Sunday 31 May 2020


 जयमहाकाल

नमस्कार दोस्तों!!!

 आप सबका मेरे ब्लॉग में स्वागत है| हमारी आज की चर्चा का विषय जैसा कि आप सबको मालूम है कि पूर्व के ब्लॉग में ही मैंने बता दिया था कि आने वाले ब्लोगों में नागा साधुओं के द्वारा भारत के हिंदू मंदिरों की रक्षा के लिये अत्याचारी मुस्लिम बादशाहों के विरुद्ध किये गये युद्ध के ऊपर रहेगा|

तो आइए शुरू करते हैं आज का यह नया ब्लॉग| दोस्तों आज का नया ब्लॉग चालू करने के पूर्व में आपको नागा साधुओं की उत्पत्ति का एक और रहस्य बताना चाहूंगा| जैसा की आप सबको मालूम है कि पूर्व के ब्लॉग में मेंने बताया था कि महा मुनि आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म की रक्षा हेतु नागा साधुओं के अखाड़े का निर्माण किया था जिनका धर्म था हिंदू धर्म और हिंदू धर्म से संबंधित तीर्थ स्थलों की रक्षा करना| पर जब मैं अपने नए ब्लॉग की अनुसंधानिक प्रक्रिया में था तब मुझे नागा साधुओं की उत्पत्ति का एक और रहस्य मालूम हुआ| उस रहस्य को मैं आप सबके साथ बांटना चाहूंगा|

आप सब ने महासती अनुसुइया की कहानी तो सुनी होगी| महासती अनुसुइया ने घोर तपस्या की थी  जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा विष्णु और महेश ने उनसे वरदान मांगने को कहा था| तो वरदान के रूप में उन्होंने यह माँगा कि ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों उनके यहां पुत्र रूप में जन्म ले| तब भगवान ब्रह्मा ने चंद्र रूप में माता अनुसुइया और महामुनि अत्री के यहां जन्म लिया| भगवान विष्णु ने भगवान दत्तात्रेय के रूप में उनके यहां जन्म लिया और महाकाल अर्थात भगवान शिव ने महा मुनि दुर्वासा के रूप में उनके यहां जन्म लिया था|

नागा साधुओं की उत्पत्ति का रहस्य भगवान विष्णु के अवतार दत्तात्रेय से संबंधित भी पाया जाता है| इस कथा के अनुसार पूर्व काल में अधमकर नामक एक दैत्य रूपी राजा था जिसका कहना था कि वह स्वयं भगवान है और लोग उसकी पूजा करें ना की किसी और भगवान की| तब भगवान दत्तात्रेय ने इस राजा से मुक्ति दिलाने के लिए  अपने शरीर एक दिव्य आभा का निर्माण किया| वह दिव्य आभा के व्यक्तित्व का वर्णन कुछ इस प्रकार है| लंबे केश और दाढ़ी मूछ बदन पर एक भी कपड़ा नहीं और पूरे शरीर पर भगवान शिव की विभूति या राख लपेटे गले में 11 मुखी रुद्राक्ष पहने और हाथ में त्रिशूल लिए एक साधु की उत्पत्ति हुई, जिसे लोगों ने नगन साधु बुलाया| यही नगन साधु आगे चलके नागा साधु कहलाए| तो दोस्तों यह थी एक कहानी कि किस प्रकार नागा साधुओं की उत्पत्ति हुई|

https://www.paramkumar.in/

आइए अब हम अपनी आज के ब्लॉग की तरफ बढ़े| दोस्तों आज के ब्लॉग में हम जानेंगे कि किस प्रकार नागा साधुओं ने सोलहवीं सदी के भारत के सबसे ताकतवर और विशाल साम्राज्य के राजा अलाउद्दीन बदरुद्दीन जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर को धूल चटा दी| दोस्तों यह घटना है 1566 से 1567 के बीच की| इस समय लगभग आधा से ज्यादा हिंदुस्तान मुगल सम्राट अकबर की हुकूमत में था| एक हिस्सा भारत का जहां पर उसकी हुकूमत ना थी वह था मेवाड़| इस समय मेवाड़ के महाराणा थे महाराणा उदय सिंह (महाराणा प्रताप के पिता)| अकबर के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा मुगलों को कर के रूप में मेवाड़ को देना पड़ता था| इसका कारण यह था कि गुजरात से दिल्ली आने वाला जो सबसे छोटा मार्ग था वह मेवाड़ की सीमा से होते जाता था और मेवाड़ की सीमा में व्यापारियों की रक्षा हेतु एक बड़ा धन का हिस्सा मुगल व्यापारियों को और अधिकारियों को मेवाड़ को देना पड़ता था| क्योंकि मेवाड़ अभी भी एक स्वतंत्र राज्य था यह बात अकबर को फूटी आंख नहीं भा रही थी| उसने मेवाड़ जीतने का फैसला किया 1566 में अकबर आगरा से हरियाणा की ओर रवाना हुआ जहां पर उसने 1 साल तक इंतजार किया, ताकि उसकी जितनी भी राज्यों से संधि है वह अपनी अपनी सेना उसके पास हरियाणा में भेज दे| हरियाणा में उसने जहां पर अपना डेरा डाला था वहीं पर पास में एक बहुत बड़ा जलकुंड था, जिससे साल में एक बार नागा साधुओं का समूह कुछ यज्ञ अनुष्ठान करने हेतु उस कुंड का पानी ले जाता था| यह घटना है नवंबर 28, 1566 की मुगलों ने दूसरी राज्यों से सेना एकत्रित करके  लगभग एक लाख की सेना जमा कर ली थी| उस दिन नागा साधुओं का एक समूह उस जल कुंड से पानी लेने आया तो कुछ मुगलों ने उनका उपहास उड़ाया और जब उन नागा साधुओं ने उनकी तरफ कोई प्रक्रिया नहीं की तो उनका ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए एक मुगल सिपाही ने अपनी तलवार से नागा साधु के हाथ में लिया हुआ मटका तोड़ इस पर भी नागा साधु ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की उसने दूसरा मटका लिया और उस मटके में जल भर के जाने लगा| यह बात उस मुगल सिपाही को समझ में ना आई और उसने उस नागा साधु के ऊपर वार कर दिया| नागा साधु से यह सहन नहीं हुआ और उसने अपने हाथ के एक ही प्रहार से उस मुगल सिपाही के सर को फोड़ दिया| फिर क्या यह बात अकबर तक भी पहुंच गई की एक अजीबोगरीब वेशभूषा वाले व्यक्ति ने उसके सिपाही का अंत कर दिया| अकबर उन नागा साधुओं के बारे में कुछ ना जानता था| उसने जोश जोश में आकर अपनी एक लाख सेना की  1000 सिपाहियों की टुकड़ी उन साधुओं के पीछे भेज दी |इस  सेना का नेतृत्व उददौला खान नामक एक व्यक्ति कर रहा था| उसने जल्दी ही  एक जगह पर यह पाया कि कुछ लोग एक यज्ञ कर रहे हैं| उसने उस यज्ञ में पानी  फिकवा दिया| फिर क्या था नागा साधुओं के क्रोध की सीमा ना रही| वे केवल 800 से 1000 नागा साधु थे, जिन्होंने उन 1000 मुगल सिपाहियों का सर्वनाश कर दिया| यह खबर अकबर तक पहुंची| कुछ साधुओं ने उसकी सेना का विनाश कर दिया| उसने अब स्वयं युद्ध में जाने की ठानी और अपने साथ 19000 की सेना ले वह उस स्थान पर पहुंचा जहां पर नागा साधु थे| पहली बार नागा साधुओं को देखकर अकबर का दिल भी दहल उठा| उसने अपनी जिंदगी में कभी भी इस प्रकार के मानव नहीं देखे थे| उसने देखा कि यह लोग हाथों में त्रिशूल तलवार और भाले लिए उसकी सेना पर टूट पड़ने के लिए तैयार थे| फिर क्या, वह अपनी सेना का मनोबल यह बोल के तो तोड़ नहीं सकता था कि में इन लोग से युद्ध नहीं कर सकता |वह अंदर से एक तरीके से डर से कांप उठा था फिर भी उसने युद्ध का आदेश दिया| हमें अकबरनामा में यह वर्णित मिलता है  28 नवंबर1566 को मुगलों की सेना पर आग के गोले जैसे छोटे-छोटे पत्थर गिरे थे| अकबर लिखता है कि इस समय वह किसी युद्ध क्षेत्र में नहीं बल्कि अपने आगरा के किले में था| पर इतिहासकारों का मानना है कि 28 नवंबर 1566 को अकबर ना ही दिल्ली में था ना ही आगरा में| उसकी सेना आगरा से मेवाड़ की विजय हेतु हरियाणा की तरफ कूच कर चुकी थी| पर जैसा कि हम सब जानते की मुगलों की यह पुरानी परंपरा है कि वह अपनी हार को छुपा देते हैं और जहां पर उनकी हार हुई हो उस हार को वह लोग अपनी विजय बता देते थे| इसलिए इतिहास में हम लोग को इस घटना का वर्णन नहीं मिलता|

इस युद्ध में अकबर को अपने 18 हजार सिपाहियों की आहुति देनी पड़ी थी और कहा जाता है कि अकबर स्वयं अपने हाथी हवाई से गिर गया था और ले देकर अपने बचे हुए 1000 सिपाहियों के साथ अपने खेमे वापस लौटा| पर इस वक्त उसे एक नागा साधु ने यह श्राप दिया की है दुष्ट मनुष्य तू जिस व्यक्ति के राज्य पर अधिकार करने जा रहा है अगर उस राज्य के राजा या राजकुमार से तेरा युद्ध में कभी भी आमने-सामने का युद्ध हुआ तो तू मृत्यु को प्राप्त हो और याद रख जिस तरीके से तूने हम नागा साधुओं का अंत किया और हमारे साथ के 500 नागा साधु तूने मारे याद रख तेरे बाद केवल तेरी तीन पीढ़ियां ही इतिहास में याद रह पाएंगी|

अकबर के साथ यह पहली बार हुआ था कि 800 साधुओं ने उसकी 19000 की सेना का नाश कर दिया| ऐसा नहीं है कि नागा साधु को तो कोई नुकसान नहीं हुआ 500 वीर नागा साधु भी इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए| हमें इतिहास में यह वर्णित मिलता है की अकबर की कुंडली में ऐसा लिखा था कि जीवन में अगर कभी भी उसका महाराणा प्रताप से आमने सामने का युद्ध हुआ तो वह पराजित हो जाएगा| नागा साधुओं के इस श्राप को मिटाने हेतु उसने नागा साधुओं की बहुत तलाशी की पर उसे नागा साधु कभी ना मिले| हमें मालूम पड़ता है कि यह युद्ध जूना अखाड़ा के नागा साधुओं ने लड़ा था| इतिहास में हमें ऐसा भी लिखा मिलता है कि यह युद्ध इस वजह से नहीं हुआ था कि मुगलों ने नागा साधुओं का यज्ञ विध्वंस किया था| कई जगह हमें यह मालूम होता है कि अकबर ने साधुओं का नरसंहार किया था| इस नरसंहार को रोकने हेतु और अकबर को उसकी सही जगह बताने हेतु नागा साधुओं ने यह युद्ध लड़ा था पर इतिहास में और बड़ी से बड़ी इतिहासों की किताबों में हमें इसी घटना का वर्णन नहीं मिलता है| ऊपर दी गयी जानकारी “ THE LIFE AND WAR OF MYSTIC MONK” से ली गयी है|

मुझे कई बार ऐसा लगता है कि क्या कारण हो सकता है जो मेरे इस महान देश के अपने ही लोगों ने अपनी ही संस्कृति और परम्पराओं को भुला के दुसरे देशों की परम्पराओं का पालन करते हैं और अपने देश के वस्तविक वीरों को भूल के विदेशों से आये आक्रमणकारियों को सम्मान देना उन्हें अधिक महत्वपूर्ण लगता है| आश्चर्य की बात है  कि लोग अकबर को महान बोलते है उस व्यक्ति को जिसने भारत के ही काशी के घाट पर गंगा नदी से हिन्दुओं के पानी लेने के विवाद पर 12000 ब्राह्मणों के मौत का जिम्मेदार है| क्या यह एक घटना ही अकबर के व्यक्तित्व को और उसके इस देश के मूल निवासियों के प्रति विचारों को वास्तविक परिचय करा देती है| ऐसा नहीं है कि सभी मुसलमान राजा हिन्दू धर्म के विरुद्ध रहे| भारत में और भी मुसलमान राजा हुए जैसे टीपू सुल्तान और दाराशिकोह पर इन्हें कोई महान नहीं कहता जबकि इन्होने तो हर धर्म को एक सामान समझा| हांलाकि अकबर ने भी बाद में हर धर्म को अपने राजनितिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये मान्यता दी थी पर उसकी हिन्दू तीर्थ स्थलों को नुकसान पहुँचाने का सिलसिला उसके जीते जी तो नहीं रुका था| 

अंत में मैं इन गुमनाम साधुओं और उनकी वीरता को सादर नमन करता हूँ| 

आपकी मेरे ब्लॉग पर क्या राय इसे मुझे बताएं और इस ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें|

Email-paramkumar1540@gmail.com

31\05\2020

                                                              परम कुमार

                                                        कृष्णा पब्लिक स्कूल

                                                           रायपुर(छ.ग.)

ऊपर दिया गया चित्र इस लिंक से लिया गया है –

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhqmcaptUzHtQbhs8S76m0Tbdl_GV_0FwSyTmHg6ZF_12kMEZowMFFcFWcTm3nZJWicE5vh6ZbjOF2vI-KJD2XMd2SZcRrac2xxLUqfrE6bOJNIf078_MWTwegw5qrGRBLM1hyM7EdXM0E/s640/naga_sadhus_14_jan_dip_TOI_Gautam_Singh.jpg

 



6 comments:

  1. भारत के महान साधु और संतो को मेरा प्रणाम।

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  2. The history of Nagasadhu is largely unknown to persons like me.
    Congratulations to author.Keep on writing

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  3. परम के इस ब्लॉग से पता चलता है कि नागा साधु केवल धार्मिक अनुषठान तक ही नही, बल्कि आपने धर्म एवं संस्कृति की रक्षा के लिए भी अपना बलिदान दिया, जिसका श्रेय लेने में उन्हें कोई रुचि नहीं रही। भारत के महान नागा साधुओं के बारे में रोचक एवं तथ्यात्मक जानकारी देने के लिए परम को साधुवाद।

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  4. Nice story.
    Please follow my son's blog too

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  5. रमाकांत प्रसाद2 June 2020 at 07:31

    परमजी आपको बहुत बहुत धन्यवाद। आपने अपने रिसर्च से नागा साधुयों के बारे में बहुत ही सुन्दर तरीके से वर्णन किया है। उनके सौर्य का कोई तुलना नहीं है। 800vs18000

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  6. बहुत जानकारीपूर्ण ब्लॉग, शानदार

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