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Friday 24 April 2020


जय महाकाल

नमस्कार दोस्तों|
आप का मेरे ब्लॉग में एक बार फिर से स्वागत है| आज हमारे चर्चा का विषय शुरू करने से पहले मै आप को एक महत्वपूर्ण बात बताना चाहता हूँ| परन्तु सके पहले मै आपको ये बताना चाहूँगा कि आज के ब्लॉग के विषय का सुझाव मेरी चाची श्रीमती शिवांगी श्रीवास्तव द्वारा दिया गया है| आप भी अपने सुझाव मेरे ब्लॉग के कमेंट बॉक्स मे या मेरे ईमेल paramkumar1540@gamil.com पर या मेरे व्हाटसएप नंबर 7999846814 पर दे सकते हैं|
आइये अब आज का ब्लॉग शुरू करते हैं|
आप सब ने अशोक स्तम्भ के बारे में तो सुना ही होगा, जो उत्तर प्रदेश के सारनाथ संग्राहलय में रखा हुआ है| उस स्तम्भ में चार शेर बने हुए हैं, जिन्हे धर्म का प्रतीक भी माना जाता है| हमारे संविधान में हर एक शेर का अपना अपना महत्व बताया गया हैं| इस संग्रहालय मे रखे सम्राट अशोक के शिलालेख क्रमांक 13 पर यह लिखा है की उन चारों में से एक ही शेर धर्म का प्रतीक है और उसी के नाम पर उस स्तम्भ का नाम है| बाकि तीन शेर उन तीन राज्यों और राजवंशों के प्रतीक हैं जिनको अशोक कभी भी युद्ध मे हरा नहीं पाये और वो तीन राजवंश थे चेरा, पंड्या और चोला|

इसलिए आज हमारे चर्चा का विषय उन तीन राजाओं मे से एक चोल वंश के ऊपर है| तो आइये भगवान महाकाल का नाम लेक हम आज का ब्लॉग शुरू करते हैं|
अगर हम प्राचीन भारत के इतिहास का गहरा अध्यन करें तो हमे पता चलेगा की चोल वंश का का असली नाम चोड़ वंश है, और इस राजवंश के वंशजों का उल्लेख रामायण में, महाभारत मे (चेदी प्रदेश के राजा शिशुपाल के रूप मे), मध्य कालीन भारतीय इतिहास के 100 ई. मे  मिलता है| इस लेख मे मै आपको मुख्य रूप से मध्य कालीन भारतीय इतिहास मे इस राजवंश के बारे में बताउंगा जो लगभग 9वीं सदी से शुरू होकर 13वीं सदी के बीच का है और इस काल मे चोल वंश अपनी ऊँचाइयों में रहा|

     चोल राजवंश का पूरा विवरण हमे संगम नामक एक ग्रन्थ में मिलता है, जिसे तोल्काप्पियर ने लिखा था| इस ग्रन्थ में चेरा, चौल्क्य, पल्लव और पंड्या राजवंशों की भी समस्त जानकारी है| इस ग्रन्थ के अनुसार सन 848 ई. में विजयालय चोला ने पल्लव को हरा क कावेरी नदी के पास चोल राजवंश की स्थापना की| राजा विजयालय चोल का कावेरी के निकट अपना राज्य बसाने के बहुत से कारण थे| उन कारणो मे से एक कारण यह था कि (यह घटना त्रेता युग की है) आदिकाल में अगस्त्य ऋषि के दो शिष्य थे करिकला चोला और कोसन्गंनन चोला| इन दोनों के ही आग्रह पर अगस्त्य ऋषि ने  ब्रम्हाजी की तपस्या की थी और उनसे उनकी पुत्री कावेरी को धरती पर ले जाने की मांग की| तब कावेरी देवी ने उन्हें यह वरदान दिया की जो पहले दो राजकुमार उनकी नदी का जल ग्रहण करेंगे वो इतिहास में अमर हो जायेंगे (इस घटना का वर्णन बाल्मीकी रामायण मे भी मिलता है) और इस प्रकार अगस्त्य ऋषि के शिष्यों करिकला चोला और कोसन्गंनन चोला ने कावेरी नदी का जल ग्रहण किया और अपना राज्य महाराज रघु (श्री राम के परदादा) के साथ मिलकर उत्तर पश्चिम में कैकेय देश (रशिया) तक और उत्तर पूर्व में किन प्रदेश, क्सिन प्रदेश, जिन प्रदेश के साथ सुई, तंग (य सब आज के चीन को बनाते हैं) अदि देशों को जीत लिया था (यह थी रामायण कालीन त्रेता युग की घटना जिसे इस राजवंश की नींव पड़ी) | संगम ग्रन्थ में इसकी पूरी जानकारी है| यह एक महत्वपूर्ण कारण था जिनकी वजह से मध्यकाल के भारतीय इतिहास मे जब यह राजवंश फिर से भारत वर्ष में स्थापित हो रहा था तो राजा विजयालय चोला ने एक बार फिर से चोल वंश को कावेरी के किनारे बसाने का निर्णय लिया था और इस तरह से एक बार फिर पुरे भारत में चोल वंश का बिगुल बज चूका था| महाराज श्री विजयालय चोला ने अपने सबसे बड़े शत्रु पल्लवों से थंजावुर (वर्तमान मे तमिलनाडु का एक शहर) जीत लिया था और वहां प अपने इष्ट देव महाकाल का भ्रिदेश्वर नाम का मंदिर बनवाया और अपने अंत समय में उसी मंदिर में अपने प्राण त्याग दिए|
आएये अब हम इस चोल वंश के अन्य प्रतापी राजाओं के बारे में जाने|
  

आदित्य प्रथम- यह विजयालय चोला की ही तरह एक प्रतापी राजा थे, जिन्होंने पंड्या और पल्लव राजाओं की सेना को एक साथ हरा दिया और पूरा पल्लव राज्य अपने अधिकार में ले लिया| वीं सदी के अंत तक पंड्या राज्य को भी उन्होने काफी कमजोर कर दिया था और इन्होने उनकी राजधानी तोंडामंला को भी जीत लिया था| उनकी वीरता से प्रभावित होक राष्ट्रकुता राजा कृष्णराज ने अपनी बेटी की शादी उनसे कारवाई थी| इन्होने 907 ई. में निशुम्भासुदिनी माता के मंदिर में समाधी ग्रहण की और अपने राज्य काल में कई शिव मंदिर बनवाये थ|

प्रन्ताक्का- इन्होने 907 ई. में अपने पिता आदित्य प्रथम के बाद राज्यभार ग्रहण किया और यह एक महत्वाकांक्षी राजा साबित हुए थे, जिन्होंने अपना पुरा जीवन युद्धों में ही बीताया| इनने पंड्या राजा राजसिम्हा से मदुराई को जीत लिया और मदुरैकोंदा की उपाधि ली जिसका मतलब होता है मदुराई को जितने वाला| पर 949 ई. में कृष्णदेवराज से तोक्काल्म युद्ध में ये राजीत हो गये और तोंमंद्लम गवा दिया| बाद मे इन्होने विष पीकर आत्महत्या करने की भी कोशिश की पर कहते हैं स्वयं महाकाल ने इनके प्राणों की रक्षा की और इनको अध्यात्म के मार्ग पर चलने की आज्ञा दी जिसके पश्चात वो अपने पुत्र प्रन्ताक्काराज को राजा बना क हिमालय पर चले गये|

प्रन्ताक्काराज- इन्होने राष्ट्रकुता को तोंमंद्लम के युद्ध में हरा क सौराष्ट्र के रुई के व्यापार पर अपना अधिकार स्थापित किया और कई मंदिर बनवाये थे| इनके समय मे ही कई दक्षिण भारतीय भाषाओं का विस्तार भारत के दूसरे प्रदेशों मे हुआ|
       
Rajaraja Chola I: Conqueror, temple builder and one of the ...राजराजा चोला प्रथम- अपने पिता प्रन्ताक्काराज के बाद राजराजा चोला प्रथम ने चोल वंश का राज्य ग्रहण किया| इन्होने 985 ई से 1014 ई तक राज्य किया और इनके समय को चोल वंशा का पहला स्वर्ण युग कहते हैं| इन्होने अपने पूर्वज इल्लन (करिकला चोला के पिता) के रास्ते  पर चलते हुए श्रीलंका को जीता और वेगी के चालुक्य राजाओं को भी हराया और राजराजेश्वर मंदिर भी बनवाया| कहा जाता है कि इनके समय चोल राजवंश एक सप्ताह में लगभग 4 करोड़ का व्यापार चीन के साथ करता था| इसकी जानकारी हमें चीनी यात्री क्सुंज़ंग की किताब कुली-या के राज्य में मिलती हैं|

राजेंद्र चोला- यह भी अपने पिता राजराजा प्रथम की ही तरह एक वीर राजा थे |इन्होने गन्गैकोदा की उपाधि धारण की थी जिसका अर्थ होता हे गंगा को जीतने वाला| इन्होने 1034 ई. के लगभग भारत में पहली बार भारतीय विदेश सेवा की शुरुआत की थी| वैसे इस तिथि को लेक थोडा मतभेद हैं| इन्होने अपने राजदूत को चीन में भेजा था और वहां प इनके राजदूत अरिश्त्देव ने कई भारतीय भाषाओँ के विद्यालयों की स्थापना वहाँ कारवायी| इन्होने अपने राज्य की सीमा भारत के उत्तर में बिहार के राजा महिपाल को हरा के बिहार तक ही की थी| परंतु भारत के बाहर मालदीव, अंदमान और निकोबार द्वीप समूह, थाईलैंड, कम्बोडिया, सिंगापुर के साथ बर्मा (म्यामार) को भी जीत लिया था| सिंगापूर में अर्जुन (वीर पांडव) के पुत्र नागार्जुन का मंदिर भी बनवया था|  इन्होने गंगा नदी से लाखों लीटर पानी सोने के घड़ों में भरवा कर अपने साथ लेक अपने राज्य में लाये और सबसे बड़ी इन्सान द्वारा निर्मित नदी बनवाई और उसका नाम चोला गंगा रखा| यह नदी लगभग 16 मील लम्बी और 3 मील चौड़ी थी| इसके बाद भी जो पानी बच गया उसे इन्होने भ्रिदेस्वर मंदिर के जल कुं में डलवा दिया| इनके समय को चोला राजवंश का दूसरा स्वर्ण युग कहते हैं| राजेन्द्र चोला ने 1012 ई. से 1044 ई. तक राज्य किया|

वीर राजेंद्र चोला- इन्होने 1064 ई से 1070 ई. तक ही राज्य किया| इनके पहले इनके बड़े भाई राजेंद्र द्वीतीय ने 20 साल (राजेन्द्र चोला प्रथम के बाद) राज्य किया था| पर इनके समय कोई महतवपूर्ण घटना नहीं हुई| इनके समय चालुक्यों ने वेंगी प्रदेश इनसे छिन लिया गया और सोमेश्वर द्वीतीय ने चालुक्यों के नये राजा के रूप में राज्य ग्रहण किया था|से मैत्री सम्बन्ध बनाने के लिए इन्होने अपनी पुत्री सुलेखा का विवाह सोमेश्स्वर के पुत्र विक्रमादित्य से कर दिया था|

परंतु इसके पश्चात और समय के साथ चोल वंश धीरे धीरे कमजोर होने लगा और बाद में इस राजवंश के अंतिम राजा हुए विक्रम चोला जिन्होंने 1120 ई. से 1135 ई. तक राज्य किया और अपने वंश की महान कीर्ति को धूमिल होने से बचाया| पर जो होना होता है वो हो ही जाता है और इस प्रकार 1135 ई. में चोल सेनाओं ने पंड्या वंश की एक विशाल सेना जिसमे होस्ल्या, चौलुक्य, पल्व राजाओं की सेना भी शामिल थी, से पराजित हो गए और पंड्या राजा मरावार्मन कुअसेकारा पंड्या प्रथम ने चोला राज्य को पंड्या राज्य में मिला लिया और इस तरह से सदा के लिए दक्षिण भारत के सदियों पुराने राजवंश की समाप्ति हो गयी और वो इतिहास के अंधेरे पन्नों में खो गया|

24\04\2020
                                                                                                          परम कुमार
                                                     कृष्ण पब्लिक स्कूल
                                                     रायपुर(छ॰ग॰) 
ऊपर दी गयी तस्वीरें इस लिंक से ली गयी है-
5. https://www.google.com/imgres?imgurl=https%3A%2F%2Ftime.graphics%2FuploadedFiles%2F500%2Fb2%2Fd7%2Fb2d7e746d61fdbf860b7f9f5cb00ac58.jpg&imgrefurl=https%3A%2F%2Ftime.graphics%2Fevent%2F2434400&tbnid=clZrhDSZbPJAuM&vet=12ahUKEwjF8tff84DpAhWTA7cAHY1_Dr0QMygIegUIARDxAQ..i&docid=OzoNVELaY74WCM&w=500&h=500&q=rajendra%20chola%20images&ved=2ahUKEwjF8tff84DpAhWTA7cAHY1_Dr0QMygIegUIARDxAQ






Tuesday 20 November 2018


जय महाकाल
नमस्कार दोस्तों आपका एक बार फिर से मेरे इस ब्लॉग मै हार्दिक स्वागत है| आज हमारी चर्चा का विषय है ठगों पर| 'ठग', यह नाम आज कल बहुत चल रहा है क्योंकि हाल ही मै एक फिल्म “ ठग्स ऑफ़ हिन्दोस्तान ” आयी है| परन्तु इस फिल्म में ठग्स को एक अलग तरीके से दिखाया गया है| इस फिल्म मे ठग्स को एक समुद्री लुटेरा बताया गया है जो की गलत है| आज के इस ब्लॉग मै हम यह जानेगे की असली मैं कौन थे ये ठग्स? और कैसे इनकी उत्पति हुई और कैसे इनकी समाप्ति हुई| आईये शुरू करते हैं|

ठग्स की उत्पति के बारे मे बहुत से किस्से हैं,पर उनमे जो सबसे अधिक प्रचलित है वो यह है की, जब माँ दुर्गा ने रक्तबीज के अन्त के लिए काली देवी का रूप धारण किया था| तब वो जब रक्तबीज को मार रहीं थी उस समय उसकी बूंदों से उसके जैसे और दानव खड़े होते जा रहे थे| तो माँ काली ने अपने अंदर से दो व्यक्तियों को निकाला जो की अपने हाथ मै लाल रंग का रुमाल लेके खड़े थे और रक्तबीज से उत्पन हुए अन्य दानवों को मृत्यु के गोद में सुला देते थे| इस युद्ध की समाप्ति के बाद उन दोनों ने पूछा की हे माँ हमारे लिए क्या आदेश है? माँ ने कहा तुम पृथ्वी पर ही रहो और यह कहके माँ अंतर्ध्यान हो गयीं| उन दोनों मनुष्यों ने लोगों को मारना ही अपना धरम बना लिया था और अपने जैसे कई और व्यक्ति तैयार कर लिए| यह तो हुई ठगों की उत्प्पति के बारे मैं बात| अब बात करतें हैं उनके प्रभाव के समय की और इनमे कौन-कौन लोग रहते थे|
ठगों का प्रभाव लगभग 450 सालों तक रहा था| सन 1320 से सन 1840 तक| ठगों के इलाकों में पूर्वी राजस्थान, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, मध्यभारत अता था| यह तो साधारण सी बात है की इनमे उसी इलाके   के लोग रहते थे| सन 1320 से 1793 तक इनका प्रभाव ज्यादा असरदार नहीं था| पर जब 1793 में इनका नया सरदार आया जिसका नाम था बहरम| उसके बाद से इनका प्रभाव बढ़ गया| ऊपर दिए गए राज्यों के नाम मैं से रात को जो भी अपने घर से जंगल के रास्ते से कहीं जाने के लिए निकलता था वो फिर कभी वापस नहीं आता था, चाहे वो सैनिक, व्यापारी,राजा की रानी,स्वयं राजा हो या फिर कोई मामूली इन्सान| ठगों से कोई नहीं बचता था| यहाँ तक कि इन लोगों ने अंग्रेज सरकार को भी नहीं छोड़ा| इन्होने जंगल की रक्षा के लिए नियुक्त अधिकारियों को अपना निशाना बनया| जब वो रात को जंगल में गश्त लगाने जाते तब ठग उन्हें निशाना बनाते और उन्हें उस जंगल मै सदा के लिए सुला देते और उनके घुटने, हाथ और रीढ़ की हड्डी को तोड़ के एक छोटी सी जगह पर दफना देते थे| कहा जाता है इन्होने सन 1800 से 1806 के बिच अंग्रजों की नौ बटालियन को गायब कर दिया था| 1800 से 1840 के बीच 40000 लोगों को मौत की नींद सुला दिया था| मतलब 40 सालों के हर एक साल 1000 लोग ठगों द्वारा मृत्यु को प्राप्त होते थे,और गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड की बुक के अनुसार इन के मुखिया बहरम ने अकेले ही 931 लोगों को मारा था जिसके कारण ठग बहरम का नाम उस बुक में दर्ज है| तो आईये अब इनके अन्त के बारे मैं जानते हैं|
ठगों से परेशान होकर अंग्रेज सरकार ने सन 1830 में लार्ड विलियम बेन्त्रिक को भारत का गवर्नर जनरल नियुक्त किया था और विलियम हेनरी सिल्लोमन को ठगों के अत्याचार रोकने के लिए भारत मैं नियुक्त किया| यह आदेश भी निकाला की अब से जंगलों मैं कोई भी व्यक्ति जायेगा तो उसके साथ 500 सैनिक जायेंगे और उसकी रक्षा करेंगे| इसके अलावा ठगों को जिन गाँव से मदद मिलती थी उन्होंने वहां अपने जासूस लगा दिए| इस तरह से उनकी हर एक खबर विलियम हेनरी तक पहुँच जाती और वो ठगों से पहले उस जगह पर पँहुच जाते थे जहाँ ठग अपनी साजिश अंजाम देने वाले होते और इस तरह से धीरे-धीरे ठगों का प्रभाव कम होने लगा| अन्त में ग्वालियर मैं ठगों से हुई एक मुठभेड़ में उन्होंने ठगों के सरदार बहरम को पकर लिया और सन 1840 में  उसे फांसी हो गयी और ठगों का काल खत्म हुआ|
तो दोस्तों यह थी ठगों की असली कहानी|इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाए ताकि और लोग भी ठगों का असली इतिहास जान सकें| अगर आप को मेरा यह ब्लॉग अच्छा लगा हो तो इस पर कमेंट और शेयर करें|
                  
  धन्यवाद्                 
                   || जय भारत ||
                  || जय महाकाल ||
20/11/2018
                                      परम कुमार
                                      कक्षा-9
                                  कृष्णा पब्लिक स्कूल
                                      रायपुर  
                               
ऊपर दी गयी फोटो इस लिंक से ली गयी है https://comicvine.gamespot.com/images/1300-3795443
      


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