Sunday 1 July 2018

नमस्कार दोस्तों|

आपका मेरे इस ब्लॉग में एक बार फिर से स्वागत है|

आज  हमारे चर्चा का विषय हिंदुस्तान के उस महान राजा के बारे में है जिसे भारत  का नेपोलियन भी कहा जाता है| भारत का नेपोलियन पढ़कर आप ये तो समझ ही गए होंगे कि मै गुप्त साम्राज्य के चौथे राजा भारत के नेपोलियन महाराजाधिराज चक्रवर्ती महाराज समुद्रगुप्त के बारे में बोल रहा हूँ | आइए हम समझें की समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन क्यों कहा जाता है और इनकी प्रारंभिक जीवन और इनके राजा बनने तक का सफर कैसा रहा तो आइए शुरू करते हैं|


Sunday 10 June 2018


नमस्कार दोस्तों आज का हमारा चर्चा का विषय एक ऐसे युद्ध पे है जिसके बारे में  हमारे देश में पता नहीं किन कारणों के कारण कभी भी महत्व नहीं दिया गया और इसके बारे में काम लोग ही जानते हैं पर इसे यूरोप के देशों में बहुत महत्व दिया जाता है और स्कूलों में पढाया भी जाता है| जी हाँ दोस्तों में बात कर रहा हूँ सारागढ़ी के युद्ध के बारे में| यह युद्ध ब्रिटिश सेना की  36वि सिख रेजिमेंट और पठानों के बीच लड़ा गया था| तो आईये शुरू करते हैं| 


Monday 4 June 2018


नमस्कार दोस्तों आपका मेरे ब्लॉग में स्वागत है आज का हमारा चर्चा का विषय उस महान राजा के ऊपर है जिसने भारत वर्ष को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया| जिसके नाम से विदेशी आक्रमणकारियों की रूह कांप उठती थी जिसने विदेशी आक्रमणकारियों  को भारत से ऐसा खदेड़ा की वजह वे 300 साल तक भारत वापस नहीं आए| इस महा योद्धा ने रावलपिंडी की स्थापना की थी जो की वर्तमान पाकिस्तान में है| जी हां दोस्तों मैं बात कर रहा हूं इक्ष्वाकु कुल शिरोमणि सूर्यवंशी महाराज भगवान श्री राम के वंशज मेवाड़ राजवंश के संस्थापक प्रथम मेवाड़ नरेश कालभोज बप्पा रावल जी की|
बप्पा रावल का जन्म सन 700 ईसवीमें चित्रकोट (वर्तमान चित्तौड़गढ़) में हुआ था| इनके पिता का नाम रावल नागभट्टसिंह था और माता का नाम चारू मीका सिंह| आप सोच रहे होंगे कि बप्पा रावल के तो पिता भी थे फिर बप्पा रावल  क्यों मेवाड़ राजवंश का संस्थापक बोला जाता है|

मित्रों इसका कारण यह है कि चित्रांगद गौरी नाम के एक राजा ने छल से बप्पारावल के पिता की हत्या कर दी और मेवाड़ में आग लगा दी और मेवाड़ का राजा बन बैठा| उसे लगा कि अब पूरा मेवाड़ राजवंश मर गया होगा| पर ऐसा नहीं था| कुछ सैनिकों ने रानी को गुप्त मार्ग से महल से बाहर भेज दिया| इस कठिन समय में नारंग नाम के ऋषि ने रानी को अपने आश्रम में शरण दी| इस हादसे के बाद चित्रांगद गौरी ने यह खबर फैला दी कि मेवाड़ राजवंश अब समाप्त हो चुका है| पर उसे क्या पता था उसका काल उसकी प्रतीक्षा कर रहा है| नारंग ऋषि ने बप्पा रावल को पाला उनको शिक्षा दी और एक योग्य व्यक्ति बना दिया| अब धीरे-धीरे बप्पा रावल का भविष्य उनके पास आ रहा था| हुआ कुछ यूं कि हर रोज बप्पा रावल आश्रम की सभी गायों को घुमाने ले जाते थे| पर जब वापस लाते थे उस समय जो गाय सबसे ज्यादा दूध देती थी उसका दूध नहीं निकलता था| सब को लगा कि बप्पा रावल उस गाय का दूध पी जातेहैं| जब यह घटना रोज घटने लगी फिर एक दिन जब बप्पा रावल ने देखा की वो गाय कहीं जा रही है| तो वो खुद उस गाय के पीछे गये और उन्होंने देखा कि गाय एक  शिवलिंग के ऊपर अपना सारा दूध चढ़ा देती है| वहां पर ही एक हरित नाम के ऋषि  बैठे थे| बप्पा रावल ने उनसे पूछा कि यह कौन से देवता है? ऋषि वर तब उन्होंने बताया यह भगवान शिव की मूर्ति है| शिवजी के इस रूप का  नाम एकलिंग नाथ है| ऋषि ने बोला हे बालक तुम कोई साधारण बालक नहीं हो तुम आने वाले समय के एक प्रतापी राजा हो| तुम कल भोर में 5:00 बजे मेरे पास आना| यह सब बातें उन्होंने आश्रम पहुंचने के बाद अपने गुरु और माता को बता के पूछा कि हे गुरुवर मै कौन हूं? मेरा अस्तित्व क्या है? नारंग मुनि ने कहा “हे वत्स अब समय आ गया है कि तुम अपना अस्तित्व जान लो और सुनो तुम और कोई नहीं इक्ष्वाकु कुल शिरोमणि सूर्य वंशी महाराज भगवान श्री राम के वंशज महाप्रतापी मेवाड़ राज वंश के इकलौते वंशज हो | यह सुनने के बाद बप्पा रावल ने पूछा कि मेरे पिता कहाँ हैं? नारंग मुनि ने उन्हें बताया कि कैसे चित्रांगद गौरी ने बप्पा रावल के पिता की छल से हत्या कर दी थी| इतना सब बताने के बाद नारंग ऋषि ने कहा| अब तुम सो जाओ और तुम कल उन ऋषि के पास अवश्य जाना| इस पूरी घटना के बाद बप्पा रावल निद्रा-आवास में जाकर सो  गये| परंतु भोर में उनका उठने में थोड़ा विलंब हो गया| वह जैसे ही उठे वह सबसे पहले उन ऋषि के पास गए| ऋषि से उन्होंने माफी मांगी बोले हे ऋषिवर मुझे क्षमा करें मुझे आने में थोड़ी देर हो गयी| ऋषि बोले वत्स कोई बात नहीं, पर अब मैं जैसा बोलता हूं वैसे ही करो| तुम अभी जहां पर खड़े हो वहीं खड़े रहो| यह कहने के बाद ऋषि ने बप्पा रावल के ऊपर थूक दिया| बप्पा रावल के ऊपर जब उन्होंने थूका तो बप्पा रावल ने अपना पैर वापस पीछे की तरफ ले लिया और वह थूक उनके पैर पर गिरी| ऋषिवर ने बप्पा रावल से पूछा हे वत्स तुमने अपने पैर पीछे क्यों हटा लिया? बप्पा रावल में बोले माफ करें ऋषिवर मुझे लगा कि आप थूकने वाले हैं इसलिए मैंने अपने पैर पीछे हटा लिया| ऋषिवर बोले तुमने यह बहुत बड़ी गलती कर दी अगर यह थूक तुम्हारे सर पर पड़ती तो जब तक तुम्हारा वंश रहता वह समूचे हिंदुस्तान पर राज करता पर यह तो तुम्हारे पैर पर पड़ी है तो भी इसका असर खाली नहीं जाएगा | तुम जहां जहां भी पैर रखोगे वह राज्य तुम्हारे हो जाएंगे| यह कहने के बाद ऋषिवर चले गए|

अब बप्पा रावल ने अपने पिता के हत्यारे चित्रांगद गोरी से बदला लेने की ठानी और वह चित्तौड़गढ़ की तरफ बढ़ गए| उस समय चित्तौड़गढ़ का नाम चित्रकोट था| उन्होंने जैसे ही चित्तौड़गढ़ में अपने पांव रखें चित्तौड़ की सत्ता उनके हाथ में आनी चालू होगी| चित्रांगद गौरी को  उस समय एक प्रधानमंत्री की जरूरत थी| बप्पा रावल चित्रांगद गौरी के पास गए और कहा हे महाराज मैं आपका सेवक बनना चाहता हूं कृपया करके मुझे अपना प्रधानमंत्री नियुक्त करें| चित्रांगद गौरी ने कहा मैं ऐसे ही किसी राह चलते आदमी को प्रधानमंत्री नहीं बना सकता| मैं तुम्हारी कुछ परीक्षाएं लूंगा अगर तुम उस में सफल होते हो तो मैंतुम्हें अपना प्रधानमंत्री बना दूंगा| उसने सबसे पहले बप्पा रावल की दिमाग की परीक्षा ली जिसमें बप्पा रावल सफल रहे| इसके बाद उसने शस्त्र विद्या और शास्त्रों की परीक्षा ली उसमें भी बप्पा रावल सफल रहे|  इस से खुश होते चित्रांगद गौरी ने उन्हें अपना प्रधानमंत्री नियुक्त कर लिया और इसी से चित्रांगद गौरी की मृत्यु की उलटी गिनती चालू हो गयी| फिर क्या था, जैसे जैसे समय बीतता गया बप्पा रावल ने गोरी की समस्त सेना को अपनी तरफ मिला लियाऔर एक दिन एक गुप्त सभा का आयोजन किया| जिसके बारे में गोरी को कुछ भी नहीं पता था| उसमे उन्होंने गोरी के सब सेनापतिओं और मंत्रिओं को अपने तरफ मिला लिया| अगले दिन उन्होंने कहा “हे चित्रांगद गौरी मैं उसी रावल भट्ट सिंह का पुत्र हूं जिसे तुमने छल से मारव दिया था मैं तुमसे अपना मेवाड़ राज्य वापस लेने आए हो अगर अपनी ख़ैरियत चाहते हो तो चुपचाप यहां से चले जाओ वरना मेरे से युद्ध करो|” चित्रांगद गौरी ने सैनिकों को आदेश दिया पर उसे नहीं पता था कि सारे सैनिक बप्पा रावल की तरफ मिल चुके थे| इस दुस्साहस के चलते बप्पा रावल ने  चित्रांगद गौरी को कैद कर लिया और उसे मृत्युदंड सुना दिया| अब आप सब सोच रहे होंगे की बप्पा रावल ने मेवाड़ पुन: वापस हासिल कर लिया इसलिए उन्हें मेवाड़ राज का संस्थापक बोलते हैं| परन्तु ऐसा नहीं है उन्हें मेवाड़ राज वंश का संस्थापक इस लिए बोलते हैं क्योंकि चित्रांगद गोरी ने भारत वर्ष में यह खबर फेला दी थी की मेवाड़ राजवंश का अन्त हो चूका है और बप्पा रावल ने एके फिर से मेवाड़ राजवंश की स्थापना की इसलिए उन्हें मेवाड़ राजवंश का संस्थापक बोलते हैं|

बप्पा रावल ने राजपूताने को कई बार अरब के आक्रमणों से बचाया भी था| जिसमे सन 736 ई का युद्ध बहुत प्रसिद्द है|क्योंकि इस युद्ध में बप्पा रावल ने एक नई प्रकार की तकनीक का इस्तमाल किया था| उन्होंने एक एक ऐसे धनुष का निर्माण किया था जो एक बार में कम से कम 10 तीर छोड़सकता था| वर्तमान समय में इस धनुष को क्रॉसबो के नाम से जाना जाता है| अंग्रेज इतिहासकार और कुछ समय के लिए भारत के वाइसराय रहे चुके कर्नल जेम्स टॉड लिखते हैं कि "यह धनुष उस समय की बन्दुक था|" बप्पा रावल ने इस धनुष से सम्पूर्ण अरबी सेना में हाहाकार मचा दिया था| मज्बोरण महमूद शा इक्लेतुस को बप्पा रावल के सामने आत्म समर्पण करना पड़ा| बप्पा रावल ने राजपूताने की रक्षा के बाद भारत की सुरक्षा की तरफ और ध्यान दिया| उन्होंने वर्तमान पाकिस्तान से विदेशियों (खासकर अरबियों) को खदेड़ने के बाद सन 738 इसवी में एक शहर बसाया था इस जगह को वहां के स्थानियो लोग रावल पिंडी (बप्पा रावल के नाम पर) के नाम से बुलाने लगे| यह रावलपिंडी आज वर्तमान पाकिस्तान में स्थित है और वहां का एक प्रमुख शहर है | अरबियों ने इस हार का बदला लेने की ठानी और एक और बार भारत पे आक्रमण कर दिया| यह युद्ध पेशावर में लड़ा गया था| इसमें बप्पा रावल की सेना एक लाख से अधिक थी और अरबियों की 70000 थी| पर बप्पा रावल ने यह बात अरबियों को पता नहीं चल ने दी और अपनी सेना का बहुत बार हिस्सा वहां आस पास के जंगलों में छुपा दिया और मात्र 30000 की सेना के साथ वे अरबियों के सामने आये| यह उनकी चाल थी जिसमे अरबी फंस गए और वो अपनी सम्पूर्ण सेना के साथ बप्पा रावल के सामने आ गये| अब बप्पा रावल ने भी अपनी बाकी की सेना को बुला लिया और अरबियों की सेना को चारों तरफ से घेर लिया और उन्हें मारना चालू किया| इस युद्ध अरब के बहुत से सैनिक मर गए और 4000 अरबी सैनिक पकडे गए| जिसमे उनका राजा वजीरखां इक्लेतुस भी था| बप्पा रावल ने इन सब को मौत की सजा दी| वजीरखां इक्लेतुस  के मौत की खबर पुरे अरब में फैल गयी थी| सब अरब के वासी अब भारत आने से डर रहे थे| समूचे हिंदुस्तान के राजाओं ने बप्पा रावल के इस उपकार को स्वीकार और उन्होंने बप्पा रावल से आग्रह किया की आप हमारे राजा बन जाये और महा-चक्रवर्ती की उपाधि धारण करें| बप्पा रावल ने यह आग्रह स्वीकार किया और महा-चक्रवर्ती की उपाधि धारण की और समूचे भारत पे राज किया|

बप्पा रावल के डर से उनके मृत्यु के भी 300 साल बाद तक विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में कदम नहीं रखा| बप्पा रावल ने सन 753 ई में समाधी ले ली और हमेशा का लिए सो गये| बप्पा रावल का राज काल 734 से 753 ई तक था| इनके राज्य में भारत की बहुत प्रगति हुई|

तो दोस्तों यह थी गाथा मेवाड़ राजवंश के संस्थापक और प्रथम मेवाड़ नरेश बप्पा रावल की|
          मित्रों इस ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और कमेंट करें|
                 || जय राजपुताना ||
                   || जय भारत ||                       
धन्यवाद    
04\06\2018                                                       
     परम कुमार 
  कक्षा 9 
         कृष्णा पब्लिक स्कूल
                                                             

                                                               
                                                                      
                                                                
 ऊपर दी गयी फोटो इस लिंक से ली गयी है|                                                        
https://www.facebook.com/124905221300316/photos/a.124907654633406.1073741826.124905221300316/124907661300072/?type=1&theater

Sunday 27 May 2018

नमस्कार दोस्तों आपका मेरे इस ब्लॉग में स्वागत है आज का हमारा चर्चा का विषय उस योद्धा पर है जिसने ना सिर्फ विश्व विजेता सिकंदर को युद्ध में पराजित किया बल्कि उसे भारत में और आगे घुसने से भी रोका|जी हाँ दोस्तों में बात कर रहा हूँ ठाकुर पुर्शोतम सिंह की जिन्हें हममें से अधिकतर पोरस के नाम से ज्यादा जानते हैं |हो सकता है कि आप यह पढ़ कर सोच रहे होंगे कि मैं यह कैसी बात कर रहा हूं क्योंकि आप सब ने आज तक तो यही पड़ा होगा कि सिकंदर ने झेलम के किनारे पोरस से लड़ाई की और पोरस को हरा दिया और एक कहानी के रूप में हमें बताया जाता रहा है की पोरस के हारने के बाद जब सिकंदर ने पोरस से पूछा था कि तुम्हारे साथ कैसा व्यहवार होना चाहिये तो पोरस ने कहा कि जैसा एक राजा दुसरे राजा के साथ करता है |
पर नहीं दोस्तों यह गलत है|  आज मैं आपको बताऊंगा कि क्या कारण था जिसकी वजह से सिकंदर वापस लौटा और क्या कारण था उसकी हार का और क्या कारण था ऐसे गलत इतिहास रचने का|
तो आइए शुरू करते है पोरस का जन्म 350 ईसापूर्व में आज के वर्तमान पंजाब उस समय के पौरव राष्ट्र में हुआ था| पोरस का असली नाम ठाकुर पुरुषोत्तम सिंह था | पर विदेशियों को पुरुषोत्तम नाम उचारण में दिक्कत आती थी तो उन्होंने यह नाम  छोटा करके अपने मुताबिक पोरस कर दिया  (खैर यह अलग बात है कि हम विदेशियों द्वारा दिये गए नाम को ही अब असली मानने लगे हैं) और उके पिताजी का नाम ठाकुर भीमराज सिंह था | क्योंकि इनके पिता का नाम भी उच्चारण करने में विदेशियों को दिक्कत होती थी तो इनका नाम उन्होंने बमनी कर दिया|  इनकी माता का नाम अनसूया था जो उस समय के तक्षशिला राज्य की राजकुमारी थी| रानी अनुसूया के पिता ने इनका विवाह भीमराज सिंह से करवाया था | पर इनके भाई को यह विवाह पसंद नहीं था | इसलिए राजा की मृत्यु के बाद उन्होंने कई बार पौरव राष्ट्र पर आक्रमण किया पर उन्हें कभी भी इसमें जीत हासिल नहीं हुई और हर बार भीमराज सिंह से मुंह की खानी पड़ी| इतिहास में लिखा जाता है कि जहां एक जहां एक तरफ पोरस अपने देश को बचाने के लिए दूसरे देशों से लड़ता था पर कभी भी जीते हुए देशों पर राज नहीं करता था वहीं दूसरी तरफ ग्रीस में  शाह फिलिप तृतीय का सबसे बड़ा बेटा एलेग्जेंडर अपनी महत्वकांक्षाओं की वजह से और अपने मां के भड़कावे में आके  अक्सर दूसरे राज्यों पर आक्रमण करता था | उसने अपने आप को राजा बनाने के लिए अपने ही भाई और अपने ही पिता का उनके अंग रक्षकों द्वारा कत्ल करवा दिया था| उसके बाद वह विश्व विजेता बनने का सपना देखने लगा| पर उसकी मां यह नहीं चाहती थी कि वह विश्व वजयी बनने के लिए कभी भी भारत की तरफ जाये है
सन 330 में अलेक्जेंडर ने अपनी विजय यात्रा शुरू की उसने अपनी विजय यात्रा ग्रीस से चालू की थी| ग्रीस राज्य जीतने के बाद उसने वहां बहुत भयानक  दहशत मचाई और वह भले ही वह राज्य जीत गया हो पर उसने पूरे देश यानी उस पूरे राज्य को जिंदा जला दिया था| इसके बाद इसके बाद उसकी ऐसी क्रूरता देखकर पश्चिम के सभी राजाओं ने उसके सामने आत्मसमर्पण कर दिया था | पर इतना ही करके एलेग्जेंडर की महत्वकांक्षा रुकी नहीं वह तो विश्व विजेता बनना चाहता था| उसने सुन रखा था कि भारत सोने की चिड़िया है इसलिए अब उसने अपने कदम पूर्व यानी भारत की तरफ़ बढ़ाए |
भारत आते समय सबसे पहले उसने उस समय के फारस आज के ईरान/इराक पर हमला किया | वहां पर उसका सामना वहां के राजा शाहदरा से हुआ| सिकंदर की सेना कमसे कम एक लाख की  थी और उसकी सेना और उसकी सेना मात्र 50000 सिपाही की थी| जिसमें कुछ फ़ारस के विद्रोही सिपाही भी थे | सन 329 में एलेग्जेंडर का सामना शाहदरा से फ़ारस के राज्य यीशुस में हुआ| इस जंग में शाहदरा बहुत बुरी तरीके से हार गए और उन्हें बदले में अपना संपूर्ण राज्य एलेग्जेंडर को सौंपना पड़ा | बदले में उसने एक शर्त पर शाहडारा को माफ किया कि वह अपनी बेटी की शादी उससे करवा दे| अपने राज्य को और अपने प्रजा को बचाने के लिए शाहदारा ने अपनी बेटी की शादी अलेक्जेंडर से करवा दी | अब फ़ारस जीतने के बाद मसेदोनिया दुनिया का सबसे बड़ा राज्य ब चुका था| पर एलेग्जेंडर की महत्वताकांक्षा का कहीं पर अन्त नहीं था| फ़ारस को जीतने के बाद फ़ारस के लोगों ने एलेग्जेंडर को सिकंदर नाम भी दिया सिकंदर का मतलब होता है जो कभी भी ना हरा हो | वह फ़ारस जीतने के बाद एलेग्जेंडर इजिप्ट की तरफ बढ़ा इजिप्ट में भी उसने भयानक रक्त पात किया और उसने इजिप्ट भी जीत लिया| 
इजिप्ट जीतने के बाद वह हिंदूकुश पर्वतों की तरफ बढा| हिंदू कुश पर्वत में उसका सामना भारत के वीरों से हुआ| सबसे पहले उसने पेशावर में हिन्दुयों से लड़ाई की थी| ऐसा बताया जाता है कि पेशावर की लड़ाई में केवल आदमी ही नहीं औरतों ने भी हिस्सा लिया था और ऐसी भयानक लड़ाई लड़ी गई थी कि उसकी सेना में भारत में और अन्दर जाने के लिए डर बैठ गया था| पर सिकंदर ने यह कहके  उन्हें भारत में आगे घुसने की ताकत दी कि अगर हम भारत जीत जाते हैं तो मैं उन सब सैनिकों को जिन्होंने सबसे ज्यादा दुश्मनों के सैनिकों के मारा हैं उको मैं जीते हुए राज्य का सूबेदार नियुक्त कर दूंगा| इस लालच में एलेग्जेंडर के सब सैनिक भारत में घुसते चले गए| पेशावर जीतने के बाद इन्होंने तक्षशिला पर आक्रमण किया पर तक्षशिला का राजा अंबे विराज ने अलेक्जेंडर से मुकाबला करने की बजाय उसका भव्य पूर्ण स्वागत किया और उसे यह भरोसा दिलाया कि मैं आपका एक सिपहसालार बनने योग्य हूं और मैं आपके साथ मिलकर युद्ध करूंगा| उसने यह इसलिए किया क्योंकि अलेक्जेंडर का अगला निशाना और कोई नहीं बल्कि पौरव राष्ट्र था और क्योंकि पौरव राष्ट्र से अंबे राज की शत्रुता थी, इसलिए उन्होंने अलेक्जेंडर की सहायता करना मुनासिब.समझा| 326 ईसापूर्व में अलेक्जेंडर का सामना पौरव राजपूत राजा ठाकुर पुरुषोत्तम सिंह से हुआ| 
पुरुषोत्तम नाम उच्चारण करने में दिक्कत होती थी तो उसने अपने फ़ारस के एक सिपहसलार से पूछा कि जब तुम भारत आए थे तो तुम लोग क्या नाम से पोरव राजा को पुकारते थे तो उसने कहा पोरव राजा को हम पोरस नाम से बुलाते थे| 324 ईसापूर्व में पोरस के पिता महाराज बमनी की आपातकालीन मृत्यु हो गई जिसके चलते  पोरस को राजा बनाया गया| कहा जाता है कि पोरस का राज्य भारत के विशालतम राज्यों में से एक था| आज के  झेलम नदी से ले के चेनाब नदी तक फैला हुआ था| सन 326 ईसापूर्व में रात के समय अलेक्जेंडर ने झेलम नदी को पार करके पोरस जहां पर था वहां पर जाने का फैसला किया| झेलम नदी को पार कर रहा था उस समय पोरस जानता था कि एलेग्जेंडर अपने 11000 सिपहिओं के साथ झेलम नदी को पार कर रहा है पर उसने उसको वहां से भगाने के लिए या मारने के लिए कोई भी उपाय नहीं किया| इतिहासकार बहुत बड़ी भूल मानते हैं पर शायद वह नहीं जानते थे जब अलेक्जेंडर अपनी  सेना के साथ झेलम नदी के दूसरी तरफ पहुंच गया उसके तुरंत बाद झेलम नदी में बाढ़ आ गई जिसकी वजह से उसकी बहुत बड़ी सेना पानी में डूब गई| एलेग्जेंडर की सेना में अब मात्र 35000 सिपाहियों ही बचे थे| जिसमे से 11000 सिपाही नदी के दूसरी तरफ थे| अब पोरस का पल्ला भारी हो चूका था क्योंकि पोरस के पास 20000 सिपाही थे 5000 रथ,10000 घोरे और 5000 हांथी थे| अगले दिन सुबह युद्ध चालू हुआ| पोरस जनता था की अलेक्जेंडर की सेना की सबसे बडी ताकत उसकी घुडसवार सेना थी| युद्ध के शुरुआत में ही पोरस ने 500 हांथी युद्ध में उतर दिए| यह हांथी बिलकुल किसी टैंक की तरह थे जो भी इनके सामने आता था यह उसको अपने पैर से  कुचल देते थे| अलेक्जेंडर की सेना मामूली सेनापतियों तक नहीं पहुंच पा रही थी जो हाथी र बैठे थे तब राजा पोरस तक पहुंचना तो बहुत दूर की बात थी| एलेग्जेंडर की सेना हाथियों के पैरों तले कुचलता जा रही थी तभी एलेग्जेंडर के सेनापति ब्रूस्टर ने राजा पोरस के भाई अमर को मार दिया| राजा पोरस के भाई अमर को मार के वो और उतावला हो गया और राजा पोरस के बेटे विजय सिंह की तरफ पर बढ़ा| शायद वह नहीं जानता था कि वह घोड़े पर है और विजय सिंह हाथी पर| उसने घोड़े पर से 1 भाले को विजय सिंह की तरफ फैका पर वह भला उसके हाथी की सूंड में लगा और हाथी ने वह भाला तोड़ दिया| विजय सिंह ने अपने तीर का एक ऐसा वार किया जिसकी वजह से ब्रूस्टर की मौत हो गई| अपने इतने बड़े सिपहसालार की मौत देखकर एलेग्जेंडर ने युद्ध रोक दिया | अब उसकी सेना में एक विद्रोह का माहौल बन रहा था | उसने अब इस विद्रोह को रोकने एक ही उपाय सूझा और वह यह था महाराज पोरस से संधि उसने संधि कर ली और हार जाने  के तौर में 10000 स्वर्ण मुद्राएं राजा पोरस को प्रदान की| राजा पोरस ने उस को आदेश दिया कि तुम भारत से चले जाओ और भारत में जीत हुए सभी राज्य उनके राजाओं को वापस लोटा दो | एलेग्जेंडर में ऐसे ही किया उसने अपनी सेना का एक बहुत बड़ा हिस्सा सिन्धु नदी के रस्ते से वापस फ़ारस भेज दिया और बचे सिपहिओं के साथ जाट प्रदेश वर्तमान हरियाणा के राज्य से होते हुए जा रहा था| उस समय उसका सामना वहां के जाट वीरों से हो गया और जाटों ने उस को बहुत हानि पहुंचाई| युद्ध से जाते समय एक जाट ने उसके पीठ पर वार कर दिया| पर उसके सैनिकों ने किसी तरह से उसे वहां से निकल लिया यह घटना आज के सोनीपत शहर में हुई थी| सोनीपत से उत्तर में 60 किलोमीटर चलने के बाद उसकी मौत हो गई|
अब मैं आप को बताउगा की क्यों इतिहास में लिखा है कि एलेग्जेंडर ने पोरस को हराया था| क्योंकि उस समय पश्चमी राज्यों का प्रभाव था और उन्होंने इतिहास लिखा| इसलिए कहा जाता है कि अलेक्स्जेंडर ने पोरस को हराया था और इसके साथ अन्य कहानियां जोड़ के ये बताया कि भारत देश को जीतने के बाद वह जब लौट रहा था तब किसी दुर्घटना के कारण उसकी मृत्यु हो गयी|  |

अब मैं आप को कुछ कारण बतायुंगा जिससे यह साबित होता है कि पोरस ने अलेक्स्जेंदाएर को हराया था|
1-अगर अलेक्स्जेंदर युद्ध जीतता तो वह मगध तक जाता पर उसने ऐसा नहीं किया|
2-इतिहासकार कर्तियास जो की एक बहुत बड़े इतिहासकार हैं वो लिखते है की अलेक्स्जेंदर का बहुत बरी सेना युद्ध में मारा गया था और युद्ध में पोरस की जीत हुई थी|

3- पश्चमी इतिहास के महान इतिहासकार इ.एन.डब्लू. बेज लिखते हैं की पोरस के हाथियों के दल ने अलेक्स्जेंडर की बहुत बड़ी सेना को मार दिया था, जिसमे उसके 5 सेनापति भी थे| इस हानि को देखते हुए अलेक्स्जेंदर ने पोरस से संधि कर ली थी|

पोरस के बारे में कुछ खास बातें- ग्रीक इतिहासकर लिखते हैं की पोरस 9 फीट से भी लम्बा था| उसकी सेना में जितने भी योद्धा थे सब 7 फीट से ऊपर के थे| पोरस की सेना की ताकत उसके हंथियों और भाले वाले सिपहिओं थे|


तो दोस्तों यह थी पोरस और सिकंदर के बीच हुए युद्ध का असली परिणाम| इस ब्लॉग को ज्यादा से जयादा कमेंट करें और शेयर करें| 
       क्या आप पौराणिक कथाओं के बरे मै जानना चाहेंगे तो इस लिंक पर क्लिक करें |
    
                                      
                             ।। जय भारत ।।
         धन्यवाद्                                                 
         27\5\18                                     परम कुमार
                                                        कक्षा-9
                                               कृष्णा पब्लिक स्कूल
                                                 रायपुर
       
    यह फोटो गूगल के इस लिंक से लिया गया है|
 https://www.jatland.com/home/Porus

Best Selling on Amazon

Member of HISTORY TALKS BY PARAM

Total Pageviews

BEST SELLING TAB ON AMAZON BUY NOW!

Popular Posts

About Me

My photo
Raipur, Chhattisgarh, India

BEST SELLING MI LAPTOP ON AMAZON. BUY NOW!

View all Post

Contact Form

Name

Email *

Message *

Top Commentators

Recent Comment