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Sunday 19 April 2020


जय महाकाल
नमस्कार दोस्तों !!
आज का हमारा ब्लॉग भारत के उस वीर के ऊपर है जिसने भारत का नाम इतिहास मे सदा के लिए अमर कर दिया पर आज उसी के देशवासियों ने उसे भुला दिया है| में बात कर रहा हूँ महान कुषाण वंश के प्रमुख सम्राट कनिष्क प्रथम की, जिन्हें कनिष्क कदासिस भी कहते हैं| यह वही कनिष्क हैं जिनके नाम पर कश्मीर में कनिष्कपुर है| इन्होने ही भारत का पहला सूर्य मंदिर बनवाया था और सालों से ग्वालियर में बंद पड़े शिव पुत्र कार्तिकेय भगवान की पूजा आरंभ कारवाई थी| आइये ऐसे महान राजा के बारे मे थोडा और विस्तार से चर्चा करें |

प्रारंभिक जीवन
कुछ इतिहासकारों की माने तो राजा कनिष्क यु-जी जाती के थे जो की चीन मे निवास करते थे | पर हूणों के आक्रमण के समय यह लोग गंधार आ गए और वहीं अपना राज्य स्थापित किया परन्तु इस प्ररण की कोई पुष्टि नहीं करता|
कई लोगो का मानना है की राजा कनिष्क कुश्मुन्दा जाती के थे जिसके लोग  भगवान शिव के उपासक होते थे और 25 ई. में इस वंश मे एक कुषाण नाम के एक महान राजा हुए और यह वंश कुषाण वंश कहलाया| इसी वंश में राजा विम कदाफिसस के यहँ 40 ई. मे बालक कनिष्क का जन्म हुआ था| यह भी कहा जाता है कि इनमे सीखने समने की क्षमता अन्य बालकों से कई गुना अधिक थी| इतिहास  भी इन्हें राज्य की सीमा विस्तार, राजनिती की गहरी समझ और अध्यात्मिकता के प्रचार प्रसार मे उल्लेखनीय योगदान के लिए जाना जाता है| कई और इतिहासकारों की माने तो वो इन्हें पारसी और बौद्ध राजा भी बुलाते हैं| हमे इनके आरंभिक जीवन की अधिक जानकारी नहीं मिलती| इनके शिक्षा के विषय मे भी इतिहासकारों मेहुत मतभेद हैं|
आईये अब हम इनके युद्ध जीवन के बारे जानते हैं|
युद्ध जीवन
राजा कनिष्क का राज्य वर्तमान भारत के बिहार और उड़ीसा तक फ़ैला था| वर्तमान भारत की सीमा के अनुसार उनका राज्य ज्यादा भारत  वर्ष के बाहर काफी विस्तृत था | जैसे भारत के बाहर उत्तर मे चीन के वुहान प्रांत तक, पश्चिम मे यूनान, ईरान, इराक, तजाकिस्तान के अलावा लगभग मध्य एशिया के देशों तक इस वीर भारतीय का साम्राजय था| इन देशों को जीतने के लिए सम्राट कनिष्क ने जो युद्ध लड़े उनमे से चीन का और यूनान के युद्ध का महत्व अधिक है|
चीन के युद्ध का वर्णन
चीन मे जिस समय हूणों का राज्य था जो अपने आप को महान और अत्याचारी मंगोल सम्राट चंगे खान के वंशज बताते थे| अपने अहंकार के कारण इन हूणों ने कई बौद्ध प्राचीरों (शिलालेख) का नुकसान किया था| तब बौद्ध समुदाय मदद लेने के लिए गंधार नरेश कनिष्क की सेवा मे गए और कनिष्क ने भी इनकी मदद का वचन दिया और कहा कि वो क्षत्रिय जो किसी धर्म की रक्षा न कर सके उसे क्षत्रिय कहलाने का अधिकार नहीं है| महाराज कनिष्क ने अपने साथ 90000 की सेना लेकर हूण साम्राज्य से लोहा लेने निकाल पड़े| चीन में युद्ध के पूर्व उन्होंने वहां के राजा को शांति प्रस्ताव भी भिजवाया पर वहां के राजा ने प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा कि एक अनपढ़ देश के राजा की मृत्य आज हमारे ही हाथ से होगी, वैसे तो एक मामूली राजा से युद्ध करना हम हूणों को शोभा नहीं देता पर कई सदियाँ बीत गयीं हम हूणों का किसी वीर से सामना नहीं हुआ इसलिए हमें यह युद्ध मंजूर है| परन्तु ठीक इसका उल्टा हुआ| राजा कनिष्क ने भरतीय युद्धनीति का अनुसरण करते हुए गरुण व्यूह की रचना की और हूणों की सेना इसका मुकाबला नहीं कार पायी और उनकी हार हो गयी| इसके बाद इन्होने वहां पर वापस खंडित बौद्ध  प्रचीरों का फिर से निर्माण करवाया| जिससे बौद्ध आचर्यों ने खुश होकर उन्हें दिग्विजय होने का वरदान दिया|
इस घटना के पश्चात् राजा कनिष्क की कीर्ति सभी तरफ फ़ैल गयी और लोग उन्हें धर्म रक्षक राजा के रूप में जानने लगे|
लोग, देश, विदेश अपने धर्मं, समाज, राज्य आदि की रक्षा हेतु उनके पास आते थे| इसी दृश्य को देखकर उनके दरबार के मंत्री ने जो की एक ब्रह्मण था यह सलाह दी की हे वीर पुरषों में श्रेष्ठ इस युग के पुरषोत्तम जिस प्रकार भगवन राम ने राजसूय यज्ञ किया था उसी प्रकार आप भी यह यज्ञ करें और अपने महान वंश कीर्ति को और बढ़ाएँ| इस प्रकार से शुरू हुई महाराज कनिष्क की महान विजय यात्रा| इस विजय यात्रा में उन्होंने ने सबसे पहले गंधार के आस पास के राज्यों को अपने आधीन किया जो राज्य संधि से सम्मलित हुए उन्हें संधि से अपने राज्य का हिस्सा बनाया या फिर युद्ध मे पराजीत कर अपने राज्य मे मिला लिया|
राजा कनिष्क के मुख्य राज्य जिन पर उन्होंने ने विजय पाई वो थे
1.     मनुष्यपुर (आज का मुल्तान)
2.     कुषा नगरी (आज का कंधार)
3.     कश्मीर
4.     पाटलिपुत्र (पटना) और सम्पूर्ण बिहार (उस समय का अंग देश)
5.     काम्पिल्य (आज का हिमाचल प्रदेश)
6.     मथुरा
7.     मालवा (मध्य प्रदेश)
8.     उड़ीसा 
9.     सौराष्ट्र (गुजरात)
दक्षिण में इस समय सातवाहन राज्यों का राज था जिनसे उन्होंने संधि की इसी प्रकार उस समय के राजपूताने (राजस्थान) पर मेवा के गुहिलों का राज्य था जिनके राजा जगनाथ हरिश्लोमा सिंह थे उनसे से उन्होंने संधि की|
भारत में महाराज कनिष्क का राज्य ज्यादा बड़ा नहीं था| इसके बारे में मैने पर भी जिक्र किया है|
तो आईये आब हम तोडा और विस्तार से जाने की वो कौन से दुसरे देश हैं जिन पर महाराज कनिष्क का शाशन था|
1.     तजाकिस्तान
2.     उज्बकिस्तान
3.     मंगोल
4.     चीन(वुहान तक)
5.     ईरान
6.     इराक
7.     तुर्क्री
8.     यूनान (ग्रीस)
आप सोच रहे होंगे की में यह कैसे कह सकता हूँ कि इन सब देशों पर महाराज कनिष्क का राज्य था तो चलिए आप को इन बातों का प्रमाण भी  देता हूँ|
प्रमाण 1- तजाकिस्तान और उज्बकिस्तान के लिए महाराज कनिष्क ने एक ही प्रकार के सिक्के बनवाये थे जिन पर एक तरफ यह लिखा था की यह सिक्के कुषाण वंशियों के हैं और कौन से राज्य के हैं| इन सिक्कों के  दूसरी  र उनका चित्र था| ऐसे बहुत से सिक्के इन देशों के पुरातत्व विभाग को मिले हैं|  इनमे से कुछ जो की मुल्तान के एक संग्रहालय में थे जिसे तालिबान ने नष्ट कर  दिया|
प्रमाण 2- चीन और मंगोल के बहुत से ग्रंथों में यह लिखा मिलता हे की उन पर किसी कुषाण वंशी राजा का राज्य था और सातवी सदी के बौद्ध आचार्य हु-यां ने भी अपनी पुस्तक में इस बात का जिक्र किया है|
प्रमाण 3- ईरान, इराक और ग्रीस के संग्रहालयों में आज भी महाराज कनिष्क के समय के सिक्के रखे हैं|
तो इन तीनो प्रमाणों से यह सिद्ध होता हे की महाराज कनिष्क का राज्य ऊपर दिए हुआ सभी देशों पर था|
आईये अब हम इनके अध्यत्मिक जीवन पर एक दृष्टि डालें|
लोगो की माने तो महाराज कनिष्क एक विद्वान और धार्मिक राजा थे| इन्होने पाकिस्तान में स्थित हिंगलाज देवी के मंदिर को एक दिव्य रूप दिया और सुंदर परकोटों से रक्षित विशाल मंदिर के प्रांग का निर्माण करवाया था|
इन्होने ने ही ईरान और इराक जैसे गैर हिन्दू देश में भगवान सूर्य नारायण की उपासना शुरू करवायी थी और आज भी वहां के लोग भगवान सूर्य नारायण की पूजा तो करते हैं पर वे सूर्य भगवान को कोई दूसरे भगवान का नाम देकर बुलाते हैं और वो नाम भी कनिष्क ने ही उन लोगों को सुझाया था| परन्तु आज भी उस नाम को लेक बहुत मतभेद हैं इसलिए मै उस नाम को यहाँ नहीं लिख रहा हूँ परन्तु यह सच है कि वो लोग आज भी गवान सूर्य की पूजा करते हैं| जिनकी पूजा करने की सलाह महाराज कनिष्क ने उन लोगों को दी थी और उन लोगों ने संस्कृत के मंत्रो को अपनी भाषा मे भी लिख लिया|
इसके अलावा इन्होने हर धर्म को अपनाया और जिस जिस देश में इनका राज्य था वहां उस देश के धर्म के अनुसार सिक्के चलाये|
इसके अलावा इन्होने कश्मीर में एक बौद्ध सभा भी आयोजित करवाई थी जिसके बाद से बौद्ध र्म को दो मार्गों महायान और हीनयान में विभाजित हो गया|
तो दोस्तों यह थी कथा भारत के महान और एक तेजस्वी महाराज कनिष्क कि|
इनकी मृत्यु के बारे में बहुत से मतभेद हैं पर लोगों के अनुसार इन्होने सन 140 ई. से 150 ई. के मध्य में सन्यास ले लिया था |
हमे ऐसे महान राजा जिसने भारत वर्ष को मध्य एशिया तक पहुंचा दिया तथा एकमात्र राजा जिसने चीन को पराजीत कर उसके बड़े भूखंड को भारत वर्ष मे मिला लिया था| परंतु दुर्भाग्यपूर्ण रूप से उनके बारे में हम भारतीयों को कुछ नहीं बताया जाता है| इस लिए मेरी आप से विनती है की आप लोग मेरे इस ब्लॉग को जयादा से जयादा शेयर करे|


  
(19.4.2020)
                                              परम कुमार
                                         कृष्णा पब्लिक स्कूल
                                             रायपुर(छ.ग.)
ऊपर दी गयी समस्त जानकारी इन वेबसाइट से ली गयी है-  
  1.  ललनतोप भारत
  2.  अद्भुत भारत
  3.  भारत डिस्कवरी
  4.  जीवनी
  5.  वेबदुनिया
  6.  समयबोध


ऊपर दी गयी फोटो इस लिंक से ली गयी है-
https://hrgurjar1516.blogspot.com/2017/12/blog-post_18.html

Tuesday 31 March 2020


जय महाकाल,
नमस्कार दोस्तों
आज फिर आप सबका मेरे ब्लाग में स्वागत है।
आज हमारे चर्चा का विषय उस वीर योद्धा पर है जिसने सर झुकाने से अच्छा सर कटवाना समझा | जिसे केवल छल से ही मारा जा सका| जिसने मुगल बादशाह शाहजहां को बता दिया कि आज अगर उनका अस्तित्व है तो वह केवल राजपूतों के बचाव की वजह से है। दोस्तों मैं बात कर रहा हूं मारवाड़ शिरोमणि और मेवाड़ शिरोमणि महाराणा प्रताप के प्रपौत्र यानी नाती अमर सिंह राठौर की| आइए हम इनके जीवन के बारे में थोड़ा और विस्तार से जानें|



Sunday 13 October 2019


जय महाकाल
         आपका मेरे ब्लॉग मैं स्वागत है| आज का हमारी चर्चा का विषय उस व्यक्ति के ऊपर है जिसे उसी के देश ने भुला दिया पर वो आज भी दूसरे देशों की किताबों और लोगों के अन्दर जिन्दा है|

आप सब ने सिकंदर का नाम सुना, आप सब ने नेपोलियन का नाम भी सुना है| पर क्या आप जानते हैं की भारत के सिकंदर का क्या नाम था?, यह भारत के नेपोलियन का क्या नाम था?, भारत के नेपोलियन के ऊपर मैं एक ब्लॉग लिख चूका हूँ उसकी लिंक मैं नीचे दे दूंगा                                   


Wednesday 6 March 2019


जय महाकाल
नमस्कार दोस्तों आपका मेरे ब्लॉग में स्वागत है| आज हमारी चर्चा का विषय उस व्यक्ति पर है, जिसने त्रिलोक जीता जिसके दरबार मैं नौ-ग्रह और सप्त-ऋषि उसके आदेश का पालन करने को विवश थे| क्या आप अभी भी नहीं समझ पाए? अब समझ जायेंगे
        || यह गाथा उस ज्ञानी की, वीर, तेजस्वी, अभिमानी की,
           यह गाथा, त्रिलोक पति, लंकाधिपति, प्रखंड पंडित रावण की ||
जी हाँ दोस्तों आज का हमारा ब्लॉग महापंडित रावण पर है| आप सब सोच रहे होंगे कि मै यह रावण पर ब्लॉग क्यों लिख रहा हूँ| दोस्तों मैं रावण पर यह ब्लॉग इसलिये लिख रहा हूँ क्योंकि रावण का अभिमान तो सब ने देखा पर ज्ञान किसी ने ना देखा| रावण के प्रति कई लोगों के मन में बुरे विचार हैं, मैं उन्हें बताना चाहूँगा कि रावण बनना आसान नहीं क्योंकि अगर उसमे बुराई थी तो अच्छाईयां भी थीं|इस सब के बारे मैं आपको मेरे इस ब्लॉग मैं पता चल जायेगा| तो आईये शुरू करतें हैं|

रावण का जन्म  
रावण, ब्रह्मा जी का पौत्र, विश्रवा मुनि और कैक्सी का पुत्र था| जी हाँ दोस्तों यह ब्रह्माजी त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु-महेश वाले ब्रह्मा जी हैं| रावण के जन्म के बारे मैं बहुत सी कहानियाँ मिलती, उसमे से एक मै आप को बताता हूँ| यह बात उस समय की है जब दानवों के राजा सुमाली थे| जो देव-असुर संग्राम में तीसरी बार हार चुके थे| अब दानवों को एक श्रेष्ठ राजा की आवश्यकता थी| इनकी पुत्री थी केक्सी जिसने ब्रह्मा जी की तपस्या की और उनसे वरदान माँगा की वो अपने ब्राह्मण पुत्रों में से एक की उससे शादी करवा दें| ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र विश्रवा मुनि से केक्सी का विवाह करवा दिया| इसके पश्चात् इन्होने भगवन शिव की आराधना की और उनसे वरदान माँगा की हमें ऐसा संतान प्रदान करें जिसमे   राजसिक, तामसिक और धार्मिक गुण हो| शिव जी तथास्तू बोलकर अंतर्ध्यान हो गए| दोस्तों यह से शुरू होती रावण के बनने की कहानी| जब केक्सी ने भगवन शिव से पुत्र वरदान माँगा उस समय कि कुछ घटनाओं ने भी इस संसार में अपना अस्तित्व दिखाया| आईये जाने वो घटनाएँ|
चक्रवती राजा प्रतापभानु के साथ हुई घटना
प्रताप भानु ने असुरों के सम्पूर्ण विनाश के लिए एक यज्ञ करवाया| जिसमे उन्होंने दुर्वासा मुनि को भी बुलाया| असुरों ने अपने आप को बचाने हेतु दुर्वासा ऋषि के भोजन को अशुद्ध कर दिया, जिससे क्रुद्ध होकर उन्होंने प्रतापभानु को अगले जन्म मैं एक दानव बनने का श्राप दे दिया| माफ़ी मांगने पर दुर्वासा मुनि ने कहा मै श्राप को वापिस तो नहीं ले सकता पर यह आशीर्वाद देता हूँ तुम एक समृद्ध और कीर्तिवान दानव नरेश होगे जो कभी भी भुलाया ना जा सकेगा|
बैकुन्ठ लोक के द्वारपाल जय-विजय के साथ हुई घटना-
एक बार श्री हरी विष्णु से मिलने बैकुन्ठ कुछ बालक ब्राह्मण आये| जो कि अपने क्रोधी स्वभाव के लिए जाने जाते थे| यह बात जय और विजय को पता नहीं थी तो उन्होंने उनको अन्दर प्रवेश करने से रोक दिया| उन बालक ब्राह्मणों ने उनसे बहुत निवेदन किया पर जय और विजय ने उनकी एक ना सुनी तब क्रुद्ध होकर उन बालक ब्राह्मणों ने उन्हें श्राप दे दिया और कहा तुमने ‘वैकुंठ के द्वारपाल होने के बावजूद भी पाताल के दानव द्वारपालों जैसा व्यवहार किया| हम तुम्हे श्राप देते हैं अगले जन्म मै तूम दोनों दानव कुल में जन्म लोगे|” इसके पश्चात् अपने कृत से शर्मिंदा होकर उन्होंने उनसे बहुत माफी मांगी तो उन्होंने कहा ‘हम अपना दिया हुआ श्राप तो वापस नहीं ले सकते लेकिन, हम तुम्हे वरदान देते है जय तुम एक ब्राहमण-दानव कुल में जन्म लोगे और एक प्रखंड और विद्वान पंडित होगे जैसा पूरे संसार में कोई नहीं होगा| विजय तुम भी इसी कुल मै जन्म लोगे परन्तु तुम सब पाप कृत से मुक्त रहोगे और सदैव भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहोगे पर उनके हांथो मुक्ति मात्र जय को मिलेगि तुम्हे नहीं|   
कैलाश मै शिव गणों के साथ घटी घटना
एक बार ऋषि अगस्त कैलाश आये तो भांग के नशे में चूर दो गणों ने उनका अपमान कर दिया| इस पर क्रुद्ध होकर ऋषि अगस्त ने उन्हें अगले जन्म में दानव कुल में जन्म लेने का श्राप दे दिया| इसके पश्चात् दोनों में से एक गण के बहुत क्षमा मांगने पर पर उन्होंने कहा तुम दानव कुल में तो जन्म लोगे लेकिन तुम मात्र जब तक चेतना में रहोगे तभी तक बुरे कार्य करोगे और संसार तुम्हे सदैव याद रखेगा|
अतः जब प्रतापभानु का राजसिक गुण, जय का धार्मिक गुण और क्षमा ना मांगने वाले गण का तामसिक गुण मिले तब जाके निर्माण हुआ रावण का| विजय का जन्म हुआ विभीषण के रूप में और क्षमा मांगने वाले गण का कुम्भकर्ण के रूप मैं|
जब रावण का जन्म हुआ तब उसके दस सिर और बीस हांथ थे| रावण के दस सिर व्यक्ति के दस भावों को प्रदर्शित करते थे| जो की हैं – काम, क्रोध, लोभ, मोह, मधा, विद्याश, मानस, बुद्धि, चित और अहंकार| कहा जाता है रावण जब पैदा हुआ था तब उसके माथे पर त्रिशूल का निशाना था| रावण जैसे-जैसे बड़ा होता गया उसकी बुद्धि तीव्र होती गयी| उसने दस साल की उम्र में ही चारों वेदों को साध लिया था| रावण का जन्म सत्य युग में हुआ था और जब उसकी मृत्यु हुई तो वो बारह लाख साल का था| पर कई मान्यताओं के हिसाब से वो इससे भी ज्यादा उम्र का था| रावण की शिक्षा दानव आचार्य शुक्राचार्य की निगरानी में हुई थी| उसने उनसे कई मंत्र शक्तियाँ और सिद्धियाँ प्राप्त की थीं परन्तु मात्र इससे उसका दिल नहीं भरा उसने ब्रह्मा जी, शिव जी और विष्णु जी की घोर तपस्या की थी|
रावण ने ब्रह्माजी की 10000 वर्षों तक घोर तपस्या की थी और 1000 वर्ष बाद वो अपना एक सर उनको अर्पित करता था| इस्से प्रसन्न होकर उन्होंने उससे पूछा  “तुम्हे क्या वर चाहिये पुत्र?’ इस पर रावण ने कहा मुझे अमरत्व प्रदान करें| तब ब्रम्हा जी ने कहा ‘मैं यह वरदान तुम्हे नहीं दे सकता हूँ|” तो रावण ने कहा कि आप मुझे वरदान दें की मेरी मृत्यु न देव से, न दानव से, न गंधर्व से, न यक्ष से हो| इसके बाद उसने सभी जानवरों का भी नाम लिया जो उसे ना मार सकें सिवाय वानर के| इस तरह रावण वानर और इन्सान का नाम लेना भूल गया था| जिसके पश्चात रावण ने उसे वरदान दे दिया| इसके पश्चात् उसने शिवजी की तपस्या की और उनसे सभी दिव्यास्त्र और अपने सातों चक्रों को जागृत करने का और उनका त्रिशूल माँगा था| शिवजी ने यह वरदान उसे दे दिया| इसके पश्चात् क्या था, रावण के कारण चारों तरफ त्राहि-त्राहि मच गयी| उसने तीनो लोकों को अपने आधीन कर लिया| धरती में उसे दो बार हार का सामना करना पड़ा पहली बार जब वो त्रिलोक विजय पर निकला तो सब राजाओं ने सप्तसिंधु सम्राट अयोध्या नरेश मान्धाता से मदद मांगी और उन्होंने रावण को पराजीत किया और दूसरी बार भी सब ने अयोध्या नरेश अज से सहायता मांगी और उन्होंने रावण को पराजित किया|
नव ग्रहों पर रावण की जीत
रावण संहिता मैं वर्णन मिलता है कि रावण ने नव ग्रहों को अपने दरबार में स्थापित कर रखा था| तो आईये जाने उसके पीछे की कहानी| रावण जब बाली से युद्ध कर के लौटा जिसमे उसकी हार हुई| तो वो बहुत गुमसुम सा रहने लगा| इसका असर केवल रावण ही पे नहीं पड़ा बल्कि देवताओं को भी अपनी शक्तियों पर घमंड हो गया, खासकर नव ग्रहों को, एसे समय पर आग में घी का काम किया नारद जी ने| एक दिन रावण का राज दरबार लगा हुआ था| तभी नारद जी वहां अये और रावण से कहा ‘हे लंकेश ! क्या आप को दिया गया आशीर्वाद वापस ले लिए गया है’ रावण ने कहा ‘ नहीं मुनिवर| परन्तु आप यह क्यों पूछ रहे हैं?’ तब  नारदजी ने कहा ‘ मैंने नव ग्रहों को बात करते हुए सुना था की वो बोल रहे थे की रावण में अब वो बात नहीं|’ बस फिर क्या था इतना सुनने के बात रावण क्रोधित हो कर उठा और अपनी चंद्रहास तलवार लेकर अन्तरिक्ष की ओर प्रस्थान कर दिया| वहां पर उसने नव ग्रहों युद्ध कर उन्हें पराजित कर बंदी बनाकर लंका ले आया| क्योंकि रावण नव ग्रहों को अपने वश में रखता था इसलिए वो जब चाहता तो अपनी कुंडली बदल लेता था| कहा जाता है कि जब मेघनाद का जन्म हुआ था तब रावण ने सभी ग्रहों को आदेश दिया था की वो रावण द्वारा निर्मित स्थानों पर ही विराजमान हों| इसके फल स्वरुप जब मेघनाद का जन्म हुआ वो प्रतापी, बुद्धिमान, देव विजेता आदि कई गुण मेघनाद मैं आ गये| परन्तु शनि देव जी की मृत्यु के कारक हैं वो अपनी जगह से हिल गए जिससे मेघनाद अल्पायु हो गया| इस कारण रावण ने शनि देव को अपने पैरों तले रख लिया| आप सोच रहे होंगे की अगर रावण नव ग्रहों को अपने वश मैं रखता था तो उसकी मृत्यु का योग कैसे बना? लंका दहन के समय हनुमानजी ने सब ग्रहों को मुक्त करवा दिया था| इस लिए उसकी मृत्यु का योग बन पाया|       
शिव तांडव की रचना और नंदी बैल का अभिशाप
कहा जाता है की रावण से बड़ा शिव भक्त आज तक इस संसार मैं नहीं हुआ| यह बात है उस समय की जब को शिवजी द्वारा चन्द्रहास प्राप्त हुई| एक दिन वो जब अपने कक्ष में बैठा था उसके मन में ख्याल आया क्यों ना हिमालय को लंका ले आया जाये| इसके लिए वो हिमालय को लाने निकल गया और वहां पँहुच कर वो उसे उठाने जा ही रहा था नंदी बैल ने उसे रोका पर वो ना मना| तब दोनों के बीच भयंकर युद्ध शुरू हो गया| जिसमें रावण विजय हुआ और क्रोध मैं नंदी बैल ने उसे अभिशाप दिया की जा तेरी मृत्य का एक कारण स्वयं शिव बनेंगे| रावण ने उस पर कोई धयान नही दिया| उसने हिमलय को उठाने की पूरी कोशिश की पर उठा नहीं पाया तब उसने अपने अन्दर से दस और रावण निकाले और अब उसका प्रयास पूरी तरह से सफल हो गया| उसने हिमालय को अपने दस सरों पर उठा लिया था| तब शिवजी ने धीरे-धीरे पर्वत का भार बढ़ाना चालू किया उसपे अपना पैर रख कर| जैसे-जैसे उसका भर बढता गया रावण उसको नीचे रखने लगा परन्तु उसका हांथ उसके निचे दब गया| रावण उस दर्द से रोने लगा| तब उसने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव की वहीँ रचना की और शिव जी को प्रसन्न किया| शिव जी ने प्रसन्न होकर कैलाश का भार घटा दिया और उसे पशुपति अस्त्र प्रदान किया| और हाँ दोस्तों रावण का मतलब ही होता है रोना| इस तरीके से जब रावण का हांथ कैलाश के नीचे दबा था और उसके रोने की वजह से रावण का नाम दशानन से रावण पड़ा|
एक और कथा के अनुसार रावण के पैर की ऊँगली हिमालय पर्वत के नीचे दब गयी थी| तब उस भयंकर पीढ़ा से मुक्ति पाने के लिए रावण ने रूद्र वीणा और शिव तांडव की रचना की थी| वीणा बनाने के लिए उसने अपना बायाँ हाथ कट दिया और उसके तार के लिए उसने अपनी पेट की अतडियों को निकालकर उसमे बांध दीं| इससे प्रसन्न हो कर शिव जी ने हिमालय का भार घटा दिया|
क्या आप को पता है की रावण ने दो-दो बार श्री राम के लिए पूजा करवाई थी और उन्हें विजय का आशीर्वाद भी दिया था| बात उस समय की है जब श्री राम सेतु निर्माण कर रहे थे तब उन्हें सेतु की पूजा के लिए एक महान पंडित की जरुरत थी, और रावण भी श्री राम को देखना चाहत था| तब वो एक ब्राह्मण का भेष लेकर वहां गया और श्री राम के लिए पूजा करई, और वो भी पुरे विधि विधान से और उनहे विजय का आशीर्वाद भी दिया| वहां पर उपस्थित सब लोग जानते थे की जिस तरह के विधि विधान से पूजा हो रही हे वो रावण ही करवा सकता है| दूसरी बार श्री राम को अपने पिता का श्राद्ध दान करना था उसके लिए फिर रावण आया था| रावण को हमेशा से पता था की उसकी मृत्यु कब, कैसे और किसके हांथो होगी|
रावण और लंका की कहानी
रावण को लंका कैसे मिली इसकी बहुत सी कहानियाँ हैं| मैं उनमे से एक बताता हूँ| एक बार पार्वतीजी ने कहा ‘स्वामी अपने आज तक मुझे कुछ नहीं दिया’ शिव जी कहा ‘तुम्हे क्या चाहिये| तब पार्वतीजी ने कहा ‘मुझे सोने से बना एक महल दीजिये|” शिवजी ने विश्वकर्माजी को आदेश दिया और मात्र एक दिन मैं सोने का महल लंका नमक जगह पर बना दें| उस महल की पूजा हेतु शिवजी ने अपने परम भक्त रावण को बुलया रावण ने पूरी विधि विधान से महल की पूजा की| इस के पश्चात् रावण से पूछा गया की उसे दक्षिणा मै क्या चाहिये तो उसने लंका मांग लिया| यह थी एक कथा कि कैसे रावण को लंका प्राप्त हुई|   
तो दोस्तों यह थी कहानी महाप्रखंड पंडित दशमुख (रावण) की| जिसने अपनी मृत्य के लिए भगवान को विवश कर दिया जन्म लेने के लिए| जिसने अपने शत्रु को युद्ध विजय का आशीर्वाद दिया|
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                      ||जय महाकाल||
                      || जय भारत ||    
 6-3-2019
                                              परम कुमार
                                                कक्षा-9
                                           कृष्णा पब्लिक स्कूल 
                                                रायपुर (छ.ग.)






ऊपर दिया गया चित्र इस लिंक से लिया गया है-

https://www.ancient.eu/image/4057/ravana-the-demon-king//


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