Wednesday 6 March 2019


जय महाकाल
नमस्कार दोस्तों आपका मेरे ब्लॉग में स्वागत है| आज हमारी चर्चा का विषय उस व्यक्ति पर है, जिसने त्रिलोक जीता जिसके दरबार मैं नौ-ग्रह और सप्त-ऋषि उसके आदेश का पालन करने को विवश थे| क्या आप अभी भी नहीं समझ पाए? अब समझ जायेंगे
        || यह गाथा उस ज्ञानी की, वीर, तेजस्वी, अभिमानी की,
           यह गाथा, त्रिलोक पति, लंकाधिपति, प्रखंड पंडित रावण की ||
जी हाँ दोस्तों आज का हमारा ब्लॉग महापंडित रावण पर है| आप सब सोच रहे होंगे कि मै यह रावण पर ब्लॉग क्यों लिख रहा हूँ| दोस्तों मैं रावण पर यह ब्लॉग इसलिये लिख रहा हूँ क्योंकि रावण का अभिमान तो सब ने देखा पर ज्ञान किसी ने ना देखा| रावण के प्रति कई लोगों के मन में बुरे विचार हैं, मैं उन्हें बताना चाहूँगा कि रावण बनना आसान नहीं क्योंकि अगर उसमे बुराई थी तो अच्छाईयां भी थीं|इस सब के बारे मैं आपको मेरे इस ब्लॉग मैं पता चल जायेगा| तो आईये शुरू करतें हैं|

रावण का जन्म  
रावण, ब्रह्मा जी का पौत्र, विश्रवा मुनि और कैक्सी का पुत्र था| जी हाँ दोस्तों यह ब्रह्माजी त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु-महेश वाले ब्रह्मा जी हैं| रावण के जन्म के बारे मैं बहुत सी कहानियाँ मिलती, उसमे से एक मै आप को बताता हूँ| यह बात उस समय की है जब दानवों के राजा सुमाली थे| जो देव-असुर संग्राम में तीसरी बार हार चुके थे| अब दानवों को एक श्रेष्ठ राजा की आवश्यकता थी| इनकी पुत्री थी केक्सी जिसने ब्रह्मा जी की तपस्या की और उनसे वरदान माँगा की वो अपने ब्राह्मण पुत्रों में से एक की उससे शादी करवा दें| ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र विश्रवा मुनि से केक्सी का विवाह करवा दिया| इसके पश्चात् इन्होने भगवन शिव की आराधना की और उनसे वरदान माँगा की हमें ऐसा संतान प्रदान करें जिसमे   राजसिक, तामसिक और धार्मिक गुण हो| शिव जी तथास्तू बोलकर अंतर्ध्यान हो गए| दोस्तों यह से शुरू होती रावण के बनने की कहानी| जब केक्सी ने भगवन शिव से पुत्र वरदान माँगा उस समय कि कुछ घटनाओं ने भी इस संसार में अपना अस्तित्व दिखाया| आईये जाने वो घटनाएँ|
चक्रवती राजा प्रतापभानु के साथ हुई घटना
प्रताप भानु ने असुरों के सम्पूर्ण विनाश के लिए एक यज्ञ करवाया| जिसमे उन्होंने दुर्वासा मुनि को भी बुलाया| असुरों ने अपने आप को बचाने हेतु दुर्वासा ऋषि के भोजन को अशुद्ध कर दिया, जिससे क्रुद्ध होकर उन्होंने प्रतापभानु को अगले जन्म मैं एक दानव बनने का श्राप दे दिया| माफ़ी मांगने पर दुर्वासा मुनि ने कहा मै श्राप को वापिस तो नहीं ले सकता पर यह आशीर्वाद देता हूँ तुम एक समृद्ध और कीर्तिवान दानव नरेश होगे जो कभी भी भुलाया ना जा सकेगा|
बैकुन्ठ लोक के द्वारपाल जय-विजय के साथ हुई घटना-
एक बार श्री हरी विष्णु से मिलने बैकुन्ठ कुछ बालक ब्राह्मण आये| जो कि अपने क्रोधी स्वभाव के लिए जाने जाते थे| यह बात जय और विजय को पता नहीं थी तो उन्होंने उनको अन्दर प्रवेश करने से रोक दिया| उन बालक ब्राह्मणों ने उनसे बहुत निवेदन किया पर जय और विजय ने उनकी एक ना सुनी तब क्रुद्ध होकर उन बालक ब्राह्मणों ने उन्हें श्राप दे दिया और कहा तुमने ‘वैकुंठ के द्वारपाल होने के बावजूद भी पाताल के दानव द्वारपालों जैसा व्यवहार किया| हम तुम्हे श्राप देते हैं अगले जन्म मै तूम दोनों दानव कुल में जन्म लोगे|” इसके पश्चात् अपने कृत से शर्मिंदा होकर उन्होंने उनसे बहुत माफी मांगी तो उन्होंने कहा ‘हम अपना दिया हुआ श्राप तो वापस नहीं ले सकते लेकिन, हम तुम्हे वरदान देते है जय तुम एक ब्राहमण-दानव कुल में जन्म लोगे और एक प्रखंड और विद्वान पंडित होगे जैसा पूरे संसार में कोई नहीं होगा| विजय तुम भी इसी कुल मै जन्म लोगे परन्तु तुम सब पाप कृत से मुक्त रहोगे और सदैव भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहोगे पर उनके हांथो मुक्ति मात्र जय को मिलेगि तुम्हे नहीं|   
कैलाश मै शिव गणों के साथ घटी घटना
एक बार ऋषि अगस्त कैलाश आये तो भांग के नशे में चूर दो गणों ने उनका अपमान कर दिया| इस पर क्रुद्ध होकर ऋषि अगस्त ने उन्हें अगले जन्म में दानव कुल में जन्म लेने का श्राप दे दिया| इसके पश्चात् दोनों में से एक गण के बहुत क्षमा मांगने पर पर उन्होंने कहा तुम दानव कुल में तो जन्म लोगे लेकिन तुम मात्र जब तक चेतना में रहोगे तभी तक बुरे कार्य करोगे और संसार तुम्हे सदैव याद रखेगा|
अतः जब प्रतापभानु का राजसिक गुण, जय का धार्मिक गुण और क्षमा ना मांगने वाले गण का तामसिक गुण मिले तब जाके निर्माण हुआ रावण का| विजय का जन्म हुआ विभीषण के रूप में और क्षमा मांगने वाले गण का कुम्भकर्ण के रूप मैं|
जब रावण का जन्म हुआ तब उसके दस सिर और बीस हांथ थे| रावण के दस सिर व्यक्ति के दस भावों को प्रदर्शित करते थे| जो की हैं – काम, क्रोध, लोभ, मोह, मधा, विद्याश, मानस, बुद्धि, चित और अहंकार| कहा जाता है रावण जब पैदा हुआ था तब उसके माथे पर त्रिशूल का निशाना था| रावण जैसे-जैसे बड़ा होता गया उसकी बुद्धि तीव्र होती गयी| उसने दस साल की उम्र में ही चारों वेदों को साध लिया था| रावण का जन्म सत्य युग में हुआ था और जब उसकी मृत्यु हुई तो वो बारह लाख साल का था| पर कई मान्यताओं के हिसाब से वो इससे भी ज्यादा उम्र का था| रावण की शिक्षा दानव आचार्य शुक्राचार्य की निगरानी में हुई थी| उसने उनसे कई मंत्र शक्तियाँ और सिद्धियाँ प्राप्त की थीं परन्तु मात्र इससे उसका दिल नहीं भरा उसने ब्रह्मा जी, शिव जी और विष्णु जी की घोर तपस्या की थी|
रावण ने ब्रह्माजी की 10000 वर्षों तक घोर तपस्या की थी और 1000 वर्ष बाद वो अपना एक सर उनको अर्पित करता था| इस्से प्रसन्न होकर उन्होंने उससे पूछा  “तुम्हे क्या वर चाहिये पुत्र?’ इस पर रावण ने कहा मुझे अमरत्व प्रदान करें| तब ब्रम्हा जी ने कहा ‘मैं यह वरदान तुम्हे नहीं दे सकता हूँ|” तो रावण ने कहा कि आप मुझे वरदान दें की मेरी मृत्यु न देव से, न दानव से, न गंधर्व से, न यक्ष से हो| इसके बाद उसने सभी जानवरों का भी नाम लिया जो उसे ना मार सकें सिवाय वानर के| इस तरह रावण वानर और इन्सान का नाम लेना भूल गया था| जिसके पश्चात रावण ने उसे वरदान दे दिया| इसके पश्चात् उसने शिवजी की तपस्या की और उनसे सभी दिव्यास्त्र और अपने सातों चक्रों को जागृत करने का और उनका त्रिशूल माँगा था| शिवजी ने यह वरदान उसे दे दिया| इसके पश्चात् क्या था, रावण के कारण चारों तरफ त्राहि-त्राहि मच गयी| उसने तीनो लोकों को अपने आधीन कर लिया| धरती में उसे दो बार हार का सामना करना पड़ा पहली बार जब वो त्रिलोक विजय पर निकला तो सब राजाओं ने सप्तसिंधु सम्राट अयोध्या नरेश मान्धाता से मदद मांगी और उन्होंने रावण को पराजीत किया और दूसरी बार भी सब ने अयोध्या नरेश अज से सहायता मांगी और उन्होंने रावण को पराजित किया|
नव ग्रहों पर रावण की जीत
रावण संहिता मैं वर्णन मिलता है कि रावण ने नव ग्रहों को अपने दरबार में स्थापित कर रखा था| तो आईये जाने उसके पीछे की कहानी| रावण जब बाली से युद्ध कर के लौटा जिसमे उसकी हार हुई| तो वो बहुत गुमसुम सा रहने लगा| इसका असर केवल रावण ही पे नहीं पड़ा बल्कि देवताओं को भी अपनी शक्तियों पर घमंड हो गया, खासकर नव ग्रहों को, एसे समय पर आग में घी का काम किया नारद जी ने| एक दिन रावण का राज दरबार लगा हुआ था| तभी नारद जी वहां अये और रावण से कहा ‘हे लंकेश ! क्या आप को दिया गया आशीर्वाद वापस ले लिए गया है’ रावण ने कहा ‘ नहीं मुनिवर| परन्तु आप यह क्यों पूछ रहे हैं?’ तब  नारदजी ने कहा ‘ मैंने नव ग्रहों को बात करते हुए सुना था की वो बोल रहे थे की रावण में अब वो बात नहीं|’ बस फिर क्या था इतना सुनने के बात रावण क्रोधित हो कर उठा और अपनी चंद्रहास तलवार लेकर अन्तरिक्ष की ओर प्रस्थान कर दिया| वहां पर उसने नव ग्रहों युद्ध कर उन्हें पराजित कर बंदी बनाकर लंका ले आया| क्योंकि रावण नव ग्रहों को अपने वश में रखता था इसलिए वो जब चाहता तो अपनी कुंडली बदल लेता था| कहा जाता है कि जब मेघनाद का जन्म हुआ था तब रावण ने सभी ग्रहों को आदेश दिया था की वो रावण द्वारा निर्मित स्थानों पर ही विराजमान हों| इसके फल स्वरुप जब मेघनाद का जन्म हुआ वो प्रतापी, बुद्धिमान, देव विजेता आदि कई गुण मेघनाद मैं आ गये| परन्तु शनि देव जी की मृत्यु के कारक हैं वो अपनी जगह से हिल गए जिससे मेघनाद अल्पायु हो गया| इस कारण रावण ने शनि देव को अपने पैरों तले रख लिया| आप सोच रहे होंगे की अगर रावण नव ग्रहों को अपने वश मैं रखता था तो उसकी मृत्यु का योग कैसे बना? लंका दहन के समय हनुमानजी ने सब ग्रहों को मुक्त करवा दिया था| इस लिए उसकी मृत्यु का योग बन पाया|       
शिव तांडव की रचना और नंदी बैल का अभिशाप
कहा जाता है की रावण से बड़ा शिव भक्त आज तक इस संसार मैं नहीं हुआ| यह बात है उस समय की जब को शिवजी द्वारा चन्द्रहास प्राप्त हुई| एक दिन वो जब अपने कक्ष में बैठा था उसके मन में ख्याल आया क्यों ना हिमालय को लंका ले आया जाये| इसके लिए वो हिमालय को लाने निकल गया और वहां पँहुच कर वो उसे उठाने जा ही रहा था नंदी बैल ने उसे रोका पर वो ना मना| तब दोनों के बीच भयंकर युद्ध शुरू हो गया| जिसमें रावण विजय हुआ और क्रोध मैं नंदी बैल ने उसे अभिशाप दिया की जा तेरी मृत्य का एक कारण स्वयं शिव बनेंगे| रावण ने उस पर कोई धयान नही दिया| उसने हिमलय को उठाने की पूरी कोशिश की पर उठा नहीं पाया तब उसने अपने अन्दर से दस और रावण निकाले और अब उसका प्रयास पूरी तरह से सफल हो गया| उसने हिमालय को अपने दस सरों पर उठा लिया था| तब शिवजी ने धीरे-धीरे पर्वत का भार बढ़ाना चालू किया उसपे अपना पैर रख कर| जैसे-जैसे उसका भर बढता गया रावण उसको नीचे रखने लगा परन्तु उसका हांथ उसके निचे दब गया| रावण उस दर्द से रोने लगा| तब उसने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव की वहीँ रचना की और शिव जी को प्रसन्न किया| शिव जी ने प्रसन्न होकर कैलाश का भार घटा दिया और उसे पशुपति अस्त्र प्रदान किया| और हाँ दोस्तों रावण का मतलब ही होता है रोना| इस तरीके से जब रावण का हांथ कैलाश के नीचे दबा था और उसके रोने की वजह से रावण का नाम दशानन से रावण पड़ा|
एक और कथा के अनुसार रावण के पैर की ऊँगली हिमालय पर्वत के नीचे दब गयी थी| तब उस भयंकर पीढ़ा से मुक्ति पाने के लिए रावण ने रूद्र वीणा और शिव तांडव की रचना की थी| वीणा बनाने के लिए उसने अपना बायाँ हाथ कट दिया और उसके तार के लिए उसने अपनी पेट की अतडियों को निकालकर उसमे बांध दीं| इससे प्रसन्न हो कर शिव जी ने हिमालय का भार घटा दिया|
क्या आप को पता है की रावण ने दो-दो बार श्री राम के लिए पूजा करवाई थी और उन्हें विजय का आशीर्वाद भी दिया था| बात उस समय की है जब श्री राम सेतु निर्माण कर रहे थे तब उन्हें सेतु की पूजा के लिए एक महान पंडित की जरुरत थी, और रावण भी श्री राम को देखना चाहत था| तब वो एक ब्राह्मण का भेष लेकर वहां गया और श्री राम के लिए पूजा करई, और वो भी पुरे विधि विधान से और उनहे विजय का आशीर्वाद भी दिया| वहां पर उपस्थित सब लोग जानते थे की जिस तरह के विधि विधान से पूजा हो रही हे वो रावण ही करवा सकता है| दूसरी बार श्री राम को अपने पिता का श्राद्ध दान करना था उसके लिए फिर रावण आया था| रावण को हमेशा से पता था की उसकी मृत्यु कब, कैसे और किसके हांथो होगी|
रावण और लंका की कहानी
रावण को लंका कैसे मिली इसकी बहुत सी कहानियाँ हैं| मैं उनमे से एक बताता हूँ| एक बार पार्वतीजी ने कहा ‘स्वामी अपने आज तक मुझे कुछ नहीं दिया’ शिव जी कहा ‘तुम्हे क्या चाहिये| तब पार्वतीजी ने कहा ‘मुझे सोने से बना एक महल दीजिये|” शिवजी ने विश्वकर्माजी को आदेश दिया और मात्र एक दिन मैं सोने का महल लंका नमक जगह पर बना दें| उस महल की पूजा हेतु शिवजी ने अपने परम भक्त रावण को बुलया रावण ने पूरी विधि विधान से महल की पूजा की| इस के पश्चात् रावण से पूछा गया की उसे दक्षिणा मै क्या चाहिये तो उसने लंका मांग लिया| यह थी एक कथा कि कैसे रावण को लंका प्राप्त हुई|   
तो दोस्तों यह थी कहानी महाप्रखंड पंडित दशमुख (रावण) की| जिसने अपनी मृत्य के लिए भगवान को विवश कर दिया जन्म लेने के लिए| जिसने अपने शत्रु को युद्ध विजय का आशीर्वाद दिया|
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                      ||जय महाकाल||
                      || जय भारत ||    
 6-3-2019
                                              परम कुमार
                                                कक्षा-9
                                           कृष्णा पब्लिक स्कूल 
                                                रायपुर (छ.ग.)






ऊपर दिया गया चित्र इस लिंक से लिया गया है-

https://www.ancient.eu/image/4057/ravana-the-demon-king//


Tuesday 20 November 2018


जय महाकाल
नमस्कार दोस्तों आपका एक बार फिर से मेरे इस ब्लॉग मै हार्दिक स्वागत है| आज हमारी चर्चा का विषय है ठगों पर| 'ठग', यह नाम आज कल बहुत चल रहा है क्योंकि हाल ही मै एक फिल्म “ ठग्स ऑफ़ हिन्दोस्तान ” आयी है| परन्तु इस फिल्म में ठग्स को एक अलग तरीके से दिखाया गया है| इस फिल्म मे ठग्स को एक समुद्री लुटेरा बताया गया है जो की गलत है| आज के इस ब्लॉग मै हम यह जानेगे की असली मैं कौन थे ये ठग्स? और कैसे इनकी उत्पति हुई और कैसे इनकी समाप्ति हुई| आईये शुरू करते हैं|

ठग्स की उत्पति के बारे मे बहुत से किस्से हैं,पर उनमे जो सबसे अधिक प्रचलित है वो यह है की, जब माँ दुर्गा ने रक्तबीज के अन्त के लिए काली देवी का रूप धारण किया था| तब वो जब रक्तबीज को मार रहीं थी उस समय उसकी बूंदों से उसके जैसे और दानव खड़े होते जा रहे थे| तो माँ काली ने अपने अंदर से दो व्यक्तियों को निकाला जो की अपने हाथ मै लाल रंग का रुमाल लेके खड़े थे और रक्तबीज से उत्पन हुए अन्य दानवों को मृत्यु के गोद में सुला देते थे| इस युद्ध की समाप्ति के बाद उन दोनों ने पूछा की हे माँ हमारे लिए क्या आदेश है? माँ ने कहा तुम पृथ्वी पर ही रहो और यह कहके माँ अंतर्ध्यान हो गयीं| उन दोनों मनुष्यों ने लोगों को मारना ही अपना धरम बना लिया था और अपने जैसे कई और व्यक्ति तैयार कर लिए| यह तो हुई ठगों की उत्प्पति के बारे मैं बात| अब बात करतें हैं उनके प्रभाव के समय की और इनमे कौन-कौन लोग रहते थे|
ठगों का प्रभाव लगभग 450 सालों तक रहा था| सन 1320 से सन 1840 तक| ठगों के इलाकों में पूर्वी राजस्थान, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, मध्यभारत अता था| यह तो साधारण सी बात है की इनमे उसी इलाके   के लोग रहते थे| सन 1320 से 1793 तक इनका प्रभाव ज्यादा असरदार नहीं था| पर जब 1793 में इनका नया सरदार आया जिसका नाम था बहरम| उसके बाद से इनका प्रभाव बढ़ गया| ऊपर दिए गए राज्यों के नाम मैं से रात को जो भी अपने घर से जंगल के रास्ते से कहीं जाने के लिए निकलता था वो फिर कभी वापस नहीं आता था, चाहे वो सैनिक, व्यापारी,राजा की रानी,स्वयं राजा हो या फिर कोई मामूली इन्सान| ठगों से कोई नहीं बचता था| यहाँ तक कि इन लोगों ने अंग्रेज सरकार को भी नहीं छोड़ा| इन्होने जंगल की रक्षा के लिए नियुक्त अधिकारियों को अपना निशाना बनया| जब वो रात को जंगल में गश्त लगाने जाते तब ठग उन्हें निशाना बनाते और उन्हें उस जंगल मै सदा के लिए सुला देते और उनके घुटने, हाथ और रीढ़ की हड्डी को तोड़ के एक छोटी सी जगह पर दफना देते थे| कहा जाता है इन्होने सन 1800 से 1806 के बिच अंग्रजों की नौ बटालियन को गायब कर दिया था| 1800 से 1840 के बीच 40000 लोगों को मौत की नींद सुला दिया था| मतलब 40 सालों के हर एक साल 1000 लोग ठगों द्वारा मृत्यु को प्राप्त होते थे,और गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड की बुक के अनुसार इन के मुखिया बहरम ने अकेले ही 931 लोगों को मारा था जिसके कारण ठग बहरम का नाम उस बुक में दर्ज है| तो आईये अब इनके अन्त के बारे मैं जानते हैं|
ठगों से परेशान होकर अंग्रेज सरकार ने सन 1830 में लार्ड विलियम बेन्त्रिक को भारत का गवर्नर जनरल नियुक्त किया था और विलियम हेनरी सिल्लोमन को ठगों के अत्याचार रोकने के लिए भारत मैं नियुक्त किया| यह आदेश भी निकाला की अब से जंगलों मैं कोई भी व्यक्ति जायेगा तो उसके साथ 500 सैनिक जायेंगे और उसकी रक्षा करेंगे| इसके अलावा ठगों को जिन गाँव से मदद मिलती थी उन्होंने वहां अपने जासूस लगा दिए| इस तरह से उनकी हर एक खबर विलियम हेनरी तक पहुँच जाती और वो ठगों से पहले उस जगह पर पँहुच जाते थे जहाँ ठग अपनी साजिश अंजाम देने वाले होते और इस तरह से धीरे-धीरे ठगों का प्रभाव कम होने लगा| अन्त में ग्वालियर मैं ठगों से हुई एक मुठभेड़ में उन्होंने ठगों के सरदार बहरम को पकर लिया और सन 1840 में  उसे फांसी हो गयी और ठगों का काल खत्म हुआ|
तो दोस्तों यह थी ठगों की असली कहानी|इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाए ताकि और लोग भी ठगों का असली इतिहास जान सकें| अगर आप को मेरा यह ब्लॉग अच्छा लगा हो तो इस पर कमेंट और शेयर करें|
                  
  धन्यवाद्                 
                   || जय भारत ||
                  || जय महाकाल ||
20/11/2018
                                      परम कुमार
                                      कक्षा-9
                                  कृष्णा पब्लिक स्कूल
                                      रायपुर  
                               
ऊपर दी गयी फोटो इस लिंक से ली गयी है https://comicvine.gamespot.com/images/1300-3795443
      


Friday 19 October 2018


( इस ब्लॉग का अध्ययन करने वाले सभी जनों को विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ)

 जय महाकाल
नमस्कार दोस्तों आप का मेरे ब्लॉग में स्वागत है | आज हमारी चर्चा का विषय, एक क्षण मैं थोडा आगे चल के बताऊँगा| आप सब ने रामायण तो देखी ही होगी रामानंदसागर वाली और महाभारत तो देखी ही होगी बी.आर.चोपड़ा वाली | उसमें योद्धा अलग-अलग अस्त्रों का प्रयोग करते हैं|  जैसे की तीर, चक्र, गदा, आदि | उसमें आप लोगों को तीर धनुष सब से जयादा आकर्षित करता था | आप लोग तीर धनुष खरीद के उसपे कुछ मंत्र बोल के उसे चलाते थे | पर कभी आप ने उसके असली मंत्र को जानने की कोशिश की? उन मंत्रो, को उन दिव्यास्त्रों को केसे साधा जाये इसे जानने की कोशिश की? कई लोगों ने की होगी कई लोगों ने नहीं भी की होगी | कोई बात  नहीं | आपकी मेहनत समाप्त हुई  क्योंकि आज मै आप को बताऊँगा की कैसे इन मंत्रों को साधा जाता था,कैसे इनका उपयोग किया जाता था और रामायण और महाभारत मैं किन किन लोगों के पास कौन-कौन  से अस्त्र और शस्त्र थे | इतना पढ़ के आप समझ ही गए होंगे की आज का हमारा चर्चा का विषय रामायण और महाभारत मै इस्तमाल हुए अस्त्रों और शस्त्रों के ऊपर है तो आइये शुरू कर तै हैं|
पहले हम जानते हैं की अस्त्र और शस्त्र मै क्या अंतर होता है-
 अस्त्र- इसका मतलब होता है मंत्रों द्वारा संचालित होने वाला हथियार जिसे कितनी भी दुरी से फेका जा सकता है | जेसे- अग्न्यास्त्र,वरुणअस्त्र,आदि 
शस्त्र- इसका मतलब होता है हांथ से चलने वाले अस्त्र, जिनसे किसी की मृत्यु भी हो सकती है और इन्हें एक निश्चित दुरी से चलाया जाता है| जेसे – तीर, भाले, आदि|
आइये हम जानते हैं की रामायण और महाभारत मे किन-किन अस्त्रोंकाउपयोगहुआथा-
रामायण- इस महालेख के अनुसार श्री राम, लक्ष्मण,मेघनाद,रावण के बारे मान्यता है की इन लोगों के पास बहुत से दिव्यास्त्र थे| आइये जानते है किसने कब और कहाँ कोन से अस्त्र का उपयोग किया था और उनके पास कौन-कौन से अस्त्र थे| 
श्री राम- इनके धनुष का नाम सारंग था जो इन्हें भगवान श्री परशुराम ने सीता स्वयंवर के दौरान दिया था और जो धनुष टुटा था उसका नाम था पिनाक| सारंग भगवान विष्णु के धनुष का नाम था और पिनाक भगवान शिव के धनुष का नाम था| इन दोनों को भगवान विश्वकर्मा ने बनाये था| इन दोनों धनुष को तोरा नहीं जा सकता था| इन्हें तोड़ने का एक ही तरीका था और वो यह की पिनाक विष्णु जी तोड़ें और सारंग भगवन शिव| मान्यता है की सारंग धनुष से कोई भी तीर मात्र शत्रु का नाम लेके चलाया जाए तो वो अपने आप उस शत्रु तक पहुँचकर उसका विनाश कर सकता है| इसके अलावा भगवान श्री राम को ब्रहमऋषि विश्वामित्र ने मोहिनीअस्त्र, गंधर्वअस्त्र, इन्द्रस्त्र, इन्द्रपाश, इन्द्रशक्ति, मानवास्त्र, पश्वापनअस्त्र, नागास्त्र, नागपाश, वैष्णवअस्त्र, वैष्णव इंद्रा शक्ति, ब्रह्मास्त्र, ब्रहमऋषिसूर्यअस्त्र ब्रहमशिराअस्त्र, नारायणास्त्र, नारायणशक्ति, आदि कई अस्त्र प्रदान किये| श्री राम ने मानवास्त्र का प्रयोग मारीच के ऊपर किया था जिससे वो हिरन से अपने असली रूप में आ गया था, इन्होने मोहिनी अस्त्र का प्रयोग खर-दूषण के विरुद्ध किया था| जिससे उनकी पूरी सेना एक दुसरे को ही मारना शुरू कर दिया क्योंकि उन्हें लग रहा था की उनके आसपास जो भी हैं | वो सब श्री राम है और वो सब एक दुसरे को मरने लगे| पश्वपनास्त्र इसके उपयोग श्री राम ने रावण के विरुद्ध किया था जिससे उसके नाभि का अमृत सुख गया फिर इन्होने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर उसे मारदिया|बाकी के अस्त्रों का उपयोग आप को ब्लॉग मै थोड़ा आगे मिल जायेगा|
लक्ष्मण जी द्वारा उपयोग अस्त्र- लक्ष्मण जी के धनुष का नाम कोथांडा था  उनके अस्त्रों के बारे मैं ज्यादा जानकारी नहीं मिलती पर कहा जाता है कि उनके पास विष्णवअस्त्र, ब्रह्मास्त्र, ब्रहमऋषिसूर्यअस्त्र ब्रहमशिराअस्त्र, नारायणास्त्र, नारायणशक्ति, पशुपतीस्त्र, आदि और भी कई अमोग अस्त्र थे| इन्होने अतिकाय को ब्रह्मास्त्र से मारा था और मेघनाद को वैष्णव अस्त्र से मारा था|
रावण द्वारा उपयोग अस्त्र- रावण के पास असुरास्त्र,चंद्रहासतलवार, अग्नि शक्ति, ब्रह्मास्त्र, अग्निवरुण अस्त्र, पशुपति अस्त्र,रुद्रअस्त्र, ब्रहाम्रिशीसूर्यास्त्र ब्रहमशिराअस्त्र,ब्रह्माण्ड अस्त्र, सहित कई अस्त्र थे,| रावण ने असुरास्त्र का प्रयोग युद्ध के पहले दिन किया था| इस अस्त्र मे से एक साथ कई तरह के हथीयार बाहर आते थे| जिसको रोकने के लिया श्री राम ने अन्तपत अस्त्र का प्रयोग किया था| इस के अलावा कहा जाता है की जब रावण अपनी त्रिलोक विजय यात्रा पर पहली बार नीकला था तो तब जब वो सप्तसिंधु (भारत) पर हमला किया तो सब ने सप्तसिंधु (अयोधा के राजा) नरेश सूर्यवंशी राजा अज से सहायता मांगी इन्होने रावण से कई सालों तक युद्ध किया इस युद्ध में कहा जाता है रावण ने इनके विरुद्ध कई महास्त्र जेसे ब्रह्मास्त्र,पशुपतीअस्त्र,नारायण अस्त्र सहित कई दिव्या अस्त्र इस्तमाल किया परन्तु राजा अज ने उन सब का उत्तर देके रावण को युद्ध मै परास्त किया था| 
मेघनाद द्वारा उपयोग अस्त्र- मेघनाद के पास वो सभी अस्त्र थे जो श्री राम,रावण और लक्ष्मण जी के पास थे| उसे ब्रह्मा जी द्वारा वरदान भी मिला था की तुम जब भी युद्ध में जाने से पहले अपनी कुल देवी निकुम्बला माता की पूजा करोगे और पास के पीपल के पेड़ पर पांच भूतों की बलि दोगे तो हवन कुण्ड से एक दिव्या रथ निकलेगा जिसपर बेठकर अगर तुम युद्ध करोगे तो तुम्हे कोई भी पराजित नहीं कर पाएगा| जब इस बात की सुचना श्री राम को मिली तो उन्होंने लक्ष्मण, विभीषण,अंगद,नल,नील,सुग्रीव,हनुमानजी आदि कई लोगों को यज्ञ विफल करने भेजा था यज्ञ असफल हो गया तो तिलमिलाए हुए मेघनाद ने पशुपतिअस्त्र,ब्रह्मास्त्र,नारायण अस्त्र सहित कई अस्त्र लक्ष्मण जी के ऊपर चलाये थे पर सब को लक्ष्मण जी ने प्रणाम कर विफल कर दिया| मेघनाद ने लक्ष्मण जी के ऊपर शक्ति का प्रयोग किया था जिसे उसे माँ काली ने दिया था, उसने श्री राम और लक्ष्मण जी के ऊपर नाग पाश का भी उपयोग किया था| लक्ष्मण जी ने उसे वैष्णव अस्त्र से मारा था| यह तो हुई रामायण में उपयोग हुए अस्त्रों की बात आइये जाने महाभारत मैं उपयोग हुए अस्त्रों के बारे मे| मै आप को यह भी बताऊँगा की हाभारत का सबसे वीर और ताकतवर योद्धा कोन था  महाबहारत के अनुसार अर्जुन,कर्ण, भीष्मपितामह,द्रोणाचार्य,अश्वथामा,सत्यकि,श्रीकृष्ण,और बार्बरिक को महाभारत मै एक अहम् स्थान प्राप्त है| अब मै आपको इनमे से कुछ लोगों के अस्त्र के बारे मै बताऊँगा |

अर्जुन द्वारा उपयोग अस्त्र- अर्जुन के धनुष का नाम था गांडीव| उन्हें यह धनुष तब प्राप्त हुआ था जब पांडवों ने इन्द्रप्रस्थ कि स्थापना की थी| तब अर्जुन ने एक बहुत बड़े भू भाग मै फैले वन को जला दिया था जिसका नाम था खंडवप्रस्थ उसे जलाया था तब अग्नि देव ने अर्जुन को अग्नि की माया से बना हुआ धनुष गांडीव दिया था जिसके अन्दर अनगिनत तीर समाये हुए थे|

अश्वथामा द्वारा इस्तमाल अस्त्र- अश्वथामा के धनुष का नाम कोथांडाa था यह वही धनुष था जो लक्ष्मण जी के पास था| इसकी कहानी कुछ इस प्रकार है की जब श्री राम ने लक्ष्मण जी को देश निकाला दे दिया| तब लक्ष्मण जी ने अपना धनुष सरियु नदी के किनारे रखकर समाधी ले ली तब यह धनुष को गरुण उठा के लेजा रहे थे कि तभी इस धनुष की वो मणि जिससे वो संचालित होता था वो धरती पर गिर गयी फिर इसी तरह सदियाँ बिt गयिन| अब वहां एक ब्रहमाण परिवार रहता था जो उस जमीन पर खेती करता था यह परिवार था महान तपस्वी भरद्वाज ऋषि के पुत्र द्रोणाचार्य को एक दिन खेती के दोरान वो मणि धान के साथ मिल गयी और उस धान का वो भाग द्रोणाचार्य की पत्नी ने खा लिया| फिर जब उनका शिशु हुआ तब उसके माथे पर वो मणि लगी हुई थी| जब अस्वथामा बड़े हुए तो उन्होंने तपस्या करके उस मणि को अपने वश मै कर लिया और कोथांडा धनुष को साध लिया| इस धनुष के अन्दर अनेक तीर समाए हुए थे जिन्हें रोकने का मात्र एक ही तरीका था कि मणि द्वारा संचालित होने वाले उस धनुष की मणि को नष्ट कर दिया जाये| इसलिए जब अस्वथामा ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा पर ब्र्हम्शिरास्त्र का उपयोग किया तो श्री कृष्णा ने उससे उसकी मणि मांगी थी|

बार्बरिक द्वारा इस्तमाल अस्त्र – बार्बरिक भीम और हिडिम्बा के पौत्र और घटोत्कच और अहिलावती के पुत्र थे| बात उस समय की है जब एक दिन हिदिम्बिका और बार्बरिक वन मे विचरण कर रहे थे| तब बार्बरिक ने बोला “ हे दादी माँ आपने ने मुझे समस्त ज्ञान प्रदान किया पर मुक्ति के बारे मै नहीं बताया| इस पर हिडिम्बा ने कहा “ जब कोई देव पुरुष या ऋषि अपने भक्त का अन्त अगर अपने हांथों से कर दे तो उसकी आत्मा उसमे समा जाती है और उसे मुक्ति प्राप्त होती है या फिर किसी मनुष्य के पुरे जीवन के पुण्य कर्मों के अनुसर भी उसे मुक्ति मिलती है| इस पर बार्बरिक ने कहा मैं श्री कृष्ण से युद्ध करूँगा और उनसे मुक्ति प्राप्त करूँगा हिडिम्बा ने कहा वो तुम से युद्ध क्यों करेंगे तुम्हारे पास तो उनके बराबरी के अस्त्र भी नहीं हैं| उनके पास तो सुदर्शन चक्र है जिसका मुकाबला पूरी दुनिया मै कोई नहीं कर सकता| इतना सुन के बार्बरिक ने बोला मैं घोर तपस्या करूँगा और उनके बराबरी के अस्त्र प्राप्त करूँगा फिर उनसे मुक्ति प्राप्त करूँगा| बार्बरिक तपस्या करने के लिए महि सागर तीर्थ स्थल गया जहाँ पर उसने विजयचित्रसेन ऋषि  से शिक्षा ली और फिर वहां पे सबसे पहले नव दुर्गा की पूजा की उसकी पूजा से प्रसन्न होकर नव दुर्गा ने उसे इतना बल प्रदान किया कि जिससे वो पूरी दुनिया को गेंद की तारह उछाल दे और उन्होंने उसे यह वरदान भी दिया की तुम्हारी मृत्यु मात्र श्री कृष्ण के हांथो होगी| इसके बाद स्वयं दुर्गा जी वहां आयीं और कहा तुम यहाँ पे और तपस्या करो| उनके निर्देश अनुसार बार्बरिक ने वहां और तपस्या की और उससे प्रसन्न होकर उन्होंने उसे गणेश अजय अस्त्र सिद्धि प्रदान की बार्बरिक ने वहां और तपस्या की और सिधाम्बिका माता को भी प्रस्सन कर लिया जिन्होंने उसे तीन तीर दिए जिनसे किये गई प्रहार को असफल नहीं किया जासकता था|
1.     पहले तीर उनसभी चीजों को नष्ट कर देगा जिसे वो नष्ट करना चाहते है|
2.     दुसरा तीर उनसब चीजों को बचालेगा जिसे वो बचाना चाहता है|

3.     तीसरा तीर दुसरे तीर द्वारा बचाए गए सभी चीजों को छोड़ के सब चीजों को नष्ट कर दे गा|
जब बार्बरिक को पता चला की कुरुक्षेत्र मे पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध होने वाला है तो उसने युद्ध मे जाने का फेसल किया| परन्तु युद्ध में जाने से पहले उसकी माँ ने उससे वचन लिया की तुम युद्ध मै सब से कमजोर पक्ष से युद्ध करोगे| युद्ध का सबसे कमजोर पक्ष कौरवों का था क्योंकि पांडवों की तरफ श्री कृष्ण थे| बार्बरिक ने कौरवों की तरफ से युद्ध करने का निश्चय किया और वो युद्ध के लिए रवाना हो गये| श्री कृषण को जब यह बात ज्ञात हुई तो वो एक ब्राहमण के वेश मैं बार्बरिक के पास गए और कहा “ हे पुत्र क्या तुम कुरुक्षेत्र मैं होने वाले युद्ध मैं भाग लेने जा रहे हो ?” बार्बरिक ने कहा “ हाँ ! ब्राहमण देव” ब्राहमण वेश मैं श्री कृष्ण बार्बरिक पर हसे और कहा “ तुम युद्ध केसे करोगे? तुम्हारे पास तो सेना ही नहीं है,और मैं देख रहा हूँ तुम्हारे तरकस मै मात्र तीन तीर ही हैं| बार्बरिक ने कहा “ मेरा एक ही तीर एक पूरी सेना का विनष कर सकता और उसके बाद वो वापस मेरे तरकश मैं ही आयेगा तो यह तीन तीर तो बहुत हैं| इसके बाद बार्बरिक ने अपने तीनो तीरों की खासियत बताई| ब्राहमण देव ने कहा मुझे तुम्हरी बातों पर विश्वास नहीं मुझे अपने एक तीर का प्रयोग कर के बताओ| बार्बरिक ने अपना पहला तीर निकाल कर कहा “ सामने जो पीपल का पेड़ हे उसके सारे पत्तों को मैं अपने एक तीर से भेद दूँगा”| श्री कृष्ण ने उस पेड़ के एक पत्ते को अपने हांथ मैं दबाया और एक पत्ते को पैर के नीचे बार्बरिक ने मंत्र संधान कर के अपने तीर चला दिया उस तीर ने पीपल के सारे पत्तों को भेद दिया जो पत्ते श्री कृष्ण के हांथ और पैर के निचे थे उनमे भी छेद हो गया| इसके पश्चात् श्री कृष्ण ने बार्बरिक को अपना असली रूप दिखाया और कहा “ है बार्बरिक तुम यह युद्ध मत करो क्योंकि अगर तुम यह युद्ध करोगे तो न्याये पर अन्याये की जीत होगी जिससे कुछ अच्छा नहीं होगा अतः तुम यह युद्ध मत करो”| बार्बरिक ने कहा “ मैं ने अपनी माता को वचन दिया है की मे युद्ध करूँगा तो सबसे कमजोर पक्ष से| अतः अब मुझे इस युद्ध मै  भाग लेने से कोई नहीं रोक सकता आप भी नहीं”| श्री कृष्ण ने क्रोध मैं आके बार्बरिक का सर अपने शुदर्शन चक्र से कट दिया| बार्बरिक के कटे हुए सर ने बोला मैं यही चाहता था कि मेरी मृत्यु आपके हांथो हो अब मुझे मुक्ति प्राप्त होगी| श्री कृष्ण ने कहा बार्बरिक मैं तुम्हे आशीर्वाद देता हूँ की इस युद्ध के एक मात्र शाक्सी तुम ही होगे और इस युद्ध के सबसे वीर योद्धा भी तुम ही हो| तो दोस्तों यह थी कहानी बार्बरिक की और उसके दिव्यास्त्रों की| आइये अब हम कुछ हथीयारों के बारे मैं जान लें|           
  
हतियारों के नाम

·         शक्ति यह लंबाई में गजभर होती है, उसका हेंडल बड़ा होता है, उसका मुँह सिंह के समान होता है और उसमें बड़ी तेज जीभ और पंजे होते हैं। उसका रंग नीला होता है और उसमें छोटी-छोटी घंटियाँ लगी होती हैं। यह बड़ी भारी होती है और दोनों हाथों से फेंकी जाती है।
·         तोमर यह लोहे का बना होता है। यह बाण की शकल में होता है और इसमें लोहे का मुँह बना होता है साँप की तरह इसका रूप होता है। इसका धड़ लकड़ी का होता है। नीचे की तरफ पंख लगाये जाते हैं, जिससे वह आसानी से उड़ सके। यह प्राय: डेढ़ गज लंबा होता है। इसका रंग लाल होता है।
·         पाश ये दो प्रकार के होते हैं, वरुणपाश और साधारण पाश; इस्पात के महीन तारों को बटकर ये बनाये जाते हैं। एक सिर त्रिकोणवत होता है। नीचे जस्ते की गोलियाँ लगी होती हैं। कहीं-कहीं इसका दूसरा वर्णन भी है। वहाँ लिखा है कि वह पाँच गज का होता है और सन, रूई, घास या चमड़े के तार से बनता है। इन तारों को बटकर इसे बनाते हैं।
·         ऋष्टि यह सर्वसाधारण का शस्त्र है, पर यह बहुत प्राचीन है। कोई-कोई उसे तलवार का भी रूप बताते हैं।
·         गदा इसका हाथ पतला और नीचे का हिस्सा वजनदार होता है। इसकी लंबाई ज़मीन से छाती तक होती है। इसका वजन बीस मन तक होता है। एक-एक हाथ से दो-दो गदाएँ उठायी जाती थीं।
·         मुद्गर इसे साधारणतया एक हाथ से उठाते हैं। कहीं यह बताया है कि वह हथौड़े के समान भी होता है।
·         चक्र दूर से फेंका जाता है।
·         वज्र कुलिश तथा अशानि-इसके ऊपर के तीन भाग तिरछे-टेढ़े बने होते हैं। बीच का हिस्सा पतला होता है। पर हाथ बड़ा वजनदार होता है।
·         त्रिशूल इसके तीन सिर होते हैं। इसके दो रूप होते है।
·         शूल इसका एक सिर नुकीला, तेज होता है। शरीर में भेद करते ही प्राण उड़ जाते हैं।
·         असि तलवार को कहते हैं। यह शस्त्र किसी रूप में पिछले काल तक उपयोग होता रहा था।
·         खड्ग बलिदान का शस्त्र है। दुर्गाचण्डी के सामने विराजमान रहता है।
·         चन्द्रहास टेढ़ी तलवार के समान वक्र कृपाण है।
·         फरसा यह कुल्हाड़ा है। पर यह युद्ध का आयुध है। इसकी दो शक्लें हैं।
·         मुशल यह गदा के सदृश होता है, जो दूर से फेंका जाता है।
·         धनुष इसका उपयोग बाण चलाने के लिये होता है।
·         बाण सायक, शर और तीर आदि भिन्न-भिन्न नाम हैं ये बाण भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। हमने ऊपर कई बाणों का वर्णन किया है। उनके गुण और कर्म भिन्न-भिन्न हैं।
·         परिघ में एक लोहे की मूठ है। दूसरे रूप में यह लोहे की छड़ी भी होती है और तीसरे रूप के सिरे पर बजनदार मुँह बना होता है।
·         भिन्दिपाल लोहे का बना होता है। इसे हाथ से फेंकते हैं। इसके भीतर से भी बाण फेंकते हैं।
·         नाराच एक प्रकार का बाण हैं।
·         परशु यह छुरे के समान होता है। भगवान परशुराम के पास अक्सर रहता था। इसके नीचे लोहे का एक चौकोर मुँह लगा होता है। यह दो गज लंबा होता है।
·         कुण्टा इसका ऊपरी हिस्सा हल के समान होता है। इसके बीच की लंबाई पाँच गज की होती है।
·         शंकु बर्छी भाला है।
·         पट्टिश एक प्रकार का तलवार है जो कि लोहे की पतली पटटियों वाला होता है।
·         इसके सिवा वशि तलवार या कुल्हाड़ा के रूप में होती है।
इन अस्त्रों के अतिरिक्त भुशुण्डी आदि अन्य अनेक अस्त्रों का वर्णन विभिन्न ग्रंथों में मिलता है।
कुछ दिव्यास्त्रों के मंत्र- ( इन मंत्रो का उपयोग ना करें )

श्रीब्रह्मास्त्र प्रकट मंत्र:- नमो ब्रह्माय नमः। स्मरण-मात्रेण
प्रकटय-प्रकटय, शीघ्रं आगच्छ-आगच्छ, मम सर्व शत्रुं नाशय-नाशय, शत्रु सैन्यं नाशय-नाशय, घातय-घातय,मारय-मारय हंु फट्।’

श्रीआग्नेयास्त्र प्रकट मंत्र:- ‘ॐ नमो अग्निदेवाय नमः। शीघ्रं आगच्छ-आगच्छ मम शत्रुं ज्वालय-ज्वालय, नाशय-नाशय हूँ फट्।

श्रीअघोरास्त्र-मंत्र:- ‘ॐ ह्रीं स्फुर-स्फुर प्रस्फुर-प्रस्फुर घोर-घोर-तर तनुरूप चट-चट प्रचट-प्रचट कह-कह वम-वम
बन्ध-बन्ध घातय-घातय हंु फट्।

श्रीपशुपतास्त्र मंत्र:- ‘ॐ श्लीं पशु हुं फट्।
श्रीपशुपतास्त्र प्रकट मंत्र:- ‘ॐ नमो पाशुपतास्त्र! स्मरण मात्रेण
प्रकटय-प्रकटय, शीघ्रं आगच्छ-आगच्छ, मम सर्व शत्रुसैन्यं
विध्वंसय-विध्वंसय, मारय-मारय हंु फट्।

श्रीयमास्त्र प्रकट मंत्र:- ‘ॐ नमो यमदेवताय नमः। स्मरण
मात्रेण प्रकटय-प्रकटय। अमुकं शीघ्रं मृत्यंु हंु फट्।
श्रीसुदर्शन चक्र मंत्र:- ‘ॐ नमो भगवते सुदर्शनाय भो भो
सुदर्शन दुष्टं दारय-दारय दुरितं हन-हन पापं दह-दह, रोगं
मर्दय-मर्दय, आरोग्यं कुरु-कुरु,   ह्रां ह्रां ह्रीं ह्रीं हं्रू हं्रू
फट् फट् दह-दह हन-हन भीषय-भीषय स्वाहा।

श्रीसुदर्शनचक्रास्त्र प्रकट मंत्र:- ‘ॐ नमो सुदर्शनचक्राय,
महाचक्राय, शीघ्रं आगच्छ-आगच्छ, प्रकटय-प्रकटय, मम शत्रुं
काटय-काटय, मारय-मारय, ज्वालय-ज्वालय, विध्वंसय-विध्वंसय,
छेदय-छेदय, मम सर्वत्र रक्षय-रक्षय हुं फट्।

श्रीनारायणास्त्र मंत्र:- ‘हरिः ॐ नमो भगवते श्रीनारायणाय नमो
नारायणाय विश्वमूर्तये नमः श्री पुरुषोत्तमाय पुष्पदृष्टिं प्रत्यक्षं वा
परोक्षं वा अजीर्णं पंचविषूचिकां हन-हन ऐकाहिकं द्वîाहिकं
ींयाहिकं चातुर्थिकं ज्वरं नाशय-नाशय
चतुरशीतिवातानष्टादशकुष्ठान् अष्टादशक्षय रोगान् हन-हन
सर्वदोषान् भंजय-भंजय तत्सर्वं नाशय-नाशय शोषय-शोषय
आकर्षय-आकर्षय शत्रून-शत्रून मारय-मारय उच्चाटयोच्चाटय
विद्वेषय-विद्वेषय स्तम्भय-स्तम्भय निवारय-निवारय
विघ्नैर्हन-विघ्नैर्हन दह-दह मथ-मथ विध्वंसय-विध्वंसय चक्रं
गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ चक्रेण हत्वा परविद्यां छेदय-छेदय
भेदय-भेदय चतुःशीतानि विस्फोटय-विस्फोटय अर्शवातशूलदृष्टि
सर्पसिंहव्याघ्र द्विपदचतुष्पद-पद-बाह्यान्दिवि भुव्यन्तरिक्षे अन्येऽपि
केचित् तान्द्वेषकान्सर्वान् हन-हन विद्युन्मेघनदी-पर्वताटवी-सर्वस्थान रात्रिदिनपथचैरान् वशं कुरु-कुरु हरिः  नमो भगवते ह्रीं हंु
फट् स्वाहा ठः ठं ठं ठः नमः।

 (मेरा आप लोगों से एक बार फिर से अनुरोध है की इन मंत्रो का प्रयोग ना करें)
 इन सभी अस्त्रों मै  सब से प्रभाव शाली अस्त्र  है शास्त्रार्थ
दोस्तों तो यह थे वो वीर योद्धा और अस्त्र जिनका उपयोग पहेले समय मैं होता था| अगर आपको मेरा ब्लॉग अच लगे तो इसे कमेंट और शेयर करें |
                 || जय महाकाल ||

                  || जय भारत ||                                                                                                        
19\10\2018
(विजय दशमी)
                                                परम कुमार
                                                 कक्षा-9
                                           कृष्णा पब्लिक स्कूल


ऊपर दिए गए फोटो इस लिंक से ली गयी है
3.     3-  http://againindian.blogspot.com/2017/01/speciality-of-divine-weapon.html



             

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