जय महाकाल
नमस्कार दोस्तों|
आप का मेरे ब्लॉग में
एक बार फिर से स्वागत है| आज हमारे चर्चा का विषय शुरू करने से पहले मै आप को एक महत्वपूर्ण बात बताना चाहता हूँ| परन्तु इसके पहले मै आपको ये बताना चाहूँगा कि आज के
ब्लॉग के विषय का सुझाव मेरी चाची श्रीमती शिवांगी श्रीवास्तव द्वारा दिया गया है| आप भी अपने सुझाव मेरे ब्लॉग के कमेंट
बॉक्स मे या मेरे ईमेल paramkumar1540@gamil.com पर या मेरे व्हाटसएप नंबर 7999846814 पर दे
सकते हैं|
आइये अब आज का ब्लॉग शुरू
करते हैं|
आप सब ने अशोक स्तम्भ
के बारे में तो सुना ही होगा, जो उत्तर प्रदेश के सारनाथ संग्राहलय में रखा हुआ है| उस स्तम्भ में चार शेर बने हुए हैं, जिन्हे
धर्म का प्रतीक भी माना जाता है| हमारे
संविधान में हर एक शेर का अपना अपना महत्व बताया गया हैं| इस संग्रहालय मे रखे सम्राट अशोक के शिलालेख क्रमांक 13 पर यह लिखा है की उन चारों में से एक ही शेर
धर्म का प्रतीक है और उसी के नाम पर उस स्तम्भ का नाम है| बाकि तीन शेर उन तीन राज्यों और राजवंशों के प्रतीक हैं जिनको अशोक कभी भी युद्ध मे हरा नहीं पाये और वो तीन
राजवंश थे चेरा, पंड्या और चोला|
इसलिए आज हमारे चर्चा
का विषय उन तीन
राजाओं मे से एक चोल वंश के ऊपर है| तो आइये भगवान महाकाल का नाम लेकर हम आज का ब्लॉग शुरू करते हैं|
अगर हम प्राचीन भारत
के इतिहास का गहरा अध्यन करें तो हमे पता चलेगा की चोल वंश का का असली नाम चोड़ वंश
है, और इस राजवंश के वंशजों
का उल्लेख रामायण में, महाभारत मे (चेदी प्रदेश के राजा शिशुपाल के रूप मे), मध्य कालीन भारतीय इतिहास के 100 ई. मे मिलता है| इस लेख मे मै आपको मुख्य
रूप से मध्य कालीन भारतीय इतिहास मे इस राजवंश के बारे में बताउंगा जो लगभग 9वीं सदी से शुरू होकर
13वीं सदी के बीच का है और इस काल मे
चोल वंश अपनी ऊँचाइयों में रहा|
चोल राजवंश का पूरा विवरण हमे संगम नामक एक
ग्रन्थ में मिलता है, जिसे तोल्काप्पियर ने लिखा था| इस ग्रन्थ में चेरा, चौल्क्य, पल्लव और पंड्या राजवंशों की भी समस्त जानकारी है| इस ग्रन्थ के अनुसार
सन 848 ई. में विजयालय चोला ने पल्लव को हरा कर कावेरी नदी के पास चोल
राजवंश की स्थापना
की| राजा विजयालय चोल का कावेरी के निकट अपना राज्य बसाने के बहुत से कारण थे| उन कारणो मे से एक कारण यह था कि (यह घटना त्रेता युग
की है) आदिकाल में अगस्त्य ऋषि के दो
शिष्य थे करिकला चोला और कोसन्गंनन चोला| इन दोनों के ही आग्रह पर अगस्त्य ऋषि ने ब्रम्हाजी की तपस्या की थी और उनसे उनकी पुत्री कावेरी को धरती पर ले जाने की मांग की| तब कावेरी देवी ने उन्हें यह वरदान दिया की जो पहले दो राजकुमार उनकी नदी का
जल ग्रहण करेंगे वो इतिहास में अमर हो जायेंगे (इस घटना का वर्णन बाल्मीकी रामायण मे भी मिलता है) और इस प्रकार अगस्त्य ऋषि के शिष्यों करिकला चोला और कोसन्गंनन चोला ने
कावेरी नदी का जल ग्रहण किया और अपना राज्य महाराज रघु (श्री राम के परदादा) के
साथ मिलकर उत्तर पश्चिम
में कैकेय देश (रशिया) तक और उत्तर पूर्व में किन प्रदेश, क्सिन प्रदेश, जिन प्रदेश के साथ सुई, तंग (यह सब आज के चीन को बनाते हैं) अदि देशों को जीत
लिया था (यह थी रामायण
कालीन त्रेता युग की घटना जिसे इस राजवंश की नींव पड़ी) | संगम ग्रन्थ में इसकी पूरी जानकारी है| यह एक महत्वपूर्ण कारण था जिनकी वजह से मध्यकाल
के भारतीय इतिहास मे जब यह राजवंश फिर से भारत वर्ष में स्थापित हो रहा था तो राजा
विजयालय चोला ने एक बार फिर से चोल वंश को
कावेरी के किनारे बसाने का निर्णय लिया था और इस तरह से एक बार फिर पुरे भारत में चोल वंश
का बिगुल बज चूका था| महाराज श्री विजयालय चोला ने अपने सबसे बड़े शत्रु पल्लवों से थंजावुर (वर्तमान मे तमिलनाडु का एक शहर) जीत लिया था और वहां पर अपने इष्ट देव महाकाल का भ्रिदेश्वर नाम का मंदिर बनवाया और अपने अंत समय में उसी मंदिर में अपने प्राण त्याग
दिए|
आएये अब हम इस चोल वंश
के अन्य प्रतापी राजाओं के बारे में जाने|
आदित्य प्रथम- यह विजयालय चोला की ही तरह एक प्रतापी राजा थे, जिन्होंने पंड्या और पल्लव राजाओं की सेना को एक साथ हरा दिया और पूरा
पल्लव राज्य अपने अधिकार में ले लिया| नवीं सदी के अंत तक पंड्या राज्य को भी उन्होने काफी कमजोर कर दिया था और इन्होने उनकी राजधानी तोंडामंडला को भी जीत लिया
था| उनकी वीरता से प्रभावित होकर राष्ट्रकुता राजा कृष्णराज ने अपनी बेटी की शादी उनसे कारवाई थी| इन्होने 907 ई. में निशुम्भासुदिनी
माता के मंदिर में समाधी ग्रहण की और अपने राज्य काल में कई शिव मंदिर बनवाये
थ|
प्रन्ताक्का- इन्होने 907 ई. में
अपने पिता आदित्य प्रथम के बाद राज्यभार ग्रहण किया और यह एक महत्वाकांक्षी राजा साबित हुए थे, जिन्होंने अपना पुरा जीवन युद्धों में ही बीताया| इनने पंड्या राजा राजसिम्हा से मदुराई को जीत लिया और मदुरैकोंदा की उपाधि ली जिसका मतलब होता है मदुराई को जितने वाला| पर 949 ई. में कृष्णदेवराज से तोक्काल्म युद्ध में ये पराजीत हो गये और तोंमंद्लम गवा दिया| बाद मे इन्होने विष पीकर आत्महत्या करने की भी कोशिश की पर कहते हैं स्वयं महाकाल
ने इनके प्राणों की रक्षा की और इनको अध्यात्म के मार्ग पर चलने
की आज्ञा दी जिसके पश्चात वो अपने पुत्र प्रन्ताक्काराज को राजा बना कर हिमालय पर चले गये|
प्रन्ताक्काराज- इन्होने राष्ट्रकुता को तोंमंद्लम के युद्ध में हरा कर सौराष्ट्र के रुई के व्यापार पर अपना अधिकार स्थापित किया और कई
मंदिर बनवाये थे| इनके समय मे ही कई दक्षिण भारतीय भाषाओं का विस्तार भारत के दूसरे प्रदेशों मे हुआ|
राजराजा चोला प्रथम- अपने पिता प्रन्ताक्काराज के बाद राजराजा चोला प्रथम ने चोल
वंश का राज्य ग्रहण किया| इन्होने 985 ई से
1014 ई तक राज्य किया और इनके समय को चोल वंशा का पहला स्वर्ण युग कहते हैं|
इन्होने अपने पूर्वज इल्लन (करिकला चोला के पिता) के रास्ते पर चलते हुए
श्रीलंका को जीता और वेगी के चालुक्य राजाओं को भी हराया और राजराजेश्वर मंदिर भी बनवाया| कहा जाता है कि इनके समय चोल राजवंश एक सप्ताह
में लगभग 4 करोड़ का व्यापार चीन के साथ करता था| इसकी जानकारी
हमें चीनी यात्री क्सुंज़ंग की किताब कुली-या के राज्य में मिलती हैं|
राजेंद्र चोला- यह भी अपने
पिता राजराजा प्रथम की ही तरह एक वीर राजा थे
|इन्होने गन्गैकोदा की उपाधि धारण की थी जिसका अर्थ होता
हे गंगा को जीतने वाला| इन्होने 1034 ई. के लगभग भारत में पहली
बार भारतीय विदेश सेवा की शुरुआत की थी| वैसे इस तिथि को लेकर थोडा मतभेद हैं| इन्होने अपने
राजदूत को चीन में भेजा था और वहां पर इनके राजदूत अरिश्त्देव ने कई भारतीय भाषाओँ के विद्यालयों की स्थापना वहाँ कारवायी| इन्होने अपने
राज्य की सीमा भारत के उत्तर में बिहार के राजा महिपाल को हरा
के बिहार तक ही की थी| परंतु भारत के बाहर मालदीव, अंदमान और
निकोबार द्वीप समूह, थाईलैंड, कम्बोडिया, सिंगापुर के साथ बर्मा (म्यामार) को भी जीत लिया था| सिंगापूर में अर्जुन (वीर पांडव) के पुत्र नागार्जुन का मंदिर भी बनवया था| इन्होने गंगा नदी से लाखों लीटर पानी सोने के
घड़ों में भरवा कर अपने साथ लेकर अपने राज्य में लाये और सबसे बड़ी इन्सान द्वारा निर्मित नदी बनवाई और उसका नाम चोला गंगा रखा| यह नदी लगभग 16 मील लम्बी और 3 मील चौड़ी थी| इसके बाद
भी जो पानी बच गया उसे इन्होने भ्रिदेस्वर मंदिर के जल कुंड में डलवा दिया| इनके समय को चोला
राजवंश का दूसरा स्वर्ण युग कहते हैं| राजेन्द्र चोला ने 1012 ई. से 1044 ई. तक
राज्य किया|
वीर राजेंद्र
चोला- इन्होने 1064 ई से 1070 ई. तक ही राज्य किया| इनके पहले इनके बड़े भाई राजेंद्र द्वीतीय ने 20 साल (राजेन्द्र चोला
प्रथम के बाद) राज्य किया था| पर इनके समय कोई
महतवपूर्ण घटना नहीं हुई| इनके समय चालुक्यों ने वेंगी प्रदेश इनसे छिन लिया गया और सोमेश्वर द्वीतीय ने चालुक्यों के नये राजा के रूप में राज्य ग्रहण किया था| उनसे मैत्री
सम्बन्ध बनाने के लिए इन्होने अपनी पुत्री सुलेखा का विवाह सोमेश्स्वर के पुत्र विक्रमादित्य से कर दिया था|
परंतु इसके पश्चात और समय के साथ चोल वंश धीरे धीरे कमजोर होने लगा और बाद में इस राजवंश के अंतिम राजा हुए विक्रम
चोला जिन्होंने 1120 ई. से 1135 ई. तक राज्य किया और अपने वंश की महान कीर्ति
को धूमिल होने से बचाया| पर जो होना होता
है वो हो ही जाता है और इस प्रकार 1135 ई. में चोल सेनाओं ने पंड्या वंश की एक विशाल सेना जिसमे होस्ल्या, चौलुक्य, पल्व राजाओं की सेना भी शामिल थी, से पराजित हो गए और पंड्या राजा मरावार्मन
कुअसेकारा पंड्या प्रथम ने चोला राज्य को पंड्या राज्य में मिला लिया और इस
तरह से सदा के लिए दक्षिण भारत के सदियों पुराने राजवंश की समाप्ति हो गयी और वो इतिहास के अंधेरे पन्नों में खो गया|
24\04\2020
परम कुमार
कृष्ण पब्लिक स्कूल
रायपुर(छ॰ग॰)
ऊपर दी
गयी तस्वीरें इस लिंक से ली गयी है-
5. https://www.google.com/imgres?imgurl=https%3A%2F%2Ftime.graphics%2FuploadedFiles%2F500%2Fb2%2Fd7%2Fb2d7e746d61fdbf860b7f9f5cb00ac58.jpg&imgrefurl=https%3A%2F%2Ftime.graphics%2Fevent%2F2434400&tbnid=clZrhDSZbPJAuM&vet=12ahUKEwjF8tff84DpAhWTA7cAHY1_Dr0QMygIegUIARDxAQ..i&docid=OzoNVELaY74WCM&w=500&h=500&q=rajendra%20chola%20images&ved=2ahUKEwjF8tff84DpAhWTA7cAHY1_Dr0QMygIegUIARDxAQ
Another wonderful post by Param about Chole vansh. Very few people know the remarkable contribution of Chole vansh. It is pleasant to know that they expanded up to Singapore and established a famous nagarjun temple over there. Congratulations to Param once again for this wonderful post.
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
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ReplyDeleteExcellent ��������
ReplyDeleteVery informative ...
ReplyDeleteThanku
Excellent
ReplyDeleteGreat!
ReplyDeleteInformative Content
ReplyDeleteबहुत ही साधारण तरीके से तुमने इतनी बड़ी जानकारी दी ईश्वर से कामना करती हूँ तुम इसी तरह अपने ज्ञान से यश प्राप्त करो बहुत बहुत आशीश 👏👍👌
ReplyDeleteValuable information. Way of writing is excellent!!!
ReplyDeleteअदभुत
ReplyDeleteलेख ।
चोल विषय पर प्रस्तुती करण बहुत प्रशंसनीय है। लोगो के धारणा अनुसार इतिहास एक नीरस विषय है जिसको तुमने सरस बना दिया। इसी प्रकार अपने नये-नये जानकारियों के साथ तुम आते रहो। यही मेरी शुभकामना है।
ReplyDeleteHistorical events like this largely go unnoticed.
ReplyDeleteEonderful narration