Sunday 7 October 2018


जय महाकाल

नमस्कार दोस्तों !

 आपका मेरे इस ब्लॉग में एक बार फिर से स्वागत है | आज  हमारे चर्चा का विषय उस प्राचीन विद्यालय/ महाविद्यालय या विश्वविद्यालय पर है जो हमारे इतिहास के पन्नों में कहीं पर दब गया है | यह ऐसा प्राचीन स्थल है जिसे आज के आधुनिक युग के अत्याधुनिक सैटेलाइट भी नहीं खोज पा रहे | यह वह स्थान जहां पर महामहीम देवव्रत भीष्म ने और भारद्वाज ऋषि के पुत्र द्रोणाचार्य ने भगवान परशुराम से शिक्षा ली थी |
मैं आपको बताऊंगा कि कैसे यहां किसी व्यक्ति की उम्र रुक जाती वह कभी बूढ़ा नहीं होता है| वह व्यक्ति हमेशा के लिए तो नहीं पर उसकी उम्र जब तक वह उस आश्रम के उस जगह के अंदर रहेगा वह मर नहीं सकता और वह जब आश्रम से बाहर भी जाएगा तब वह उसी अवस्था या उम्र में होगा जिस अवस्था में उसने आश्रम के अंदर प्रवेश किया था | परन्तु उसके अन्दर जाने और बाहर निकलने के बीच हो सकता है कि कई सदियां या कई साल बीत चुके हों |

मेरे मित्रों इस प्रसिद्ध स्थान का नाम है आश्रमों में सर्वश्रेष्ठ सिद्धों की भूमि सिद्धाश्रम दोस्तों भारत में ऐसे कई सिद्धाश्रम है | हमें हमारे ग्रंथों में जैसे महाभारत और रामायण में उनका वर्णन मिलता है |  दोस्तों मेरा आज का यह ब्लॉग आपको भले ही विचित्र लगेगा क्योकि यह सामान्य विज्ञान के नियमों के विपरीत है | परन्तु सच्चाई यह है कि हमें अपने ही इतिहास का पूर्ण ज्ञान नहीं है और हम खुद उस पर विश्वास नहीं करते हैं | यदि आप भी केवल इन्हीं नियमों को मानते हैं तो मैं आपको पहले ही आगाह करता हूं आप मेरा चतुर्थ आयाम से सम्बंधित यह  ब्लॉग ना पढ़ें क्योंकि इससे केवल आपका समय बर्बाद होगा | 
तो आइए हम आगे बढ़ते हैं |

अपने आज के इस ब्लॉग की तरफ जिसमें मैं आपको बताऊंगा कि भारत में ऐसे कितने सिद्धाश्रम हैं, भारत में कौन कौन लोग हैं जो यह सिद्ध आश्रम का अनुभव किये हैं, भारत के अलावा कितने लोग हैं, जिन लोगों ने उनका अनुभव किया भारत में कहां कहां पाए जाते हैं और अंत में ऐसे व्यक्ति के बारे में बताऊंगा जो आज भी सिद्धाश्रम में रहता है और जो मात्र अपने भक्तों को शिक्षा देने के लिए ही प्रकट होता है तो आइए हम आगे बढ़ते हैं आज के अपने इस ब्लॉग की तरफ |

दोस्तों, भारत हमेशा से ही रहस्यों से भरा रहा पर भारत का जो सबसे रहस्यमयी स्थान है वह है हिमालय |  आज हमारे चर्चा का विषय है सिद्धाश्रम | वह भी हिमालय के पर्वतीय श्रृंखलाओं के बीच में कहीं पर दबा हुआ है | इनमे सबसे ज्यादा जिस सिद्धाश्रम के बारे में जानकारी मिलती है वो है ज्ञानगंज | कहा जाता है कि  ज्ञानगंज संग्रीला घाटी में कहीं पर है जो तिब्बत और भारत के पास कहीं स्थित है | कुछ लोग इसे कैलाश मानसरोवर के पास भी बताते हैं|इसको कोई भी खोज नहीं पाता केवल उन्हीं को नजर आता है जो कि आज के इस दुनिया के मोह से मुक्त हो गए है | (5) (6)

दोस्तों हमारे भारत में  आज के युग में भी ऐसे कई महाराज संत और गुरुदेव हैं जो इस सिद्धाश्रम से जुड़े हुए हैं| उनके नाम कुछ इस प्रकार हैं : महात्मा तैलंग स्वामी, लोकनाथ ब्रह्मचारी हितालाल मिश्रा, राम ठाकुर, सदानंद सरस्वती, प्रभु पद विजय कृष्ण गोस्वामी, स्वामी विशुद्धानंद, श्याम चरण लहरी, कुलानंद आदि ऐसे कई नाम है जो कि इन सिद्धआश्रमों से जुड़े हुए हैं | हमें जरूरत है तो बस उन नामों के पीछे छुपे हुए रहस्यों कीआपने शुरू में पढ़कर यह सोचा होगा कि मैं कैसी विचित्र  बात कर रहा हूं कि जो भी व्यक्ति सिद्धाश्रम में जाता है तो उसकी उम्र रुक जाती है और वह जिस अवस्था में गया था उसी अवस्था में वापस आता है | पर दोस्तों यह बात सच है कि सिद्धाश्रम में जो भी जाता है वह जिस उम्र, जिस रूप में  होता है उसी रूप में वापस आएगा और वह उसके लिए तो कोई साल कोई समय नहीं बीता होगा पर बाहर वालों के लिये कई साल बीत गए होंगे और दोस्तों यह सच है क्योंकि अमेरिका ब्रिटेन जर्मनी फ्रांस इन चारों के एक संगठन ने मिलकर एक रिसर्च की थी जिससे यह मालूम पड़ा था कि अगर व्यक्ति के शरीर में नए सेल बनते रहें और नए हार्मोन रिलीज होते रहे तो कोई व्यक्ति कम से कम 150 से 180 साल तक जी सकता है और जो व्यक्ति सिद्धाश्रम में रहते हैं वे लोग अपने इमोशंस पर कंट्रोल पा लेते हैं या अपने इमोशंस को अपने वश में कर लेते हैं जिससे कि उनके शरीर के हार्मोन भी उनके वश में जाते हैं | यह संभव है हमारे पूर्वजों द्वारा निर्मित योगनिद्रा से | आइए अब थोड़ा और आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि सिद्धाश्रम का महाभारत और रामायण में कहां-कहां विवरण मिलता है | 

रामायण में सबसे पहले सिद्धाश्रम का विवरण पंपा सरोवर के उत्तर दिशा में जहां पर मतंग ऋषि का आश्रम था और जहां पर शबरी रहती थी वहां पर मिलता है | कहानी कुछ इस प्रकार है कि जब श्री रामचंद्र और लक्ष्मण शबरी से मिले थे तो शबरी उस समय नवयुवती प्रतीत हो रही थी जिसकी उम्र 26 से 30 साल के बीच में लग रही थी पर असलियत तो यह थी कि जो शबरी थी वह श्री रामचंद्र जी से  बहुत साल पहले जन्मी थी | अब सोचिये त्रेता युग में लोगों का जो जीवन मरण का होता था वह कम से कम 10000 साल होता था (यदि किसी को आश्चर्य तो रहा है तो मैं उन लोगों ये बताना चाहूंगा कि व्यक्ति की उम्र सत युग में एक लाख साल, त्रेता युग में 10000 साल, द्वापर युग में 1000 साल और कल युग में 100 साल मणि गयी है) | पर जो आदमी 10000 साल जी रहा है पर उसके मुंह में, उसके शरीर में कुछ तो अंतर आना चाहिए परन्तु  शबरी के साथ ऐसा नहीं था | इसे हम ऐसे समझ सकते हैं कि जब शबरी ने  श्री राम को बताया कि हे प्रभु आप अपनी दक्षिण में देखिये तो श्री रामचंद्र जी ने दक्षिण में देखा तो उन्हें गीले कपड़े दिखाई दिए और 10 कमल की मालाएं भी दिखायी दीं जो पिछले 10 सहस्त्र वर्षों से वहां पर रखी हुई थी और वह कपड़े अभी तक गीले थे | इसका कारण पूछने पर शबरी ने उन्हें बताया कि हे श्री राम आज से 10 सहस्त्र वर्ष पूर्व मतंग ऋषि अपने 9 अनुयायियों के साथ तपस्या करने गए थे और वह अभी तक तपस्या से लौटे नहीं है | पर जितने वर्षों तक भी उन्होंने यहां पर तपस्या की उससे यह स्थान एक तपोभूमि बन् गया है जहां पर किसी आदमी की उम्र बढ़ती नहीं है और समय चक्र चलता नहीं है ( यही चतुर्थ आयाम होता है जहाँ समय रुक जाता है) | इसी कारण से मैं जब से यहां पर रह रही हूं मैं जिस अवस्था में यहां पर आई थी उसी अवस्था में हूं और यह कपड़े भी उसी समय से गीले रखे हुए हैं और मालाएं भी अभी तक मुरझायी नहीं हैं | देखिए दोस्तों जो मतंग ऋषि का आश्रम था, वह पंपा सरोवर के उत्तर में नीलगिरी और महेंद्र गिरी पर्वत के बीच में जो कि आज भी देखने को मिल सकता है | प्रसिद्ध आश्रम में वही लोग प्रवेश कर सकते हैं जिनका मन पवित्र हो और वह एक तरीके सिद्ध हो जाए| (1)

हमें रामायण में इसका दूसरा विवरण तब मिलता है जब वानरगण माता सीता की खोज में दक्षिण दिशा की ओर जा रहे थे | उस समय उन लोग को जब प्यास लगी थी, तब आपने यह पढ़ा होगा कि वे लोग गुफा में जाते हैं जिससे पक्षी पानी पीते हुए निकल रहे थे और अंदर उनको एक देवी मिलती हैं | अब मैं आपको इसके पीछे की असली कहानी बताता हूँ कि  हुआ क्या था | वानर सेना का वह दल में जिसमें कम से कम 1000 लोग थे जिनका नेतृत्व वानर राज हनुमानजी कर रहे थे, इन सभी को अत्यधिक भूख और प्यास लगी | तो हनुमानजी ने अपना आकार बड़ा कर के थोड़ा आगे देखा तो उनको एक गुफा दिखाई दी जो कि चारों तरफ से बंजर थी और उसके अंदर से जो पक्षी निकल रहे थे उनके मुंह से पानी गिर रहा था | दोस्तों असली बात तो यह थी कि उस गुफा का नाम था रिचबिल| इस गुफा की रक्षा एक राक्षस करता था | वानर सैनिक एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए गुफा के अंदर एक योजन तक चले | अंत में उन्हें वहां पर एक स्थान दिखाई दिया जहां पर तपस्विनी तपस्या कर रही थी और पास ही में सरोवर था | जिसमें से सोने की मछलियां निकल के बाहर कूद रही थी | इतना सब देखने के बाद वानर सैनिक आश्चर्यचकित हो गये और उनसे पूछा हे माते आप कौन हैं और यह स्थान किसने और कैसे निर्मित किया है | इतना पूछने पर उस तपस्विनी ने बताया कि मैं मायासुर की पुत्री माया हूँ | मायासुर ने ब्रह्माजी कि जब 1000 वर्षों तक घोर तपस्या की थी तो उनको यही समाधि आ गई थी और वह मृत्यु को प्राप्त हो गए थे | पर मृत्यु में जाने के पहले उनके सपने में ब्रह्माजी ने उनको आशीर्वाद दिया था कि हे वत्स मायासुर तुमने जिस स्थान पर यह मेरी तपस्या की है वह पवित्र हो गया है | यहां पर अब जो भी व्यक्ति आएगा उसके लिए समय काम नहीं करेगा और वह जो भी यहां पर सपना देखेगा वह सही साबित होगा | पर वह अपने जीते जी इस जगह से बाहर नहीं जा सकता जब तक कोई और व्यक्ति उसको अपनी योग शक्ति से इससे बाहर ना निकाले और यहां पर खाने पीने की चीज तुमको हर मौसम में मिलती रहेंगी | इतना सब सुनने के बाद वहां पर उपस्थित तपस्वी वहीं पर एक फल उठाया और खाया | उसके खाते ही जितने भी वानर थे उन सभी वानरों का पेट भी अपने आप भर गया | इसके बाद उन्होंने उन तपस्विनी से आग्रह किया कि वह उनको इस जगह से बाहर निकाले | तपस्विनी ने उन सभी को अपनी आंखें बंद करने को कहा फिर जब वानर दल ने अपनी ऑंखें खोली तो अपने को महासागर के पास पाया जिसके पार लंका थी | जबकि जब वानर दल ने जिस स्थान से  उन्होंने रिचबिल गुफा में प्रवेश किया था वह महासागर से कम से कम 1000 किलोमीटर दूर थी | यह सब संभव इसलिए हुआ क्योंकि वह जगह सिद्धाश्रम थी और उसमें जो व्यक्ति तपस्या कर रही थी वह महिला वह सिद्ध पुरुषों में से थी| खैर महिलाओं को सिद्ध पुरुष नहीं बोलते उन्हें भैरवी माता बोलते हैं| (1)

महाभारत में भी इसका वर्णन तब मिलता है | जब पांडव वनवास में थे | कहा जाता है कि जब भीम की हिडिम्बा से शादी की तब पांचो पांडवों में से किसी की भी दाढ़ी और मूंछ नहीं थी | कहा जाता है कि वो 5 साल तक वहां पे रुके थे इस अन्तराल में उनमे से किसी में भी कोई बदलाव नहीं आया था | क्योंकि वो लोग जहाँ पे रुके थे वो एक सिद्ध भूमि थी | महाभारत में इसका दूसरा वर्णन तब मिलता है जब श्री कृष्ण ने अश्वथामा को श्राप दिया था | लोगों का मानना है की अश्वथामा तब तक जीवीत रहेंगे जब तक पृथ्वी रहेगी | पर श्राप के अनुसार वो द्वापर युग के अन्त से अगले 3 सहस्त्र साल तक जीवीत रहेंगे इस अवधि को पूरा हुए 15 साल हो गए है और उनको अभी तक मर जाना था | पर संभतः ऐसा नहीं हुआ होगा क्योंकि उन्होंने अपने जीवन के 3 सहस्त्र साल ज्ञानगंज (हिमालय में तिब्बत के पास स्थित) में  बिताये  थे जो की सिद्धाश्रम के सबसे पवित्र सथानों में से एक है | 

दोस्तों आज के इस आधुनिक युग में भी कई लोगों को सिधाश्रम के दर्शन हुए हैं | उनके बारे मै अब आपको बताऊँगा | इसमें से दो घटनाये विदेशियों के साथ घटी और एक बनारस के छोटे से बच्चे के साथ | (1)

जर्मन के दो सैनिकों के साथ घटी घटना-
यह बात द्वीतीय विश्व युद्ध के बात की है | पता नहीं कैसे दो जर्मन सिपाही हिमालय के पास आ पहुंचे | वहां पर उन्हें एक बहुत बड़ा मठ दिखाई दिया वहां पे उन्होंने मदद की पुकार लगायी तो वहां से कुछ लोग निकले और उन्हें अन्दर ले गए और उनकी सेवा की | वहां पे उन्होंने करीब 5 साल बिताये पर उन्हें पता ही नहीं चला की पांच साल बीत गए हैं | जब वो वहां से वापस लोटे तो उन्होंने ये बात अपने देश वालों को बताया |  पर किसी ने उनका भरोसा नहीं किया | फिर वो कुछ लोगों के साथ फिर वहां पर फिर से गए पर वो मठ गायब हो चूका था पर वहां पर वो झरना था जिसमे वो स्नान करते थे और वो बरगद का पेड भी था जिसके नीचे वो बात किया करते थे बस मठ  ही नहीं  था | (1)

रोबर्ट कानवे के साथ घटी घटना-
चीन में उस समय  गृह युद्ध का माहौल चल रहा था | ब्रिटेन के एक व्यक्ति को उस गृहयुद्ध में से सभी विदेशियों को निकलने का काम सोंपा गया | उसका नाम था रोबर्ट कानवे | पर उसको बहुत अजीब अजीब से सपने आते थे | एक बार उसने देखा की वो सब विदेशियों  को चीन लेजा रहा है और उसका प्लेन क्रेश हो गया पर उसको कुछ नहीं हुआ कुछ लोग आये और उसे एक बड़े से महल में एक बूढ़े आदमी के पास ले गए | जो कई सालों पहले लापता हो गया था | वो उसको जानता था | उसने उनके लापता होने वाले पोस्टर देखे थे | उसने अश्चर्यकित होकर पूछा की आप कितने साल के हैं उन्होंने जवाब दिया 200 साल का हूँ | फिर जब रोबर्ट ने अपनी ऑंखें खोलीं तो उसने अपने आप को हॉस्पिटल में पाया और उसे बताय गया की वो काफी सालों से इस अस्पताल में  कोमा में था | जब की उसे लगा की उसने एक सपना देखा है | इस हादसे पर 1937 मै एक फिल्म भी बनी थी “द लॉस्ट होरिजोन” | कोमा के दौरान रोबर्ट ने जो भी बोला उसे एक व्यक्ति जिसका नाम जेम्स हिल्टन था, ने लिख लिया था और आगे चल कर इसी घटना पर फिल्म भी बनी | उस 200 साल पुराने आदमी का नाम पेरो था| (2)

बनारस के छोटे से बच्चे केदार के साथ घटी घटना - 
बनारस में एक छोटा सा बच्चा रहता था जिसका नाम था केदार | वो एक दिन बाहर खेलने निकला तो उसे एक आदमी दिखाई दिया वो उसके पास गया और कहा कल विश्रेश्वर गंज आना | बच्चे ने कहा ठीक है | वो अगले दिन साइकिल के विश्रेशावरगंज उसे वहां पर एक खाली मैदान दिखा जिस पर उसने ध्यान नहीं दिया और आगे चलता गया | उसे एक चट्टान पर एक बाबा दिखाई दिए वो उनके पास गया | बाबाजी ने फिर कहा अब तुम जाओ केदार तुम्हारे घरवाले तुम्हारी प्रतीक्षा का रहे होंगे | पर वो जेसे ही वहां से बाहर निकला उसने अपने आप को बनारस में नहीं बल्कि इलाहबाद रोड पर पाया | (1)

अभी के वर्तमान समय में भी सिद्ध योगी और महात्मा हैं जो ज्ञानगंज के बारे में जानकारी रखते हैं उनमें से एक हैं साईँकाका | इनके वेबसाइट (संदर्भ 4) में भी ज्ञानगंज से सम्बंधित बातों का उल्लेख मिलता है | इनके शिष्यों के द्वारा किसी यात्रा के दौरान बनाये गए विडियो में उन्होंने ज्ञानगंज के बारे में वर्णन किया है | इस विडियो की लिंक https://www.youtube.com/watch?v=ZY6xew1Y_VU है| 

दोस्तों यह थे भारत के सिद्धाश्रम |
अब मैं आप को एक ऐसे बाबा के बारे मै बताने जा रहा हू जो दीखते हैं 25 साल के पर हैं 2000 साल के इनका नाम है महाव्तर बाबाजी | इनके बारे में मुझे ज्यादा मालूम नहीं है इसलिए मै इनके बारे मै और कुछ नहीं लिख सकता | मेरे आज के इस ब्लॉग का एक ही मकसद था आप लोगों को भारत के सिद्धाश्रम के बारे बताना और हमरे प्राचीन इतिहास में छीपे इन अलौकिक जगहों के बारे में बताना|

                   मेरा ब्लॉग को पढने के लिए धन्यवाद|

                इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर और कमेंट करें|

                                 || जय महाकाल ||
                                  || जय भारत ||

07\10\2018
                                                  परम कुमार
                                                    कक्षा-9
                                          कृष्णा पब्लिक स्कूल
                                                   रायपुर       
सन्दर्भ-
1-      इस ब्लॉग में दी गयी जानकारी म.म.पं.गोपीनाथ कविराज की पुस्तक ज्ञानगंज से ली गयी है |
2-      रोबर्ट कांवे वाली घटना “द लॉस्ट होराइजन” फिल्म से ली गयी है |
3- ऊपर दी गयी फोटो निम्न लिंक से ली गयी है-https://medium.com/@rahul.goyl/who-is-mahavtar-babaji-6a507dcc901c 
4- साईँकाका के वेबसाइट का लिंक जिसमें ज्ञानगंज से सम्बंधित जानकारी हैं वो है http://saikaka.com/en/about-sai-kaka/bliss-and-gyanganj/
5- http://sachhiprerna.com/sangreela-ghati-dimension-earth-hindi/ 
6- https://plus.google.com/110850770709272717114/posts/b3Z8h8QqM9n






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