जय महाकाल
नमस्कार दोस्तों !!
आज का हमारा ब्लॉग भारत
के उस वीर के ऊपर है जिसने भारत का नाम इतिहास मे सदा के लिए अमर कर दिया पर आज उसी के देशवासियों ने उसे भुला दिया है| में बात कर रहा हूँ महान कुषाण वंश के प्रमुख सम्राट कनिष्क प्रथम की, जिन्हें कनिष्क कदासिस भी कहते हैं| यह वही कनिष्क हैं जिनके नाम पर कश्मीर में कनिष्कपुर है| इन्होने ही भारत का पहला सूर्य मंदिर बनवाया था और सालों से ग्वालियर में बंद पड़े शिव पुत्र कार्तिकेय भगवान की पूजा आरंभ कारवाई थी| आइये ऐसे महान राजा के बारे मे थोडा और विस्तार से चर्चा करें |
प्रारंभिक जीवन
कुछ इतिहासकारों की माने तो राजा कनिष्क यु-जी जाती के थे जो की चीन मे निवास करते थे | पर हूणों के आक्रमण के समय यह लोग गंधार आ गए और वहीं अपना राज्य स्थापित
किया परन्तु इस प्रकरण की कोई पुष्टि
नहीं करता|
कई लोगो का मानना है
की राजा कनिष्क कुश्मुन्दा जाती के थे जिसके लोग भगवान शिव के उपासक होते थे और 25 ई. में इस वंश मे एक कुषाण नाम के एक महान राजा हुए और यह वंश कुषाण वंश कहलाया| इसी वंश में
राजा विम कदाफिसस के यहँ 40 ई. मे
बालक कनिष्क का जन्म हुआ था| यह भी कहा जाता है कि इनमे सीखने समझने की क्षमता अन्य बालकों से कई गुना अधिक थी| इतिहास भी इन्हें राज्य की सीमा विस्तार, राजनिती की
गहरी समझ और अध्यात्मिकता के प्रचार प्रसार मे उल्लेखनीय योगदान
के लिए जाना जाता है| कई और इतिहासकारों की माने तो वो इन्हें पारसी और बौद्ध राजा भी बुलाते हैं| हमे इनके
आरंभिक जीवन की अधिक जानकारी नहीं मिलती| इनके शिक्षा के विषय मे भी इतिहासकारों मे बहुत मतभेद हैं|
आईये अब हम इनके युद्ध
जीवन के बारे जानते हैं|
युद्ध जीवन
राजा कनिष्क का राज्य वर्तमान भारत के बिहार और उड़ीसा तक फ़ैला था| वर्तमान
भारत की
सीमा के अनुसार उनका राज्य ज्यादा भारत वर्ष के बाहर काफी विस्तृत था | जैसे भारत के बाहर
उत्तर मे चीन के वुहान प्रांत तक, पश्चिम मे यूनान, ईरान, इराक, तजाकिस्तान के अलावा लगभग मध्य एशिया के देशों तक इस वीर भारतीय का साम्राजय था| इन देशों को जीतने
के लिए सम्राट कनिष्क ने जो युद्ध लड़े उनमे से चीन का और यूनान के
युद्ध का
महत्व अधिक है|
चीन के युद्ध का
वर्णन
चीन मे जिस समय हूणों का राज्य था जो अपने आप को महान और अत्याचारी
मंगोल सम्राट चंगेज खान के वंशज बताते थे| अपने अहंकार के कारण इन हूणों ने कई बौद्ध प्राचीरों (शिलालेख) का नुकसान किया था| तब बौद्ध समुदाय मदद लेने
के लिए गंधार नरेश कनिष्क की सेवा मे गए और कनिष्क ने भी इनकी मदद का वचन दिया और कहा कि वो क्षत्रिय जो किसी
धर्म की रक्षा न कर सके उसे क्षत्रिय कहलाने का अधिकार नहीं है| महाराज कनिष्क ने अपने साथ 90000 की सेना लेकर हूण साम्राज्य से लोहा लेने निकाल पड़े| चीन में युद्ध के पूर्व उन्होंने वहां के राजा को शांति प्रस्ताव
भी भिजवाया पर वहां के राजा ने प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा कि एक अनपढ़ देश के राजा की मृत्य आज हमारे ही हाथ से होगी, वैसे तो एक मामूली राजा से युद्ध करना हम हूणों को शोभा नहीं देता पर कई सदियाँ बीत गयीं हम हूणों का
किसी वीर से सामना नहीं हुआ इसलिए हमें यह युद्ध मंजूर है| परन्तु ठीक इसका
उल्टा हुआ| राजा कनिष्क ने भरतीय युद्धनीति
का अनुसरण करते हुए गरुण व्यूह की रचना की और हूणों की सेना इसका मुकाबला नहीं कार पायी और उनकी हार हो गयी| इसके बाद इन्होने वहां पर वापस खंडित बौद्ध प्रचीरों का फिर से निर्माण करवाया| जिससे बौद्ध आचर्यों ने खुश
होकर उन्हें दिग्विजय होने का वरदान दिया|
इस घटना के पश्चात्
राजा कनिष्क की कीर्ति सभी
तरफ फ़ैल गयी और लोग उन्हें धर्म रक्षक राजा के रूप में जानने लगे|
लोग, देश, विदेश अपने धर्मं, समाज, राज्य आदि की रक्षा हेतु उनके पास आते थे| इसी दृश्य
को देखकर उनके दरबार के मंत्री ने जो की एक ब्रह्मण था यह सलाह दी की हे वीर
पुरषों में श्रेष्ठ इस युग के पुरषोत्तम जिस प्रकार भगवन राम ने राजसूय यज्ञ किया था उसी प्रकार आप भी यह यज्ञ करें और अपने महान वंश कीर्ति को और बढ़ाएँ| इस प्रकार से शुरू हुई महाराज कनिष्क की महान विजय यात्रा| इस विजय यात्रा में
उन्होंने ने सबसे पहले गंधार के आस पास के राज्यों को अपने आधीन किया जो राज्य संधि से
सम्मलित हुए उन्हें संधि से अपने राज्य का हिस्सा बनाया या फिर युद्ध मे पराजीत कर अपने राज्य मे मिला
लिया|
राजा कनिष्क के मुख्य
राज्य जिन पर उन्होंने ने विजय पाई वो थे
1. मनुष्यपुर (आज का मुल्तान)
2. कुषा नगरी (आज का कंधार)
3. कश्मीर
4. पाटलिपुत्र (पटना) और सम्पूर्ण बिहार (उस समय का अंग देश)
5. काम्पिल्य (आज का हिमाचल प्रदेश)
6. मथुरा
7. मालवा (मध्य प्रदेश)
8. उड़ीसा
9. सौराष्ट्र (गुजरात)
दक्षिण में इस समय सातवाहन राज्यों का राज था जिनसे उन्होंने संधि की इसी
प्रकार उस समय के राजपूताने (राजस्थान) पर मेवाड़ के गुहिलों का राज्य था जिनके राजा जगनाथ हरिश्लोमा
सिंह थे उनसे से उन्होंने संधि की|
भारत में महाराज कनिष्क का राज्य ज्यादा बड़ा नहीं था| इसके बारे में मैने उपर भी जिक्र किया है|
तो आईये आब हम तोडा और विस्तार से जाने की वो कौन से दुसरे देश हैं जिन पर
महाराज कनिष्क का शाशन था|
1.
तजाकिस्तान
2.
उज्बकिस्तान
3.
मंगोल
4.
चीन(वुहान तक)
5.
ईरान
6.
इराक
7.
तुर्क्री
8.
यूनान (ग्रीस)
आप सोच रहे होंगे की में यह कैसे कह सकता हूँ कि इन सब देशों पर
महाराज कनिष्क का राज्य था तो चलिए आप को इन बातों का प्रमाण भी देता हूँ|
प्रमाण 1- तजाकिस्तान और उज्बकिस्तान के लिए महाराज कनिष्क ने एक ही प्रकार के
सिक्के बनवाये थे जिन पर एक तरफ यह लिखा था की यह सिक्के कुषाण वंशियों के हैं और कौन से राज्य के हैं| इन
सिक्कों के दूसरी ओर उनका चित्र था| ऐसे बहुत से सिक्के इन देशों
के पुरातत्व विभाग को मिले हैं| इनमे से कुछ जो की मुल्तान के एक
संग्रहालय में थे जिसे तालिबान ने नष्ट कर दिया|
प्रमाण 2- चीन और मंगोल के बहुत से ग्रंथों में यह लिखा मिलता हे की उन पर
किसी कुषाण वंशी राजा का राज्य था और सातवी सदी के बौद्ध आचार्य हु-यां ने भी
अपनी पुस्तक में इस बात का जिक्र किया है|
प्रमाण 3- ईरान, इराक और ग्रीस के संग्रहालयों में आज भी महाराज
कनिष्क के समय के
सिक्के रखे हैं|
तो इन तीनो प्रमाणों से यह सिद्ध होता हे की महाराज कनिष्क का राज्य ऊपर दिए
हुआ सभी देशों पर था|
आईये अब हम इनके अध्यत्मिक
जीवन पर एक दृष्टि डालें|
लोगो की माने तो महाराज कनिष्क एक विद्वान और धार्मिक राजा थे| इन्होने पाकिस्तान में स्थित हिंगलाज देवी के मंदिर को एक दिव्य रूप दिया और सुंदर परकोटों से रक्षित विशाल मंदिर के प्रांगण का निर्माण करवाया था|
इन्होने ने ही ईरान और इराक जैसे गैर हिन्दू देश में भगवान सूर्य नारायण की उपासना शुरू करवायी थी और आज भी वहां के लोग भगवान सूर्य नारायण की पूजा तो करते हैं पर वे सूर्य भगवान को कोई दूसरे भगवान का नाम देकर बुलाते हैं और वो नाम भी कनिष्क
ने ही उन लोगों को सुझाया था| परन्तु आज भी उस नाम को लेकर बहुत मतभेद हैं इसलिए मै उस नाम को यहाँ नहीं
लिख रहा हूँ परन्तु यह सच है कि वो लोग आज भी भगवान सूर्य की पूजा करते हैं| जिनकी पूजा करने की सलाह महाराज कनिष्क ने उन
लोगों को दी थी और उन लोगों ने संस्कृत के मंत्रो को अपनी भाषा मे भी लिख लिया|
इसके अलावा इन्होने हर धर्म को अपनाया और जिस जिस देश में इनका राज्य था
वहां उस देश के धर्म के अनुसार सिक्के चलाये|
इसके अलावा इन्होने कश्मीर में एक बौद्ध सभा भी आयोजित करवाई थी जिसके बाद
से बौद्ध धर्म को दो मार्गों महायान और हीनयान में
विभाजित हो गया|
तो दोस्तों यह थी कथा भारत के महान और एक तेजस्वी महाराज कनिष्क कि|
इनकी मृत्यु के बारे में
बहुत से मतभेद हैं पर लोगों के अनुसार इन्होने सन 140 ई. से 150 ई. के मध्य में सन्यास ले लिया था
|
हमे ऐसे महान राजा जिसने
भारत वर्ष को मध्य एशिया तक पहुंचा दिया तथा एकमात्र राजा जिसने चीन को पराजीत कर
उसके बड़े भूखंड को भारत वर्ष मे मिला लिया था| परंतु दुर्भाग्यपूर्ण रूप से उनके बारे में हम
भारतीयों को कुछ नहीं बताया जाता है| इस लिए
मेरी आप से विनती है की आप लोग मेरे इस ब्लॉग को जयादा से जयादा शेयर करे|
(19.4.2020)
परम कुमार
कृष्णा पब्लिक स्कूल
रायपुर(छ.ग.)
ऊपर दी गयी समस्त जानकारी इन वेबसाइट से ली गयी है-
1. ललनतोप भारत
2. अद्भुत भारत
3. भारत डिस्कवरी
4. जीवनी
5. वेबदुनिया
6. समयबोध
ऊपर दी गयी फोटो इस लिंक से ली गयी है-
https://hrgurjar1516.blogspot.com/2017/12/blog-post_18.html