जय महाकाल
नमस्कार दोस्तों आपका मेरे ब्लॉग में एक बार फिर से स्वागत है| आज हमारा चर्चा का विषय महाभारत के कुछ अनसुने
और अनभिज्ञ तथ्यों को जानना है समय गवाए बिना हम अपना आज का ब्लॉग चालू करते हैं
1.पांडव क्षत्रिय नहीं बल्कि ब्राहमण थे- हमने आज तक जितनी भी महाभारत की किताबें पढ़ी वह सब भीष्म पितामह के जन्म से चालू होती है| पर इनके जन्म के पहले की कथा काफी रोचक है और जिसे बहुत कम लोग ही इसके बारे में जानते हैं| महाभारत में हमने कुरु वंशी राजाओं के बारे में पढ़ा है| जो इस वंश के सबसे पहले और प्रतापी राजा थे, जिन्होंने 21 बार पूरी धरती को जीता उनका नाम था महान चंद्रवंशी और प्रतापी राजा “भरत”, इन्हीं के नाम पर भारत का नाम भारत रखा गया|जब राजा भरत 21 बार इस पूरी धरती को जीत कर आए तो उन्होंने अपना राज दरबार लगाया और राज दरबार में उन्होंने अपने मंत्री से कहा “है मंत्री वर आज की चर्चा का विषय क्या है”? तब मंत्री बोले “ महाराज आज का चर्चा का विषय तो कुछ ऐसा खास नहीं है पर मंत्रिपरिषद और प्रजा दोनों की इच्छा है कि आप जल्द ही अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दें|” इस कथन पर राजा भरत ने कहा आने वाले चंद्र शताब्दी
महोत्सव में हम अपने 9 पुत्रों में से किसी एक को अपना उत्तराधिकारी घोषित करेंगे| शताब्दी महोत्सव के पूर्व राजा भरत एक बड़ी दुविधा में थे कि वह अपने 9 प्रतापी पुत्रों में से किसे हिमालय से लेकर कुमारी अंतरीप तक के इस विशाल साम्राज्य का चक्रवर्ती राजा घोषित करें|अपनी इस दुविधा के समय उन्हें अपने नाम ना महर्षि कण्व का ध्यान आया और शताब्दी उत्सव के पूर्व वह उनसे मिलने के लिए उनके आश्रम चले गए|जब राजा भरत अपने नाना के आश्रम पहुंचे तो उनके नाना ने उनको देखते ही कहा “पुत्र मैं जानता हूं तुम यहां क्यों आए हो| तुम जाकर सो जाओ और तुम्हारे सपने में एक दिव्य पुरुष आएगा वह देव पुरुष तुम्हें जिसे भी अपना उत्तराधिकारी बनाने बोले, तुम उसे शताब्दी उत्सव में अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर देना|” इतना कहते ऋषि कण्व फिर से ध्यान में चले गए|फिर उस रात्रि वैसा ही हुआ जैसा कि ऋषि वर ने बोला था जैसे ही महाराज भरत की निद्रा में एक देव पुरुष उनके सपने में आया और बोला कल आप के दरबार में महर्षि भरद्वाज अपने अलौकिक पुत्र भमनीउ के साथ आएंगे आप उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दें इतना कहकर वह दिव्य पुरुष भी अंतर्ध्यान हो गया|
अजली दिन चन्द्र्वंशियों के प्रसिद्ध शताब्दीपूर्णिमा केउत्सव में महाराज भरत ने राजा के 3 कर्तव्य बताएं उन्होंने बोला की “एक सर्व कुशल चक्रवर्ती राजा के मात्र 3 कर्तव्य होते हैं प्रजा की रक्षा करना, प्रजा का दास बन के रहना और उसी प्रजा को एक सब कुशल युवराज प्रदान करना| पर बड़े अफसोस के साथ में अपने 9 पुत्रों में से किसी में भी यह 3 गुण नहीं पाता हूँ| अतः मैं ऋषि भरद्वाज पुत्र अभिमन्यु को अपना उत्तराधिकारी मानकर उसे अपने साम्राज्य का युवराज घोषित करता हूँ”|इस कथा से हमें यह पता चलता है कि पांडवों में आधा खून क्षत्रियों का और आधा खून ब्राह्मणों का था क्योंकि शादी तो एक क्षत्रिय कन्या से हुई थी अतः उनसे उस पुत्र की जो प्राप्ति हुई उसमें आधा खून क्षत्रिय और आध ब्राह्मण का तो था तो हम यह नहीं कह सकते कि पांडव पूरी तरीके से ब्राह्मण या क्षत्रिय थे|
2.ध्रितराष्ट्र का जन्म एक अंधे के रूप मैं क्यों
हुआ- जब भी हम महाभारत पढ़ते हैं
तो हमारे मन में एक ख्याल आता है कि आखिर क्यों धृतराष्ट्र का जन्म एक अंधे के रूप
में हुआ कई लोग मानते हैं कि उनकी जो माता थी अंबिका उनको ऋषि वेदव्यास के पास भेजा
गया तू उन्होंने अपनी आंखें बंद कर ली जिससे उनका जो पुत्र पैदा हुआ वह नेत्रहीन था
यह भी सत्य है पर इसके पीछे एक पुनर्जन्म का भी सत्य छुपा हुआ है जो कि बहुत कम लोगों
को मिलता है और यह एक लोक कथा में प्रचलित मिलता है एक लोक कथा के अनुसार पुनर्जन्म
में राजा धृतराष्ट्र एक बहुत ही क्रूर राजा थे जिन्होंने एक बार एक ऋषि के आश्रम में
एक हंस के जोड़े तथा उसके बच्चों के साथ देखा तो उस राजा ने आदेश दिया कि इस हंस के
जोड़े कि आज पूर्वा दी जाए और उस हंस के बच्चों को भी मार दिया जाए यह बात जब ऋषिवर
को पता चली तो उन्होंने गृह पूर्व जन्म के धृतराष्ट्र को श्राप दिया कि हे राजन तुमने
जिस निर्दयता के साथ इन हंसों की आंख फोड़ हवाई और उसके बच्चों को मरवाया उसी निर्दयता
के साथ तुम्हारे पुत्र भी मरेंगे और तुम कुछ नहीं कर पाओगे और तुम्हारा तुम्हारा जन्म
और तुम्हारी पत्नी दोनों ही नेत्रहीन रहेंगे|
3.राजा पांडू की मृत्यु के समय क्या इक्षा थी- हम जब महाभारत पढ़ते हैं तो उसमें हमें एक प्रसंग
मिलता है जिसमें यह लिखा हुआ है कि राजा पांडु की मृत्यु के समय इच्छा थी कि उनके पुत्र
उनका मांस खाएं क्योंकि उन्होंने जीवित रहते जितनी भी सिद्धियां और विद्या प्राप्त
की थी वह चाहते थे कि वह उनके पुत्रों में चली जाए इन सब पुत्रों में से मात्र
नकुल और सहदेव ने अपने पिता का मांस ग्रहण किया था और वह भी उनके सिर का मांस जिसके
फलस्वरूप सहदेव को भूत भविष्य और वर्तमान का ज्ञान अपने आप हो जाता था|
4.एकलव्य ही थे पांडव सेनापति दृष्ट्दुमन-महाभारत की एक प्रचलित लोक कथा के अनुसार पांडव
सेना अति दृष्ट्दुमन पूर्व जन्म में एकलव्य थे तथा कुछ इस प्रकार है कि जब एकलव्य द्रोणाचार्य
के मांगने पर अपना अंगूठा दे दिया और इसके पश्चात वे जब दुर्योधन के पास गए और उनको
यह पूरी घटना बताएं तो दुर्योधन ने उनका अपमान करके यह बोला मैंने तो यह सोचा था तुम
गुरुवर की बात नहीं मानोगे और आगे चलकर कभी मेरे और पांडवों के बीच में युद्ध होता
है तो तू अर्जुन का सामना कर सकोगे पर तुमने तो अपना अनूठा ही दे दिया अतः अब तुम मेरे
किसी काम के नहीं हो इस घटना के पश्चात एकलव्य द्रोणाचार्य से बहुत ग्रिहना करने लगे
और इस घृणा से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने श्री विष्णु की तपस्या की और उन से वरदान
मांगा कि मैं अगले जन्म में द्रोणाचार्य की मृत्यु का कारण बने और ऐसा ही हुआ जब पंचाल
नरेश ध्रुपद ने अग्नि से ऐसे पुत्र की प्राप्ति की जो की द्रोणाचार्य की मृत्यु का
कारण बने तो उस अग्नि ने दृश्यों के रूप में एकलव्य को ही उन्हें प्रदान किया था|
5.अर्जुन ने एक बार दुर्योधन की जान बचाई थी- यह बात तब की है जब पांडव और कौरव गुरकुल से
शिक्षा लेके लोटे थे| गुरु द्रोणाचार्य ने दोनों से गुरु दक्षिणा
मैं पंचाल प्रदेश माँगा था| जब पांडव और कौरव पंचाल पे आक्रमण
करने जा रहे थे तब आक्रमण से एक रात पहले दुर्योधन को प्यास लगी तो वो एक जल कुंद के
पास गया वहा जल कुंद गंधर्व जल कुंड था| जिसमे ग्नादार्वों का वास था| जैसे ही दुर्योधन ने जल मैं अपना हाँथ डाला अन्दर से एक गन्धर्व ने उस पर आक्रमण
कर दिया| गंधर्व के प्रहार से दुर्योधन मूर्छित हो गया| तभी वहां अर्जुन आये और उस गंधर्व से दुर्योधन की रक्षा कि| दुर्योधन की जब मूर्छा टूटी तो
उसने गंधर्व को मृत पाया और अर्जुन को
देखा उसने अर्जुन से “ कहा मैं एक क्षत्रिय हूँ और हम क्षत्रिय किसी का ऋण नहीं रखते, अत: बताओ तुम्हे क्या चाहिए ”|
अर्जुन ने कहा मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए जब जरुरत होगी तो मांग लूँगा|

7.पांडवों के विजय के लिए अर्जुन के एक पुत्र
ने अपनी बलि चढ़ाई थी- युद्ध के
18 वें दी पांडवों की जीत तो इसके लिए अर्जुन और नागकन्या उल्पी के पुत्र
इरावन जिसे नागार्जुन
भी बोला जाता है उसने माँ कालि को अपनी बलि दी थी|
8.द्रोपदी पांडवों से अधिक कर्ण से प्रेम करती थी- दोस्तों आपको
शायद पता नहीं होगा कि जो गीता है एक नहीं बहुत सारी है उसी में से एक गीता है जिसका
नाम है युधिस्तिर गीता उस का एक अध्याय है जिसका
नाम है जामुन अध्याय है आइए तो उस अध्याय में क्या लिखा है उसके बारे में जानते हैं
यह बात तब की है जब पांडवों को 14 साल का वनवास और 1 साल का अज्ञातवास मिला था उस दौरान
वह जीवन में थे उसी वन में अगस्त ऋषि तपस्या कर रहे थे और उन्होंने एक अपने लिए वृक्ष
बनाया था जिसमें मात्र जामुन का अच्छा लगा हुआ था द्रौपदी को बहुत भूख लगी थी उसमें
वह वह तोड़ दिया तभी वहां पर श्रीकृष्ण ने एक ब्राह्मण का वेश बदलकर आए और सभी पांडवों
को और द्रौपदी को बुला कर बोला तुमने यह बहुत बड़ा पाप कर दिया है अगर अगस्त ऋषि को
यह मालूम पड़ा तो हो तुम सब को श्राप दे देंगे इससे चिंतित हो गए सब ने पूछा ही रिसीवर
इस समस्या का निवारण क्या है तो ब्राह्मण वेश में श्रीकृष्ण ने बोला तुम लोग को अपने
बारे में एक एक सच बताना होगा और तुम लोग जैसे जैसे अपने सच बताओगे यह फल जाकर वापस
पेड़ पर लग जाएगा सबसे पहले युधिष्ठिर आए युधिष्ठिर ने बोला हमारे साथ जो भी घट रहा
है मैं उस सब का जिम्मेदार केवल द्रोपति को मानता हूं क्योंकि इसके पिता पांचाल नरेश
ध्रुपद में इसके जन्म के समय इसके लिए यह वर मांगा था कि शादी जिसके साथ भी हो या यह
जहां कहीं पर भी रहे इसको और उसके परिवार वालों को अत्यंत दुख सहना पड़े इतना कहने
के बाद वह फल थोड़ा सा जमीन से उठा इसके पश्चात अर्जुन है अर्जुन ने बोला मेरे जीवन
में मेरे प्राणों से भी ज्यादा अगर कुछ मुझे प्यारा है तो वह है मेरी स्वाभिमान और
प्रतिष्ठा भले ही मेरी जान चली जाए पर मैं अपने स्वाभिमान और प्रतिष्ठा को कभी भी नहीं
जाने दूंगा इतना कहने के पश्चात वह फल थोड़ा सा और उठा इसके बाद भीम भीम ने बोला मुझे
खाना खाना युद्ध करना सोना नृत्य देखना गाना सुनना और संभोग करना बहुत पसंद है इसके
बाद यह फल कुछ और हवा में उठ गया इसके पश्चात नकुल और सहदेव नकुल और सहदेव ने बोला
कि हमने अपने पिता का मांस खाया है दोस्तों आप लोगों पर एक और जलेबी पड़ा होगा यह घटना
क्यों हुई और कैसे घटी और नकुल और सहदेव ने अपने पिता का मांस क्यों खाया इतना कहने
के बाद फल जमीन से कुछ और उठा और इसके बाद द्रोपति द्रोपति ने अपने बारे में सब सत्य
बताएं पर वह फल जहां पर था वहीं पर रह गया तब ब्राह्मण वेश में श्रीकृष्ण ने बोला है
पुत्री तुमने अभी भी सत्य नहीं बताया है इसलिए यह फल अभी भी पेड़ में जाकर नहीं लगा
तब द्रौपदी ने बताया मैं पांडवों से ज्यादा को प्रेम करती हूं पर क्योंकि श्री कृष्ण
ने बोला कि तुम उसका बहिष्कार कर देना जो स्वयंवर में आए इसलिए मैंने गण का स्वयंवर
में अपमान किया था मैं अर्जुन को पसंद करती थी अर्जुन सुभद्रा को पसंद करते हैं इतना
कहने के बाद वह फल वापस पेड़ पर लग गया और श्री कृष्ण वहां से चले गए|
तो दोस्तों यह थे महाभारत सन जुड़े कुछ अनसुनि और
अनकही कहानियाँ|
|| जय महकाल ||
|| जय भारत ||
16/06/2019
परम कुमार
कृष्णा पब्लिक
स्कूल
(
रायपुर,छ.ग. )
कक्षा- 10
ऊपर दिया गया चित्र इस
लिंक से लिया गया है-
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0BUddm8DJAU6yug-hkBwLHtIF0fK5aP61-P40-07pUizBRspUSMe6NkUN99GGtFFy83-JCaN77hR4RAR5swLFN0xGT0iYUcDWRnwOxkDctjSIp0riZ41sCo499mfCDIS0-xCYE8Vn5ZM/s1600/sri+krishna1012.jpg
महाभारत के गूढ़ रहस्यों का अद्भूत अनावरण परम ने इस ब्लॉग में किया है। पांडवों की जाति छत्रिय ही जानी जाती है, किन्तु आज पता चला, कि उनमें ब्राह्मण का भी अंश था। समाज को ऐसी रोचक एवं आवश्यक जानकारी देने के लिए परम को बधाई।
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