरी बार भी सब ने अयोध्या नरेश अज से सहायता मांगी और उन्होंने
रावण को पराजित किया|
नव ग्रहों पर
रावण की जीत
रावण संहिता मैं वर्णन
मिलता है कि रावण ने नव ग्रहों को अपने दरबार में स्थापित कर रखा था| तो आईये जाने
उसके पीछे की कहानी| रावण जब बाली से युद्ध कर के लौटा जिसमे उसकी हार हुई| तो वो
बहुत गुमसुम सा रहने लगा| इसका असर केवल रावण ही पे नहीं पड़ा बल्कि देवताओं को भी
अपनी शक्तियों पर घमंड हो गया, खासकर नव ग्रहों को, एसे समय पर आग में घी का काम
किया नारद जी ने| एक दिन रावण का राज दरबार लगा हुआ था| तभी नारद जी वहां अये और रावण
से कहा ‘हे लंकेश ! क्या आप को दिया गया आशीर्वाद वापस ले लिए गया है’ रावण ने कहा
‘ नहीं मुनिवर| परन्तु आप यह क्यों पूछ रहे हैं?’ तब नारदजी ने कहा ‘ मैंने नव ग्रहों को बात करते
हुए सुना था की वो बोल रहे थे की रावण में अब वो बात नहीं|’ बस फिर क्या था इतना
सुनने के बात रावण क्रोधित हो कर उठा और अपनी चंद्रहास तलवार लेकर अन्तरिक्ष की ओर
प्रस्थान कर दिया| वहां पर उसने नव ग्रहों युद्ध कर उन्हें पराजित कर बंदी बनाकर
लंका ले आया| क्योंकि रावण नव ग्रहों को अपने वश में रखता था इसलिए वो जब चाहता तो
अपनी कुंडली बदल लेता था| कहा जाता है कि जब मेघनाद का जन्म हुआ था तब रावण ने सभी
ग्रहों को आदेश दिया था की वो रावण द्वारा निर्मित स्थानों पर ही विराजमान हों|
इसके फल स्वरुप जब मेघनाद का जन्म हुआ वो प्रतापी, बुद्धिमान, देव विजेता आदि कई
गुण मेघनाद मैं आ गये| परन्तु शनि देव जी की मृत्यु के कारक हैं वो अपनी जगह से
हिल गए जिससे मेघनाद अल्पायु हो गया| इस कारण रावण ने शनि देव को अपने पैरों तले
रख लिया| आप सोच रहे होंगे की अगर रावण नव ग्रहों को अपने वश मैं रखता था तो उसकी
मृत्यु का योग कैसे बना? लंका दहन के समय हनुमानजी ने सब ग्रहों को मुक्त करवा
दिया था| इस लिए उसकी मृत्यु का योग बन पाया|
शिव तांडव की
रचना और नंदी बैल का अभिशाप
कहा जाता है की रावण से
बड़ा शिव भक्त आज तक इस संसार मैं नहीं हुआ| यह बात है उस समय की जब को शिवजी
द्वारा चन्द्रहास प्राप्त हुई| एक दिन वो जब अपने कक्ष में बैठा था उसके मन में ख्याल
आया क्यों ना हिमालय को लंका ले आया जाये| इसके लिए वो हिमालय को लाने निकल गया और
वहां पँहुच कर वो उसे उठाने जा ही रहा था नंदी बैल ने उसे रोका पर वो ना मना| तब
दोनों के बीच भयंकर युद्ध शुरू हो गया| जिसमें रावण विजय हुआ और क्रोध मैं नंदी
बैल ने उसे अभिशाप दिया की जा तेरी मृत्य का एक कारण स्वयं शिव बनेंगे| रावण ने उस
पर कोई धयान नही दिया| उसने हिमलय को उठाने की पूरी कोशिश की पर उठा नहीं पाया तब
उसने अपने अन्दर से दस और रावण निकाले और अब उसका प्रयास पूरी तरह से सफल हो गया|
उसने हिमालय को अपने दस सरों पर उठा लिया था| तब शिवजी ने धीरे-धीरे पर्वत का भार
बढ़ाना चालू किया उसपे अपना पैर रख कर| जैसे-जैसे उसका भर बढता गया रावण उसको नीचे
रखने लगा परन्तु उसका हांथ उसके निचे दब गया| रावण उस दर्द से रोने लगा| तब उसने
शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव की वहीँ रचना की और शिव जी को प्रसन्न किया|
शिव जी ने प्रसन्न होकर कैलाश का भार घटा दिया और उसे पशुपति अस्त्र प्रदान किया|
और हाँ दोस्तों रावण का मतलब ही होता है रोना| इस तरीके से जब रावण का हांथ कैलाश
के नीचे दबा था और उसके रोने की वजह से रावण का नाम दशानन से रावण पड़ा|
एक और कथा के अनुसार रावण
के पैर की ऊँगली हिमालय पर्वत के नीचे दब गयी थी| तब उस भयंकर पीढ़ा से मुक्ति पाने
के लिए रावण ने रूद्र वीणा और शिव तांडव की रचना की थी| वीणा बनाने के लिए
उसने अपना बायाँ हाथ कट दिया और उसके तार के लिए उसने अपनी पेट की अतडियों को निकालकर
उसमे बांध दीं| इससे प्रसन्न हो कर शिव जी ने हिमालय का भार घटा दिया|
क्या आप को पता है की
रावण ने दो-दो बार श्री राम के लिए पूजा करवाई थी और उन्हें विजय का आशीर्वाद भी
दिया था| बात उस समय की है जब श्री राम सेतु निर्माण कर रहे थे तब उन्हें सेतु की
पूजा के लिए एक महान पंडित की जरुरत थी, और रावण भी श्री राम को देखना चाहत था| तब
वो एक ब्राह्मण का भेष लेकर वहां गया और श्री राम के लिए पूजा करई, और वो भी पुरे
विधि विधान से और उनहे विजय का आशीर्वाद भी दिया| वहां पर उपस्थित सब लोग जानते थे
की जिस तरह के विधि विधान से पूजा हो रही हे वो रावण ही करवा सकता है| दूसरी बार श्री
राम को अपने पिता का श्राद्ध दान करना था उसके लिए फिर रावण आया था| रावण को हमेशा
से पता था की उसकी मृत्यु कब, कैसे और किसके हांथो होगी|
रावण और लंका की
कहानी
रावण को लंका कैसे मिली
इसकी बहुत सी कहानियाँ हैं| मैं उनमे से एक बताता हूँ| एक बार पार्वतीजी ने कहा ‘स्वामी
अपने आज तक मुझे कुछ नहीं दिया’ शिव जी कहा ‘तुम्हे क्या चाहिये| तब पार्वतीजी ने
कहा ‘मुझे सोने से बना एक महल दीजिये|” शिवजी ने विश्वकर्माजी को आदेश दिया और
मात्र एक दिन मैं सोने का महल लंका नमक जगह पर बना दें| उस महल की पूजा हेतु शिवजी
ने अपने परम भक्त रावण को बुलया रावण ने पूरी विधि विधान से महल की पूजा की| इस के
पश्चात् रावण से पूछा गया की उसे दक्षिणा मै क्या चाहिये तो उसने लंका मांग लिया|
यह थी एक कथा कि कैसे रावण को लंका प्राप्त हुई|
तो दोस्तों यह थी कहानी
महाप्रखंड पंडित दशमुख (रावण) की| जिसने अपनी मृत्य के लिए भगवान को विवश कर दिया
जन्म लेने के लिए| जिसने अपने शत्रु को युद्ध विजय का आशीर्वाद दिया|
अगर आप को मेरा यह ब्लॉग अच्छा
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||जय महाकाल||
|| जय भारत ||
6-3-2019
परम कुमार
कक्षा-9
कृष्णा पब्लिक स्कूल
रायपुर (छ.ग.)
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