Sunday 26 August 2018

THE CREATOR OF UNITED INDIA- CHANAKYA  THE  LEGEND


नमस्कार दोस्तों आज की हमारी चर्चा का विषय उस व्यक्ति पर है जिसने साम-दाम-दंड-भेद की नीति बनायीं और जिसने अपनि बुद्धि से एक समय के सबसे शक्तिशाली राजा और भारत के एक बहुत बड़े राजा को अपने दिमाग के जरिये ध्वस्त कर दिया जिसने यह श्लोक दिया –

त्यजेदेकं कुल्सयाथ्रे ग्राम्स्यर्थे कुलं त्यजेत||
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत||
अर्थ- यदि एक दुष्ट व्यक्ति के कारण कुल कलंकित होने से बचता है तो उसे त्याग देना उचित है| इसी तरह यदि एक गाँव त्यागने से सम्पूर्ण जिले का कल्याण हो तो उसे भी त्याग देना चाहिये| आत्मा के कल्याण के लिए अगर सम्पूर्ण संसार का भी त्याग करना पड़े तो उसका भी त्याग कर देना चाहिये|

दोस्तों, इतना सब पढ़-कर आप यह तो समझ ही गए होंगे की आज का यह ब्लॉग महान आचार्य विष्णु गुप्त शर्मा जिन्हें आप चाणक्य के नाम से भी जानते हैं उनके ऊपर है| आज के इस ब्लॉग में हम आचर्य चाणक्य के जीवनकाल,उनके मगध के प्रधानमंत्री और विश्व विजेता सिकंदर और नन्द वंश के राजा को पराजित करने के बारे मै चर्चा करेंगे| तो आईये शुरू करें|

जीवन काल और चाणक्य नीति के कुछ श्लोक

आचार्य चाणक्य के जन्म के बारे में कुछ जानकारी नहीं मिलती है पर हमें एतिहासिक ग्रंथों से यह ज्ञात होता हे की चाणक्य ने अपनी शिक्षा तक्षशिला विश्वविद्यालय से ग्रहण की थी| वे बचपन से ही बड़े चतुर और चलाक थे इसलिए इन्हें चाणक्य भी कहा जाता था| तक्षशिला  के अनेक आचार्यों के अनुसार यह कुटिल नीति के निर्माता भी थे तो इनको कई लोग कोटिल्य भी कहते थे| इन्होने चाणक्य नीति की रचना की थी जिसमे इन्होने लिखा की आने वाले समय में मेरी इस नीति को जो पढ़ लेगा वो कभी भी राजनेतिक और सांसारिक क्षेत्र में परास्त नहीं हो सकेगा| उन्होंने यह भी लिखा की आने वाले समय मे मेरी यह नीति-ग्रन्थ भविष्य का दर्पण सबित होगा तो आईये दोस्तों हम इस महान ग्रन्थ के कुछ श्लोकों पर नजर डालते हैं|

अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तम:|
धर्मोपदेशाविख्यातं कार्याकार्यम शुभाशुभम ||1||

अर्थात- कोई भी कार्य करने से पहले मनुष्य को इस बात का ध्यान अवश्य कर लेना चाहिए कौन सा कार्य धर्म अनुकूल है और कौन सा कार्य धर्म विरुद्ध है इसका परिणाम क्या होगा?, पुण्य कार्य और पाप कर्म क्या है? किसी का हित करना भला कार्य है जबकि अहित करना बुरा कार्य है लेकिन कभी- कभी परिस्थितिवश किया गया बुरा कार्य भी भला कार्य  कहलाता है

मुर्खशिष्योंप्देशें दुष्टस्त्रीभरणेन च|
दु:खीतै: संप्रयोगेन पण्डितोप्यव्सिद्ती ||2||

अर्थात- आचार्य चाणक्य के अनुसार मूर्ख व्यक्ति को ज्ञान देने से सज्जन लोगों और बुद्धिमानों को हानि होती है जैसे बंदर को तलवार देकर राजा द्वारा उसे अपनी रक्षा में नियुक्त करना उसी तरह है जेसे सज्जन  लोगों व बुद्धिमानों के लिए दुष्ट व कुटिल स्त्री का साथ दुखदाई सिद्ध होता है|


दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः||
ससर्पे गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः||3



अर्थात जिस घर में पत्नी दुष्ट स्वभाव वाली हो उस घर का मालिक मृतक व्यक्ति के समान होता है क्योंकि उस पत्नी पर उसका कोई भी बस नहीं चलता है और वह मन ही मन कुढ़ता हुआ मृत्यु की ओर अग्रसर हो जाता है| इसी प्रकार दुष्ट स्वभाव वाला मित्र भी कभी विश्वासनीय नहीं होता क्योंकि पता नहीं कब वह विश्वासघात कर दे| यही नहीं जो सेवक या नौकर पलट कर जवाब देता हो उससे भी सावधान रहना चाहिए क्योंकि पता नहीं कब वह हानि पहुंचा दे वह कभी भी दुखदाई सिद्ध हो सकता है इसी प्रकार जहां सर्पों का वास हो वहां कभी भी आवास नहीं बनाना चाहिए क्योंकि हर समय दर रहता है कि नाजाने कब सर्प दस जाए अतः वह हर समय आत्मरक्षा हेतु सावधानी बरतता है|


आपदर्थे धनं रक्षेद् दारान् रक्षेद् धनैरपि|
आत्मानं सततं रक्षेद् दारैरपि धनैरपि||4||

अर्थात- यह बात उचित है कि बुद्धिमान व्यक्ति को विपदा काल के लिए धन का संचय करके रखना चाहिए लेकिन धन संचय ही सब कुछ नहीं है उससे भी अधिक आवश्यक पत्नी की रक्षा करना क्योंकि पत्नी तो जीवनसंगिनी होती है धन तो सभी जगह काम नहीं आ सकता| वृद्धावस्था में पत्नी ही काम आती है तो संकट आने पर धन खर्च करके व्यक्ति को पत्नी की रक्षा करनी ही चाहिए लेकिन चाणक्य का ऐसा विचार है कि व्यक्ति को धन और पत्नी की रक्षा से अधिक आवश्यक यह है कि वह स्वयं की रक्षा करें क्योंकि यदि व्यक्ति स्वयं ही नहीं रहेगा तो धन और स्त्री किस काम के रह जायेगि इसलिए व्यक्ति के लिए धन और स्त्री रक्षा से भी अधिक स्वयं की रक्षा करना अधिक महत्वपूर्ण है|

नन्द वंश की सम्पत्ति

एक बार की बात है नन्द वंश के नोंवे राजा महानंद ने अपने प्रधानमंत्री शक्टर से कहा की मुझे अपने पिता का पिंड दान देना है अतः तुम जाओ और कहीं से गयारह ब्राह्मण ले के आओं| शक्टर कुछ समय से राजा नन्द से गुस्सा रहता था क्योंकि एक बार राजा नन्द की अवैध पत्नी ने शक्टर पर झुटा आरोप लगा के उसे राजा से दण्डित करवाया था| राजा ने उसके घर में आग लगा दी थी जिसमे उसका पूरा परिवार जल गया था| फिर जब नन्द को पता चला की उसकी अवैध पत्नी मुरा गर्भवती है तो उसे देश निकाला दे दिया| फिर पता नहीं उसके दिमाग में क्या हुआ की उसने शक्टर को रिहा कर दिया और उसका पद भी उसे वापस लौटा दिया| पर शक्टर ने तो अपना परिवार खो दिया था| वो तब से राजा से बदला लेने की प्रतीक्षा कर रहा था| जब वो ब्राह्मण को खोज रहा था तब उसे चाणक्य दीखे जो कशुआ नामक एक वृछ की जड़ में खट्टी दही डाल रहे थे| तब शक्टर ने उनसे पूछा “हे ब्राह्मण आप यह क्या कर रहे हैं ?”

चाणक्य ने कहा इस “वृछ का कांटा मेरे पैर में घुस गया और मेरे पैर को काट दिया इसलिए मै इसे जड़ से नष्ट कर रहा हूँ”| शक्टर ने सोचा “की अगर मै इसे भोज पे आमंत्रित करूँ और नन्द अगर इसका अपमान कर दे तो यह उसका नाश कर सकता है”| यह सोच कर उसने चाणक्य को भोज पर आमंत्रित किया और उन्हें सबसे आगे वाले सिंहासन पर बैठाया| फिर वेसा ही हुआ जैसा उन्होंने सोचा था| नन्द ने आते ही कहा की “शक्टर मैंने तुम्हे ब्राह्मणों को भोज पर बुलाने बोला था काले कलूटे भिखारिओं को नहीं” श्क्टर ने कहा की महाराजा यह तक्षशिला विश्वविद्यालय के प्रधानाचार्य चाणक्य है| राजा ने कहा कोई भी हो पर एसा काला ब्राह्मण पिंड दान के योग्य नहीं| इतना सुनके चाणक्य खड़े हो गए और कहा “हे अभिमानी मुर्ख छुद्र जाति के नन्द राजा तुझे जिस धन पर अभिमान है एक दिन वो नहीं रहेगा और नहीं तू और तेरा सम्राज्य और इसका कारण मै बनूँगा और जब तक मै एसा कर नहीं लेता मैं अपने केश नहीं बांधूंगा”| इतना सब बोल के चाणक्य वहां से चले गए| अब वो अपने प्रतिशोध के लिए किसी की तलाश कर रहे थे और वो थी नन्द की रखेल पत्नी मुरा इसने अभी थोड़े समय पहले अपने पुत्र को जन्म दिया था और वो पुत्र और कोई नहीं चन्द्रगुप्त मोर्य थे| अब आप सोच रहे होंगे की नन्द तो छुद्र था तो उनका पुत्र क्षत्रिया केसे? चाणक्य चन्द्रगुप्त को भारत का राजा बनाना चाहते थे| इसलिए उन्होंने चन्द्रगुप्त को कभी भी यह नहीं बतया की वो नन्द के बेटे हैं| और थोड़े समय बाद जब चन्द्रगुप्त बढे हुए तो महाराज पुर्शोतम( पोरस ) की मदद से और शक्टर की मदद से चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मगध का राजा बना दिया और नन्द को मृत्यु दे दी| तो दोस्तों एसा था चाणक्य का दिमाग जिन्होंने भारत के एक बहुत बड़े साम्रज्य के राजा को उसी के पुत्र से मरवा दिया| और दोस्तों जब चन्द्रगुप्त की मृत्यु हुई तब भी उन्हें नहीं मालूम था की वो नन्द के बेटे थे| नन्द को मरवाने के बाद चाणक्य ने अपने आप को मगध का प्रधानमंत्री और चन्द्रगुप्त को मगध का राजा घोषित किया| जब चीनी यात्री फाहयान भारत आया था तो उसने कहा था की जिस साम्राज्य का प्रधानमंत्री घास के घर में रहता हो उसी से उसके साम्राज्य के वैभव का अंदाजा लगाया जा सकता है|


विश्व विजेता सिकंदर को हराने में योगदान

दोस्तों यह पढ़ कर आप सोच रहे होंगे की सिकंदर को हराने मे इनका क्या योगदान था तो दोस्तों मै आपको बताना चाहूँगा की चाणक्य महाराज पुरुषोतम के गुरु थे| इन्होने ही उन्हें युद्ध नीति का ज्ञान दिया था| इन्होने ही महाराज पुरुषोतम को सलाह दी की हम सिकंदर को तभी हरा पायेंगे जब हम युद्ध में नई युद्ध नीतियाँ अपनाएंगे| उन्होंने कहा की तुम युद्ध मे हाथी की सेना और फरसा हथियार का इस्तमाल करो तभी तुम अलक्शेन्द्र(सिकंदर) को हरा पाओगे| सिकंदर को युद्ध मे हराने के बाद इन्होने महाराज पुरुषोतम से कहा की यह वही राजा वापस जा रहा है जिसने कहा था “ग्रीक लड़ाकों तुम मेरा साथ दो मै तुम्हे भारत दूंगा”, “ हम आये तो खाली हांथ है पर जाएँगे भरे हांथों से” पर आज उस राजा की यह हालत है की उसे भले ही दुनिया सदियों तक याद् रखे  पर आज उसे कन्धा देने केलिए भी कोई जीवित नहीं बचा है| दोस्तों अगर आप ने मेरा पोरस वाला ब्लॉग नहीं पढ़ा है तो मै उसका लिंक नीचे दे दूँगा|

चाणक्य को अर्थशास्त्र का निर्माता क्यों कहते हैं :

आचार्य चाणक्य ने अर्थशास्त्र का निर्माण चौथी शती ईसा पूर्व मे किया था| यह शास्त्र राजनेतिक, भौगोलिक, युधनीति, व्यूहनीति, संसारनीति, व्याकरणशास्त्र और गणित को मिला कर बना है| इन्होने इसका निर्माण चन्द्रगुप्त की सहायता और उनकी शिक्षा के लिए किया था| इस अर्थशास्त्र मे उन्होंने लिखा है की-

येन शास्त्रं च शस्त्रं च नन्दराजगता च भूः।
अमर्षेणोद्धृतान्याशु तेन शास्त्रमिदंकृतम् \\

अर्थात- इस ग्रंथ की रचना उन आचार्य ने की जिन्होंने अन्याय तथा कुशासन से क्रुद्ध होकर नन्दों के हाथ में गए हुए शास्त्र, शस्त्र एवं पृथ्वी का शीघ्रता से उद्धार किया था।
इस ग्रन्थ की महानता को देखते हुए कई विद्वानों ने इसका पाठ किया और इसका भाषांतर किया| जैसे- यूरोप के विद्वान्  हर्मान जाकोबी, ए.हिलेब्रंद्त, डॉ.जुँली|
चाणक्य ने कहा था जो भी मेरे अर्थशास्त्र और नीति का मात्र अध्यन भी कर ले वो कभी भी राजनीति और सांसारिक क्षेत्र में पराजित नहीं हो सकता|
 तो दोस्तों एसा था महान चाणक्य का व्यक्तित्व| जिसने नन्द के बेटे से उसे मरवा दिया और विश्वविजेता अल्कशेन्द्र(अलेक्सेंडर,सिकंदर) को खाली हाथ लौटा दिया|

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               ||जय चाणक्य||
               ||जय भारत||
26\08\2018
 परम कुमार
कक्षा-9
कृष्णा पब्लिक स्कूल
रायपुर       
पोरस वाले ब्लॉग की लिंक- https://paramkumar1540.blogspot.com/2018/05/blog-post_27.html
ऊपर दिया गया चाणक्य का चित्र इस लिंक से लिया गया है- http://generalstudiess.com/chanakya/








Monday 30 July 2018

जय महाकाल
नमस्कार दोस्तों आपका एक बार फिर से मेरे ब्लॉग में हार्दिक स्वागत है |
दोस्तों आज का ब्लॉग मेरे भाई समान मित्र की इच्छा पर लिखा जा रहा है और मेरे उस प्रिय मित्र का नाम है ओजस दुबे |
दोस्तों आज हमारी चर्चा का विषय उससे पर है जिसके ऊपर हाल ही में फिल्मी बनी थी जिसको लेकर काफी विवाद भी हुआ था और काफी जगहों पर इस फिल्म को लगाने की अनुमति भी नहीं दी| यह फिल्म  इसी साल के 25 फरवरी को रिलीज हुई थी| तो इतना पढ़ कर दोस्तों आप तो समझ ही गए होंगे कि यह ब्लॉग महारानी पद्मिनी पर है| परन्तु ऐसा नहीं है, यह ब्लॉग उस महान योद्धा पर है जिसे उस फिल्म में दिखाया तो गया था पर उसे के किरदार के व्यक्तित्व को अच्छे से नहीं बताया जा सका | इसके अलावा यह उन योद्धाओं पर भी है जो अगर उस समय ना होते तो उस समय रावल रतन सिंह जीवित नहीं बचते | जी हां दोस्तों मैं बात कर रहा हूं मेवाड़ राज के महान सेनापति गोरा सिंह चुंडावत की और उनके भतीजे बादल सिंह चुंडावत की|. तो आइए शुरू करते है|
मित्रों यह बात है  सन 1300 ई. की जब रावल रतन सिंहके पिता समर सिंह का देहांत हो जाता है तब रावल रतन सिंह अश्वमेध यज्ञ करने का प्रण लेते है और वो साथ ही-साथ यह प्रण भी लेते हैं की वो  दिल्ली से लेकर दक्षिण में सिंघल द्वीप (श्रीलंका) तक अपना राज बढायेंगे|  ताकि भारत को कोई विदेशी चुनौती ना  दे पाये|  आप सोच रहे होंगे कि मैं यह कैसी बात कर रहा हूँ क्योंकि आज तक आपने किताबों में तो यही पढ़ा होगा कि अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का राजा था | जो दिल्ली का राजा होता  वह भारत का राजा होता | आप जो सोच रहे हैं वह बिल्कुल सही सोच रहे हैं क्योंकि आपने यह सब आप तक आपने जितनी भी किताबें पढ़ी उसी से जाना  पर शायद आपको यह नहीं पता कि जब तक दिल्ली सल्तनत में तूगलकशाही नहीं आई थी तब तक जितने भी मुसलमान राजाओं ने राज किया भारत पर वह लोग दिल्ली से नहीं बल्कि देवगिरी से राज किया करते थे| तो रावल  रतन सिंह जब यह प्रण लेते हैं कि वह पूरे भारत को एक करेंगे दिल्ली से लेकर दक्षिण में सिंघल द्वीप तक अपना राज फैलाएंगे| तब उन्होंने सन 1301 में अपना प्रण पूरा करने के लिए अश्वमेध यज्ञ आरंभ किया उन्होंने अपने अश्वमेध यज्ञ का आरंभ राजस्थान जो (तत्कालीन राजपूताने के नाम से जाना जाता था) , उसके मारवाड़ की जीत के शुरू किया था मारवाड़ की जीत को देखकर भारत में रावल रतन सिंह के नाम का डर फैल गया था | रावल रतन सिंह को उन सभी राज्यों का समर्थन मिल रहा था, जहां जहां वह अपना राज विस्तार कर रहे थे| इसके साथ ही  उनकी सेना भी बढ़ती जा रही थी और इसीलिए शायद रावल रतन सिंह को ज्यादा युद्ध नहीं करना पड़ा  था क्योंकि उनकी इतनी विशाल सेना का सामना करने का साहस हर किसी में नहीं था|  तो उनको दक्षिण तक  पहुंचने  में  कोई  परेशानी  नहीं  हुई|  जब  वह  दक्षिण के रामेश्वरम पहुंचे तो रात में उन्होंने  रामेश्वरम के  तट  पर अपना खेमा लगाया और रावल रतन सिंह फिर अपनी दिन की रणनीति पर विचार विमर्श कर के सोने चले गए| इसके कुछ देर बाद वहां पर एक तोता उडते हुए आ गया और पद्मिनी-पद्मिनी बोलने लगा| जिससे राजा की नींद खुल गयी उन्होंने उस तोते से पूछा हे हरे रंग के प्राणी तेरा क्या नाम हे तोते ने बताया मेरा नाम हिरामल है मै राजकुमारी पद्मिनी का तोता हूँ वो इस दुनिया की सबसे सुन्दर स्त्री हैं |
मित्रों आज  भी  यह  कहा  जाता है कि विश्व  में  उनसे  ज्यादा  सुंदर  महिला  आज तक  पैदा  नहीं  हुई  बस  एक  ही  दिक्कत  थी  कि शादी नहीं हो पा रही थी|  इतना सब सुनकर रावल राजा और सिंह ने यह फैसला किया कि वह अपने चुनिंदा 17000 सिपाहियों के साथ सिंघल दीप जाएंगे दूसरे दिन फिर राजा ने सिंहल द्वीप के तरफ अपने विश्वसनीय 17000 सिपाहियों के साथ प्रस्थान किया| प्रस्थान करने के ही दूसरे दिन वह सिंगल में पहुंच गए थे| सिंहल द्वीप में उनका भव्य स्वागत हुआ वहां के राजा गंधर्व सेन ने कहा हे राजा आप मेरी बेटी के स्वयंवर में आए उसके लिए आपका धन्यवाद| महाराज आपको मेरी बेटी से शादी करने के लिए कुछ परीक्षाएं देनी पड़ेगी, जो आज के स्वयंवर में रखी गई हैं, रावल रतन सिंह ने कहा ठीक है महाराज मैं उन सभी परीक्षाओं को पार करने के लिए तैयार हूँ |  परीक्षा यह थी  की एक बहुत बेहतरीन लड़ाका था जो आज तक किसी से हारा नहीं था उसे हराना था| सब राजाओं ने  अपना दम लगा दिया उस वीर को हराने में कोई उसे हरा नहीं पाए तब रावल रतन सिंह उस योद्धा से युद्ध करने के लिए अये | उस योद्धा में  और रावल रतन सिंह में युद्ध शुरू हुआ अंत में उन्होंने उस योद्धा को पराजित कर दिया | दोस्तों वह योद्धा और कोई नहीं स्वयं राजकुमारी पद्मिनी थी | पद्मिनी ने कहा पिताश्री जो आदमी मेरी रक्षा कर सकता मैं उसी उसी से ही विवाह करूंगी | तो अंत में इस तरीके से रावल और सिंहऔर पद्मिनी का विवाह तय हुआ| जब विवाह हो गया तब सिंहल द्वीप के राजा गंधर्वसेन ने और सिंह से पूछा कि हे राजन आप को दहेज में क्या चाहिए तो राजा ने उत्तर दिया कि मुझे दहेज में तो कुछ नहीं चाहिए पर मेरे साथ जो यह 17000 सिपाही आए हैं आप इनकी भी शादी करवा दीजिए यह उन्होंने राजागंधर्वसेनसे दहेज के रूप में मांगा|राजागंधर्वसेन ने इसको पूरा किया और उन सभी 17000 सिपाहियों का विवाह करवा दिय इसके बाद रावल रतन  सिंह वापस चित्तौड़ गए वहां पहुचके उन्होंने जो प्रतिज्ञा ली थी की दिल्ली से सिंघल द्वीप तक अपना राज लाएंगे पूर्ण किया और अश्वमेघ यज्ञ में अंतिम आहुति डाली|
रावल रतन सिंह के एक गुरु थे जिनका नाम था राघव चेतन| जो मेवाड़ राजघराने के राजगुरु भी थे| विवाह के बाद सबसे पहले रतन सिंह और महारानी पद्मिनी उन्हीं से मिलने गए  महारानी पद्मिनी को देखते ही राघव चेतन उन पर मोहित तो गए| अपने इस कृत्य के कारण एक दिन उसने रानी को नहाते हुए देखने की कोशिश की पर वह पकड़े गए और सिंह ने उन्हें महल से निष्कासित करने का आदेश दिया तभी एक सैनिक ने रावल रतन सिंह को  खबर दी कि राघव चेतन पंडित नहीं बल्कि एक तांत्रिक था और उस समय राजपूताने में, ना सेना में, ना ही महलों में, तांत्रिक को रखने की अनुमति थी| रावल रतन सिंह के समय में तांत्रिक सेना में हिस्सा नहीं ले सकते थे और वह ना ही महल के किसी उच्च पद या किसी भी पद पर विराजित तो सकते थे| तो रावल रतन सिंह ने उन्हें पंडित होने से बहीष्कार  करते हुए राजपूताने से निकाल दिया|
अपने अपमान का बदला लेने के लिए राघव चेतन देवगिरी के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के पास मदद मांगने गया | अलाउद्दीन खिलजी थोड़े ही समय पहले अपने चाचा यानी जलालुद्दीन खिलजी को मार के राजा बना था| जलालुद्दीन खिलजी कि लड़की से अलाउद्दीन कि शादी हुई थी| अलाउद्दीन खिलजी का एक बहुत खास आदमी था जिसका नाम था मोहम्मद कंफुर|
राघव चेतन ने जब अलाउद्दीन खिलजी से मदद मांगी पर अलाउद्दीन खिलजी राजपूतों से काफी भयभीत रहते थे| उन्होंने उनकी सहायता करने से मना कर दिया तब राघव चेतन ने अलाउद्दीन खिलजी को कहा की अगर आप चित्तोड पर आक्रमण कर के उसे जीत लेते हैं तो आप को ना केवल खजाना मिलेगा बल्कि आप को वहां एक खुबसूरत रानी भी मिलेगी| यह सुनकर खिलजी ने कहा की मै केवल खजाने और रानी के लिए राजपूतों से दुश्मनी क्यों मोल लूं मेरे पास नहीं पैसे की कमी हे और नहीं रानियों की| फिर राघव चेतन ने खिलजी को सम्मोहित करके अपने आंखों द्वारा पद्मिनी की एक तस्वीर उन्हें दिखाई और कहा हे राजन मैं केवल अपने बदले के लिए आपके पास नहीं आया हूं बल्कि आपके फायदे के लिए भी आपके पास आया क्योंकि आपने अभी जिस महिला का चित्र मेरी आंखों के द्वारा देखा वह इस दुनिया की एकमात्र सबसे सुंदर औरत, इतना ही नहीं अगर आप चित्तौड़ को विजय ही कर लेते हैं तो आपको तीन रत्न प्राप्त होंगे जिनकी कीमत इस दुनिया में सबसे ज्यादा अनमोल है| सब सुनने के बाद अलाउद्दीन खिलजी राघव चेतन के भड़काने में आ गया और उसने मेवाड़ जो उस समय की एक सबसे बड़ी सल्तनत बन चुकी थी उसके खिलाफ हमला का आदेश दे दिया और इस युद्ध में मोहम्मद कंफुर ने और बिहार के मुसलमान शासक ने अलाउद्दीन खिलजी का साथ दिया|
सन 1302 में फरवरी के बाद गर्मी वाले मौसम में अलाउद्दीन की सेना ने चित्तौड़ के उपर हमला कर दिया| उन्होंने चित्तोड़ को तो घेर लिया था पर वह यह भूल चुका था कि वह महल के बाहर जहां पर गर्मी उनके प्राण ले लेगी और रावल रतन सिंह और उनकी सेना महल के अंदर वहां पर उनके पास ना ही खाने की कमी थी ना ही पीने की ऐसे ही ऐसे समय बीता जाए होलिका दहन का दिन आ गया होलिका के उपहार के रूप में रावल रतन सिंहने अपने सैनिकों द्वारा अग्निबाण की वर्षा अलाउद्दीन खिलजी के खेमों पर करवा दी और अलाउद्दीन खिलजी के खेमों को जला दिया जिसकी वजह से उसके काफी सैनिक मारे गए और उसका प्रिय साथी मोहम्मद कंफुर भी जख्मी हो गया उसने अपनी सेना का इतना नुकसान देख कर यह फैसला लिया कि वह रतन सिंह को बल से नहीं बल्कि छल से पराजित करेगा और उसने रतन सिंह के किले के अंदर यानि चित्तौड़ के किले में एक पत्र भिजवाया की वह बस एक बार पद्मिनी को देखना चाहते हैं और उनके साथ मिलकर भोजन करना चाहते हैं और इससे पहले वह अपनी सारी सेना वापस महल भेज देगी,रतन सिंह ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और अलाउद्दीन खिलजी को महल में भोजन का आमंत्रण दे दिया अलाउद्दीन खिलजी ने महल का आमंत्रण स्वीकार किया| इसके बाद उन्होंने खिलजी को अपना पूरा महल दर्शन करवाया रतन उसके साथ बैठ के भोजन किया| यह सब आदर सत्कार तो जाने के बाद  खिलजी ने रावल रतन सिंह से कहा कि मैं अपकी रानी का एक बार दर्शन करना चाहता हूँ | यह सुनकर रतन सिंह के सेनापति गोरा सिंह ने खिलजी के गर्दन पर तलवार रख दी और कहा महाराजा मुझे बोलने का हक़ नहीं है पर कोई विदेशी लुटेरा हमारी महारानी को एसे भी क्यों देखे| यह सुनकर रतन सिंह ने कहा की तुम राजनीती नहीं जानते तो हर बार बात बात में तलवार निकल लेते हो| तो, चलो तलवार अन्दर डालो अपना यह अपमान देख कर गोरा चित्तोड का किला छोड के चले गए | आखिर रतन सिंह खिलजी को जल महल में लेकर गए जल महल के ऊपरी हिस्से में एक शीशा लगा था उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी से कहा कि आप उस शीशे में देखें आपको मेरी पत्नी रानी पद्मिनी की झलक दिख जाएगी और उन्होंने पद्मिनी को आने का इशारा किया जल महल के दूसरी तरफ के महल में पद्मिनी ने अपना प्रतिबिंब पानी में डाला और वह प्रतिबिंब और दूसरों शीशों से टकरा ने के बाद जल महल के शीशे में आया| जिसको देखकर अलाउद्दीन खिलजी हैरान हो गया और उसने मन में ही सोचा कि अगर यह रानी शीशे में इतनी सुंदर दिखती तो असलियत कितनी सुंदर दिखती होगी और वह तुरंत पीछे मुड़ा पर पद्मिनी तुरंत अंदर चली गयी| ( यह पढ़कर आप सोच रहे होंगे की रावल रतन सिंह बहुत कमजोर थे इस लिए उसने खिलजी को पद्मिनी की झलक शीशे मैं दिखा दी पर एसा नहीं यह उन्होंने रानी की झलक शीशे में इसलिए दिखाई क्योंकि अथिति भगवान होता यह और भगवान  की हर इच्छा पूरा करना मेजबान का फर्ज होता है) इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने रतन सिंह से कहा हे राजन अब मैं वापस दिल्ली चलता हूं आपके भोज के लिए हार्दिक धन्यवाद| तब रतन सिंह ने खिलजी से कहा कि हमारे हिंदू धर्म में यह रिवाज यह कि आए हुए मेहमान को दरवाजे तक छोड़ा जाता है | खिलजी यह बात जानता था इसलिए उसने पहले से ही 1 जाल बना के रखा हुआ था जैसे ही रावल रतन सिंहजी खिलजी को बाहर तक छोड़ने के लिए आए खिलजी के कुछ सिपाहियों ने तुरंत उन्हें कैद कर लिया और अपने साथ दिल्ली लेकर चले गया|
जब यह बात मेवाड़ वासियों को पता चली तो उनमें अफरा तफरी मच गई और खिलजी ने दिल्ली से एक पत्र भिजवाया जिसमें उसने लिखा था कि अगर तुम अपने महाराज की भलाई चाहते तो तो तुम अपनी महारानी पद्मिनी का विवाह मुझ से करवा दो यह सुनने के बाद मेवाड़ के राजपूतों में खून की तेजी और भी तेज हो गयी थी और उन सब ने यह फैसला किया कि वह देवगिरी पर आक्रमण करके खिलजी को समाप्त कर देंगे क्योंकि राजपूतों का बल उस समय खिलजी से अधिक था तब पद्मिनी ने उन सब को कहा आप लोग तो मेरे से इतने बड़े और बुद्धिमान यह तब भी आप लोग ऐसी बात कैसे कर सकते हैं हमारे देवगिरी पर हमले की खबर सुनते ही वह रतन सिंह को मार देगा और हमारे राजा की मृत्यु हो जाएगी| तब उन्हीं ने पूछा तो आप ही बताइए कि हम क्या करें तब पद्मिनी ने कहा हम लोग अपने महाराज को वापस लाएंगे पर एक रणनीति के द्वारा और उसके लिए उन्होंने ने सबसे पहले मेवाड के सेनापति गोरा सिंह को बुलाया (जो शुरू से ही खलजी को महल में बुलाने के विरुद्ध थे और महल में तो खिलजी को मारने के लिए उठ खड़े हुए थे) रानी ने  उनसे मदद मांगी और उनके पैर पर गिर गयीं तब गोरा ने कहा की यह आप क्या कर रहीं है आप शिशोधीया कुल की महारानी हैं आप निश्चिंत होकर महल में बैठें हम रावल जी की मुक्त कर के लायेंगे| फिर रणनीति बनाई गई जिसके अनुसार उन्होंने अपने भतीजे बादल सिंह चुंडावत को बुलाया और कहा खिलजी के पास पत्र भेज दो की पद्मिनी देवगिरी आयेंगी पर एक शर्त है कि वो अपने साथ अपनी 700 सहेलियां भी लायेगि और देवगिरी पहुचते ही हमें पहले रावल रतन सिंह से मिलना है इतना सब पत्र मैं लिखने के बाद बादल ने पत्र देवगिरी भेज दिया| योजना यह थी की एक लोहार पद्मिनी के वेश भूषा मैं पद्मिनी कि जगह उनकी डोली में बैठ के जायेगा| ताकि वो रतन सिंह के बंधन कट सके और’ यह केवल 700 सेनिक नहीं बल्कि 3500 ससैनिक देवगिरी जायेगे जिसमे 700 सैनिक लड़कियों की वेश भूषा पहनके डोली मैं बैठेंगे| पद्मिनी ने स्वयं गोरा और बादल का तिलक किया और उन्होंने देवगिरी की और प्रस्थान किया| उधर खिलजी को भी राजपूतों का पत्र मिल चूका था और उसने दोनों शर्त मंजूर कर ली फिर एक दिन राजपूतों की सेना देवगिरी पहुच गयी| और शर्त के अनुसार पद्मिनी (लोहार) सबसे पहले रतन सिंह से मिलने गया वहां पर उसने रतन सिंह के बंधन काटे और उन्हें मुक्त किया| बहार आते रतन सिंह गोरा से गले मिले और उनसे माफ़ी मांगी| गोरा ने कहा महाराजा यह माफी मांगने का समय नहीं हैं आप तुरत यहाँ से निकिलिये रतन सिंह ने बहुत मना किया पर गोरा और बादल ने उन्हें कैसे भी  समझा के चित्तोड वापस भेज दिया| पर यह बात मोहमद जफ़र को पता चल गयी और उसने तुरंत यह तो खिलजी को बता दी यह तो सुनते ही खिलजी ने युद्ध की घोषणा कर दी| उन 3500 राजपूतों और खिलजी के सेनिकों में घनघोर युद्ध चालू तो गया| गोरा का सामना महोमद जफ़र से हुआ तो गोरा उसको देखते ही आगबबुला तो गया और दोनों में घमासान युद्ध चालू हो गया | दूसरी ओर बादल भी घनघोर युद्ध कर राहा था| तभी खिलजी के एक सैनिक ने गोरा के पैर पर तलवार मार दी’ और गोरा गिर गए वो जैसे ही गिरे कंफुर ने उनका सर काट दिया पर वो भूल चूका था की कुत्ता केवल अपने घर में शेर होता हे पर शेर हर जगह शेर होता है| उस बिना सर के शरीर ने (केवल धड़ ने) कंफुर को मार दिया | अपने चाचा का शीश देख कर बादल का क्रोध अपनी चरम सीमा पर पहुच गया और वो खिलजी के सैनिकों को गाजर मूली की तरह काटना शुरू कर दिया तभी एक तीर उन्हें लगा और बादल सिंह की मृत्यु हो गयी | इसके बाद  ही धीरे धीरे सब राजपूत योद्धा मारे जाने लगे| पर उनके महाराजा यानि रतन सिंह जिवीत थे| खिलजी ने मेवाड के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी|
और दुसरी तरफ राजपूताने में चप्निया परदेश के 56 राठौर राजाओं ने विद्रोह कर दिया था| जिसको नियंत्रित कर ने के लिए रावल रतन सिंह ने अपने भतीजे को 300000 की सेना के साथ रवांना किया| इस तो का फायदा उठा के खिलजी ने 97000 की सेना के साथ चित्तोड पर आक्रमण कर दिया अब चित्तोड में मात्र 40000 की सेना थी| अब इसे हालत मैं राजपूतों ने साका करने का फेसला किया और स्त्रियों ने जौहर का निर्णय किया| अगले दिन सभी पुरुष  केसरिया पगडी पहन के साका के लिए तैयार हो  गए| सुबह के 6 बजे स्त्रियों ने पद्मिनी के साथ में जोहर कर लिया और सात बजे किले के दरवाजे खोल दिए गए| राजपूतों हर-हर महाद्देव के जय घोष किया| और युद्ध आरंभ कर दिया|
मैं इस युद्ध का वर्णन  नहीं कर सकता पर कोशिश करता हूँ|
23 मार्च 1303 को हुए उस युद्ध ने पुरे राजपूताने को हिला दिया| राजपूतों की उस वीरता का केवल अनूभव किया जा सकता उस दिन एक–एक राजपूत 100-100 पे भारी पढ़ रहा था राजपूतों का यह पराक्रम देख के खिलजी की सेना मैं डर की भावना आ रही थी| राजपूत लगातार हर-हर महाद्देव, जय राजपुताना, जय एकलिंगनाथ जैसे जयघोष लगा रहे थे की तभी एक सेनिक ने धोखे से रावल रतन सिंह को घोडे से गिरा दिया| रतन सिंह जब गिरे तब उनके पेट मैं भला घुस गया था| पर उनकी मृत्यु नहीं हुई थी वह खिलजी की तरफ बढे और खिलजी पर एक वार किया जिससे वह घायल हो गया | तभी एक तीर उन्हें लगा जिससे उनकी मृत्यु हो गयी|
एक खास बात पद्मावत पिक्चर में दिखाया गया की रतन सिंह को मोहमद कंफुर ने तीर चला के मारा था पर एसा नहीं था रतन सिंह की मृत्यु एक मामूली सैनिक के तीर से हुई थी|
    तो दोस्तों ऐसा था महावीर रतन सिंह , सेनापति गोरा सिंह चुण्डावत और उनके भतीजे बादल सिंह का साहस| दोस्तों इतना पढके आप समझ ही गए होंगे की रावल रतन सिंह के पास उस समय अगर अपनी पूरी सेना होती तो वो खिलजी का नामो निशान इस दुनिया से मिटा देते| रावल रतन भी अन्य राजपूत योद्धाओं की तरही वीर थे इनका राज्य 34,50,288किलोमीटर स्क्यार था|
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                            जय भारत
धन्यवाद्
30\07\2018
                                                       परम कुमार
                                                       कक्षा-9
                                                 कृष्णा पब्लिक स्कूल
                                                     रायपुर
          

ऊपर दी गयी फोटो इस लिंक से ली गयी है

1-https://hindi.starsunfolded.com/rawal-ratan-singh-hindi/

2-http://www.holidayiq.com/destinations/udaipur/photos/p5.html#341481


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