नमस्कार दोस्तों आज का
हमारा चर्चा का विषय एक ऐसे युद्ध पे है जिसके बारे में हमारे देश में पता नहीं किन कारणों के कारण कभी भी महत्व नहीं दिया गया और इसके बारे में काम लोग ही जानते हैं पर
इसे यूरोप के देशों में बहुत महत्व दिया जाता है और स्कूलों में पढाया भी जाता है|
जी हाँ दोस्तों में बात कर रहा हूँ सारागढ़ी के युद्ध के बारे में| यह युद्ध
ब्रिटिश सेना की 36वि सिख रेजिमेंट और
पठानों के बीच लड़ा गया था| तो आईये शुरू करते हैं|
सन 1897 में लाहौर में कुछ
अफरीदी लुटेरों ने बहुत उत्पात मचा के रखा था| तब ब्रिटिश सरकार ने लेफ्टिनेंट
कर्नल.जॉन हौघ्तों को वहां पर सिख रेजिमेंट को जनरल घोषित किया और उनको लाहौर भेज
दिया| कर्नल जॉन ने बड़ी बहादुरी से अफरीदीयों का मुकाबला किया और उन्हें हरा भी
दिया| अफरीदी इस हार का बदला भी लेना चाहते थे और वो सारागढ़ी के किले को भी जीतना
चाहते थे| पर उन्हें कोई मौका नहीं मिल रहा था| फिर सितंबर 1897 को उन्हें यह
मौका मिला जब कर्नल जॉन ने सिख रेजिमेंट के चुनिंदा 21 सिपहिओं को सारागढ़ी के किले की जिम्मेदारी सौंप दी और वो पास के ही गुलिस्तान किले और लॉकहार्ट किले
को देखने चले गए| अफरीदी यह किला इसलिए भी जीतना चाहते थे क्योंकि यह किला गुलिस्तान किले और लॉकहार्ट किले के
बीच में संपर्क का काम करता था| परन्तु
अफरीदी की सेना इतनी बड़ी नहीं थी कि वो सारागढ़ी किला जीत पायें| तब उनकी मदद की
पठानों के सरदार गुल बादशाह खां ने की| अफरीदीयों के साथ पठानों ने 12 सितंबर 1897 की सुबह 9
बजे 12,000 पठानों ने किले को घेर लिया| उस समय अन्दर सिख सेना के सरदार थे इश्वर
सिंह| इन्होने गुरुमुख सिंह द्वारा कर्नल जॉन तक यह खबर भिजवाई कि "हम पठानों
की सेना से चारों तरफ से घिर चुकें हैं और हमारे पास इतनी सेना नहीं है कि हम इनका
सामना कर सकें| हम बस 21 हैं और वो 12,000 आप जल्दी से मदद भेजें (reinforcement)|" कर्नल जॉन ने जवाब दिया की मै इतनी जल्दी सेना नहीं भिजवा सकता| मुझे वहां सेना भिजवाने में कल तक का
समय लगेगा| तुम लोग आत्मसमर्पण कर दो और किले से चले जाओ|
इसके बाद इश्वर सिंह ने और बाकी बचे बीस सिपाहियों ने युद्ध कर के वीरगति को पाने का फैसला किया| इन सब ने बहुत जोर से नारा लगाया "बोले सो निहाल सत् श्री अकाल" (सिखों के दसवें गुरूजी श्री गोविन्द सिंहजी ने यह नारा दिया था जिसका अर्थ है कि इश्वर ही अंतिम सत्य है और जो व्यक्ति यह बोलेगा उस पर हमेशा इश्वर का आशीर्वाद रहेगा)| यह नारा इतना तेज था की बाहर खड़ी पठानों की सेना को लगा कि किले के अन्दर अभी भी सिखों की बहुत बड़ी सेना है| पर उन्हें क्या पता था की अन्दर केवल 21 सिख सिपाही हैं| पर इन 21 सिपाहियों में से कुछ में डर भी घुस गया था| तब इस डर को उनसे निकलने के लिए हवलदार इश्वर सिंह ने कहा “सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ” और वाहे गुरूजी का खालसा, वाहे गुरूजी की फतह" अर्थात गुरु गोविन्द सिंहजी के अनुसार एक खालसा का पहला धर्म देश और मानवता के लिए अपना सब कुछ और प्राण न्यौछावर करना है|" अपने संत श्री गुरु गोबिंद सिंहजी की यह कविता सुन के सब के सब 21 सिखों मन में एक नए जोश का संचार हो गया|
इसके बाद इश्वर सिंह ने और बाकी बचे बीस सिपाहियों ने युद्ध कर के वीरगति को पाने का फैसला किया| इन सब ने बहुत जोर से नारा लगाया "बोले सो निहाल सत् श्री अकाल" (सिखों के दसवें गुरूजी श्री गोविन्द सिंहजी ने यह नारा दिया था जिसका अर्थ है कि इश्वर ही अंतिम सत्य है और जो व्यक्ति यह बोलेगा उस पर हमेशा इश्वर का आशीर्वाद रहेगा)| यह नारा इतना तेज था की बाहर खड़ी पठानों की सेना को लगा कि किले के अन्दर अभी भी सिखों की बहुत बड़ी सेना है| पर उन्हें क्या पता था की अन्दर केवल 21 सिख सिपाही हैं| पर इन 21 सिपाहियों में से कुछ में डर भी घुस गया था| तब इस डर को उनसे निकलने के लिए हवलदार इश्वर सिंह ने कहा “सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ” और वाहे गुरूजी का खालसा, वाहे गुरूजी की फतह" अर्थात गुरु गोविन्द सिंहजी के अनुसार एक खालसा का पहला धर्म देश और मानवता के लिए अपना सब कुछ और प्राण न्यौछावर करना है|" अपने संत श्री गुरु गोबिंद सिंहजी की यह कविता सुन के सब के सब 21 सिखों मन में एक नए जोश का संचार हो गया|
युद्ध के
शुरुवात में पठानों ने किले के दरवाजे को तोडने की 2 नाकाम कोशिशें कीं पर वो दरवाजा
और नहीं पाए| तभी अन्दर से दो सिपाही नायक लाल सिंह और सुन्दर लाल सिंह किले बाहर
चले गए और पठानों को मारना चालू कर दिया| उन्होंने कम से कम 100 पठानों को मौत की
नींद में हमेशा के लिए सुला दिया| पर तभी एक गोली सुन्दर लाल सिंह को लगी और वो घायल
हो गये| उनको बचने की कोशिश में नायक लाल सिंह की भी मौत हो गयी और अब केवल 20 सिख बचे
थे| पठानों ने किले की सब से कामजोर दीवाल को तोड दिया और किले के अन्दर घुस गए|
किले के अन्दर एक कमरा था जिससे गुरुमुख सिंह युद्ध की सब जानकारियां होलिग्राफ की
मदद से कर्नल जॉन तक भेज रहे थे| बाहर बचे सब सिपाही युद्ध कर रहे थे और धीरे धीरे
मर रहे थे| 3 बजे के आसपास केवल अब 2 सिख सिपाही बचे थे| गुरुमुख सिंह और सुन्दर
लाल सिंह बाहर निकले और अपने आप को एक बम के द्वारा उड़ा दिया इस धमाके से 10 पठान
सिपाही मरे गए| अब केवल गुरुमुख सिंह ही बचे थे उन्होंने कर्नल जॉन को जो आखरी
सन्देश भेजा वो यह था की “जॉन सर मेरे सब दोस्त मारे जा चुके हैं, अब केवल मैं बचा हूँ और मैं भी अब इन पठानों को मारने जा रहा हूँ|" गुरुमुख सिंह ने बाहर आते ही 20
पठानों को मार गिराया| तब पठानों ने उन पर आग का गोला चला दिया और उन्हें मार दिया|
इन 21 सिखों ने 600 पठानों को मार गिराया था|
कर्नल जॉन अगले दिन जब वहां पहुंचे
तो उन्होंने किला फिर से जीत लिया और उन सब 21 सिखों श्रधांजलि अर्पित की| जब
यह बात कर्नल जॉन ने इंग्लैंड में ब्रिटिश संसद में बताई तो तो संसद में मौजूद सभी लोगो ने खड़े होकर उन 21 सिखों को सलामी दी| क्वीन एलिजाबेथ ने स्वयं भारत आके इन 21 सिखों के नाम पर इंडियन
आर्डर ऑफ़ मेरिट का अवार्ड अर्पित किया| यह अवार्ड अपने आप में ब्रिटेन के सर्वोच्च साहसिक अवार्ड विक्टोरिया
क्रॉस के बराबर था|
इस युद्ध की कहानी को इंग्लैंड और फ़्रांस के स्कूलों में पढाया जाता है| युनेस्को (unesco) ने भी इस युद्ध को दुनिया की 5 बड़ी लडाइयों में शामिल
किया है| पर अफसोस की बात है की हमारे ही देश में इस युद्ध के बारे में ज्यादा अवेयरनेस नहीं है और स्कूलों में भी जानकारी नहीं दी जाती है| परन्तु आज भी सिख रेजिमेंट हर साल 12 सितम्बर को इन 21 सिखों को सलामी
देती हैं|
मेरे इस ब्लॉग का यही मकसद है की इस ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा लोग पढ़ें और
शेयर करें ताकि इस युद्ध के बारे में और लोग भी जान सकें|
उन वीर 21 सिखों के नाम हैं
1-हवालदार इश्वर सिंह
2- लाल सिंह
3- चंदा सिंह
4- सुन्दर सिंह
5- राम सिंह
6- उत्तर सिंह
7- साहिब सिंह
8- हिरा सिंह
9- दया सिंह
10- भोला सिंह
11- जीवन सिंह
12- नारायण सिंह
13- गुरुमुख सिंह
14- जिवन सिंह
15- गुरुमुख सिंह
16- राम सिंह
17- भगवान सिंह
18- भूता सिंह
19- भगवान सिंह
20- जीवत सिंह
21- नन्द सिंह
तो यह थे उन वीर 21 योद्धाओं के नाम|
||
जय भारत ||
|| जय श्री खालसा ||
धन्यवाद्
10\06\2018
परम कुमार
कक्षा - 9
कृष्णा पब्लिक स्कूल
रायपुर
ऊपर दी गयी फोटो इस लिंक से ली गयी है
https://en.wikipedia.org/wiki/Battle_of_Saragarhi
आश्चर्य है कि इतनी महत्वपूर्ण घटना से हम ज्यादातर लोग सर्वथा अनभिज्ञ थे। ब्रिटैन सरकार ने भी अपने सर्वोच्च सैनिक सम्मान से इस जाबांज सिख रेजिमेंट को नवाज़ा। इस महत्वपूर्ण घटना को नए परिवेश में सामने लाने के लिये परम को अनेकानेक बधाई।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteIt is very unfortunate that bravery of Indians was hidden so long but the same is appreciated outside the India. Welldone Param for exploring more treasure from the ground of history
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