Sunday 27 May 2018

नमस्कार दोस्तों आपका मेरे इस ब्लॉग में स्वागत है आज का हमारा चर्चा का विषय उस योद्धा पर है जिसने ना सिर्फ विश्व विजेता सिकंदर को युद्ध में पराजित किया बल्कि उसे भारत में और आगे घुसने से भी रोका|जी हाँ दोस्तों में बात कर रहा हूँ ठाकुर पुर्शोतम सिंह की जिन्हें हममें से अधिकतर पोरस के नाम से ज्यादा जानते हैं |हो सकता है कि आप यह पढ़ कर सोच रहे होंगे कि मैं यह कैसी बात कर रहा हूं क्योंकि आप सब ने आज तक तो यही पड़ा होगा कि सिकंदर ने झेलम के किनारे पोरस से लड़ाई की और पोरस को हरा दिया और एक कहानी के रूप में हमें बताया जाता रहा है की पोरस के हारने के बाद जब सिकंदर ने पोरस से पूछा था कि तुम्हारे साथ कैसा व्यहवार होना चाहिये तो पोरस ने कहा कि जैसा एक राजा दुसरे राजा के साथ करता है |
पर नहीं दोस्तों यह गलत है|  आज मैं आपको बताऊंगा कि क्या कारण था जिसकी वजह से सिकंदर वापस लौटा और क्या कारण था उसकी हार का और क्या कारण था ऐसे गलत इतिहास रचने का|
तो आइए शुरू करते है पोरस का जन्म 350 ईसापूर्व में आज के वर्तमान पंजाब उस समय के पौरव राष्ट्र में हुआ था| पोरस का असली नाम ठाकुर पुरुषोत्तम सिंह था | पर विदेशियों को पुरुषोत्तम नाम उचारण में दिक्कत आती थी तो उन्होंने यह नाम  छोटा करके अपने मुताबिक पोरस कर दिया  (खैर यह अलग बात है कि हम विदेशियों द्वारा दिये गए नाम को ही अब असली मानने लगे हैं) और उके पिताजी का नाम ठाकुर भीमराज सिंह था | क्योंकि इनके पिता का नाम भी उच्चारण करने में विदेशियों को दिक्कत होती थी तो इनका नाम उन्होंने बमनी कर दिया|  इनकी माता का नाम अनसूया था जो उस समय के तक्षशिला राज्य की राजकुमारी थी| रानी अनुसूया के पिता ने इनका विवाह भीमराज सिंह से करवाया था | पर इनके भाई को यह विवाह पसंद नहीं था | इसलिए राजा की मृत्यु के बाद उन्होंने कई बार पौरव राष्ट्र पर आक्रमण किया पर उन्हें कभी भी इसमें जीत हासिल नहीं हुई और हर बार भीमराज सिंह से मुंह की खानी पड़ी| इतिहास में लिखा जाता है कि जहां एक जहां एक तरफ पोरस अपने देश को बचाने के लिए दूसरे देशों से लड़ता था पर कभी भी जीते हुए देशों पर राज नहीं करता था वहीं दूसरी तरफ ग्रीस में  शाह फिलिप तृतीय का सबसे बड़ा बेटा एलेग्जेंडर अपनी महत्वकांक्षाओं की वजह से और अपने मां के भड़कावे में आके  अक्सर दूसरे राज्यों पर आक्रमण करता था | उसने अपने आप को राजा बनाने के लिए अपने ही भाई और अपने ही पिता का उनके अंग रक्षकों द्वारा कत्ल करवा दिया था| उसके बाद वह विश्व विजेता बनने का सपना देखने लगा| पर उसकी मां यह नहीं चाहती थी कि वह विश्व वजयी बनने के लिए कभी भी भारत की तरफ जाये है
सन 330 में अलेक्जेंडर ने अपनी विजय यात्रा शुरू की उसने अपनी विजय यात्रा ग्रीस से चालू की थी| ग्रीस राज्य जीतने के बाद उसने वहां बहुत भयानक  दहशत मचाई और वह भले ही वह राज्य जीत गया हो पर उसने पूरे देश यानी उस पूरे राज्य को जिंदा जला दिया था| इसके बाद इसके बाद उसकी ऐसी क्रूरता देखकर पश्चिम के सभी राजाओं ने उसके सामने आत्मसमर्पण कर दिया था | पर इतना ही करके एलेग्जेंडर की महत्वकांक्षा रुकी नहीं वह तो विश्व विजेता बनना चाहता था| उसने सुन रखा था कि भारत सोने की चिड़िया है इसलिए अब उसने अपने कदम पूर्व यानी भारत की तरफ़ बढ़ाए |
भारत आते समय सबसे पहले उसने उस समय के फारस आज के ईरान/इराक पर हमला किया | वहां पर उसका सामना वहां के राजा शाहदरा से हुआ| सिकंदर की सेना कमसे कम एक लाख की  थी और उसकी सेना और उसकी सेना मात्र 50000 सिपाही की थी| जिसमें कुछ फ़ारस के विद्रोही सिपाही भी थे | सन 329 में एलेग्जेंडर का सामना शाहदरा से फ़ारस के राज्य यीशुस में हुआ| इस जंग में शाहदरा बहुत बुरी तरीके से हार गए और उन्हें बदले में अपना संपूर्ण राज्य एलेग्जेंडर को सौंपना पड़ा | बदले में उसने एक शर्त पर शाहडारा को माफ किया कि वह अपनी बेटी की शादी उससे करवा दे| अपने राज्य को और अपने प्रजा को बचाने के लिए शाहदारा ने अपनी बेटी की शादी अलेक्जेंडर से करवा दी | अब फ़ारस जीतने के बाद मसेदोनिया दुनिया का सबसे बड़ा राज्य ब चुका था| पर एलेग्जेंडर की महत्वताकांक्षा का कहीं पर अन्त नहीं था| फ़ारस को जीतने के बाद फ़ारस के लोगों ने एलेग्जेंडर को सिकंदर नाम भी दिया सिकंदर का मतलब होता है जो कभी भी ना हरा हो | वह फ़ारस जीतने के बाद एलेग्जेंडर इजिप्ट की तरफ बढ़ा इजिप्ट में भी उसने भयानक रक्त पात किया और उसने इजिप्ट भी जीत लिया| 
इजिप्ट जीतने के बाद वह हिंदूकुश पर्वतों की तरफ बढा| हिंदू कुश पर्वत में उसका सामना भारत के वीरों से हुआ| सबसे पहले उसने पेशावर में हिन्दुयों से लड़ाई की थी| ऐसा बताया जाता है कि पेशावर की लड़ाई में केवल आदमी ही नहीं औरतों ने भी हिस्सा लिया था और ऐसी भयानक लड़ाई लड़ी गई थी कि उसकी सेना में भारत में और अन्दर जाने के लिए डर बैठ गया था| पर सिकंदर ने यह कहके  उन्हें भारत में आगे घुसने की ताकत दी कि अगर हम भारत जीत जाते हैं तो मैं उन सब सैनिकों को जिन्होंने सबसे ज्यादा दुश्मनों के सैनिकों के मारा हैं उको मैं जीते हुए राज्य का सूबेदार नियुक्त कर दूंगा| इस लालच में एलेग्जेंडर के सब सैनिक भारत में घुसते चले गए| पेशावर जीतने के बाद इन्होंने तक्षशिला पर आक्रमण किया पर तक्षशिला का राजा अंबे विराज ने अलेक्जेंडर से मुकाबला करने की बजाय उसका भव्य पूर्ण स्वागत किया और उसे यह भरोसा दिलाया कि मैं आपका एक सिपहसालार बनने योग्य हूं और मैं आपके साथ मिलकर युद्ध करूंगा| उसने यह इसलिए किया क्योंकि अलेक्जेंडर का अगला निशाना और कोई नहीं बल्कि पौरव राष्ट्र था और क्योंकि पौरव राष्ट्र से अंबे राज की शत्रुता थी, इसलिए उन्होंने अलेक्जेंडर की सहायता करना मुनासिब.समझा| 326 ईसापूर्व में अलेक्जेंडर का सामना पौरव राजपूत राजा ठाकुर पुरुषोत्तम सिंह से हुआ| 
पुरुषोत्तम नाम उच्चारण करने में दिक्कत होती थी तो उसने अपने फ़ारस के एक सिपहसलार से पूछा कि जब तुम भारत आए थे तो तुम लोग क्या नाम से पोरव राजा को पुकारते थे तो उसने कहा पोरव राजा को हम पोरस नाम से बुलाते थे| 324 ईसापूर्व में पोरस के पिता महाराज बमनी की आपातकालीन मृत्यु हो गई जिसके चलते  पोरस को राजा बनाया गया| कहा जाता है कि पोरस का राज्य भारत के विशालतम राज्यों में से एक था| आज के  झेलम नदी से ले के चेनाब नदी तक फैला हुआ था| सन 326 ईसापूर्व में रात के समय अलेक्जेंडर ने झेलम नदी को पार करके पोरस जहां पर था वहां पर जाने का फैसला किया| झेलम नदी को पार कर रहा था उस समय पोरस जानता था कि एलेग्जेंडर अपने 11000 सिपहिओं के साथ झेलम नदी को पार कर रहा है पर उसने उसको वहां से भगाने के लिए या मारने के लिए कोई भी उपाय नहीं किया| इतिहासकार बहुत बड़ी भूल मानते हैं पर शायद वह नहीं जानते थे जब अलेक्जेंडर अपनी  सेना के साथ झेलम नदी के दूसरी तरफ पहुंच गया उसके तुरंत बाद झेलम नदी में बाढ़ आ गई जिसकी वजह से उसकी बहुत बड़ी सेना पानी में डूब गई| एलेग्जेंडर की सेना में अब मात्र 35000 सिपाहियों ही बचे थे| जिसमे से 11000 सिपाही नदी के दूसरी तरफ थे| अब पोरस का पल्ला भारी हो चूका था क्योंकि पोरस के पास 20000 सिपाही थे 5000 रथ,10000 घोरे और 5000 हांथी थे| अगले दिन सुबह युद्ध चालू हुआ| पोरस जनता था की अलेक्जेंडर की सेना की सबसे बडी ताकत उसकी घुडसवार सेना थी| युद्ध के शुरुआत में ही पोरस ने 500 हांथी युद्ध में उतर दिए| यह हांथी बिलकुल किसी टैंक की तरह थे जो भी इनके सामने आता था यह उसको अपने पैर से  कुचल देते थे| अलेक्जेंडर की सेना मामूली सेनापतियों तक नहीं पहुंच पा रही थी जो हाथी र बैठे थे तब राजा पोरस तक पहुंचना तो बहुत दूर की बात थी| एलेग्जेंडर की सेना हाथियों के पैरों तले कुचलता जा रही थी तभी एलेग्जेंडर के सेनापति ब्रूस्टर ने राजा पोरस के भाई अमर को मार दिया| राजा पोरस के भाई अमर को मार के वो और उतावला हो गया और राजा पोरस के बेटे विजय सिंह की तरफ पर बढ़ा| शायद वह नहीं जानता था कि वह घोड़े पर है और विजय सिंह हाथी पर| उसने घोड़े पर से 1 भाले को विजय सिंह की तरफ फैका पर वह भला उसके हाथी की सूंड में लगा और हाथी ने वह भाला तोड़ दिया| विजय सिंह ने अपने तीर का एक ऐसा वार किया जिसकी वजह से ब्रूस्टर की मौत हो गई| अपने इतने बड़े सिपहसालार की मौत देखकर एलेग्जेंडर ने युद्ध रोक दिया | अब उसकी सेना में एक विद्रोह का माहौल बन रहा था | उसने अब इस विद्रोह को रोकने एक ही उपाय सूझा और वह यह था महाराज पोरस से संधि उसने संधि कर ली और हार जाने  के तौर में 10000 स्वर्ण मुद्राएं राजा पोरस को प्रदान की| राजा पोरस ने उस को आदेश दिया कि तुम भारत से चले जाओ और भारत में जीत हुए सभी राज्य उनके राजाओं को वापस लोटा दो | एलेग्जेंडर में ऐसे ही किया उसने अपनी सेना का एक बहुत बड़ा हिस्सा सिन्धु नदी के रस्ते से वापस फ़ारस भेज दिया और बचे सिपहिओं के साथ जाट प्रदेश वर्तमान हरियाणा के राज्य से होते हुए जा रहा था| उस समय उसका सामना वहां के जाट वीरों से हो गया और जाटों ने उस को बहुत हानि पहुंचाई| युद्ध से जाते समय एक जाट ने उसके पीठ पर वार कर दिया| पर उसके सैनिकों ने किसी तरह से उसे वहां से निकल लिया यह घटना आज के सोनीपत शहर में हुई थी| सोनीपत से उत्तर में 60 किलोमीटर चलने के बाद उसकी मौत हो गई|
अब मैं आप को बताउगा की क्यों इतिहास में लिखा है कि एलेग्जेंडर ने पोरस को हराया था| क्योंकि उस समय पश्चमी राज्यों का प्रभाव था और उन्होंने इतिहास लिखा| इसलिए कहा जाता है कि अलेक्स्जेंडर ने पोरस को हराया था और इसके साथ अन्य कहानियां जोड़ के ये बताया कि भारत देश को जीतने के बाद वह जब लौट रहा था तब किसी दुर्घटना के कारण उसकी मृत्यु हो गयी|  |

अब मैं आप को कुछ कारण बतायुंगा जिससे यह साबित होता है कि पोरस ने अलेक्स्जेंदाएर को हराया था|
1-अगर अलेक्स्जेंदर युद्ध जीतता तो वह मगध तक जाता पर उसने ऐसा नहीं किया|
2-इतिहासकार कर्तियास जो की एक बहुत बड़े इतिहासकार हैं वो लिखते है की अलेक्स्जेंदर का बहुत बरी सेना युद्ध में मारा गया था और युद्ध में पोरस की जीत हुई थी|

3- पश्चमी इतिहास के महान इतिहासकार इ.एन.डब्लू. बेज लिखते हैं की पोरस के हाथियों के दल ने अलेक्स्जेंडर की बहुत बड़ी सेना को मार दिया था, जिसमे उसके 5 सेनापति भी थे| इस हानि को देखते हुए अलेक्स्जेंदर ने पोरस से संधि कर ली थी|

पोरस के बारे में कुछ खास बातें- ग्रीक इतिहासकर लिखते हैं की पोरस 9 फीट से भी लम्बा था| उसकी सेना में जितने भी योद्धा थे सब 7 फीट से ऊपर के थे| पोरस की सेना की ताकत उसके हंथियों और भाले वाले सिपहिओं थे|


तो दोस्तों यह थी पोरस और सिकंदर के बीच हुए युद्ध का असली परिणाम| इस ब्लॉग को ज्यादा से जयादा कमेंट करें और शेयर करें| 
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                             ।। जय भारत ।।
         धन्यवाद्                                                 
         27\5\18                                     परम कुमार
                                                        कक्षा-9
                                               कृष्णा पब्लिक स्कूल
                                                 रायपुर
       
    यह फोटो गूगल के इस लिंक से लिया गया है|
 https://www.jatland.com/home/Porus

Thursday 17 May 2018


नमस्कार दोस्तों आप का मेरे इस ब्लॉग में स्वागतहैं| आज हमारे चर्चा का विषय ना ही किसी योद्धा पर है ना हीं किसी युद्ध पर| अब आप सोच रहे होंगे तो फिर किस पर है? मित्रों आज हमारी चर्चा का विषय युद्ध में इस्तमाल होने वाली रणनीतियों यानि व्यूह पर है| आप सब ने महाभारत तो देखी ही होगा | उसमें  युद्ध के 13 वे दिन कौरवों  के सेनापति आचार्य द्रोणाचार्य ने पांडवों के विरुद्ध एक व्यूह की रचना की थी| जिसे हम चक्रव्यूह के नाम से जानते हैं | इसमें अभिमन्यु ने प्रवेश तो किया था पर उसको  लौटने का मार्ग नहीं पता  था, इसलिए वो मारा गया| हममें से अधिकतर लोग यही मान के चलते हैं| पर क्या आप यह जानते हैं की इस व्यूह में उसकी मृत्यु का एक और कारण था? नहीं ना, तो आज हम इस पर, कितने प्रकार के व्यूह होतें हैं, उनको बनाने के लिए कितने सैनिक लगते हैं और वो कैसे नष्ट किये जा सकते हैं ? हम आज इन सब बातों पर चर्चा करेंगे| तो आइये शुरू करते हैं|
व्यूह 13 प्रकार के होते हैं
शकटव्यूह, गर्भव्यूह, सूचिव्यूह, अर्ध्चान्द्रव्यूह, सर्वोतोभाद्रव्यूह, मक्रव्यूह, सर्पव्यूह, मंद्लाव्यूह, शेयांव्यूह, त्रिशुल्व्हियु, सत्रह्चाक्र्चाक्रव्यूह, पद्मव्यूह और कश्यप्व्ह्यु |

इन सब में से सब से खतरनाक पांच व्यूह हैं- अर्ध्चान्द्रव्यूह, सर्वोतोभाद्रव्यूह, सत्रह्चाक्र्चाक्रव्यूह, पद्मव्यूह और कश्यप्व्ह्यु| इन सब व्यूह को बनाने के लिए कम से कम 6 अक्षौहिणी सेना की जरुरत होती हैं| पर 17 चक्र च्क्रव्यूह कम सेना के साथ भी बनाया जा सकता हे| बाकी के बचे व्यूह को बनाने के लिए कम से कम 27000 सेना की जरुरत  होती हे| एक अक्षौहिणी सेना में 21000हांथी, 21000 रथ, 65000 घुड़सवार और 100000 पैदल सिपाही होते थे| माना जाता है की महाभारत के युद्ध में 18 अक्षौहिणी सेना मारी गयी थी| मतलब महाभारत के युद्ध में 37 लाख 26 हजार सैनिक मारे गए थे| तो आईये जानते हैं की इन व्यूह की रचना केसे होती थी|

1-      शकटव्यूह- यह व्यूह चौकोर डिब्बे जेसा होता है| इस में पांच पड़ाव होते हैं| सबसे पहले 20000 पैदल सैनिकों की एक टुकड़ी रहती है | उसके बाद 5000 रथों की एक टुकड़ी| इस व्यूह के बीचों बीच राजा अपने मुख्यमंत्री और सेनापति चतुरंग्नी सेना (चतुरंग्नी सेना चार प्रकार की सेना होती है जिसमें पैदल सैनिक, घुड़सवार सैनिक, हाथी और रथ पर सवार सैनिक) के साथ वहां रहते थे| इसके बाद 1000 हांथी और 2000 पैदल सैनिकों की एक टुकड़ी वहां रहती थी | इस व्यूह के आखरी पड़ाव में 2100 घोड़ों की एक टुकड़ी रहती थी| इस व्यूह को बनाने के लिए कुल 30100 सैनिकों  की जरुरत पड़ती थी| इस व्यूह को तोड़ने के लिए इसके उपर अगर एक साथ आक्रमण किया जाये तो यह व्यूह टूट सकता| इसे तोड़ने का बस एक यही तरीका है|

2-      गर्भव्यूह- यह व्यूह गोल आकार का होता है जेसे की किसी गर्भवती स्त्री का पेट हो| इस व्यूह में होती तो 6 पंक्तियाँ थी पर वो 6 पंक्तियाँ 3 हिससों में बंटी रहती थी | सब से पहली पंक्ति में 6000 पैदल और 4000 घुडसवार सैनिक रहते थे| दूसरी पंक्ति में 10000 रथ होते थे| तीसरी पंक्ति में चतुरंग्नी सेना रहती थी| तीसरी पंक्ति के आखरी हिस्से में राजा और उसके विश्वासपात्र सैनिक रहते थे| चौथी पंक्ति में 10000 हांथी रहते थे| पांचवी पंक्ति में  5000 घुड़सवार और 5000 हांथी रहते थे| आखरी पंक्ति में 10000 पैदल सिपाही होते थे| इस व्यूह को तोड़ाने के लिए सूचिव्यूह की रचना करनी पडती थी | अगर सूचिव्यूह की मदद से गर्भ व्यूह की तीसरी पंक्ति पर वार किया जाये तो इसे तोड़ा जा सकता हे| गर्भ व्यूह को बनाने के लिए 70000 सैनिकों  की जरुरत परती थी|

3-      सूचिव्यूह- यह व्यूह किसी लम्बे नुकीले भाले की तरह होता था और इसमें केवल एक पंक्ति होती थी जो पूरी एक अक्षौहिणी सेना का बना होता था| राजा इस व्यूह के ठीक सामने होता था पर उसकी हिफाज़त सेना के सबसे खूंखार लड़ाके करते थे| आप सोच रहे होंगे की इस व्यूह को तोड़ना सबसे असान होगा क्योंकि राजा तो इस व्यूह के सामने ही रहता हैं| उसे मार ने से ही व्यूह टूट जायेगा परन्तु ऐसा नहीं हैं क्योंकि राजा जिस रथ में बेठाता था उसकी रक्षा सेना के सबसे ताकतवर योद्धा करते थे| इसे तोड़ने का बस एक ही तरीका था कि अगर घुड़सवार एक साथ इसके दायें और बाएं तरफ हमला करें तो यह व्यूह टूट जायेगा|   
   4-  अर्धचंद्रव्यूह-यह व्यूह सब से जटिल व्यूहयों में से एक हे| इस को बनाने के लिए 6 अक्षौहिणी सेना की जरुरत पडती है| इसमें तीन पंक्तियाँ होती थी जो 1-1 अक्षौहिणी सेना से बनी रहती थी | बाकी की बची 3 अक्षौहिणी सेना इसके पीछे रहती थी| जेसे ही कोई सेना या कोई और व्यूह इस अर्धचन्द्रव्यूह की तरफ बढ़ता था तब अर्धचन्द्रव्यूह के पीछे की सेना सामने आके जो व्यूह या सेना अर्धचन्द्रव्यूह के अन्दर प्रवेश करती थी उसे घेर लेती थी| और अर्धच्न्द्रव्यूह पूर्णचंद्रव्यूह बन जाता था और अन्दर फँसी सेना को मार देता था| इस व्यूह को तोड़ने का बस एक ही तरीका था और वो यह की इसमें सीधे ना घुस के किसी और तरफ से हमला किया जाये तभी इस व्यूह को तोडा जा सकता था| 

5-   सर्वतोभद्रव्यूह- यह भी सब से जटिल व्यूहओं में से एक हे| यह व्यूह आज तक कोई नहीं बना पाया था क्योंकि इसे बनाने के लिए 27 अक्षौहिणी सेना की जरुरत पड़ती थी| मतलब इस व्यूह को बनाने के लिए कुल 55 लाख 89 हजार सिपाहिओं की जरुरत थी| क्योंकि यह व्यूह कभी बनाया नहीं गया तो इसे तोडा भी नहीं जा सकता था| सर्वतोभद्र का मतलब होता है नक्षत्रों को देखने का एक बहुत अलग तरीका | जैसा की हम सब जानते हें की 27 नक्षत्र होते हैं| इस व्यूह में भी 27 हिस्से होते थे जो एक साथ आगे बडते थे ,एक ही रेखा में| क्योंकि इस व्यूह का कभी उपयोग नहीं हुआ तो इसे तोड़ने का और शत्रु को इसके अन्दर कैसे फँसाया जाये इसका कोई विवरण नहीं है |

6-   मक्रव्यूह- मक्र का मतलब मकड़ी होता हे| आप सोच रहे होंगे की यह बहुत कमजोर व्यूह होगा पर ऐसा नहीं है | इसे बनाने के लिए 6 अक्षौहिणी सेना की जरुरत होती थी और जैसे मकड़ी के जाले में सात पंक्तियाँ होंती हैं उसी प्रकार इसमें भी सात पंक्तिया होती थीं| सब से आगे की पंक्ति में 30000 हजार सिपाही भाले और ढाल लेकर खडे रहते थे और कुछ सिपाही रस्सियाँ लेकर खडे रहते थे| जेसे ही कोई पहली पंक्ति के पास पहुँचता था रस्सी वाले सिपाही रस्सी के फंदे बनाकर उनके उपर फेक देते थे और व्यूह के अन्दर खीच लेते थे| भाले वाले सिपाही उन्हें मार देते थे| दूसरी पंक्ति में धनुर्दर रहते थे| अगर बहुत बडी सेना ने एक ही बार में हमला कर दिया तो वो अग्नि बाण चला के उस सेना को अग्नि के एक गोले में घेर लेते थे फिर उन्हें मार देते थे| इस व्यूह को तोड़ने का बस एक ही तरीका था और वो था कश्यप व्यूह| इसे केवल कश्यप व्यूह से ही तोडा जा सकता था

7-    सर्पव्यूह- यह व्यूह सर्प के आकार का होता था| इसे बनाने के लिए कम से कम 1 अक्षौहिणी सेना की जरुरत तो होती थी| इस व्यूह की खासियत थी की यह सर्प की तरह ही चलता था तो किसी को भी पता नहीं चलता था की व्यूह किस दिशा में जा रहा हे| इस व्यूह के सामने कैसी भी सेना आजाये यह उसे निगल लेता था मतलब अपने अन्दर ले लेता था बिलकुल एक साँप की तरह और फिर मार देता था| इस व्यूह को तोड़ने का बस एक ही तरीका था शेयांव्यूह( गरुण व्यूह) बस इसी तरीके से अगर इसके सिर पर वार किया जाये तो यह सर्प व्यूह टूट जा ता है|

8- मंडलव्यूह - यह व्यूह सूर्य मंडल जैसा था| जिसमे 9 गृह थे| उसी प्रकार इसमें 9 पंक्तियाँ 9 ग्रहों के आकार में खडी रहती थी| इसे बनाने के लिए 9 अक्षौहिणी सेना की जरुरत पड़ती थी| जैसे सूर्य मंडल में सूरज बीच में होता हैं और बाकी सब गृह उसकी परिक्रमा करते थे वेसे ही राजा इस व्यूह के बीच में होता था और बाकी सब पंक्तियाँ इसके चारों तरफ घूमती रहती थी |इसकी एक और खास बात यह थी की इस व्यूह को तोडा नहीं जा सकता था|

9 - श्येनव्यूह(गरुण व्यूह)- यह व्यूह आक्रमण के लिए कभी भी इस्तेमाल नहीं हुआ था इसे सिर्फ सर्प व्यूह को तोड़ने के लिए इस्तमाल किया गया था| इसलिए इसके बारे में जायदा विवरण नहीं मिलता|



 10-  सत्रहचक्र चक्रव्यूह- यह एक बहुत जटिल व्यूह में से एक है और इसे कम सेना के साथ भी बनाया जा सकता है| इस में 17 चक्र होते हैं | बीच के 17 वें चक्र में राजा होता है और बाकी 16 चक्र उसके इर्द गिर्द रहते हैं | इसके द्वारा किसी भी बडी सेना को 17 हिस्सों में बाँट कर मारा जा सकता हे| इसे किसी और व्यूह के द्वारा तोडा भी नहीं जा सकता हे| इसे तोड़ने का बस एक ही तरीका है कि इस के सब से कमजोर चक्र तो तोड़ा दिया जाये तो यह व्यूह टूट जायेगा|


    11-  त्रिशूलव्यूह- यह व्यूह त्रिशूल के आकार का होता था इसको बनाने के लिए 4 अक्षौहिणी सेना की जरुरत पडती थी| तीन अक्षौहिणी सेना इस व्यूह की नोक बनाते थे और बाकी की 1 अक्षौहिणी सेना त्रिशूल की लकडी बनाती थी जिस पर व्यूह की नोंक लगती थी| इस व्यूह की खासियत यह थी कि यह एक बार में तीन दिशाओं में हमला कर सकती थी और अगर इसकी एक नोक टूट भी जाये तो बाकी दो नोकों से हमला किया जा सकता था| अगर इस व्यूह में एक ही नोंक बचती थी तो भी यह हमला कर सकता था| इसे तोड़ने का बस एक ही तरीका था कि अगर इसके तीनो नोकों पर एक साथ हमला कर दिया जाये तो यह व्यूह ध्वस्त हो जायगा|

    12-  पद्मव्यूह(चक्रव्यूह)- यह सभी व्यूह में सब   से जटिल व्यूह है इसमें सात चक्र होते हैं जो   निरंतर घूमते रहते हैं और आगे बड़ते रहते हैं|   बिलकुल किसी स्क्रू की तरह | पर इसका   आकार  गोल होता हे| अगर कोई इस चक्रव्यूह   के अन्दर फँस गया और वो निकलना नहीं   जानता तो वो मारा जायेगा क्योंकि वो चक्रव्यूह के जितने अन्दर घुस जाये गा वो उतना ही मुश्किल हो जाएगा| इसे तोड़ने का बस एक ही तरीका है कि इसके घुसने के रास्ते को तोड़ दिया जाये| अभिमन्यु ने यह कर ने की कोशिस की थी पर जैसा मै  ने ऊपर लिखा है कि चक्रव्यूह दो तरह से लगातार घूमता रहता है| तो जिस समय अभिमन्यु ने च्क्रव्यूह में  प्रवेश किया था उस समय उसका निकास का रास्ता आगे था और घुसने का पीछे और वो निकासी के रस्ते से घुसे थे तो उनका सामना सब से ताकतवर योद्धाओं से पहले हुआ जिस की वजह से वो मारा गया|

13-  कश्यप्व्ह्यु- यह व्यूह कछ्युए के आकार का होता है| यह व्यूह चारों तरफ से बडी-बडी ढालों से बंद रहता हैं इसलिए बाहर के किसी भी आक्रमण का इस पर कुछ असर नहीं पडता| और यह शत्रुओं को बहुत बड़ी हानी पहुँचा सकता हे| पर यह व्यूह ऊपर से खुला रहता है तो अगर इस पर ऊपर से तीर चलाये जाये तो इस व्यूह को तोडा जा सकता है |

                   तो ऐसी थी हमारी प्राचीन भारत की  अतुल्य युद्ध नीतियाँ


                          || जय भारत || 


 17\05\2018

परम कुमार  
कक्षा - 9 
      कृष्णा पब्लिक स्कूल 
रायपुर
                                                                                                                                                                                                                                                                              


नोट : ब्लॉग में उपयोग किये गए चित्र निम्नलिखित सोर्स से लिए गए हैं :-


http://www.legendofvyas.com/library

http://allindiaroundup.com/mythology/how-was-a-chakravyuha-strategy-of-mahabharata-beaten/






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