जय महाकाल
आपका मेरे ब्लॉग
मैं स्वागत है| आज का हमारी चर्चा का विषय उस व्यक्ति के ऊपर है जिसे उसी के देश
ने भुला दिया पर वो आज भी दूसरे देशों की किताबों और लोगों के अन्दर जिन्दा है|

क्या आप मैं से कोई यह जानता है की क्या कारण था की 700 ई. में निकले तुर्की अरबी आक्रमणकारी 1051 ई. मैं भारत पहुंचे इन बीते 351 सालों मैं वास्तव में क्या हुआ? क्या इसका कारण केवल उमय्यिद खलीफ़ा का अंत था की भारत मई कोई ऐसी शक्ति थी जिसने इन लोगों को भारत मैं प्रवेश नहीं दिया|
तो दोस्तों इस महान व्यक्ति का नाम जिसे भारत का सिकंदर भी बोला जाता है,वो है कश्मीर के कार्कोता वंश का राजा ललितादित्य | आप सोचा रहे होंगे ये कौन से राजा हैं जिनका आज तक नाम भी नहीं सुना और इन्होने ऐसा क्या किया की इन्हें भारत का सिकंदर कह के सम्मान दिया जाता है, तो आईये शुरू करें हम अपना आज का ब्लॉग|
कार्कोता वंश की स्थापना
कार्कोता वंश की स्थापना दुर्लभवर्धन ने की थी, जो की उस समय गोंददीय वंश के राजा बालादित्य के सेनापति थे| इनका विवाह बालादित्य की एक लोती पुत्री अनंग्लेखा से हुआ था| बालादित्य का कोई पुत्र नहीं था इसलिए वह अपने अकरी दिनी मैं दुर्लभवर्धन को कश्मीर का रजा घोषित कर दिया|
ललितादित्य का जन्म
ललितादित्य,प्र्तापदिता और दुर्लाभ्लेखा के तीसरे और सबसे
कनिस्थ पुत्र थे| इनके दो बड़े भाईओं का नाम इन्द्रादित्य और वज्र्बहुअदित्य था|(
प्रतापदित्य, दुर्लभवर्धन के परपौत्र थे) ललितादित्य के जन्म की सही जानकारी
इतिहास मैं मौजूद नहीं|
कुछ लोगों के अनुसार इनका जन्म 680ई. मैं हुआ था| इनके पिता
ने इनको शिक्षा हेतु तक्षिला भेजा था| इस बिच इनके दोनों भाई रित्यु को प्राप्त हो जाते हैं| उन्दोना की
मृत्यु की कथा कुछ इस प्रकार है|
एक बार
इन्द्रादित्य और वज्र्बहुअदित्य जंगल मैं विहार करने गए| उस समय उनकी
दृष्टि एक स्त्री पर गयी जो की याग कर रही थी और एक मासूम बच्चे की नर बलि चड़ारही
थी| इन्होने जेक उसका याग भंग कर दिया| इससे क्रोधित होकर उस स्त्री ने उन्हें
पागल होकर अपनी बलि खुद इस याग मैं देने का शाप दे दिया, जिसके फलस्वरुप दोनों ही
भाईओं ने एक दूसरे का वध कर दिया| यह बात जब प्रतापदित्य को पता चली तो उसने उस
स्त्री को मृत्यु दंड दे दिया| अपने पुत्रों की मृत्यु के संताप से सन 700 ई. मैं
प्रतापदित्य का स्वर्गवास हो गया|
राज्यभिसेख
सन 700 ई. मैं ललितादित्य ने जब राज्यभार संभला तो उनके लिए
सबसे बार खतरा था तुर्कियों का आक्रमण| उनको रोकने के लिए इन्होने सबसे पहले अपने
राज्य का विस्तार भारत मैं किया| ललितादित्य अश्वमेघ यज्ञ करवाया और केवल दो
राज्यों ने छोडके सबने इनकी अधीनता स्वीकार कर ली और वो दो राज्य थे द्वारका और
कलिंग|
द्वारका के राजा वीरबाहूसेन को हराने के लिए इन्होने
चित्रसेन जो की मालवा का राजा था उसके साथ 10000 की एक छोटी सेना भेजी जिन्होंने
छापामार युद्ध से वीरबाहूसेन को हरा दिया|
कलिंग के राजा को वहीँ के लोगों विध्र कर के हटा दिया,
ललितादित्य का राज्य उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कलिंग तक औरपूर्व मैं असाम से पश्चिम मैं द्वारका तक था|
तुर्कियों से लडाई
इस तरह कश्मीर के राज्य का विस्तर करने के बाद ललितादित्य
ने तुर्कियों के ऊपर ध्यान दिया| उस समय तुर्कियों ने पंजाब और अफगानिस्तान को
अपना गढ़ बना लिया था और वे चीन की तत्कालीन तंग राज्यसाही से मदद लेते थे| हमें
चीन की क्सिंग-तंग-शु नमक एक ग्रन्थ से यह पता चलता है की तंग राज्यसाही ललितादित्य
को कर भिजवा टी थी| इससे अनुमान लगाया जा सकता है की हो सकता है की उस समय के चीन
के बड़े भूभाग पे ललितादित्य का राज हो|तुर्कियों के आक्रमणों को विफल करते हुए लैतादित्य ने अपने जीवन मैं तुर्क्यिओं से लगबग 14 युद्ध किये और 15 युद्ध इन्होने विजय यात्रा आरंभ की थी, जिसके फल स्वरोप इनका राज्य कास्पिएँ सी तक फेल गया था और मध्यएशिया मैं भी इनका अधिपत स्थापित हो गया था| इनके राज्य के अधीन वर्त्तमान समय का ईरान, इराक, तुर्कमेनिस्तान, अज़ेर्बजियन, कजाखस्तान, सहित मध्य एशिया के कई राज्य आते थे|
कहा जाता है की इनका राज्य इतना बड़ा था की जब च्नाद्रगुप्त मुर्या के राज्य का तिन गुना किया जाये तो लैतादित्य का राज्य बनेगा|
इन उपलब्धियों की वजह से इन्हें भारत का सिकंदर कहा जाता
है|
इसके अलावा इन्होने कई मंदिरों भी निर्माण करवाया था जिसमें
मार्तंड का सूर्य मंदिर सबसे प्रसिद्ध है| इसके पीछे की कहानी कुछ इस प्रकार है की
एक बार ललितादित्य सो रहे थे तब उन्हें एक सपना आया जिसमें वो एक सूर्य मंदिर के बहार खड़े हैं जो की पानी घिरा हुआ है पर उसमें आने के लिया चार रास्तें है जो की सोने की सीढियाँ हैं और वो मंदिर मैं एक सूर्य देव की प्रतिमा है जो की लगभग 1500 हीरों से सजी हुई है और वो मूर्ति भी सोने की है और मंदिरों के दीवारें अन्दर से चाँदी की हैं
एक बार ललितादित्य सो रहे थे तब उन्हें एक सपना आया जिसमें वो एक सूर्य मंदिर के बहार खड़े हैं जो की पानी घिरा हुआ है पर उसमें आने के लिया चार रास्तें है जो की सोने की सीढियाँ हैं और वो मंदिर मैं एक सूर्य देव की प्रतिमा है जो की लगभग 1500 हीरों से सजी हुई है और वो मूर्ति भी सोने की है और मंदिरों के दीवारें अन्दर से चाँदी की हैं
जब ललितादित्य सपने से उठे तो उन्होंने इस पर कम चालू
करवाया और एक भव्य सूर्य मंदिर का अपने सपने जैसा हुबहू निर्माण करवाया| अगर अपने
शहीद कपूर की हैदर देखि होगी तो एक गाने की शूटिंग इसी मंदिर के बहार हुई थी जो की
अब खान्दर की अवस्था मैं है|
कितनी दुःख की बात तो यह है की जिस व्यक्ति भारत की
प्रभुत्व की गाथाये लिखी हमने उसे ही भुला दिया| जिसने विदेशीआक्रमण कारियों को इतना विवश कर दिया की वो भारत के नाम से
कांप उठते थे, उसी व्यक्ति को उसके देश वालों ने भुला दिया| और अब हमें अपने ही
लोगों की कहानियाँ भार्वालों के द्वारा सुन्नी पड़ती है|
हमें ललितादित्य की जानकरी भारत के किसी भी साहित्य की या इतिहास की किताब मैं नहीं मिलती यह बस एक ही किताब मैं मिलती है जो की है राज्तारंगिनी| विदेश के माहन इतिहासकारों जैसे जेमेस मिल और गोतेंज की किताबों मैं हमें इनकी जानकारी मिलती है| चीन के सन 700ई. से 736ई. तक लिखे गए हर ग्रन्थ मैं हमें ललितादित्य का वर्णन मिलता है|
यहाँ तक की मुस्म्लनी इतिहासकारों की किताबों मैं जैसे की
फ़तेह-नामा-सिंध और अल-बुरानी-इ-हिन्द मैं भी हमें ललितादित्य की वीरता के किस्से मिलते हैं|
तो क्यों हमरे देश मैं क्यों हमें विदेशियों जैसे गिसुप्पिए मैज्जीनी , गिसुप्पिए गैरीबाल्डी, ओटो वन बिस्मार्क, किंगडम ऑफ़ तवो स्किल्लिएस के बड़े मैं पद्य जाता है| बाकि देशों मैं जहाँ-जहाँ ललितादित्य के बारे मैं पढाया जाता है वहां उन्हें अलेक्सेंडर से ऊपर बताया जाता| तो हमारे भारत मैं ऐसे क्यों होता है|
तो क्यों हमरे देश मैं क्यों हमें विदेशियों जैसे गिसुप्पिए मैज्जीनी , गिसुप्पिए गैरीबाल्डी, ओटो वन बिस्मार्क, किंगडम ऑफ़ तवो स्किल्लिएस के बड़े मैं पद्य जाता है| बाकि देशों मैं जहाँ-जहाँ ललितादित्य के बारे मैं पढाया जाता है वहां उन्हें अलेक्सेंडर से ऊपर बताया जाता| तो हमारे भारत मैं ऐसे क्यों होता है|
तो दोस्तों आज के लिए इतना ही, जल्दी मिलूँगा आपसे इसी तरह के एक एतिहासिक विषये पर तब तक के लिए मैं आपसे विदा लेता हूँ|
और इस ब्लॉग को जयादा से जयादा शेयर करें ताकि लोगों को
हमारे देश के बारे मैं पता चले|
|| जय भारत ||
|| जय महाकाल ||
13/10/2019
परम
कुमार
कक्षा- 10
कृष्णा पब्लिक स्कूल
भारत का नेपोलियन - https://paramkumar1540.blogspot.com/2018/07/golden-king-of-golden-age-of-hindu.html
ऊपर दी गयी तस्वीर इस लिंक से ली गयी है - http://www.pragyata.com/blogbanner/18fntgxf4krdoxvjjw.jpg
महाराज ललित आदित्य महाराज के विषय में परम ने अद्भुत लेख लिखा है। किन्तु उससे बड़ी बात ये है कि इतिहास के गर्त से ऐसे अनछुए पात्र को निकाल कर जनता के सामने लाना। भारत के इतहास कारो ने ऐसी शख्सियत को भूल कर गुनाह किया है, वह भी तब जब विदेशी इतिहासकारों ने उनको पहचाना ऐसी ही कितनी ही और सखसियतो को भुला दिया गया होगा।आशा है, परम के माध्यम से हमें और भी अनछुए तथ्यों के बारे में जानकारी मिलेगी ।
ReplyDeleteवाकई मैंने भी नहीं सुना था ललितादित्य के बारे।
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