Saturday 9 May 2020


जय महाकाल
नमस्कार दोस्तों

आप सब का मेरे ब्लॉग में स्वागत है| आज हमारे चर्चा का विषय भारत के उस वीर योद्धा के ऊपर है जिसने अपने साथ साथ भारत और मराठा साम्राज्य का नाम विश्व में अमर कर दिया और जिसे महान इतिहासकार जेम्स मिल ने अपनी किताब में भारत का सर्वोच्च अधिपति कहा है| जिसने पानीपत की तीसरी लड़ाई के बाद लोगों को यह बता दिया था कि मराठा साम्राज्य में अभी भी इतनी शक्ति है की वो किसी से भी लोहा ले सकते हैं| इस वीर ने एक बार फिर से कटक से लेकर अत्तोक तक मराठा साम्राज्य का झंडा लहरा दिया था| दोस्तों में बात कर रहा हूँ सिंधिया राजवंश के गौरव महादजी सिंधिया की| आज के इस ब्लॉग में आप को महादजी के बारे में तो बताऊंगा ही और यह भी बताऊंगा कि सिंधिया राजवंश के ऊपर झाँसी की रानी के साथ जो धोखा करने का जो आरोप है वो बे-बुनियाद है|  आइये तो जाने महादजी सिंधिया के बारे में|

महादजी सिंधिया का जन्म सन 1730 में ग्वालियर में हुआ था| इनके पिता का नाम राणोजी सिंधिया था और माता का चीमा बाई| इसके अलावा महादजी सिंधिया के चार भाई भी थे| दुत्ताजी, जनकोजी, जयापाजी,और तुकोजी| महादजी सिंधिया के बारे में बोला जाता है कि इन्होने अपना सबसे पहला युद्ध तब लड़ा था जब वो दस साल के थे| महादजी सिंधिया ने पनीपत की तीसरी लड़ाई में भी अपना उपयोगी योगदान दिया था| अगर आप सब पानीपत के इस युद्ध के बारे में और जानकारी चाहते हैं तो हमारी वेबसाइट पर जा सकते हैं| पानीपत के युद्ध में जिन्दा बचे लोगों की सूचि में जो महत्वपूर्ण दो नाम आते हैं वे हैं महादजी सिंधिया और नाना फड़नवीस| इन दोनों के ही जीवित रहने के दो कारण है| पहले हम जानते हैं की नाना फड़नवीस जीवित कैसे बचे|

नाना फड़नवीस अफगानों की विशाल सेना को देखकर भयभीत हो गया था और युद्ध शुरू होने के पहले ही भाग गया था| पर ऐसा नहीं है कि यह व्यक्ति वीर नहीं था हम इसके वीरता के बारे आगे बात करेंगे| तो अब हम बात करते है की महादजी इस युद्ध में कैसे बचे| महादजी इस युद्ध से भागे नहीं थे बल्कि वीरता के साथ युद्ध किया और अहमद शाह के मंत्री शाह अब्दुला को मार दिया था| जेम्स मिल की किताब के अनुसार महादजी इस युद्ध से बहुत ही लहू लुहान अवस्था में थोड़ी दूर जाकर बेहोश हो गए थे| तब साहिर खान नामक एक व्यक्ति ने उनका उचित उपचार करवाया था| यहाँ महादजी तो ठीक हो गए पर पुणे में उनसे उनकी पूरी जायदाद छीन ली गयी| यह घटना कुछ इस प्रकार हुई| सन 1764 ई. में ही जब मराठों को यह सूचना मिली की मरने वालों में महादजी भी जिन्दा हैं और वो वापस नहीं आये तो सब को लगा कि वो युद्ध के पहले ही भाग गए थे| इस गलत फहमीं में आकर तत्कालीन पेशवा बालाजी बाजीराव ने उनसे उनका ओहदा छीन लिया और सब जगह यह घोषणा करवा दी कि महादजी एक दगाबाज है और वो इस सिंधिया वंश के नहीं हैं जिसके 5 वीरों ने भारत की रक्षा के लिए अपने प्राण दे दिए थे| यह खबर महादजी तक भी पहुच चुकी थी और उन्होंने कसम खायी की जब तक वो पेशवा दरबार जाने के लिए सशक्त नहीं हो जाते तब तक वो न तो ग्वालियर जायेंगे नहीं पुणे| अब यहाँ से शुरू होता है महादजी के जीवन का दूसरा अध्याय|

महादजी को अपनी सेना बनाने में 4 साल लग गए थे| इन चार सालों में उन्होंने चंदा मांग मांग कर और साहिर खान की मदद से अपनी सेना दिल्ली के पास के एक छोटे से गाँव में इकट्ठा की थी पुरे भारत वर्ष से छुपकर| पर इन बीते चार सालों में सिंधिया जायदाद को हड़पने की बहुत कोशिशें हुई पर कोई इन में कामियाब नहीं हुआ| उन कोशिशों में से एक का जिक्र मैं आप सब से करता हूँ| पेशवा दरबार में एक बड़ा ही लालची व्यक्ति था जिसका नाम था जन्गेस्वर राव| उसने उस ज़माने में अपने बेटे की शल्य चिकित्त्सा  (प्लास्टिक सर्जरी) करवाई थी जिससे वो दिखने में महादजी के बारे भाई जनकोजी जैसा दिखने लगा क्योंकि उसकी कद काठी भी वैसी ही थी| इसलिए किसी को शक भी नहीं हुआ परन्तु पेशवा बालाजी बाजीराव जान गए की यह जनकोजी नहीं हैं क्योंकि अगर यह जनकोजी होते तो यह सबसे पहले जय भवानी बोलते जो कि वो हमेशा पेशवा दरबार में आकर करते थे और जन्गेस्वर राव की नियुक्ति पेशवा दरबार में पानीपत के युद्ध के बाद हुई थी इसलिए वो इस बात को नहीं जानता था| जन्गेस्वर राव के इस कृत्य के लिए उसके पुत्र और उसे 15 वर्षों की कैद की सजा दे दी| उधर महादजी ने भी अपनी सेना बना ली थी और फिर 1768 ई में अप्रैल में वो पहले ग्वालियर के लिए रवाना हुए और अप्रैल अंत तक ग्वालियर पहुंचे और सबसे पहले अपनी माँ से मिले| इसके पश्चात् उन्होंने पुणे अपना सन्देश भिजवाया| परन्तु बालाजी बाजीराव का निधन हो चूका था उनका अबोध बालक सवाई माधवराव अपनी माँ के संरक्षण मे नए पेशवा बने थे| पर जब यह खबर मिली की महादजी अपनी सेना के साथ पुणे आ रहे हैं तो सब को लगा की वो आक्रमण करने आ रहे हैं परन्तु असलियत यह थी की वो पेशवा के तरफ अपना वफ़ादारी का तोहफा देने आ रहे थे| फिर जब यह बात पेशवा मंत्री मंडल को पता चली तो वो महादजी से मिलने को तैयार हुए| महादजी ने अपनी वफादारी का तोहफा पेशवा के सामने पेश किया और मराठा साम्राज्य को पुनः स्थापित करने का बीड़ा उठाया| जब यह बात भारत के अन्य राजाओं को पता चली तो उसमे से अधिकतर तो मराठा साम्रज्य का पुनः हिस्सा बन गए परन्तु अत्तोक से लेके कटक तक बिच में दो दिक्कतें थी पहले राजपुताना दूसरा दिल्ली| पानीपत की तीसरी लडाई के बाद सन 1765 ई. में रोहिलाखंड के सरदार नाजीबुद्दौल्ह ने दिल्ली पे अधिकार कर लिया था और बादशाह शाहआलम को अपना बंदी बना लिया था| सन 1770 में उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र ज़ब्त खान का राज्य था| महादजी ने मुग़लों को वापस स्थापित करने का बीड़ा उठाया और दिल्ली के युद्ध में 29 अक्टूबर 1770 ई को दिल्ली पुनः हासिल कर लिया और ज़ब्त खान खान युद्ध से भाग निकला| इस बहादुरी से खुश होकर बादशाह शाहआलम ने उन्हे वकील-उल-मुल्क का और आमिर-उल-उमार का ख़िताब भी दिया| अब रही बात राजपूतों की तो मराठों ने राजपूतों की शर्तों पे उनसे संधि कर ली| सब कुछ ठीक था फिर सन 1773 ई. में सवाई माधवराव का निधन हो गया| इस के पश्चात उनके छोटे भाई नारायणराव द्वितीय को नया पेशवा बना दिया गया| परन्तु 26 जुलाई को नारायण राव के चाचा रघुनाथरव ने उसका वध कर दिया ताकि वो पेशवा बन सके| पर हुआ ठीक इसका उल्टा हुआ मराठा साम्राज्य ने रघुनाथ राव का तिरस्कार कर दिया| इस समय केवल अंग्रेज ही थे जो उसकी सहयता कर सकते थे| उसने अंग्रेजों को कहा की महादजी उनसे युद्ध करने आ रहा है| क्योंकि बीते सालों में अंग्रेजों ने भारत के बहुत से राज्य जीत लिए थे और इस तरह से चालू हुआ पहला अंगोल-मराठा युद्ध जो 1774 से 1782 ई तक चला जिसमें अंत में विजय महादजी की हुई| युद्ध के बीच में वारेन हेस्टिंग ने ग्वालियर को भी 2 दिन के लिए अधिकार कर लिया था पर अंत में महादजी ने फिर ग्वालियर जीत लिया| युद्ध के अंत में अंग्रेजों को हर्जाने के रूप में 49000 सोने के सिक्के देने पड़े और रघुनाथ राव ने ग्लानी के चलते अताम्ह्त्या कर ली| परन्तु दोस्तों ऐसे वीर की मृत्यु अत्यंत ही दुख दायक थी| दिल्ली, अंग्रेजों, ग्वालियर अदि विजय से कुछ मराठा सरदारों को लगने लगा की कहीं अब महादजी में पेशवा बनने की चाहत तो नहीं है| बहुत से लोगों ने इस का विरोध भी किया| पर यह बात पता नहीं कैसे अंग्रेजों तक भी पहुँच गयी और उन्होंने महादजी से बदला लेने के लिए  अष्ठ प्रधान (पेशवा की रक्षा करने के लिए आठ मंत्रिओं का एक दल बनाया गया था) जिसके प्रधान नाना फड़नवीस थे और यह लोग पेशवा की रक्षा के हित में कोई भी निर्णय ले सकते थे| इसकी रचना और गठन नाना फड़नवीस ने ही किया था, क्योंकि पहले ही मराठा साम्राज्य अपने 2 पेशवा खो चूका था, को यह गलत सूचना भिजवा दी की महादजी पुणे आ रहे हैं और रात को पेशवा का अंत कर देंगे| इस सूचना को देखते हुए इसकी जाँच भी करायी गई पर कुछ न मिला परन्तु उसी रात कुछ लोगों ने  महादजी को विष दे दिया| और इसी के साथ मराठा साम्राज्य का अंत शुरू हो गया और पुणे पर अंग्रेजों का अधिकार भी हो गया| कुछ इतिहासकारों में इस घटना को लेकर अभी भी मतभेद है पर एक चीज़ जो सब मानते हैं वो यह की एक महान योद्धा की इस प्रकार जहर देकर हत्या कर दी गयी थी|


Jayajirao Scindia Whoisदोस्तों तो यह थी दास्ताँ भारत के महान योद्धा महादजी सिंधिया की| अब हम सिंधिया घराने पर लगाये गए आरोप पर चर्चा कर लेते हैं| सिंधिया राजवंश पर आरोप है की इन्होने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों का साथ दिया था और झाँसी की रानी को धोखा दिया था| परन्तु यह आरोप बेबुनियाद है| अंग्रेज इतिहासकार जेम्स मिल और जेम्स टॉड ने यह बताया है कि तत्कालीन सिंधिया राजा जयजिराव सिंधिया ने झाँसी की रानी की मदद की थी| इन दोनों के बीच एक करारनामा हुआ था जिसके मुताबिक ग्वालियर झाँसी की रानी को अंग्रेजों से लड़ने के लिए सैनिकों के अलावा हर चीज़ देकर सहायता करेगा और एसा हुआ भी| जयजिराव सिंधिया ने झांसी की रानी के लिए युद्ध के खेमों का भी निर्माण करवाया था और युद्ध के आखिर तक रसद और पानी झांसी की सेना को भिजवाते रहे थे| जिसे यह साबित होता है की सिंधिया राजघराने पर लगा आरोप गलत है|                                                                           

तो दोस्तों यह था एक अनसुना और अनकहा इतिहास भारत के एक वीर योद्धा का और उसके राजवंश का| आप इस ब्लॉग को जादा से जादा शेयरकरें ताकि लोग भारत के इस वीर योद्धा और उसके राजवंश पर लगे बेबुनियाद आरोपों को जान सकें|
इसके अलावा अगर आप हमें कोई सुझाव देना चाहतें तो हमें कमेंट करें या आप ईमेल करें- paramkumar1540@gmail.com पर या फिर आप हमें हमारे व्हात्सप्प नंबर पे अपना सुझाव भेजें 7999846814

09\05\2020
                                          परम कुमार
                                          कृष्णा पब्लिक स्कूल
                                           रायपुर(छ.ग.)

 ऊपर दीया गया प्रथम  चित्र महादजी सिंधियाका हैऔर दूसरा चित्र जयाजीराव सिंधिया का|


ऊपर दी गई समस्त जानकारी "THE GREAT MARATHAS"  पुस्तक से ली गई है|

ऊपर दी गयीं तस्वीरें इस लिंक से ली गयीं हैं-

1- https://www.google.com/url?sa=i&url=https%3A%2F%2Fwww.xwhos.com%2Fperson%2Fjayajirao_scindia-whois.html&psig=AOvVaw23ZWct7SpOfIoLoTxcGxte&ust=1589102397812000&source=images&cd=vfe&ved=0CAIQjRxqFwoTCMjwpvO5pukCFQAAAAAdAAAAABAH
2-http://images.mid-day.com/images/2016/feb/A-portrait-of-Mahadji-Scind.jpg

7 comments:

  1. WONDERFULL DISCRIPTION OF HISTORICAL EVENTS WHICH ARE NOT USALLY KNOWN TO THE PEPOLE. KEEP ON WRITEING.
    DR.H.KUMAR

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    Replies
    1. 👌👌👌👌👌 Fabulous

      Delete
  2. महादजी सिंधिया के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकरी परम ने इस ब्लॉग के माध्यम से दी है। इसके लिए गहन शोध किया गया होगा, जिसके लिए परम को बधाई।








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  3. रमाकांत प्रसाद11 May 2020 at 19:28

    महादजी सिंधियाजी के बारे में बहुत सुन्दर वर्णन के लिए परमजी को बधाई।

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  4. सिंधिया वंश के वीर पुरूष महादेव सिंधिया को इतिहास ने पूर्णरूप से विस्मृत कर दिया है जो इतिहास की बड़ी छवि है। इसकी पूर्ति में तुम्हारा योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसलिए इस नाम में तुम्हारे नाम का विशेषण उचित रहेगा-परम वीर महादजी सिंधिया।
    जय महाकाल

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