Tuesday 1 May 2018

MAHARANA SANGA
नमस्कार दोस्तों आपका मेरे इस नये ब्लॉग में एक बार फिर से स्वागत है| आज की हमारी चर्चा का विषय उस महान हिन्दू राजपुत राजा के ऊपर है जिसने दिल्ली को अपने साम्राज्य का हिस्सा बनाया और जिसकें नेतृत्व मै पहली बार ५०० से अधिक हिन्दू राजाओं ने विदेशी ताकत को भारत से हटाने के लिये युद्ध किया था और जो १५०८ से १५२७ के बीच मेवाड़ के राजा रहे |
जी हाँ दोस्तों मै बात कर रहा हूँ मेवाड़ कुल शिरोमणी और मेवाड़ के ४६ वे राजा और दिल्ली के अंतिम हिन्दू राजपुत राजा महाराणा संग्राम सिंह या महाराणा सांगा| जी हाँ दोस्तों ये वही सांगा है जिसके नाम से दुश्मन कांप उठते थे|
महाराणा सांगा के पिता का नाम महाराणा रायमल था और माता का नाम महारानी शोभामति था| इनका बचपन बहुत कष्टों से बिता था| उन्ही कष्टों में से एक  बहुत प्रचलित किस्सा ये है कि जब महाराणा रायमल वृद्ध हो चले तो उन्हें अपने राज्य के लिए उत्तराधिकारी की जरुरत थी | उनके तीन पुत्र थे | पृथ्वी सिंह, जयदत्त सिंह, और संग्राम सिंह (सांगा) इसलिए वो बहुत दुविधा मे थे की किसे राजा बनाये, तब उनके मंत्री रणधुरा सिंह ने उन्हें बताया कि मेवाड़ के पश्चिम दिशा की ओर एक माँ काली का मंदिर है, जहाँ एक दिव्य स्त्री रहती है और वो उनकी उत्तराधिकारी पे निर्णय लेने की समस्या दूर कर सकती है| यह सुनकर महाराणा रायमल ने अपने तीनो पुत्रों को अपने मंत्री रणधुरा सिंह के साथ उस मंदिर में भेज दिया| वहां पे तीन सिंहासन रखे थे, एक सोने का, एक चांदी का और एक लकड़ी का | लकड़ी के  सिंहासन पर शेर की खाल बिछी हुई थी| पृथ्वी सिंह सोने के सिंहासन पर बैठे जयदत्त चांदी के और संग्राम सिंह लकड़ी के सिंहासन पे (जिस पर शेर की खाल बिछी हुई थी) | तभी वो दिव्य देवी वहां आयीं और कहा जो लड़का शेर की खाल पर बेठा है वो ही भविष्य में मेवाड़ का राजा बनेगा| यह सुनकर पृथ्वी सिंह ने संग्राम सिंह की बायीं आंख फोड़ दी और उन्हें मारने दौड़ा| उस समय किसी तरीके से रणधुरा सिंह ने सांगा को बचा के उसके मामा के पास मारवाड़ भेज दिया| इस घटना के कुछ समय पश्चात महाराणा रायमल की मृत्यु हो गयी और पृथ्वी सिंह को मेवाड़ का राजा बनाया गया पर कुछ समय पश्चात् शिकार पर पृथ्वी सिंह और जयदत्त सिंह की मौत हो गई| अब मेवाड़ का राज्य सँभालने के लिए सांगाजी को मारवाड़ से वापस बुलाया गया| पर जब सांगाजी ने मेवाड़ का शासन संभाला तो उन्होंने पाया कि मेवाड़ चारों तरफ से मुसलमानी शत्रुओं से घिरा हुआ है | उत्तर कि तरफ में लोधी सुलतान, दक्षिण में मुजफ्फर शाह, पश्चिम में मुल्तान खान और पूर्व में अहमद खान| सांगाजी ने यह महसूस कर लिया था कि ये सारे राजा यदि एक होकर मेवाड़ पर हमला कर दिए तो मेवाड़ राज्य संकट में  आ जायेगा | महाराणा सांगा यह बात जानते थे अतः उन्होंने एक बहुत बड़ी सभा का आयोजन किया और उन्होंने इस संकट के बारे में सबको बताया कि राजपुताना राज्य चारों तरफ से शत्रुओं से घिरा हुआ है, और उनसे मुक्ति पाने का बस एक यही रास्ता है सारे राजपुत राजा एक होकर लड़ें| तब सब राजपुत राजाओं ने उनकी बात का समर्थन करते हुए उन्हें इस राजपुती स्वराज का राजप्रमुख बना दिया| अब महाराणा सांगा ने राजपुताने की रक्षा के लिए उत्तर में अपने चाचा रणविजय सिंह को चुण्डावत के पद के साथ और २०००० की सेना के साथ नियुक्त कर दिया| दक्षिण में रणथम्बौर के किलेदार रावसांगा राठौर को १५००० की सेना के साथ तैनात कर दिया| पश्चिम में धुरंधर सिंह को ३००० की घुड़सवार सेना के साथ तैनात कर दिया| और पूर्व में ठाकुर गजराज सिंह को ९००० की सेना के साथ तैनात कर दिया| बाद के वर्षों में जब मुसलमानों से युद्ध हुआ तो सबसे पहले गुजरात के बादशाह मुजफ्फर शाह ने १५१४ से लेकर १५२० तक १२ हमले किये पर आखिरी में वो परास्त हुआ और महाराणा सांगा ने गुजरात पर विजय हासिल किया|
इसके बाद १५२० से १५२१ तक महाराणा सांगा ने दिल्ली और मालवा के सुल्तानों से १८ बार युद्ध किये और उन्हें भी परास्त किया| इसी में से एक युद्ध में उनका बांया हाथ और पैर कट गया| पर तब भी उन्होंने हार नहीं मानी और पूरा भारत विजय किया|
इन्हीं महाराणा सांगा पर देश के ज्ञानी इतिहासकार आरोप लगते हैं कि इन्होंने मुग़ल राजा बाबर को दिल्ली जितने और धन की लालच में भारत बुलाया था | पर हमने जैसा ऊपर पढ़ा कि महाराणा सांगा का पुरे भारत पर अधिपत्य था जिसमे दिल्ली भी उनके राज्य का ही हिस्सा था (हांलाकि वो शासन मेवाड़ से ही करते थे) तो उनको दिल्ली जीतने की क्या जरूरत थी| रही धन की बात तो मेवार एक महीने में १० करोड़ कमाता और पूरा राजपुताना ५०० करोड़ से अधिक धन कमाता था यह खुद बाबर ने बाबरनामे में लिखा है|  इससे यह साबित होता है कि महाराणा सांगा ने बाबर को नहीं बुलाया था बल्कि वास्तव में बाबर ने ही महाराणा सांगा को मदद के लिए पत्र भेजा था| जिसे उन्होंने लौटा दिया था| पर कुछ इतिहासकारों ने इसे गलत रूप से परिभाषित करते हुए ये बताया कि महाराणा सांगा ने बाबर को अपनी मदद के लिए दिल्ली बुलाया था जबकि महाराणा सांगा का शासन लगभग पुरे पाकिस्तान और वर्तमान अफगानिस्तान के कई हिस्सों तक था और इसलिए उन्हें किसी भी बाहरी मदद कि जरुरत ही नहीं थी भारत में शासन करने के लिए| यह एक असत्य तरीके से कि गयी व्याख्या है जिसे लोगों ने समय के साथ सही मान लिया है| हमें अपनी धारणाओं को बदलकर महाराणा सांगा पर हमेशा गर्व करना चाहिये कि वही आखरी हिंदु राजा थे जिन्होंने दिल्ली को जीतकर अपने राज्य में मिलाया और उस पर शासन किया | हालाँकि पानीपत के युद्ध में कुछ समय के लिए मराठों ने भी दिल्ली को अपने कब्जे में लिया था परन्तु युद्ध के बाद फिर दिल्ली पर अब्दाली का शासन हो गया था | वैसे भी मराठों ने दिल्ली शासन करने कि लिए नहीं जीता था बल्कि पानीपत में होने वाले युद्ध के खर्चे और रसद सामग्री कि आपूर्ति के लिए बिना किसी बड़े युद्ध के एक तरीके से लूटा था |      
महाराणा सांगा ने भारत और मेवाड़ की राज्य सीमाओं को एक नये तरीके से सुदूर उत्तर और पश्चिम की तरफ फैलाया था और इस विरासत को  उनके बाद आने राजाओं ने गवां दिया और केवल वर्तमान राजस्थान के आस पास तक ही कायम रख पाए |
महाराणा सांगा का व्यक्तित्व साहसी एवं जुझारू था यही कारण है कि उनकी एक आँख, एक हाथ और एक पैर न होने के बाद भी उन्होंने मेवाड़ राज्य का विस्तार ही किया परन्तु उनकी उपलब्धियों को दुर्भाग्यपूर्ण कारणों से हमेशा कम करके ही आँका गया और वर्तमान भारत के लोगों ने (यदि हम कुछ इतिहासकारों को छोड़ दें तो) लगभग इस वीर योद्धा को भुला ही दिया है |    
धन्यवाद
01/05/2018                              
 परम कुमार
कक्षा ९
कृष्णा पब्लिक स्कूल
  रायपुर  



*  महाराणा सांगा का चित्र गूगल से लिया गया है


       


5 comments:

  1. बहुत ही साक्षात चित्रण किया है। बहुत सुंदर।

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  2. Such summarized details with depth of the history is very rare. 100% to the writer for his afforts to bring things which are lost in our books.

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  3. What a wonderful presentation about great Maharana Sanga, who never got due credit for his sacrifice.

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