छत्रपति शिवाजी
"अगर हमें अपना कल स्वर्णिम बनाना है तो पहले हमें
अपने देश के इतिहास को जानना होगा क्योंकि जो अपने इतिहास की कद्र नहीं करता तब
इतिहास भी उसकी कद्र नहीं करता और इतिहास जिसकी कद्र नहीं करता समय उसको भूल जाता
है|”
जय महाकाल
नमस्कार दोस्तों हमारे आज के चर्चा का विषय आज
भारत के उस वीर के ऊपर है जिसने उस समय भारत में हिन्दू राज्य की स्थापना की जब
उत्तर में मुग़लों का और दक्षिण के उत्तर-पश्चिम में आदिलशाही सुल्तान तथा दक्षिण
के उत्तर-पूर्व में बहमानी सुल्तान था और इस समय अगर भारत में हिन्दू राज्य
स्थापित करना हो तो या तो राजपूतों से या फिर दक्षिण के हिन्दू राजाओं से सहायता
लेनी पड़ती थी| पर इस महावीर योद्धा ने बिना इन लोगों की मदद लिए आपना राज्य
स्थापित किया| दोस्तों मै बात कर रहा हूँ स्वराज संस्थापक और जिसने कहा था “अगर हमें
अपना कल स्वर्णिम बनाना है तो पहले हमें अपने देश के इतिहास को जानना होगा क्योंकि
जो अपने इतिहास की कद्र नहीं करता तब इतिहास भी उसकी कद्र नहीं करता और इतिहास
जिसकी कद्र नहीं करता समय उसको भूल जाता है|” वो योद्धा हैं महान
छत्रपति शिवाजी भोंसले, इनके बारे में चर्चा करने से पहले हम इनके पारिवारिक
इतिहास पे एक नजर डाल लेते हैं|
अगर हम शिवाजी के पूर्वजों की बात करें तो इनका
रिश्ता महान मेवाड़ के सिशोदिया राजघराने से है| अब आप सब सोच रहे होंगे की मै यह क्या
बोल रहा हूँ ! क्योंकि शिवाजी तो मराठे थे और मेवाड़ के सिशोदिया तो राजपूत हैं,
परन्तु दोस्तों इस बात का प्रमाण आप को शिवाजी की किताबों जैसे छत्रपति शिवाजी और
मराठों के इतिहास में मिल जायेगा| तो अब उस घटना को जानते हैं जिससे यह प्रमाणित
होता हो कि छत्रपति शिवाजी का नाता मेवाड़ के सिशोदिया राजघराने से हे वेसे तो इसके
कई प्रमाण हैं पर मै इसके प्रचलित दो प्रमाण दूंगा –
प्रमाण 1- प्रचलित
एतेहासिक किताब वीर विनोद में ऐसा लिखा है कि सन 1205 ई. में मेवाड़ नरेश महाराणा
अजय सिंह ने अपने भाई जयराज सिंह को अपना राजदूत बना कर दक्षिण में भेज दिया था और
इन्हीं के यहाँ की तेरहवीं पीढ़ी में शिवाजी का जन्म हुआ था| ऐसी ही एक वंशावली
अंग्रेज़ इतिहासकार जेम्सटॉड ने दी थी जिसके अनुसार महाराणा अजय सिंह के ही यहाँ 19वीं
पीढ़ी में शिवाजी का होना बताया गया है|
प्रमाण 2 – 1303 ई. में
अल्लाउदीन खिलजी के आक्रमण के समय रावल रतन सिंह ने अपने छोटे भाई सज्जन सिंह (सुजान
सिंह) को दक्षिण की ओर भेज दिया था और इनकी पांचवी पीढ़ी में उग्रसेन का जन्म हुआ था
जिनके दो बेटे थे कर्ण सिंह और शुभकृष्ण| कर्ण सिंह के पुत्र भीम सिंह ने बहमानी
सल्तनत में उच्च पद मिला और “राजा घोरपड़े बहादुर” की उपाधि भी मिली और एसे ही
शुभकृष्ण के परिवार वालों को भोंसले की उपाधि मिली| इसके उपरांत शुभकृष्ण की चौथी
पीड़ी में शिवाजी का जन्म हुआ|
इन प्रमाणों से मै यह सिद्ध नहीं करना चाहता कि
शिवाजी एक राजपूत थे बल्कि केवल आप को
उनके वास्तविक वंश का एक परिचय दिया है| क्योंकि शिवाजी ने और भारत के कई योधाओं
ने भी कहा है कि व्यक्ति अपने कर्म से अमर होता है न की अपने वंश से|
तो चलिए जानते हैं भारत के इस वीर के बारे में :-
शिवाजी के जन्म को के बारे मे कुछ मतभेद हैं पर मै
आप को उन में से दो तिथियाँ बताता हूँ| पहले मत के अनुसार शिवाजी का जन्म माता और
राजा शहाजी भोसले के यहाँ बैशाख शुक्ल की द्वितीया को शक सवंत 1549 तदनुसार 6
अप्रैल 1627 को शिवनेर के किले में हुआ था| दुसरे मत के अनुसार यह तिथि फाल्गुन 3 शक सवंत 1551 अर्थात शुक्रवार
19 फरवरी 1630 ई. की है| दोनों ही तिथिओं में 3 साल का अंतर है पर शवाजी का जन्म
किसी भी तिथि को हुआ हो उनके शौर्य को कम नहीं कर सकता| उनकी मता जीजा बाई महाराष्ट्र
की स्थानीय देवी शिवाई के नाम पर अपने पुत्र का नाम शिवाजी रखा था| शिवाजी को बचपन से
ही पिता से अधिक माता का प्यार मिला| पिता हमेंशा ही युद्ध और राज काज के कार्यों में
व्यस्त रहते थे| शिवाजी के अलावा जिजाबाई के पांच और पुत्र भी थे जिसमे से चार की
पैदा होते समय मृत्यु हो गयी थी और शिवाजी के बड़े भाई संभाजी का ज्यादा समय पिता
के ही पास बितता था| इसलिए माता का स्नेह शिवाजी को अधिक मिला| शिवाजी अपनी माता के साथ
पुणे में ही रहते थे, और उन्ही से धर्मं, साहित्य, गीता, रामायण, वेद, उपनिषद, आदि
का ज्ञान प्राप्त किया| इनके दुसरे गुरु थे दादाजी कोण्डदेव जो की एक
मराठी ब्राह्मण थे| इनके बहुत से उपनाम भी हैं जेसे गोचिवाड़े, पारनेकर, मलठरणकर
आदि थे| यह शहाजी जी के पुणे की जागीर की देखभाल करते थे और इन्होने ही शिवाजी को
अस्त्र-शास्त्र और दूसरी युद्ध विद्याएँ सिखाई| बचपन से ही शिवाजी ने विदेशियों का
अत्याचार देखा था तथा उनके मन में हमेशा से ही स्वराज*
की भावना थी|
इस बात को लेकर उनके पिता और उनमें वैचारिक
मतभेद भी था पर उनके पिता ने भी सब जानते हुए उनके स्वराज निर्माण के लिए 10
लाख स्वर्ण मुद्राएँ, भगवा झंडा और उनके राज काज में मदद हेतु श्यामराव नीलकंठ (पेशवा),
बालकृष्ण पन्त (मजुरदार), बालाजी हरिजी (सभासद), रघुनाथ बल्लाल (कोरडे), सोनो पन्त
(दबीर), रघुनाथ अत्रे (चिटनिस) आदि को अलग-अलग समय पर उनकी सहयता हेतु भेजा था|
इसके बाद इन्होने अपनी सेना का निर्माण किया उस समय इनकी सेना में मालवी नामक
ही लोग थे| इन्होने अपने जीवन कल के पहले तीन किलों पर अधिकार बिना युद्ध लड़े या
यह कहें कि रिश्वत से हासिल किया था| वो तीन कीले हैं तोरण, चाकन और कोंडन के
जो उनकी कूटनीतिक सूझबूझ को बताती है| इसके पश्चात इन्होने आबाजी सोंदेव की मदद से
मुल्ला अहमद से ठाणे, कल्याण और भिवंडी के किले भी जीत लिए| इस घटना से पुरे आदिल शाही
और बीजापुर सल्तनत में हड़कंप मंच गया| 1648 में शिवाजी को रोकने के लिए उनके पिता
को कैद कर लिया गया| इस घटना के सात साल बाद तक शिवाजी ने आदिल शाही सल्तनत पर
सीधा हमला नही किया| इसके पश्चात् इस समय इन्होने अपनी विशाल सेना का निर्माण किया
जिसमे अश्वरोही दल के सेनापति थे नेताजी पालकर और पैदल सेना के सेनापति थे यशजी कंक|
1657 तक शिवाजी ने 40 किले जीत लिए थे| 1657 बीजापुर की बड़ी बेगम ने शिवाजी को रोकने के
लिए अफसल खान को 10000 की सेना के साथ भेजा| अफसल खान ने शिवाजी को उकसाने के लिए
कई मंदिर तोड़े और कई लोगों के प्राण लिए पर शिवाजी छापामार युद्ध ही करते रहे| अंत
में शिवाजी ने अफसल खान को प्रतापगड के किले में मिलने के लिए बुलाया| अफसल खान 7
फीट 6 इंच लम्बा था| उसने सोचा था की वो शिवाजी को अपनी बाँहों में दबा के मार
देगा पर शिवाजी ने अपने बाघनका से उसका पेट चिर डाला (बाघनका
एक विशेष तरह का कड़ा होता है जिसे हाथ मे पहना जाता है) | इसके पश्चात्
1659 में आदिल शाह ने रुस्तम जमन को शिवाजी से लड़ने भेजा और उसके और शिवाजी के बीच
28 दिसंबर को युद्ध हुआ जिसमें शिवाजी ने अपने युद्धकौशल से ही रुस्तम जमन को हरा
दिया| 1660 में सीधी जौहर को आदिलशाह ने भेजा इस समय शिवाजी पन्हाला के किले में
थे| सीधी जौहर ने पूरा किला चारों करफ से घेर लिया था| शिवाजी ने उसे मिलने के लिए
बुलाया और उसी समय आदिलशाह को सन्देश भिजवा दिया की सीधी जौहर उसके साथ छल कर रहा है| यह सुनकर आदिलशाह ने
सीधी जौहर पर ही आक्रमण कर दिया इस मौके का फायदा उठा के शिवाजी अपने 5000 सैनिकों
के साथ वहां से निकल गए पर जब यह बात आदिलशाह को पता चली तो उसने शिवाजी पर आक्रमण
करने का प्रयास किया| तब बाजीप्रभु देशपांडे ने अपने 700 सैनिकों के साथ शिवाजी
की रक्षा की और अपने प्राणों की आहुति दे दी| इस घटना के बाद बीजापुर की बड़ी बेगम
ने औरंगजेब से मदद मांगी| तब उसने अपने मामा शयेषता खान के नेतृत्व में
150000 की सेना पुणे भेजी| शयेषता खान ने सेना के बल पर पुणे जीत लिया और शिवाजी के
निवास लाल महल पर अधिकार कर लिया| उसी रात शिवाजी ने अपने 400 सैनिकों के साथ पुणे
में बरातिओं के रूप में प्रवेश किया और शयेषता खान को वहां से भागने पर विवश कर दिया
पर भागते समय शयेषता खान की तीन उंगलियाँ कट गयी मुग़ल सेनापति की जान तो बच गयी पर
इज्जत चली गयी| इस घटना के बाद शिवाजी ने औरंगजेब से बदला लेने के लिए 1664 में
सूरत जो कि उस समय का एक बहुत बड़ा व्यावसायिक केंद्र था
उसे लूट लिया और बर्बाद कर दिया| इस घटना के बाद
मुग़लों और शिवाजी के बीच तनाव बढ़ने लगा| सूरत की घटना के बाद शिवाजी को निंयत्रित करने
के लिए औरंगजेब ने 60 वर्षीय राजपूत सरदार राजा जयसिंह को भेजा | राजा जयसिंह अपने
साथ 3 लाख की सेना लेकर गए थे, और बिना किसी युद्ध के उन्होंने शिवाजी को समझाया कि
वो इस समय औरंगजेब से संधि कर लें और बाद में युद्ध करते रहें| शिवाजी इस पर राजी
हुए और मुग़लों को हर्जाने के रूप में 23 किले और 400000 नगद राशी दी| औरंगजेब से राजा
जय सिंह ने वचन लिया कि वो शिवाजी को उच्च पद देगा अपने दरबार से उन्हें जाने देगा| शिवाजी जिस दिन आगरा पहुंचे उस दिन औरंगजेब का जन्मदिवस था और हर कोई उसे कुछ न कुछ उपहार दे रहा था इसी बीच राजा जय सिंह के पुत्र राम सिंह ने शिवाजी का परिचय औरंगजेब से कराया और तब कुंवर राम सिंह के कहने पर शिवाजी ने अपने हीरे का हार औरंगजेब को भेंट किया| अब बारी औरंगजेब की थी की वो सब को कुछ न कुछ उपहार दे कर सम्मान से विदा करे| इस मौके पे उसने शिवाजी का अपमान करने के लिए उन्हें अपने एक मंत्री के पीछे खड़ा करवा दिया जिसे उन्होंने सूरत में हराया था| यह अपमान शिवाजी सहन न कर सके और दीवाने-खास में ही औरन्जेब को जान से मारने की धमकी दी इस पर औरंगजेब ने उन्हें जान से मारने का आदेश दे दिया| तभी वहां राम सिंह ने कहा “मेरे पिता राजा जय सिंह ने तुमसे इस वचन पर शिवाजी को यह भेजा था की तुम उनका सम्मान करोगे और उन्हें नियंत्रित करने के लिए उनके बराबर की पद्वी दी जाएगी पर अब उन्हें मारने का प्रयास कर रहे हो, अगर ऐसा हुआ तो युद्ध हो जायेगा और दिल्ली की दीवारें हिल जाएँगी|” इस पर औरंगजेब ने कहा “अगर तुम मुझे अपने हस्ताक्षर कर के दो की तुम्हारे पिता के आने तक शिवाजी आगरा मे ही रहेंगे और वो नहीं भागेंगे तो मैं उन्हें माफ कर दूंगा| राम सिंह ने यह शर्त मंजूर कर ली| पर औरंगजेब ने राजा जय सिंह, राम सिंह और शिवाजी तीनो के साथ छल किया और अंत में शिवाजी और उनके पुत्र
संभाजी को अगरा के ही किले में नजर बंद कर लिया| पर शिवाजी तो एक तूफान थे और
तूफान को कौन कैद कर सका है| शिवाजी ने युक्ति लगायी और बीमार होने का नाटक किया
इस नाटक में राजा जय सिंह के पुत्र कुंवर राम सिंघ ने उनका पूरा साथ दिया| वो जल्द
से जल्द ठीक हो जाये इसके लिए वो रोज आगरा से दान के रूप में मिठाई और कपडे
भिजवाते थे फिर एक योजना बनाकर अपने साथ अपने बेटे को लेकर संदूक मे छिपकर औरंगजेब
की कैद से फरार हो गये, उस दिन कुंवर राम सिंह ने अपने सिपहिओं को संदूकों की
तलाशी का जिम्मा दिया था ताकि शिवाजी आगरा से जल्द से जल्द निकल जायें| इसके बाद मथुरा, काशी, गया, पूरी, गोलकोंडा, बीजापुर होते
हुये रायगड पहुंचे| मुग़लों के लिए यह घटना बहुत शर्मसार करने वाली थी| 1670 ई. में
ही इस घटना के कुछ समय बाद ही केवल 4 महीने में शिवाजी ने अपना खोया हुआ समस्त
राज्य प्राप्त कर लिया और 1672 ई. में आदिल शाह की मृत्यु हो गयी| जिससे आदिल शाही सल्तनत
ख़तम हो गयी और इसके बहुत बड़े हिस्से पर शिवाजी का राज्य हो गया| इसके अलावा 1671 ई.
से 1674 ई. तक औरंगजेब ने शिवाजी हराने का बहुत प्रयास किया और इसके लिए अपने
बड़े-बड़े मंत्री जैसे की दौड खान और मौहबत खान को उनसे युद्ध करने के लिए भेजा पर
वो कभी भी कामयाब नहीं हो सका| इसके पश्चात 6 जून 1674 को रायगड के किले में
हिन्दू रिती रिरवाजों के साथ एक बार पुन: शिवाजी का राज्य अभिषेक हुआ, और इनके मित्र गगाभट
की प्राथना पे इन्होने छत्रपति कि उपाधि ग्रहन की| शिवाजी ने अपना ज्यादा जीवन
धर्म की और निर्दोषों की रक्षा में ही लगाया और कभी भी धर्म को ले कर मतभेद नहीं
किया वो हर धर्म का सम्मान करते थे| इन्होने एक बार पुनः जल सेना का निर्माण किया
और अंग्रेजों का और पुर्तगाली सेना से कई गावों की रक्षा भी की| पर मार्च 1680 में
50-52 साल की छोटी सी आयु में इनका स्वर्ग वास हो गया पर इनकी स्वराज की मशाल जलती
रही और इनका यह स्वराज कर्नाटक में कटक से ले के गंधार में अत्तोक तक फेल गया और
औरंगजेब ने भी 25 सालों तक मराठों से युद्ध करते करते अपने प्राण दे दिए|
*शिवाजी को समर्पित इस लेख को समाप्त करने के
पूर्व मैं यह बताना जरुरी समझता हूँ कि शिवाजी के लिए स्वराज का क्या अर्थ था|
शिवाजी का स्वराज से तात्पर्य था भारत में भारत के मूलवासियों का ही राज्य रहे और
विदेशियों का कदापि न रहे| कुछ लोग शिवाजी के स्वराज का गलत मतलब भी निकालते हैं
इसलिय हम सब देश वासियों का यह कर्तव्य है की हम शिवाजी के स्वराज का वास्तविक
अर्थ जाने|
इस ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और कमेंट करें ताकि लोगों को भारत के
वीरों के बारे में पता चले| आप मुझे ई मेल paramkumar1540@gmail.com या मेरे व्हाट्सप्प
नंबर 7999846814 पर मैसेज या कॉल कर सकते हैं |
तो दोस्तों
यह थी गाथा मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले महान योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज की|
01\05\2020
परम कुमार
कृष्णा पब्लिक स्कूल
रायपुर(छ॰ग॰)
ऊपर दी समस्त जानकारी इन दो किताबों से ली गयी है-
1- छत्रपति शिवाजी (डॉ॰ भवानी
सिंह राणा)
2- राजपूतों कि गौरवगाथा (राजेंद्र
सिंह राठौड़)
छत्रपति शिवाजी ने बहुत कम आयु में दमनकारी मुगल सल्तनत से लोहा लिया और मराठा साम्राज्य का विस्तार किया, वह भी कम सेना के साथ। ऐसे वीर योद्धा को नमन। परम को शिवाजी से सरल भाषा में अवगत करवाने के लिए बधाई।
ReplyDeleteशिवाजी ने अल्पायु में ही मुगल सम्राज्य से लोहा ले कर मराठा साम्राज्य का विस्तार किया। ऐसे वीर योद्धा को नमन। सरल भाषा में वीर शिवाजी से अवगत करवाने के लिए परम को अनेकोनेक बधाई।
ReplyDeleteपरम जी आप अपने लेखन कार्य को ऐसे ही निखारते रखे। शिवाजी महाराज जो मराठा ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत वर्ष में एक महान योद्धा के रूप विख्यात हैं इनके बारे में रोचक जानकारी देने के लिए बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteशिवाजी जैसे महान वीर पुरुष के चरित्र और उनके अन्य शाहसिक घटनाओ का जीवंत वर्णन अत्यंत सरल शब्दों में किया गया है जो ह्दय को छू लेने वाला है।
ReplyDeleteSHIVAJI WAS AMONG THE GREATEST WARRIORS IN THE HISTORY OF OUR COUNTRY. THE PRESENT BLOG HILIGHTES THE SALIENT FEATURES OF HIS PERSONALITY NOT KNOWN TO THE PRESENT GENRATION. IT IS A COMMENDABLE BLOG.
ReplyDelete